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Friday, 22 November, 2024
होमदेशक्यों इन 5 राज्यों ने 100 साल के सबसे बड़े वैश्विक स्वास्थ्य संकट के दौर में अपने स्वास्थ्य सचिवों को बाहर का रास्ता दिखाया

क्यों इन 5 राज्यों ने 100 साल के सबसे बड़े वैश्विक स्वास्थ्य संकट के दौर में अपने स्वास्थ्य सचिवों को बाहर का रास्ता दिखाया

छठे राज्य, गुजरात में, जयंती रवि अभी भी प्रमुख स्वास्थ्य सचिव हैं, लेकिन वह अब राज्य में कोरोनावायरस संकट से लड़ने का कार्य नहीं संभाल रही हैं.

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नई दिल्ली: पिछले हफ्ते, उत्तराखंड सरकार ने 2002 बैच के आईएएस अधिकारी नितेश झा को प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य के उनके प्रभार से मुक्त कर दिया और उन्हें सिंचाई विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया. उनकी जगह अमित सिंह नेगी को नया प्रमुख सचिव. स्वास्थ्य बनाया गया है. नेगी अब तक राज्य में आपदा प्रबंधन और योजना विभाग का संचालन कर रहे थे.

झा केंद्र और राज्य की कई भाजपा सरकारों के पसंदीदा अफ़सर थे – उन्होंने मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के निजी सचिव के रूप में भी कार्य किया था. लेकिन अब वे कई उन प्रमुख स्वास्थ्य सचिवों में से एक हैं जो इस कोरोना महामारी के बीच अपने पद से हाथ धो चुके हैं.

झा के स्थानांतरित किए जाने के ठीक दो दिन पहले, बिहार के प्रमुख स्वास्थ्य सचिव संजय कुमार को भी पर्यटन विभाग में भेज दिया गया था. इसी तरह के मामले पश्चिम बंगाल, ओडिशा, गुजरात, मध्य प्रदेश से भी सामने आए, जहां स्वास्थ्य विभाग के सबसे वरिष्ठ अधिकारी ने अपने पद को खो दिया है. ऐसा या तो कथित रूप से इस संकट से उनकी निपटने की अक्षमता के कारण हो रहा है या फिर जैसा कि विपक्षी दलों का आरोप है यह सब मुख्यमंत्रियों को सार्वजनिक आलोचना से बचाने और लोगो का ध्यान भटकाने वाली चालें हैं.

दिप्रिंट ने उन प्रमुख स्वास्थ्य सचिवों की एक सूची तैयार की है जिन्हें कोविड -19 संकट के कारण बाहर कर दिया गया है:-

संजय कुमार, बिहार

1990 बैच के आईएएस अधिकारी संजय कुमार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफ़ी करीबी अफ़सर माने जाते थे और कोविड -19 के खिलाफ राज्य की लड़ाई का चेहरा बने हुए थे. संजय कुमार अपने ट्विटर अकाउंट पर बिहार में कोरोना की स्थिति की जानकारी नियमित रूप से अपडेट रखा और बिहार की खराब और धीमी जांच दरों को सुधारने का भी प्रयास किया.

उनका तबादला और अधिक चौंकाने वाला इसलिए भी है क्योंकि वह पिछले साल मुजफ्फरपुर जिले में इंसेफेलाइटिस के कारण लगभग 200 बच्चों की मौत के बाद भी पद पर बने रहे थे हालांकि इस पूरे प्रकरण से बिहार के स्वास्थ्य विभाग को गंभीर आघात लगा था.

बिहार के स्वास्थ्य मंत्रालय में कार्यरत एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि संजय कुमार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे के साथ संबंध कभी भी काफ़ी अच्छे नही रहें. पर इसमें निर्णायक मोड़ तब आया जब कुमार ने पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रमुख सतेंद्र नारायण सिंह को 9 अप्रैल को ड्यूटी से लापरवाही करने के आरोप में बर्खास्त कर दिया था. हालांकि, स्वास्थ्य मंत्रालय ने बाद में इन डॉक्टर के निलंबन को रद्द कर दिया था.

इस अंदरूनी झगड़े की एक और वजह डॉक्टरों की उनके गृह जिले में पोस्टिंग थी. कुमार इस से सहमत नही थे क्योंकि डॉक्टरों द्वारा इस का ग़लत लाभ उठाने और ड्यूटी पर ना आने की शिकायतें मिल रहीं थीं, उपर वर्णित आईएएस अधिकारी ने बताया कि स्वास्थ्य मंत्री ने कोविड को उनके खिलाफ एक मामले के रूप में इस्तेमाल किया और उनके तबादले के लिए मुख्यमंत्री पर दबाव डाला.

बिहार में विपक्ष ने भी इस तबादले की निंदा की है, राजद नेता तेज प्रताप यादव ने ट्वीट कर कहा कि ‘सच और झूठ के आंकड़े मेल नहीं खा रहे थे और इसलिए, साहेब (मंगल पांडे) ने मैच के दौरान ही कप्तान (संजय कुमार) बदल दिया. वह (मंत्री) पहले से ही अमंगल थे, लेकिन अब वह बेईमान भी हो गये है.

विवेक कुमार, पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार ने 12 मई को स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव विवेक कुमार का तबादला कर दिया. 1990 बैच के आईएएस अधिकारी अब राज्य के पर्यावरण मंत्रालय के प्रमुख सचिव बनाए गये हैं.

विवेक कुमार कोविड -19 संकट से निपटने में राज्य सरकार की असफलता के कारण विवाद में थे. हाल हीं में केंद्र सरकार की एक अंतर-मंत्रालयीय टीम ने अप्रैल में कोविड की असल स्थिति के मौके पर आंकलन के लिए बंगाल का दौरा किया था. तब इस दल ने विवेक कुमार के नेतृत्व में स्वास्थ्य विभाग द्वारा किए जा रहे कामकाज पर निराशा व्यक्त की थी. टीम ने खराब परीक्षण दर और कोविड के कारण उच्च मृत्यु दर (जो तब 13 प्रतिशत थी) के लिए राज्य सरकार की जमकर आलोचना भी की थी.

जानकार सूत्रों ने बताया कि कुमार 3 अप्रैल को एक विवादास्पद डेथ ऑडिट कमीटी (मृत्यु लेखा समिति) के गठन के पीछे भी थे, जो यह प्रमाणित करेगा कि क्या किसी मरीज की मृत्यु वास्तव में कोरोनोवायरस से हुई थी. इस समिति के गठन के बाद विपक्षी राजनीतिक दलों, विशेष रूप से भाजपा ने, एक राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया था, उन्होंने आरोप लगाया कि समिति राज्य सरकार द्वारा कोविड -19 के डेटा मे हेराफेरी करने का एक प्रयास मात्र है.

समिति के गठन के बाद मचे हंगामे के उपरांत, सरकार ने 2 मई को ऑडिट कमेटी के कार्यभार में बदलाव करते हुए कहा कि अब वह यह प्रमाणित नहीं करेगी कि किसी मरीज की मौत कोरोनोवायरस के कारण हुई या मृत्यु के किसी अन्य कारक के परिणामस्वरूप.

हालांकि, भाजपा का अब भी मानना है कि विवेक कुमार का स्थानांतरण ‘इस संकट के अपने कुप्रबंधन को छिपाने’ के लिए मुख्यमंत्री द्वारा किया गया एक और प्रयास है.

पश्चिम बंगाल में भाजपा के महासचिव सायनतन बसु ने कहा, ‘ममता नौकरशाहों को बदल करके अपनी बचाव ही कर रहीं हैं.’

‘बंगाल में हर कोई जानता है कि यहां उठाया गया प्रत्येक कदम ममता बनर्जी द्वारा तय ही किया जाता है. वह स्वास्थ्य मंत्री  भी हैं और ऐसे में वह कोविड के खिलाफ लड़ाई में हो रही ग़लतियों के प्रति अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती हैं.’

जयंती रवि, गुजरात

इस सूची में शामिल सभी आईएएस अधिकारियों में से गुजरात की प्रमुख स्वास्थ्य सचिव जयंती रवि ही इकलौती अधिकारी हैं जिन्होंने अभी तक अपना पद नही खोया है, लेकिन वह अब राज्य के कोविड -19 संकट को संभालने में शामिल भी नहीं हैं.

गुजरात देश में कोरोना से सबसे बुरी तरह से प्रभावित राज्यों में से एक है और जहां इस महामारी ने इसके विकास बहू-प्रचारित मॉडल को उजागर किया है. सोमवार तक, राज्य में कोरना के कारण हुई 858 मौतों के साथ 14,056 मामले थे.

हाल ही में पिछले शनिवार को राज्य के उच्च न्यायालय ने कोरोना संकट से निपटने में असफलता के लिए राज्य के स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल और रवि की जमकर खिंचाई की. अदालत ने विशेष रूप से अहमदाबाद के सिविल अस्पताल की ‘दयनीय’ स्थिति को चिन्हित करते हुए कहा कि यहां के हालात किसी कालकोठरी जैसे या फिर उस से भी बदतर हैं.

अदालत ने इस बात पर भी आश्चर्य प्रकट किया कि क्या स्वास्थ्य मंत्री और स्वास्थ्य विभाग को डॉक्टरों और मरीजों द्वारा महसूस की जा रहीं समस्याओं का कोई अंदाजा भी है? इसने यह भी पूछा कि क्या स्वास्थ्य मंत्री ने कभी भी व्यक्तिगत रूप से चिकित्सा अधिकारियों और अस्पताल के कर्मचारियों के साथ बातचीत की है?

लेकिन जयंती रवि अब राज्य के कोविड -19 संकट को नहीं संभालती. मई महीने के पहले सप्ताह में हीं, राज्य सरकार ने कोविड -19 प्रबंधन में राज्य के स्वास्थ्य विभाग का मार्गदर्शन करने के लिए वरिष्ठ आईएएस अधिकारी पंकज कुमार को नियुक्त किया था.

इसके अलावा सरकार ने अहमदाबाद में कोरोना संकट को संभालने के लिए वरिष्ठ आईएएस अधिकारी डाक्टर राजीव कुमार गुप्ता को भी नियुक्त किया तथा वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी मुकेश कुमार को गांधीनगर से अहमदाबाद लाकर विजय नेहरा की जगह नगर आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया.

लेकिन जयंती रवि उस वक्त फिर से विवादों में आई, जब यह पाया गया कि गुजरात में कोविद के रोगियों का पता लगाने के लिए बनाया गया सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन, उनके पति की कंपनी द्वारा हीं विकसित किया गया था.

गुजरात सरकार दो साल से भी अधिक समय से अर्गुसॉफ्ट द्वारा बनाए गए डाक्टर टेको सॉफ्टवेयर का उपयोग कर रही है; यह आशा कार्यकर्ताओं के मोबाइल फोन में इनस्टॉल्ड है. हालांकि, रवि ने अहमदाबाद मिरर को बताया, ‘यह बिल्कुल नि: शुल्क किया गया था और इस एप का उपयोग कोविड -19 रोगियों को ट्रैक करने के लिए किया जाता था. केंद्र सरकार द्वारा अपना एप शुरू करने के बाद इसका उपयोग रोक दिया गया था और इसका सारा डेटा केंद्र वाले एप में स्थानांतरित कर दिया गया था. ‘

एन बी. ढल, ओडिशा

ओडिशा सरकार ने 13 मई को 1993 बैच के आईएएस अधिकारी और अपने प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, एन.बी. ढल को ऊर्जा विभाग में स्थानांतरित कर दिया था. हालांकि अभी मार्च महीने में हीं राज्य सरकार के कोविड के प्रवक्ता सुब्रतो बागची ने अपने पिता की मृत्यु के 24 घंटे के भीतर फिर से ड्यूटी पर आने के लिए ढल की प्रशंसा भी की थी.

पर इस बदलाव के संकेत भी मार्च में मिल गये थे जब मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने अतिरिक्त मुख्य सचिव प्रदीप्ता कुमार महापात्र को स्वास्थ्य विभाग का प्रमुख नियुक्त किया, जब कि प्रमुख सचिव के रूप में ढल काम कर ही रहे थे. ढल ने जनवरी 2020 में ही यह कार्यभार संभाला था.

मुख्यमंत्री कार्यालय के एक अधिकारी ने बताया कि ‘महापात्र एक पुराने खिलाड़ी है. उन्होंने पहले भी स्वास्थ्य मंत्रालय में काम किया है. ढल जूनियर अधिकारियों और डॉक्टरों के साथ ठीक से समन्वय नहीं कर पर रहे थे. वह इस संकट में बेमेल से नज़र आ रहे थे और इसी कारण उन्हें बदल दिया गया.

पल्लवी जैन गोविल, मध्य प्रदेश

चौथी बार मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद, शिवराज सिंह चौहान ने 1 अप्रैल को एन. एच.. आर एम. की निदेशक स्वाति मीणा नाटक के साथ-साथ स्वास्थ्य आयुक्त प्रतीक हजेला, प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य, पल्लवी गोविल जैन को भी स्थानांतरित कर दिया था.

अतिरिक्त मुख्य सचिव मो. सुलेमान अब राज्य की कोविड -19 से लड़ाई में प्रमुख बने हुए है.

जैन को संभवतः इस कारण से भी स्थानांतरित कर दिया गया क्योंकि उन्होंने पद पर रहते हुए भी कथित तौर पर अपने बेटे के यात्रा वृतांत के बारे में जानकारी छिपाते हुए कोविड -19 के मानदंडों की अवहेलना की थी. अमेरिका से लौटने के बाद उनके बेटे का कोरोना टेस्ट पॉज़िटिव था. बाद में जैन और उनके कई सहयोगियों का भी टेस्ट रिजल्ट पॉज़िटिव आया था.

नीतेश झा, उत्तराखंड

नीतेश झा अपना पद गंवाने वाले स्वास्थ्य सचिवों की कड़ी में नवीनतम नाम हैं. वह उन 16 प्रशासनिक अधिकारियों मे से एक थे जिन्हें उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 21 मई को स्थानांतरित किया था.

एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ने कहा कि झा अब तक ‘मुख्यमंत्री के पसंदीदा अधिकारी थे’ पर अब उन्हें यूपी के एक विधायक को दी गई यात्रा अनुमति से जुड़े विवादों के लिए बलि का बकरा बनाया जा रहा है.

अधिकारी ने आगे कहा कि, ‘मुख्यमंत्री खुद को यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मृतक पिता के लिए अंतिम अनुष्ठान मे शामिल होने के बहाने चमोली की यात्रा करने के लिए यूपी के विधायक अमर मणि त्रिपाठी और 11 अन्य लोगों को यात्रा अनुमति देने के निर्णय मे हो रही आलोचना से सुरक्षित कर रहे हैं.’

अमन मणि त्रिपाठी को तीन कारों में यात्रा करने के लिए राज्य मे प्रवेश की अनुमति देने के विवाद में झा के अलावा एक और वरिष्ठ नौकरशाह ओम प्रकाश का नाम भी सामने आया था.

हालांकि, केंद्र के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस तरह के हाई-प्रोफाइल प्रशासनिक अधिकारियों को स्थानांतरित करने से राजनेताओं को कई तरह से फ़ायदा होता है.

अधिकारी ने कहा, ‘राजनेताओं के पास संकट को सही तरह से हल ना कर पाने की आलोचना से बचने हेतु नौकरशाहों को दोषी ठहराने और दंडित करने का आसान रास्ता होता है. कभी-कभी वे अपनी छवि को कायम रखने के लिए अधिकारियों को स्थानांतरित करते हैं. कभी-कभी इसका उद्देश्य जनता को यह संदेश देना होता है कि सब कुछ उनके नियंत्रण में हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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