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Sunday, 3 November, 2024
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महिला सशक्तीकरण या चुनावी रेवड़ी? MP में 8 हज़ार करोड़ की ‘लाडली बहना योजना’ की अंदरूनी सच्चाई

एमपी विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले शुरू की गई लाडली बहना योजना में 23 से 60 साल की उम्र की महिलाओं को प्रति माह 1,000 रुपये देने का वादा किया गया है.

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सोनवर्षा (सीधी): चमकदार लाल साड़ी पहने और सिर को दुपट्टे से ढके आंगनवाड़ी कार्यकर्ता प्रवीण सिंह एक मिशन पर हैं. नवंबर में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले मध्य प्रदेश सरकार द्वारा शुरू की गई एक महत्वाकांक्षी योजना के हिस्से के रूप में, वह लाडली बहना सेना में शामिल होने के लिए महिलाओं को इकट्ठा कर रही है, जो मोटे तौर पर बहनों की सेना के रूप में कही जाती है.

जब दिप्रिंट ने पिछले हफ्ते सीधी जिले के सोनवर्षा गांव का दौरा किया, तो प्रवीण विंध्याचल की तलहटी में खेतों के बीच बिखरे हुए गांव के 500 कच्चे और पक्के घरों का सर्वेक्षण कर रही थीं. जैसे-जैसे वह घर-घर गईं, उन्होंने इस स्कीम की प्रवक्ता बनने के लिए “मुखर और आत्मविश्वासी” महिलाओं की तलाश की.

इस मार्च में राज्य की भाजपा सरकार द्वारा शुरू की गई लाडली बहना योजना, 23 से 60 वर्ष की उम्र की महिलाओं को 1,000 रुपये प्रति माह देने का वादा करती है, जिसका कुल व्यय 8,000 करोड़ रुपये है.

योजना का एक महत्वपूर्ण पहलू लाडली बहना सेना का गठन है, जो गांव और वार्ड स्तर पर काम करने वाली महिला स्वयंसेवकों का नेटवर्क है.

15 या 21 महिलाओं वाले इन समूहों में विभिन्न सरकारी योजनाओं के वर्तमान लाभार्थी और स्वयं सहायता समूहों के साथ काम करने वाली महिलाएं शामिल हैं.

प्रवीण जैसे समर्पित आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा निगरानी की जाती है – उनका कार्य सरकारी कल्याण योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना और महिलाओं को उनकी चिंताओं को व्यक्त करने के लिए एक मंच प्रदान करके सशक्त बनाना है.

हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि लाभार्थियों के पास दूसरा काम भी है.

उज्जैन में एमपी इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल रिसर्च के निदेशक प्रोफेसर यतींद्र सिसोसदिया ने दिप्रिंट को बताया कि ‘लाडली बहना सेना’ सरकार द्वारा गांव और वार्ड स्तर पर एक कैडर बनाने का एक प्रयास है जो उनके संदेश वाहक या मैसेंजर के रूप में कार्य करता है.

उन्होंने कहा, “समुदाय के किसी सदस्य द्वारा किसी योजना के लाभों के बारे में बात करना, किसी पार्टी कार्यकर्ता द्वारा बताए गए संदेश की तुलना में बेहतर प्रभाव डालेगा. लेकिन यह सेना ज़मीन पर कितना प्रभावी ढंग से काम करेगी यह देखना अभी बाकी है.”

लाभार्थियों के लिए 1,000 रुपये की दूसरी किस्त जारी करने के अवसर पर 10 जुलाई को आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लाडली बहना सेना के महत्व को रेखांकित किया.

उन्होंने कहा,“मैं अकेला हूं, मैं कहां-कहां देखूंगा? क्या आप मेरी सहायता और सहयोग नहीं करेंगी? हम सब मिलकर ये करेंगे. जब हम अकेले होते हैं तो कमजोर होते हैं लेकिन जब हम एक साथ आते हैं तो सबसे कठिन स्थिति का सामना कर सकते हैं… यही कारण है कि मैंने लाडली बहना सेना बनाई है,”

राज्य चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, एमपी में 2.60 करोड़ से अधिक महिला मतदाता हैं, जो एमपी के 5.39 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 48 प्रतिशत हैं.

मध्य प्रदेश में लाडली बहना योजना के तहत अब तक 1.26 करोड़ लाभार्थियों का पंजीकरण किया जा चुका है. जुलाई तक भुगतान की दो किस्तें दी जा चुकी हैं. एमपी सरकार ने पहली किस्त में 1.26 करोड़ लाभार्थियों को 1,143 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए थे.

इस महीने की शुरुआत में, विशेष रूप से, 2023-24 के लिए 3,14,025 करोड़ रुपये के राज्य बजट को पारित करने के केवल चार महीने बाद, चल रही कल्याणकारी योजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए राज्य विधानसभा में 26,000 करोड़ रुपये का अनुपूरक बजट पारित किया गया था.


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सोनवर्षा की लाडली सेना

सोनवर्षा में चमकीले रंग से रंगे आंगनवाड़ी केंद्र के अंदर महिलाओं का एक समूह इकट्ठा हुआ है. वे कुछ चुनी हुई महिलाओं में से एक हैं.

1 जून तक, लगभग 200 महिलाओं को लाडली बहना योजना के लाभार्थियों के रूप में पुष्टि करने वाले पत्र प्राप्त हुए. इनमें से अब तक 11 को “सेना” में लाया जा चुका है.

प्रवीण आंगनवाड़ी के फर्श पर बैठी महिलाओं के समूह की ओर इशारा करते हुए कहती हैं, “हमने 200 से अधिक पात्र महिलाओं को लाडली बहना योजना में नामांकित किया है, और यह हमारी लाडली बहना सेना है.” उनके चेहरे थोड़े संकोच के साथ उत्सुकता से भरे हैं.

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सोनवर्षा में लाडली सेना के सदस्य स्थानीय आंगनवाड़ी केंद्र में जुटे | फोटो: इरम सिद्दीकी | दिप्रिंट

ये महिलाएं बहुत बड़े नेटवर्क का हिस्सा हैं.

पूरे मध्य प्रदेश में, आठ लाख से अधिक महिलाओं ने लाडली बहना सेना के हिस्से के रूप में पंजीकरण कराया है, जो गांव और वार्ड स्तर पर काम करने वाले 53,000 समूहों में विभाजित है.

सोनवर्षा जैसे 1,500 से कम आबादी वाले गांवों में, लाडली बहना सेना में 15 महिला स्वयंसेवक शामिल हैं. 1,500 से अधिक आबादी वाले लोगों में 21 सदस्यीय सेना होती है.

प्रवीण ने दिप्रिंट को बताया कि योजना को लागू करने के लिए सोनवर्षा में दो “प्रशिक्षण सत्र” आयोजित किए गए हैं. पहला सत्र आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए आयोजित किया गया था, जिसके दौरान उन्हें योजना के बारे में जानकारी दी गई और गांव लाडली बहना सेना बनाने का काम सौंपा गया. दूसरी बैठक में इन आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने चयनित सदस्यों को उनकी जिम्मेदारियों के बारे में जानकारी दी.

‘हम इसके बदले काम पाना चाहेंगे’

अट्ठाईस वर्षीय श्यामवती जायसवाल और उनकी बहुएं रंजना और अन्नू सभी सोनवर्षा की लाडली बहना सेना की सदस्य हैं.

उन्हें योजना के तहत दो-दो किस्तें मिल चुकी हैं. लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या वे इससे खुश हैं, तो श्यामवती ने काफी संतुलित जवाब दिया.

“इसमें खुश होने की क्या बात है?” वह पूछती है. “हमारी आवश्यकता 10,000 रुपये की है, लेकिन हमें 1,000 रुपये मिल रहे हैं. फिर भी, कुछ न होने से कुछ बेहतर है, तो हमें शिकायत क्यों करनी चाहिए?”

दूसरी ओर, रंजना मिलने वाले लाभों की सराहना करती है. वह कहती हैं, “सरकार मुफ्त राशन और शिक्षा के साथ-साथ आवास योजना के तहत घर भी मुहैया कराती है. लाडली बहना योजना का यह पैसा एक अतिरिक्त बोनस है,”

अन्नू गांव में अन्य लोगों तक इसका लाभ पहुंचाने के लिए उत्सुक है. वह कहती हैं, “हमें लाभ मिल रहा है और हम चाहते हैं कि दूसरों को भी इसका लाभ मिले. हम उन्हें जरूरी डॉक्युमेंट्स के बारे में जानकारी देकर उन्हें एनरोल करने में सहायता करेंगे.”

हालांकि, मुद्रास्फीति और बेरोजगारी के बोझ को देखते हुए, कुछ लोगों के लिए मासिक 1,000 रुपये पर्याप्त नहीं हैं.

राजकुमारी यादव कहती हैं, “महंगाई को देखो, टमाटर, तेल, एलपीजी सिलेंडर की कीमतें. इन सबको देखते हुए 1,000 रुपये कुछ भी नहीं है. हमें पता ही नहीं चलता कि पैसा कब मिलता है और कब चला जाता है. इसके बजाय हम कुछ ऐसा काम करना चाहेंगे जिसके जरिए हमें गुजारा करने के लिए स्थिर आय मिल सके,”

कई लोगों के लिए, पैसा आवश्यक चीज़ों का भुगतान करने या यहां तक कि अपने मोबाइल फोन को रिचार्ज करने में ही खर्च हो जाता है. उदाहरण के लिए, सविता रजक ने अपने घर में एलपीजी सिलेंडर खरीदने के लिए 1,000 रुपये की पहली किस्त का इस्तेमाल किया. दूसरी ओर, फूल काली रजक का कहना है कि उन्होंने अपनी बीपी की दवा खरीदने के लिए योजना के पैसे का इस्तेमाल किया.

दिप्रिंट से बात करते हुए, एमपी के महिला एवं बाल विकास विभाग के आयुक्त आरआर भोसले ने कहा कि अंतिम उद्देश्य लाभार्थियों को अधिक स्वतंत्र बनाना है. उनके अनुसार, विचार यह है कि केंद्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत गरीबी उन्मूलन और स्वरोजगार परियोजना, आजीविका मिशन के तहत स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) में काम करके लाभार्थी अगले पांच वर्षों में लगभग 10,000 रुपये कमाएंगे.

लेकिन सोनवर्षा की महिलाओं का दावा है कि ऐसे अवसर फिलहाल कम हैं.

कलावती रावत, जो अपने तीन बेटों की परवरिश कर रही हैं और एक स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) में नामांकित हैं, का कहना है कि वह काम खोजने के लिए संघर्ष कर रही हैं.

वह बताती हैं, “मैं पांच महीने पहले यमुना एसएचजी में शामिल हुई था, लेकिन कोई काम नहीं मिला. हमें गुज़ारा करने के लिए कुछ करना होगा, इसलिए हम खेत में काम करके प्रतिदिन 200 रुपये कमाते हैं,”.

इस बीच, अन्य महिलाएं लाडली बहना योजना के तहत लाभ की हकदार नहीं हैं क्योंकि वे पहले से ही अन्य योजनाओं के तहत एनरोल्ड हैं.

उदाहरण के लिए, नेहा रजक को विधवा पेंशन के रूप में 600 रुपये मिलते हैं, इसलिए वह अपात्र हैं. उसके लिए अपने तीन बच्चों का पालन-पोषण सुनिश्चित करना रोज़मर्रा की लड़ाई है.

इसी तरह, तारा जयसवाल, जिन्हें विकलांग पेंशन के रूप में 600 रुपये मिलते हैं, भी लाडली बहना लाभ प्राप्त करने के लिए अयोग्य हैं.

प्रवीण के अनुसार, अन्य योजनाओं के तहत लाभ पाने वाली महिलाओं को भी इस योजना का लाभ उठाने में सक्षम बनाने की दिशा में सरकार काम कर रही है. लेकिन नेहा और तारा जैसी महिलाओं के लिए यह कोई गारंटी नहीं है.

‘जब तक मिल रहा है, ले लो’

जबकि भाजपा नेता लाडली बहना योजना को संभावित गेम-चेंजर के रूप में मानते हैं, हालांकि, कुछ राजनीतिक विश्लेषक इसके प्रभाव को लेकर संशय में हैं.

उदाहरण के लिए, प्रोफेसर सिसौदिया ने इस योजना को एक और चुनाव को ध्यान में रखकर दिया जाने वाला “फ्रीबी” बताया.

वे कहते हैं, “लाडली बहना योजना का उद्देश्य मतदाताओं के साथ क्लाइंट जैसा संबंध स्थापित करना है, जो योजना का लाभ प्राप्त करने के बाद बदले में कुछ देने के इच्छुक होंगे.”

उन्होंने कहा कि यह योजना ग्रामीण महिलाओं को लक्षित करती है, मतदाता के रूप में जिनकी अच्छी खासी संख्या है, लेकिन फिर हो सकता है कि इसका केवल सीमित प्रभाव ही हो.

उन्होंने आगे कहा, “18 साल सत्ता में रहने के बाद, भाजपा सरकार सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है. इस योजना को गेम चेंजर के रूप में नहीं देखा जा सकता है,”

कलावती रावत जैसे कुछ लाभार्थी भी आलोचनात्मक दृष्टिकोण रखते हैं.

वह कहती हैं, ”हर कोई जानता है कि सरकार ने इस योजना की घोषणा इसलिए की क्योंकि चुनाव नजदीक हैं. जब तक मिल रहा है, ले लो. जब बंद हो जाएगा, तब बैठ जाएंगे.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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