नयी दिल्ली, सात मार्च (भाषा) हिंदी फिल्मों में मां के किरदार को आम तौर सफेद साड़ी पहने, लंबे समय तक पीड़ित रही और अपने बेटे के घर आने का इंतजार करती हुई एक महिला के रूप में दिखाया जाता रहा है।
यह मां के किरदार की छवि है, जो हिंदी फिल्में देखने वालों की कई पीढ़ियों की सामूहिक स्मृति में अंकित है।
लेकिन, हिंदी सिनेमा में अब यह तस्वीर तेजी से बदल रही है। निरूपा रॉय से लेकर राखी तक सीपिया रंग में चित्रित आदर्श ‘मां’ की छवियों में समय के साथ अब बदलाव आ रहा है। हिंदी फिल्मों में आधुनिक समय की मां का किरदार अब ऐसा होता है जो अपने बच्चों से प्यार तो करती ही है, साथ ही अपनी खुद की पहचान भी बनाए रखती है।
अब जबकि एक और महिला दिवस आ रहा है, तो शायद यही समय है कि हम इस बात पर गौर करें कि हिंदी सिनेमा ने महिलाओं के चित्रण को लेकर अब तक कितनी लंबी दूरी तय की है।
हिंदी सिनेमा में मुख्यधारा और उससे इतर अधिकाधिक माताएं अब आम महिलाओं की चिंताओं का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिनका अपने बच्चों के अलावा भी जीवन है।
कई लेखकों और निर्देशकों ने पाया है कि आधुनिक समय में फिल्मों में मां के किरदार का चित्रण नायक या नायिका की कहानी कहने के लिए एक बेहतरीन पृष्ठभूमि हो सकती है।
सैफ अली खान-रानी मुखर्जी अभिनीत ‘हम तुम’ में दोनों माताएं ‘अकेली’ हैं। एक जो अपने पति से अलग हो चुकी है और दूसरी विधवा है। लेकिन, नायक की मां के रूप में रति अग्निहोत्री और नायिका की मां के रूप में किरण खेर, दोनों ही साहसी, बुद्धिमान और जीवंतता से भरपूर हैं।
वर्ष 2004 में बनी यह फिल्म बड़ी हिट रही। इस फिल्म में माताएं महज सहायक नहीं हैं, बल्कि अपने बच्चों के जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं।
सन 2000 के दशक में, हिंदी फिल्मों में मां के किरदार में धीरे-धीरे बदलाव आने लगा और किरण खेर को ऐसी कई भूमिकाएं निभाने का मौका मिला। इन किरदारों में कुछ थोड़े से असंतुलित, अन्य अत्यधिक नाटकीय और निश्चित रूप से सदैव सहानुभूतिपूर्ण।
और इस तरह ‘दोस्ताना’, ‘मैं हूं ना’, ‘वीर जारा’ और ‘देवदास’ जैसी फिल्में आईं।
वर्ष 2014 में आई फिल्म “खूबसूरत” में खेर ने सोनम कपूर की मां की भूमिका निभाई जबकि इसी फिल्म में रत्ना पाठक शाह एक सख्त मातृसत्तात्मक महिला और नायक फवाद खान की मां की भूमिका में नजर आईं।
उससे दो साल पहले, डिंपल कपाड़िया ने सैफ अली खान-दीपिका पादुकोण अभिनीत फिल्म ‘कॉकटेल’ में एक शरारती बेटे की मां की भूमिका निभाई थी।
हिंदी फिल्मों में मां के किरदार का विकास अब पटकथाओं की छोटी-छोटी भूमिकाओं में भी दिखाई देता है, जहां कभी वे मुख्य पात्र होती हैं, तो कभी उपयोगी सहायक।
अभिनेत्री सीमा पाहवा ने ‘बरेली की बर्फी’ और ‘शुभ मंगल सावधान’ जैसी फिल्मों में मध्यमवर्गीय मां की भूमिकाएं निभाई हैं।
‘बरेली की बर्फी’ में वह सुशीला की भूमिका में हैं, जो अपनी बेटी के लिए दूल्हे की तलाश कर रही एक परेशान मां है।
‘शुभ मंगल सावधान’ में वह एक पढ़ी-लिखी महिला है, जो जल्द ही शादी करने वाली अपनी बेटी को यौन संबंधों के बारे में बताती है।
हाल के वर्षों में सर्वाधिक यादगार भूमिकाओं में से एक है शूजित सरकार की फिल्म ‘विक्की डोनर’ में आयुष्मान खुराना की विधवा मां की भूमिका निभाने वाली डॉली आहलूवालिया का किरदार। इस फिल्म में मां एक एक सैलून मालिकिन है और उसका अपनी सास के साथ बहुत अच्छा रिश्ता है, वे दोनों हर शाम काम के बाद मद्यपान का आनंद लेती हैं।
फिल्म ‘थप्पड़’ में दीया मिर्जा एक अकेली मां की भूमिका निभा रही हैं, जो अपनी किशोर बेटी को समझाती है कि वह दोबारा शादी क्यों नहीं करना चाहती।
पिछले कुछ वर्षों में हिंदी फिल्मों माताओं का चित्रण अधिक विविधतापूर्ण तथा अधिक सूक्ष्म होता गया है, जो विशेषकर समानांतर सिनेमा में देखा गया है।
भाषा रवि कांत रवि कांत संतोष
संतोष
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.