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Friday, 19 April, 2024
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72 की उम्र में काम, भीख मांगने के लिए मजबूर, तेलंगाना में पेंशन के लिए विधवा और बुजुर्ग कर रहे विरोध

यद्यपि तेलंगाना सरकार का दावा है कि फरवरी 2022 तक उसकी तरफ से आसरा योजना के तहत 36.42 लाख लाभार्थियों को पेंशन दी जा रही थी, लेकिन बताया जा रहा है कि लाखों लोग इससे वंचित हैं.

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हैदराबाद: तेलंगाना में रहने वाली 70 साल की विधवा पुनम्मा के पास जब घर पर खाने के लिए कुछ नहीं होता है तो वह खाली पेट ही सो जाती है. राज्य सरकार की विधवा और वृद्धावस्था पेंशन योजना के लिए पात्र पुनम्मा ने दिप्रिंट को बताया कि केसीआर प्रशासन की ‘आसरा’ योजना के तहत ‘कई बार आवेदन’ किए जाने के बावजूद उन्हें अब तक एक रुपया भी नहीं मिला है.

मुथ्यालम्मा गुडेम गांव निवासी पुनम्मा ने सोमवार को हैदराबाद तक पहुंचने के लिए दो घंटे लंबी यात्रा की, जहां वह अपनी पेंशन की मांग को लेकर आंदोलन करने के लिए शहर के ऐतिहासिक प्रदर्शन स्थल धरना चौक पर बैठी.

उन्होंने बताया कि अपनी आजीविका चलाने के लिए मिट्टी के बर्तन बनाने वाले उसके पति की दो साल पहले मृत्यु हो गई थी जिसके बाद उनके पास आय का कोई साधन नहीं रहा. इकलौता बेटा उनके साथ नहीं रहता है और ‘पांच-छह महीने में एक बार’ मात्र 1,000 रुपये भेजता है. वह आम तौर पर अपना गुजारा राज्य की राशन योजना के तहत मिलने वाली खाने-पीने की सामग्री पर करती हैं लेकिन उसके पास नाममात्र को भी पैसे नहीं होते हैं. वह अक्सर सोचती हैं कि भीख मांगना शुरू कर दे.

उन्होंने आगे बताया, ‘जैसे ही मेरे पति की मृत्यु हुई, मैंने विधवा पेंशन के लिए आवेदन किया. मैंने चार साल पहले वृद्धावस्था पेंशन के लिए भी आवेदन किया था, लेकिन मुझे कभी कुछ नहीं मिला. मैं 70 साल की हूं, मेरी नजर कमजोर है और इस उम्र में काम पर नहीं जा सकती. मुझे हर महीने दवाओं के लिए कम से कम 600 रुपये की जरूरत होती है और अक्सर मेरे पास खाने के लिए भी कुछ नहीं होता है.’

पुनम्मा से थोड़ी ही दूरी पर रुस्तापुर गांव (यदाद्री जिले) की 72 वर्षीय जिन्ना रामुलम्मा बैठी हैं. इतनी उम्र के बावजूद वह अपनी दैनिक जरूरतों को पूरी करने के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत 100 दिन काम करने के लिए मजबूर है.

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उन्होंने बताया कि तीन साल पहले पति की मौत के बाद उसके बेटों ने उसे छोड़ दिया. 2019 के मध्य में उसने एक विधवा के तौर पर सरकारी पेंशन के लिए आवेदन किया और अभी भी पैसे मिलने का इंतजार कर रही हैं.

उन्होंने बताया, ‘मुझे अक्सर भोजन या पैसों के लिए लोगों के आगे हाथ फैलाने पड़ते हैं. नहीं तो मैं अपनी दवाएं कैसे खरीद पाऊंगी? मेरे हाथों और पैरों में दर्द होता है और मेरे लिए काम पर जाना मुश्किल हो रहा है.’

स्वतंत्र किसान संगठन रायथु स्वराज्य वेदिका (आरएसवी) के कार्यकर्ताओं द्वारा से दायर सूचना के अधिकार (आरटीआई) आवेदन के तहत पिछले महीने मिले आंकड़ों के अनुसार, ये बुजुर्ग विधवा महिलाएं उन अनुमानित 3,15,262 लोगों में शामिल हैं जो आसरा के तहत लाभार्थी पेंशनभोगियों के तौर पर नामांकित हैं, लेकिन उन्हें राज्य की तरफ से कोई पैसा नहीं मिला है.

‘आसरा’—जिसका मतलब होता है किसी को मदद देना—पेंशन योजना 2014 में तत्कालीन नवनिर्मित राज्य तेलंगाना में मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व में बनी पहली सरकार ने शुरू की थी. योजना के तहत वरिष्ठ नागरिकों, विधवाओं, दिव्यांगों, बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) श्रेणी के लोगों, बुनकरों, ताड़ी काटने वालों, बीड़ी श्रमिक, अकेली महिलाओं और एचआईवी और फाइलेरिया रोगियों के लिए पेंशन का प्रावधान किया गया है.

तेलंगाना सरकार ने आरटीआई के जवाब में बताया है कि फरवरी 2022 तक उसकी तरफ से 36.42 लाख लाभार्थियों को पेंशन मुहैया कराई जा रही थी.

‘चुनावों का इंतजार कर रहे’

तेलंगाना उन शीर्ष राज्यों में शामिल है जहां उच्च पेंशन राशि (औसतन 2,016 रुपये प्रति माह) का भुगतान किया जाता है. 2018 के विधानसभा चुनावों के दौरान मुख्यमंत्री राव ने वादा किया था कि अगर सत्ता में लौटे तो आसरा के तहत सहायता में वृद्धि करेंगे.

उनके दोबारा जीतने पर विधवा पेंशन पहले के मुकाबले 1,000 रुपये से बढ़ाकर 2,016 रुपये कर दी गई और विकलांग पेंशन भी 1,500 रुपये से बढ़ाकर 3,016 रुपये कर दी गई.

मुख्यमंत्री ने वृद्धावस्था पेंशन के लिए पात्रता आयु को 65 वर्ष की पूर्व सीमा से घटाकर 57 वर्ष करने का भी वादा किया था, जिसे पिछले साल अगस्त में लागू कर दिया गया था.

आरएसवी कार्यकर्ता कोंडल रेड्डी के मुताबिक, आयु सीमा घटाकर 57 वर्ष कर देने के बाद तेलंगाना सरकार के विभाग सोसाइटी फॉर एलिमिनेशन ऑफ रूरल पॉवर्टी (एसईआरपी) को राज्यभर से लगभग 7,80,000 आवेदन प्राप्त हुए. रेड्डी ने दिप्रिंट को बताया, ‘सभी आवेदन पात्र हैं और अभी मंडल राजस्व कार्यालयों में लंबित हैं.’ रेड्डी ने एसईआरपी अधिकारियों से मिले आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि यह संख्या उन 3,15,262 पात्र आवेदकों के अलावा है जो अपनी पेंशन का इंतजार कर रहे हैं.

किसी भी पेंशन आवेदन को स्वीकार किए जाने से पहले ग्राम पंचायत और मंडल स्तर पर सत्यापन प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है.

पेंशन से वंचित लाभार्थियों के बारे में बात करते हुए पूर्व आईएएस अधिकारी गोपाल राव, जो सोमवार को आंदोलन के दौरान मौजूद थे, ने आरोप लगाया, ‘कुछ आवेदन तीन साल से अधिक समय से लंबित हैं. यह दर्शाता है कि तेलंगाना सरकार आसरा योजना को कितनी अच्छी तरह लागू कर रही है. ऐसा लगता होता है कि इन पेंशनों को चुनाव के समय मंजूरी दी जाएगी. क्या इन लाखों लोगों को अगले चुनाव तक इंतजार करना चाहिए?’

पेंशन मामले देखने वाले एसईआरपी के सीईओ संदीप कुमार सुल्तानिया ने पिछले साल एक जनहित याचिका (पीआईएल) के जवाब में कहा था कि तेलंगाना सरकार आसरा पेंशन योजना को एकदम पारदर्शी तरीके से लागू कर रही है.

जनहित याचिका में कोर्ट से अपील की गई थी कि वह सरकार को पेंशन योजना को पारदर्शी तरीके से लागू करने का निर्देश दे और अन्य बातों के अलावा आवेदकों की स्थिति पता करने के लिए एक वेब पोर्टल तैयार कराए.

इसके जवाब में 2021 में अदालत में दायर हलफनामे में सुल्तानिया ने बताया था, ‘2021-22 के लिए आसरा योजना के 39.26 लाख लाभार्थियों के लिए आवंटित बजट 11,508 करोड़ रुपये है.’

इस संबंध में प्रतिक्रिया के लिए मंगलवार को दिप्रिंट की तरफ से किए गए फोन कॉल और टेक्स्ट मैसेज पर सुल्तानिया ने कोई जवाब नहीं दिया.

रेड्डी ने कहा, ‘हमने केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में पेंशन आवेदन की स्थिति की जांच की, कहीं से भी ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली कि तीन महीने से अधिक समय से पेंशन राशि का भुगतान नहीं किया गया हो.’

रेड्डी ने कहा, ‘दो साल या उससे अधिक समय से पेंशन का भुगतान न होने का मतलब है कि तेलंगाना पर इन लाभार्थियों का 50,000 रुपये या उससे अधिक बकाया है—क्या उन्हें यह भुगतान किया जाएगा?’

पेंशन लंबित होने के सवाल को लेकर दिप्रिंट ने तेलंगाना के ग्रामीण विकास मंत्री एराबेली दयाकर राव से संपर्क साधा, उनकी टीम को टेक्स्ट मैसेज भेजा, लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.

कोविड का नतीजा

आरटीआई पर दिए गए जवाब के मुताबिक, तेलंगाना सरकार से पेंशन के पैसे मिलने का इंतजार कर रहे 3,15,262 लाभार्थियों में से करीब आधी यानी 1,59,452 विधवाएं हैं.

पिछले साल दायर ऐसी ही एक आरटीआई से सामने आई तस्वीर बताती है कि एक साल पहले फरवरी 2021 में लंबित पेंशन की प्रतीक्षा कर रही विधवाओं की संख्या करीब 82,485 थी.

सामाजिक कार्यकर्ता और आरएसवी वालंटियर श्रीहर्ष का कहना है कि इस आंकड़े में व्यापक वृद्धि पिछले साल दूसरी कोविड लहर के दौरान बड़ी संख्या में लोगों की मौत के कारण भी हो सकती है.

श्रीहर्ष ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि तमाम महिलाओं के पति कोविड के कारण चल बसे. हमने जो सैंपल सर्वे किया, उसमें पाया गया है कि बहुत से लोगों को कम से कम दो साल से पेंशन नहीं मिली है. हमारे सर्वेक्षण (1,000 नमूना आकार के) से पता चला है कि ऐसे लोगों में अधिकांश महिलाएं हैं.’

राज्य के नलगोंडा जिले के देवरकोंडा मंडल में रहने वाली 32 वर्षीय ललिता उन महिलाओं में शामिल है जिन्होंने कोविड के कारण अपने पति को गंवा दिया—वही उनका एकमात्र सहारा था. ललिता का पति एक ऑटो चालक था, जिसका पिछले साल निधन हो गया और अब उसके पास आय का कोई साधन नहीं बचा है और उसे अपनी तीन बेटियों का पालन-पोषण करना है.

उसने कहा, ‘हर महीने 2,016 रुपये की पेंशन राशि हमारे लिए बहुत मददगार हो सकती है.’

दुख की घड़ी में एक साथ

दिप्रिंट सोमवार को वारंगल जिले में रहने वाले 72 और 70 वर्ष के दो भाइयों दांडी इलैया और दांडी मलैया से भी मिला. इतनी उम्र होने के बाद भी दोनों को खेतों की रखवाली के लिए मजदूर के तौर पर काम करना पड़ता है. यह सुनिश्चित करने के लिए वे घंटों खेतों में खड़े रहते हैं कि कोई जानवर फसलों को नुकसान न पहुंचाए. दोनों ने पांच साल पहले सरकारी पेंशन के लिए आवेदन किया था, लेकिन दावा किया कि उन्हें कुछ नहीं मिला.

इलैया ने कहा, ‘हमारे पास कोई जमीन नहीं है और हम किसी के लिए काम करते हैं. इस काम के लिए हमें करीब 1,500 रुपये मिलते हैं.’

प्रदर्शन स्थल पर मौजूद हैदराबाद के 60 वर्षीय देवैया की स्थिति में कुछ ऐसी ही है, जो 2020 की शुरुआत में एक हादसे के शिकार बन गए थे. इसमें उनके पैर बेकार हो गए. अन्य लोगों की तरह उन्होंने भी दुर्घटना के तुरंत बाद विकलांग पेंशन के लिए आवेदन किया, लेकिन उन्हें अब तक कोई पेंशन नहीं मिली. बच्चों के साथ छोड़ देने के बाद देवैया अपनी पेंशन की स्थिति पता करने को स्थानीय कार्यालय ले जाने के लिए अपनी पत्नी गंगम्मा पर निर्भर है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि अगर उन्हें पेंशन का पैसा समय पर मिल जाता, तो उनकी पत्नी को 59 साल की उम्र में घरेलू सहायिका के रूप में काम नहीं करना पड़ता.

श्रीहर्ष ने पेंशनभोगियों की ऐसी हालत पर दुख जताते हुए कहा, ‘सामाजिक सुरक्षा उनका अधिकार है, सरकार का दान नहीं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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