(अंजलि ओझा)
नयी दिल्ली, 23 फरवरी (भाषा) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने रविवार को कहा कि गरीबी और बेरोजगारी का सामना कर रहे बिहार के लोग आगामी विधानसभा चुनाव में बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं। उन्होंने सामाजिक इंजीनियरिंग और ध्रुवीकरण के प्रयासों का मुकाबला करने के लिए जमीनी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया।
भाकपा (माले) लिबरेशन नेता ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक साक्षात्कार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर ‘‘अपराध, सांप्रदायिकता और भ्रष्टाचार के कॉकटेल’’ को रोकने में विफल रहने का भी आरोप लगाया।
भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को उम्मीद है कि बिहार में महाराष्ट्र और दिल्ली जैसा घटित होगा, लेकिन दूसरा विकल्प यह है कि बिहार में झारखंड जैसा घटित हो।’’
उन्होंने दावा किया कि बिहार में ‘विकास’ मॉडल विफल हो गया है।
भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘यहां अपराध, सांप्रदायिकता और भ्रष्टाचार का कॉकटेल है। लोग बदलाव चाहते हैं। वे सिर्फ मुख्यमंत्री या सरकार में बदलाव नहीं चाहते, वे अपने मुद्दों का समाधान चाहते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘बिहार में मजदूरी सबसे कम है। आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) कार्यकर्ताओं को 1,500 रुपये मिलते हैं…।’’
भट्टाचार्य ने आरोप लगाया कि अभिलेखों को अद्यतन करने के लिए जारी भूमि सर्वेक्षण और गलत भूमि अधिग्रहण नीति के कारण विस्थापन और लोगों की जमीनें खोना प्रमुख मुद्दे बन गए हैं। उन्होंने कहा, ‘‘बड़ी संख्या में लोग अपनी भूमि से विस्थापित हो रहे हैं।’’
भट्टाचार्य ने भूमि सर्वेक्षण की तुलना असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) कवायद से की।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि बिहार में हाल में किया गया भूमि सर्वेक्षण असम में एनआरसी के समतुल्य है। इससे भारी असुरक्षा पैदा हो गई है, लोगों के पास अपनी जमीन के कागजात नहीं हैं; वर्षों से जमीन परिवारों के बीच बंटी हुई है, लेकिन उसका कोई कानूनी दस्तावेज नहीं है…।’’
भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘लोग अपनी भूमि के रिकॉर्ड के लिए दर-दर भटक रहे हैं, बहुत भ्रष्टाचार है… इसके अलावा, सड़कों, रेलवे ट्रैक, स्मार्ट सिटी, शहरीकरण के नाम पर किसानों से जमीन ली जा रही है… इसके बदले दिया जाने वाला मुआवजा पर्याप्त नहीं है और कभी-कभी किसानों को कुछ भी नहीं मिलता है। इसलिए विस्थापन और भूमि अधिग्रहण बड़े मुद्दे हैं।’’
उन्होंने राज्य में गरीबी को भी एक बड़ा मुद्दा बताया, जहां एक जाति सर्वेक्षण से पता चला है कि लगभग 63 प्रतिशत परिवार 10,000 रुपये प्रति माह से कम कमाते हैं।
भट्टाचार्य ने कहा कि इससे ऋण संकट पैदा हो गया, क्योंकि लोगों को जीवित रहने के लिए ऋण लेने पर मजबूर होना पड़ा।
उन्होंने कहा कि पिछले एक साल से भाकपा (माले) लिबरेशन बिहार में पदयात्रा और संपर्क कार्यक्रम चला रही है, जिसका समापन दो मार्च को पटना में ‘बदलो बिहार महाजुटान रैली’ के साथ होगा।
भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘यदि हम इन मुद्दों को सामने नहीं ला पाए, तो भाजपा अवैध घुसपैठ का मुद्दा उठाकर झारखंड जैसा कुछ करने की कोशिश करेगी… वह कुछ कृत्रिम, ध्रुवीकरण वाले मुद्दे पैदा करेगी और चुनावी चर्चा को पटरी से उतारने की कोशिश करेगी।’’
उन्होंने आरोप लगाया कि नीतीश कुमार सरकार आम लोगों की समस्याओं को नहीं सुन रही है।
भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘दो मार्च की रैली लोकसभा चुनाव के बाद शुरू हुई प्रक्रिया का नतीजा है। हमने ग्रामीण गरीबों को संगठित करने के साथ इसकी शुरुआत की।’’
उन्होंने कहा कि जुलाई से अगस्त 2024 तक ब्लॉक स्तर पर प्रदर्शन किए गए, जिसके बाद अलग-अलग इलाकों में लगभग 20 पदयात्राएं निकाली गईं, जिनमें अक्टूबर में नवादा से पटना तक की पदयात्रा भी शामिल है, जिसका नेतृत्व भट्टाचार्य ने किया था।
भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘हमें बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली… हर दिन 100 से 200 लोग अपनी मांगों के साथ हमारे पास आते थे। वे चाहते थे कि उनके विधायक उनकी मांगों को उठाएं।’’
भाकपा (माले) लिबरेशन ने विभिन्न सामाजिक न्याय मांगों पर कार्यकर्ताओं को एक साथ लाने के लिए 12 केंद्रों पर ‘बदलो बिहार समागम’ की एक शृंखला का भी आयोजन किया।
भट्टाचार्य ने कहा कि जब रैली आयोजित की जाएगी, तब राज्य विधानसभा सत्र का आयोजन हो रहा होगा और इसका उद्देश्य सदन में बहस के लिए एजेंडा तय करना है।
राज्य के जातिगत समीकरण के बारे में पूछे जाने पर भट्टाचार्य ने कहा कि जातिगत सर्वेक्षण के बाद आरक्षण का वादा, गरीबी और भूमि अधिग्रहण जैसे जमीनी मुद्दे लोगों के लिए बड़ी चिंता का विषय हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘चलिए मध्याह्न भोजन की बात करते हैं, आजीविका की बात करते हैं, महिलाओं की बात करते हैं… महिलाओं में काफी असंतोष है… अगर झारखंड 2,500 रुपये दे सकता है, तो बिहार क्यों नहीं?’’
भट्टाचार्य ने आरक्षण न बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार की भी आलोचना की और सवाल किया कि ‘‘डबल इंजन’’ सरकार वादे के मुताबिक 65 प्रतिशत कोटा क्यों नहीं दे सकी।
बिहार की 243 सदस्यीय विधानसभा में राजग के 138 विधायक हैं। इनमें भाजपा के 84, नीतीश कुमार की जद (यू) के 48, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) (एचएएमएस) के चार और दो निर्दलीय विधायक शामिल हैं।
वहीं, विपक्ष के 104 विधायक हैं, जिनमें राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के 72, कांग्रेस के 17, भाकपा (माले) लिबरेशन के 11, तथा भाकपा और माकपा के दो-दो विधायक शामिल हैं।
बिहार विधानसभा में असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) का एक विधायक है।
राज्य में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं।
भाषा
देवेंद्र पारुल
पारुल
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