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Monday, 23 December, 2024
होमडिफेंस‘कोरे बयान नहीं कार्रवाई की जरूरत’, सैनिक जयशंकर की चीन के साथ शांति वार्ता से संतुष्ट नहीं

‘कोरे बयान नहीं कार्रवाई की जरूरत’, सैनिक जयशंकर की चीन के साथ शांति वार्ता से संतुष्ट नहीं

जयशंकर-वांग वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए एक कोर कमांडर-स्तरीय बैठक की योजना है, लेकिन भारत चाहता है कि पीएलएल सबसे पहले तो सैनिकों की वापसी संबंधी पूर्व समझौतों पर अमल करके क्षेत्र में तनाव घटाना शुरू करें.

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नई दिल्ली: भारत के रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान ‘सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति बहाली और उसमें प्रगति’ की चीन की बात से बहुत संतुष्ट नहीं है, जैसा कि उसने गुरुवार को विदेश मंत्री एस. जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में कहा है.

इनका मानना है कि सीमा पर तनाव हल करने की दिशा में प्रगति के लिए चीन को अपने शब्दों को जमीनी हकीकत में बदलना होगा.

रक्षा और सुरक्षा सूत्रों ने कहा कि भले ही चीन शांति की बात करता हो, लेकिन करीब 40 सैनिकों का एक समूह चुशुल सेक्टर में भारतीय अग्रिम चौकियों के दूसरी तरफ राइफल और लोहे की छड़ें लेकर तैनात रहता है, जिसमें ऊपर लगे कुल्हाड़ी जैसे हथियार साफ नजर आते हैं.

सूत्रों ने आगे कहा कि चीनियों ने पिछले दो दिनों में तनाव घटाने की कोई कोशिश नहीं की, वह वहीं पर ‘जमे हुए’ हैं.

सूत्रों ने बताया कि भारत ने कभी किसी हिंसक कार्रवाई नहीं की, और हमेशा से इलाके में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए पूर्व के समझौतों के पालन पर जोर देता रहा है.

सूत्रों ने कहा कि भले ही चीन शांति की बात करता हो, लेकिन दुर्गम क्षेत्रों में चीनी सैनिकों के निर्माण लगातार बढ़ रहे है.

अगस्त के अंत में पैंगोंग त्सो के दक्षिणी तट पर तनाव शुरू होने के बाद से ही चीन ने इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में सैनिकों, टैंकों और बख्तरबंद वाहनों को तैनात कर रखा है.


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सूत्रों का अनुमान है कि 100 से अधिक टैंक और बख्तरबंद वाहन लाए गए हैं. इनपुट्स यह भी बताते हैं कि चीनी एलएसी के पास ऑप्टिकल फाइबर बिछा रहे हैं, यह कदम चीन की मौजूदगी बढ़ाने और संचार नेटवर्क मजबूत करने का संकेत देता है.

यह पूछे जाने पर कि चीन की तरफ से क्या कार्रवाई स्वीकार्य है, सूत्रों ने कहा कि भारत हमेशा से ही पहले सैन्य वापसी प्रक्रिया और फिर तनाव घटाने के प्रयास पर जोर देता रहा है.

रक्षा प्रतिष्ठान के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘सबसे पहले सैन्य वापसी शुरू होना बहुत जरूरी है और इसके बाद तनाव घटाने के लिए यथास्थिति बहाली के प्रयास करने होंगे. यथास्थिति बहाली का मतलब है कि जिन सैनिकों और सैन्य उपकरणों को आगे बढ़ाया गया है, वह उसी तरह शिविर में वापस लौट जाएंगे जैसे आगे बढ़ने से पहले वाली स्थिति में होते थे. कुल मिलाकर इसका मतलब है कि पूर्ववत स्थिति में आना.’

सीमा पर तनाव घटाने के लिए भारत लगातार यथास्थिति बहाली– यानी सीमा पर अप्रैल में एलएसी पर चीनी घुसपैठ से पहले वाली स्थिति—की मांग करता रहा है.

राजनयिक वार्ता को कोर कमांडर आगे बढ़ाएंगे

भारत और चीन मौजूदा समय में ब्रिगेड कमांडर-स्तरीय वार्ता में लगे हुए हैं, जो अगस्त अंत में पैंगोंग त्सो में झड़पों के बाद से नियमित रूप से चल रही है जिनकी वजह से सीमा पर तनाव एक बार फिर चरम पर पहुंच गया था.

सूत्रों ने कहा कि रूस में जयशंकर और वांग के बीच हुए समझौतों को आगे बढ़ाने के लिए ताजा कोर कमांडर-स्तरीय वार्ता जल्द ही निर्धारित की जाएगी.

गुरुवार की बैठक मई में तनाव उत्पन्न होने के बाद से भारतीय और चीनी विदेश मंत्रियों के बीच पहली आमने-सामने की बातचीत थी. वार्ता मुख्यत: बातचीत जारी रखने, सैन्य वापसी में तेजी, दूरी कायम रखने और तनाव घटाने पर केंद्रित थी.

भारतीय सेना उम्मीद कर रही है कि चीन दोनों पक्षों के बीच क्षेत्र से सैन्य वापसी को लेकर पूर्व में हुए समझौतों पर अमल शुरू करके तनाव घटाने की शुरुआत करेगा.


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एक सूत्र ने कहा, ‘गलवान घाटी एकमात्र ऐसी जगह है जहां चीन पूर्व समझौतों के तहत पूरी तरह सैन्य वापसी के लिए सहमत हो गया था. हालांकि, यहां से चीनी सैन्य वापसी तनाव घटाने के गंभीर प्रयास से ज्यादा गलवान नदी में जलस्तर बढ़ने से ज्यादा जुड़ी है.

सूत्र ने कहा कि गोगरा क्षेत्र से चीन की वापसी अभी पूरी तरह बाकी है और पैंगोंग त्सो के उत्तरी तट पर फिंगर 4 से पीछे हटने से वह साफ इनकार कर चुका है.

सूत्र ने कहा, ‘कुछ अन्य जगहों पर भी तनाव की स्थिति बन गई है. बातचीत जारी रहने के बीच चीनियों ने दक्षिणी क्षेत्रों में भी भारतीय इलाकों पर कब्जे की कोशिश की है, हम उनका मुकाबला कर रहे हैं.

चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने 28 अगस्त को चुशुल में स्थानीय हॉटलाइन के माध्यम से भारतीय सेना से संपर्क साधा था, और दोनों पक्षों ने कोई कार्रवाई न करने और रात में गश्त से बचने के बारे में बात की थी.

लेकिन बाद में उसी रात पीएलए ने 1,000 से अधिक सैनिकों को पैंगाग त्सो के दक्षिणी तट पर भारतीय इलाके में कब्जा करने के लिए भेज दिया. लेकिन भारतीय सैनिकों ने पीएलए को मात देते हुए भारतीय अवधारणा के अनुरूप एलएसी के इधर वाली पहाड़ियों पर कब्जा जमाकर यह कोशिश नाकाम कर दी.

सूत्रों ने कहा कि राजनयिक बातचीत ने सैन्य स्तरों पर बातचीत के लिए नया रास्ता खोला है.

गलवान घाटी में 15 जून को हुई झड़प का हवाला देते हुए एक सूत्र ने कहा, ‘वार्ता पहले भी हुई थी. यह भी तय किया गया था कि तनाव घटाना सबसे अहम है, लेकिन चीन ने इसके विपरीत आक्रामक रुख अपनाया और यहां तक कि 20 सैनिकों की जान लेने वाले हमले को अंजाम दिया. उक्त सूत्र ने आगे कहा, ‘हालांकि, फिर से बातचीत के लिए एक नया अवसर मिला है और उम्मीद है कि बयान जमीनी हकीकत में बदलेंगे.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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