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Monday, 11 August, 2025
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लेखकों ने जम्मू कश्मीर में पुस्तकों पर पाबंदी के आदेश को अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ बताया

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नयी दिल्ली, सात अगस्त (भाषा) लेखकों और विद्वानों ने बृहस्पतिवार को कहा कि जम्मू कश्मीर में 25 पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाया जाना ‘‘अफसोसजनक’’ है और ‘‘कश्मीरियों की अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर चेतावनी देने’’ का एक प्रयास है।

उन्होंने इस संबंध में केंद्र शासित प्रदेश के गृह विभाग द्वारा जारी आदेश पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए यह बात कही।

गृह विभाग ने ‘‘झूठे विमर्श और अलगाववाद को बढ़ावा देने’’ के लिए इन प्रकाशनों को जब्त करने का आदेश दिया है।

बुधवार को जारी आदेश में जम्मू कश्मीर सरकार ने कहा कि मौलाना मौदूदी, अरुंधति रॉय, ए जी नूरानी, विक्टोरिया स्कोफील्ड, सुमंत्र बोस और डेविड देवदास जैसे प्रसिद्ध लेखकों द्वारा लिखी गई पुस्तकों सहित कुछ अन्य पुस्तकों ने देश के खिलाफ ‘‘युवाओं को गुमराह करने, आतंकवाद का महिमामंडन करने और हिंसा भड़काने’’ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

गृह विभाग के आदेश पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, लेखक बोस ने कहा कि उनका मुख्य उद्देश्य ‘‘शांति के रास्ते तलाशना’’ रहा है और उन्होंने अपने लेखन पर ‘‘किसी भी तरह के अपमानजनक आरोप’’ को खारिज कर दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘मैंने 1993 से कई अन्य विषयों के साथ-साथ कश्मीर पर भी काम किया है। शुरू से ही, मेरा मुख्य उद्देश्य शांति के रास्ते तलाशना रहा है ताकि हिंसा समाप्त हो और संघर्षरत क्षेत्र, समग्र रूप से भारत और उपमहाद्वीप के लोग भय और युद्ध से मुक्त एक स्थिर भविष्य का आनंद ले सकें।’’

बोस ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मैं सशस्त्र संघर्षों के लिए शांतिपूर्ण तरीकों और समाधानों का प्रतिबद्ध और सिद्धांतवादी समर्थक हूं, चाहे वह कश्मीर हो या दुनिया का कोई और हिस्सा।’’

उनकी दो पुस्तकों, ‘‘कश्मीर एट द क्रॉसरोड्स: इनसाइड ए ट्वेंटीफर्स्ट-सेंचुरी कॉन्फ्लिक्ट’’ और ‘‘कॉन्टेस्टेड लैंड्स’’ पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

मानवविज्ञानी और विद्वान अंगना चटर्जी की पुस्तक ‘‘कश्मीर: अ केस फॉर फ्रीडम’’, जिसमें तारिक अली, हिलाल भट, हब्बा खातून, पंकज मिश्रा और अरुंधति रॉय ने सह-लेखन किया है, भी प्रतिबंधित पुस्तकों की सूची में शामिल है।

चटर्जी ने कहा कि ‘‘अधिनायकवादी शासन अपनी शक्ति का प्रदर्शन और उसे संगठित करने के लिए पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाते हैं।’’

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘…क्योंकि वे दमन, भय और हिंसा के माध्यम से शासन करते हैं… लेखकों की आलोचनात्मक अंतर्दृष्टि को खुलेआम सेंसर किया जाता है।’’

पुस्तकों में इस्लामी विद्वान और जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी की ‘‘अल जिहादुल फिल इस्लाम’’, ऑस्ट्रेलियाई लेखक क्रिस्टोफर स्नेडेन की ‘‘इंडिपेंडेंट कश्मीर’’, डेविड देवदास की ‘‘इन सर्च ऑफ ए फ्यूचर (द स्टोरी ऑफ कसिमीर)’’, विक्टोरिया स्कोफिल्ड की ‘‘कश्मीर इन कॉन्फ्लिक्ट (भारत, पाकिस्तान और अंतहीन युद्ध)’’, ए जी नूरानी की ‘‘द कश्मीर डिस्प्यूट (1947-2012)’’, और अरुंधति रॉय द्वारा लिखी गई ‘‘आज़ादी’’ शामिल हैं।

पत्रकार सह लेखक देवदास ने कहा कि यह प्रतिबंध ‘‘अफसोसजनक है, क्योंकि पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाना हमारे लोकतांत्रिक आदर्शों और हमारी सभ्यतागत परंपराओं के विरुद्ध है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मेरी पुस्तक तत्कालीन प्रधानमंत्री (अटल बिहारी) वाजपेयी की शांति प्रक्रिया की भावना के अनुरूप शांति, संवाद और लोकतंत्र की पुरजोर वकालत करती है…।’’

प्रतिबंधित पुस्तकों में अतहर जिया की ‘‘रेसिस्टिंग डिसएपियरेंस: मिलिट्री ऑक्यूपेशन एंड वूमेन एक्टिविज्म इन कश्मीर’’, मारूफ रजा की ‘‘कन्फ्रॉन्टिंग टेररिज्म’’, राधिका गुप्ता की ‘‘फ्रीडम इन कैप्टिविटी: नेगोशिएशन्स ऑफ बिलॉन्गिंग अलोंग कश्मीरी फ्रंटियर’’, डॉ. शमशाद शान की ‘‘यूएसए एंड कश्मीर’’, सुगत बोस और आयशा जलाल द्वारा लिखी गई ‘‘कश्मीर एंड द फ्यूचर ऑफ साउथ एशिया’’ शामिल हैं।

भाषा सुभाष धीरज

धीरज

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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