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Thursday, 25 April, 2024
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90 के दशक से चल रहा है अयोध्या के कारसेवकपुरम में काम, अब कैसी होगी मंदिर की तस्वीर

अयोध्या में दो मंजिला मंदिर बनाया जाएगा. भूतल में भगवान राम विराजित होंगे. प्रथम तल पर राम का दरबार होगा.

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नई दिल्ली : अयोध्या विवाद पर शनिवार को फ़ैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने विवादित ज़मीन हिंदू पक्ष को दे दी. सर्वोच्च अदालत ने सरकार से मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही कहीं पांच एकड़ ज़मीन देने को कहा है. साथ ही ये भी कहा है कि मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार एक समिति का गठन करे.

समिति गठन के निर्देश के बाद राम मंदिर निर्माण में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की भूमिका पर सवाल खड़ा हो गया है. इसके पीछे की वजह ये है कि वीएचपी मंदिर मुहिम की शुरुआत करने से लेकर कई स्तर पर मंदिर निर्माण से जुड़े काम करने की भूमिका में लगी रही.

ऐसे में देखने वाली बात होगी कि जब केंद्र सरकार समिति का गठन करती हो तो इसमें उन लोगों को शामिल करती है या नहीं जो मंदिर निर्माण से जुड़े कामों में लगे रहे हैं. कारसेवकपुरम में राम मंदिर का एक डिजाइन है और यहां पत्थरों पर नक्काशी का काम 1990 में वीएचपी ने शुरू किया था. इसके ऊपर 35 करोड़ रुपए के ख़र्च से करीब 40 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है. देखने वाली बात होगी कि केंद्र सरकार द्वारा बनाए जाने वाली समिति इसी मॉडल को आधार मानकर काम करती है या नहीं. इस मॉडल के हिसाब से राम मंदिर पर अभी 50 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च होंगे.

आइए आपको बताते हैं कि वीएचपी और मंदिर निर्माण के काम से जुड़े अन्य हितधारकों ने अब तक कौन से अहम काम किए हैं.

ऐसी रही है अब तक वीएचपी की राम मंदिर की परिकल्पना

उत्तर प्रदेश में विश्व हिंदू परिषद के प्रवक्ता शरद शर्मा ने दिप्रिंट हिंदी से कहा, ‘अभी तक राम मंदिर का जो मॉडल तैयार था उसके मुताबिक ‘पूरे मंदिर के लिए 1 लाख 77 हजार घनफुट पत्थर पर नक्काशी होना है. इसमें से अभी तक 1 लाख घनफुट पत्थर बनकर तैयार हो चुके हैं. मंदिर की 265 फीट पांच 5 फीट लंबाई है. इसकी चौड़ाई 140 फीट है. इसकी उंचाई 128 फीट है.’

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शर्मा के अनुसार, ‘श्रीराम का मंदिर दो मंजिला बनाया जाना है. इसमें भूतल में श्रीराम विराजित होंगे. प्रथम तल पर श्रीराम दरबार होगा. सिंह द्वार, रंगमंडप, नृत्य मंडप, परिक्रमा और गर्भगृह मंदिर के प्रमुख भाग हैं जिसका निर्माण पूरा हो चुका है.’

‘प्रत्येक मंजिल पर 106 खंबे होंगे. सभी बनकर तैयार है. इन पर 16 मूर्तियों का निर्माण होना है जो मंदिर निर्माण के दौरान ही होगा.’

शर्मा ने बताया कि, ‘मंदिर के निर्माण के लिए जो पत्थर का इस्तेमाल किया जा रहा है. वह पिंक सैंडस्टोन है. यह राजस्थान के भरतपुर के पास बंसी पहाड़पुर से आता है.’

‘मंदिर निर्माण के आंदोलन की शुरुआत प्रमुख संत और धर्माचार्यों ने की थी. 1984 में विश्व हिंदू परिषद ने इस आंदोलन को अपने हाथ में लिया. इसके बाद से लगातार इस मसले पर सक्रिय है. इसके बाद पत्थरों की नक्काशी व अन्य काम श्रीराम जन्मभूमि न्यास द्वारा किया जा रहा है.

शर्मा ने बताया कि, ‘1989 के दौर में समाज से पौने चार करोड़ रुपए एकत्र हुए थे. इसके ब्याज और मूलधन से अभी तक मंदिर निर्माण का काम चल रहा था’

बिड़ला परिवार ने अशोक सिंघल को सुझाया था आर्किटेक्ट सोमपुरा का नाम

गुजरात के अहमदाबाद के रहने वाले आर्किटेक्ट चंद्रकांत भाई सोमपुरा ही वह व्यक्ति हैं जिन्होंने अयोध्या के श्रीराम मंदिर का डिजाइन तैयार की है. फिल्हाल उन्होंने जो मॉडल बनाया है वह श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए अयोध्या के कारसेवकपुरम में रखा गया है.

आर्किटेक्ट चंद्रकांत भाई सोमपुरा ने दिप्रिंट हिंदी से कहा, ‘मंदिर का करीब 40 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है. इसमें फ्लोर और कॉलम का काम शामिल है. वहीं 50 फीसदी से ज्यादा पत्थरों के तराशने का भी काम हो गया है. अभी 35 करोड़ के लगभग खर्च हो चुके हैं. अगर पुराने मॉडल के हिसाब से राम मंदिर का निर्माण होता है तो 50 करोड़ रुपए और खर्च हो सकते हैं. इनमें भी केवल मंदिर निर्माण का काम ही होगा. मंदिर के आसपास के निर्माण का जो खर्चा होगा अलग है.’

सोमपुरा ने बताया, ‘पूरे मंदिर के निर्माण में पिंक सैंडस्टोन का इस्तेमाल हो रहा है. यह सभी लगाने की इच्छा वीएचपी नेता अशोक सिंघल की थी. मंदिर के आसपास बनने वाले भवन, धर्मशाला में अन्य तरह के पत्थरों का प्रयोग होगा.’

उन्होंने बताया, ‘मंदिर का जो मॉडल तैयार हुआ है वह वास्तु शास्त्र के हिसाब से नागर शैली में डिज़ाइन किया गया है. यह शैली दक्षिण भारत को छोड़कर पूरे उत्तर भारत में प्रचलित है. कर्नाटक से लेकर कश्मीर तक और महाराष्ट्र से लेकर पुरी तक में इसी शैली में मंदिर निर्माण किया जाता है. मंदिर का गर्भगृह अष्टकोण में है. मंदिर की परिक्रिमा गोलोई में है.

‘पुराने डिज़ाइन के अनुसार इस मंदिर में सीसीटीवी कैमरे, अत्याधुनिक सुरक्षा तकनीक, एलईडी लाइट और आधुनिक म्यूज़िक सिस्टम होंगे. इस मंदिर में कोई चीज़ रोबोटिक नहीं होगी.’

सोमपुरा के अनुसार, ‘1989 से हम वीएचपी से श्रीराम मंदिर के डिज़ाइन को लेकर जुड़े हुए हैं. हम पीढ़ियों से बिड़ला परिवार के लिए मंदिर निर्माण का काम करते हैं. उन्होंने ही हमारा नाम परिचय वीएचपी के अशोक सिंघल से कराया था. सिंघल जी के गुजरने के बाद काम थोड़ा धीमा हुआ है लेकिन कुछ दिनों से काम पूरी तरह बंद है.’

‘हमारा काम केवल मंदिर की डिजाइन संबंधित था. मजदूरों और अन्य सामग्रियों का पैसा देना वीएचपी का काम था. हमने 100 से ज्यादा मंदिर अभी तक बनाए हैं. इनमें अमेरिका, लंदन, सेंट पीट्सबर्ग में भी कई मंदिर निर्माण किए हैं. इसके अलावा भारत में सोमनाथ मंदिर का डिजाइन भी हमारे परिवार द्वारा ही तैयार किया गया है.’

राजस्थान के बंसीपहाड़पुर के पत्थर से बने खंबे

सोमपुरा मार्बल के परेश रमेशचंद्र सोमपुरा ने दिप्रिंट हिंदी को बताया, ‘श्रीराम मंदिर के लिए 1996 से 2002 तक पत्थर नक्काशी होकर हमारे यहां से जाते थे. इन पत्थरों से मंदिर की दो मंजिल के खंबे और बाहरी दिवारों का निर्माण हुआ है.’

‘यह पत्थर राजस्थान के भरतपुर जिले के बयाना तहसील के बंसीपहाड़पुर गांव से जाते थे. इसे बंसीपहाड़पुर का पत्थर ही कहा जाता है. वीएचपी के पदाधिकारी ही यहां से पत्थर खरीदते थे. फिर हमें ट्रकों से नक्काशी करने के लिए भेज देते थे. नक्काशी के बाद फिर उन्हें अयोध्या पहुंचा देते थे.’

सोमपुरा के अनुसार, ‘हमारे अलावा पिनवाड़ा क्षेत्र से भरत शिल्प कला केंद्र और मातोश्री मार्बल से भी श्रीराम मंदिर के लिए पत्थर की नक्काशी होती थी. आर्किटेक्ट चंद्रकांत भाई सोमपुरा ने मंदिर का डिजाइन तैयार किया है. उन्हीं ने हम तीनों लोगों के नाम वीएचपी को पत्थर की नक्काशी के लिए सुझाए थे. तीनों कंपनियों ने जो पत्थर की नक्काशी की है उसी से दो मंजिल और बाहरी दिवारों का निर्माण हुआ है. तब इस पत्थर का दाम 150 रुपए क्यूबिक फीट थे. अब साढ़े 300 रुपए.’

अब मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार जो ट्रस्ट बनाएगी वो तय करेगी कि मंदिर के मौजूदा प्रारूप पर या फिर नए सिरे से काम शुरू करना है.

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