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Friday, 22 November, 2024
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40 साल बाद सीधे एडमिनिस्ट्रेटर के अधीन आई BMC, निर्वाचित सदस्यों के न होने से बहुत कुछ लगा है दांव पर

बीएमसी की सार्वजनिक रूप से निर्वाचित आम सभा का कार्यकाल 7 मार्च को समाप्त हो गया. अब महाराष्ट्र कैबिनेट ने नगर आयुक्त इकबाल सिंह चहल को इसका प्रशासक चुना है.

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मुंबई: साल 2017 में, एक निजी एफएम स्टेशन के साथ काम करने वाली एक लोकप्रिय रेडियो जॉकी, आरजे मलिश्का ने बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) की मानसून की तैयारियों का मजाक उड़ाते हुए एक वायरल वीडियो जारी किया, जिसमें शहर की गड्ढों वाली सड़कों और हर साल आने वाली बाढ़ के बारे में विस्तार से बताते हुए एक गीत था – ‘मुंबई, तुला बीएमसी वार भरोसा नहीं के? (मुंबई, क्या आपको बीएमसी पर भरोसा नहीं है?)

हालांकि, बीएमसी में से किसी ने कभी इसे खुले तौर पर स्वीकार नहीं किया, मगर माना जाता है कि इस वायरल वीडियो ने शिवसेना शासित नगर निकाय की प्रतिष्ठा को इस हद तक चोट पहुंचाई कि उसने मलिश्का की मां, लिली मेंडोसा, को उनके घर में मच्छरों के पनपने के लिए नोटिस भेज दिया.

आधिकारिक रूप से बीएमसी ने कहा कि उसे नहीं पता था कि यह मलिश्का का घर था और मच्छरों का पनपना एक नियमित निरीक्षण के दौरान पाया गया था. लेकिन, सत्तारूढ़ पक्ष के कुछ पार्षदों और नागरिक प्रशासन के सदस्यों ने दबे स्वर में इस बारे में जरूर बात की कि कैसे यह कार्रवाई कोई संयोग नहीं थी.

टूटी-फूटी सड़कें और घुटनों तक भरा पानी हर साल मानसून के दौरान हर मुंबईकर के जीवन की वास्तविकता का सटीक वर्णन करता है. हालांकि, बीएमसी की कार्रवाई शायद अति भावुकता की भावना की वजह से हुई थी.

227 सीधे तौर पर निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के साथ 24 प्रशासनिक वार्डों में संगठित और 1.28 करोड़ की आबादी की ‘सेवा’ करने वाले बीएमसी के पास अपने दायित्वों की एक लम्बी-चौड़ी श्रृंखला है और इसके ऊपर सड़कों, पार्कों, बाजारों एवं प्रमुख अस्पतालों के निर्माण और रखरखाव के साथ-साथ मुंबई की स्वच्छता, सीवरेज (गंदे पानी के निकास) और जल आपूर्ति के प्रबंधन की भी जिम्मेदारी है.

इसके अलावा, निगम ने काफी अधिक पूंजी लगने वाली और समय खर्च करने वाली शोपीस परियोजनाओं की भी जिम्मेदारी ले ली है. इनमें ब्रिमस्टोवाड परियोजना के तहत तूफान से आने वाले अतिरिक्त पानी की निकासी के लिए बनायीं जाने वाली नालियां, 1991 के तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसूचना के बाद पहली बार मुंबई में समुंदर से जमीन की पुनः प्राप्ति कर बनायीं जाने वाली एक तटीय सड़क परियोजना, और एक पूर्व-पश्चिम सड़क परियोजना – जिसमें सुरंगें भी बननी है- शामिल हैं.

अतीत में, इसने मुंबई की बिजली आपूर्ति को बेहतर करने के लिए एक बांध भी बनाया था, और अब इस पर एक हाइब्रिड हाइड्रो (पनबिजली) और सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने की योजना बना रहा है.

इसकी सार्वजनिक रूप से निर्वाचित आम सभा के कार्यकाल के 7 मार्च को समाप्त होने के साथ ही मंगलवार, 8 मार्च से, यह विशाल आकार वाली संस्था लगभग चार दशकों में पहली बार सीधे एक प्रशासक के अधीन आ गई है.

‘आम आदमी बन जायेंगे पार्षद’

बीएमसी के वार्डस की सीमाओं के पुनर्गठन के काम के जारी होने की वजह से मुंबई के नागरिक निकाय के चुनावों में देरी होने के साथ ही महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार ने पिछले महीने मुंबई नगर निगम अधिनियम में एक संशोधन को मंजूरी दी, ताकि इसके लिए एक प्रशासक की नियुक्ति की की जा सके.

स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण (कोटा) को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खत्म किए जाने और इसे पुनः बहाल करने के लिए की जा रही राजनीतिक मांगों के वजह से चुनावों में भी देरी होने की संभावना है.

राज्य मंत्रिपरिषद के निर्णय के अनुसार अब नगर आयुक्त इकबाल सिंह चहल बीएमसी के प्रशासक के रूप में कार्य करेंगे.

बीएमसी के एक अधिकारी ने उनका नाम न बताने की शर्त पर कहा कि पार्षदों की विभिन्न समितियां शिक्षा, भूमि उपयोग आदि जैसे मसलों पर इस नागरिक निकाय को अनुमोदन के लिए प्रस्तावों पर चर्चा और सिफारिश करती थीं, अब उन सब का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा.

इस अधिकारी ने आगे कहा, ‘बीएमसी में 1984-85 के दौरान सिर्फ एक बार एक साल के लिए प्रशासक नियुक्त किया गया था. मंगलवार से सभी पार्षद आम आदमी बन जाएंगे. वे अपने कार्यालयों में नहीं जा पायंगे, वे अपने लेटरहेड का उपयोग भी नहीं कर पाएंगे. यदि वे किसी चीज को प्रशासक के संज्ञान में लाना चाहते हैं या कुछ विशेष कार्य करवाना चाहते हैं, तो यह प्रशासक की मर्जी पर है कि वह उनकी सुनवाई करे या न करे, इसके लिए उनकी कोई बाध्यता नहीं है.‘

कुल मिलाकर 15 नगर निकाय, जिनके लिए इस साल चुनाव होने थे, अब प्रशासकों के अधीन होंगे. लेकिन अपने विशाल आकार, भारी-भरकम बजट, जिस तरह की कई करोड़ वाली परियोजनाओं पर यह काम करती है, और आबादी की जिस संख्या को यह नियंत्रित करती है, के कारण बीएमसी का मामला सबसे अलग दिखता है.


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आठ राज्यों से अधिक है बीएमसी का बजट, अतिरिक्त धनराशि की भरपूर मात्रा

शोध संस्थान, डब्ल्यूआरआई इंडिया के कार्यकारी निदेशक माधव पाई ने दिप्रिंट को बताया: ‘महाराष्ट्र और गुजरात के शहर आजादी से पहले बनाए गए नगरपालिका अधिनियमों द्वारा शासित होते हैं. निगमों के पास बहुत शक्ति है. उदाहरण के लिए, बैंगलोर में पानी और परिवहन जैसे विषयों पर राज्य सरकार का नियंत्रण होता है, मगर मुंबई में यह सब बीएमसी के पास हैं.’

पई ने कहा, ‘चूंकि मुंबई में जमीन की कीमत काफी अधिक है, इसलिए पिछले कई सालों से बीएमसी को मिलने वाला संपत्ति कर राजस्व काफी अधिक रहा है. नतीजतन, बीएमसी के पास इतना पैसा है कि यह विकेंद्रीकृत वार्ड-स्तरीय अच्छे शासन कार्य और अच्छे कर्मचारियों का भी खर्च उठाता है.’

चालू वित्त वर्ष में, संपत्ति कर से बीएमसी की अनुमानित आय 7,000 करोड़ रुपये होने की उम्मीद है.

बीएमसी का 2021-22 का 39,038.83 करोड़ रुपये वाला बजट आठ राज्य सरकारों – त्रिपुरा, नागालैंड, मिजोरम, मेघालय, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और गोवा – के बजट से भी बड़ा था.

इसका 2022-23 के लिए 45,949.21 करोड़ रुपये का बजट, जिसे पिछले महीने स्वीकृत किया गया था, अब तक का सबसे बड़ा बजट है.

पिछले कुछ वर्षों में,बीएमसी के कुल बजट में पूंजीगत व्यय का हिस्सा बढ़ रहा है क्योंकि यह सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को बनाने और इसे कामकाजी बनाए रखने पर अधिक खर्च करता है.

2022-23 में पूंजीगत व्यय के लिए आवंटन बजट का 49 प्रतिशत हो गया है, जो 2016-17 में 19 प्रतिशत ही था. पूंजीगत व्यय पर बीएमसी का वास्तविक खर्च, जो 2016-17 में 3850.46 करोड़ रुपये ही था, भी 2020-21 में 114 प्रतिशत बढ़कर 8237.13 करोड़ रुपये हो गया. चालू वित्त वर्ष में, पूंजीगत व्यय के बढ़कर 16866.48 करोड़ रुपये तक हो जाने की उम्मीद है.

अपने बजट भाषण में, चहल ने कहा: ‘वर्तमान में चल रही परियोजनाओं, विशेष परियोजनाओं और अनिवार्य दायित्यों से सम्बंधित बढ़ती देनदारियों को देखते हुए, भविष्य में पूंजीगत व्यय के साथ-साथ राजस्व व्यय को पूरा करने के लिए बड़ी मात्रा में पैसे की आवश्यकता होगी. साथ ही, भविष्य में इन सुविधाओं के रखरखाव और उन्नयन (अपग्रेड) के लिए भी बड़े पैमाने पर धन राशि की आवश्यकता होगी.’

बीएमसी के कोष में अतिरिक्त धनराशि (रिज़र्व फंड्स) के भंडार के कारण ही इसके लिए ज्यादा पूंजी वाले परियोजनाओं को अपनाया जाना संभव हो पाया, जिसके बारे में चहल ने कहा कि अब इसे बुनियादी ढांचा परियोजनाओं से जोड़ा गया है ताकि ‘यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुंबई में नागरिकों के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए पूंजीगत व्यय के लिए इस धन भंडार से पूरा किया जा सके’.

2022-23 की बजट प्रस्तुति (प्रेजेंटेशन) के मुताबिक बीएमसी के पास 55,807.68 करोड़ रुपये की अतिरिक्त धनराशि है.

हाई-प्रोफाइल, करोड़ों की लागत वाली परियोजनाएं

वर्तमान में, बीएमसी की सबसे महत्वाकांक्षी और हाई-प्रोफाइल परियोजना एक तटीय फ्री वे है, जिसका निर्माण वह दक्षिण मुंबई में मरीन ड्राइव से बांद्रा-वर्ली सी लिंक के वर्ली छोर तक कर रहा है.

12,950 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली इस 10.58 किलोमीटर की तटीय सड़क में एक अनोखी अंडरसी टनल (समुद्र के अंदर बनी सुरंग) शामिल है, जिसे देश में इस तरह की पहली सुरंग कहा जाता है.

बीएमसी की तटीय सड़क परियोजना प्रगति पर | फोटो: अश्विनी भिड़े/ट्विटर

इस कार्य को संभव बनाने के लिए बीएमसी ने भारत की सबसे बड़ी सुरंग खोदने वाली मशीन खरीदी है, जिसका नाम उसने ‘मावला (सैनिक)’ रखा है. इसके अलावा, बीएमसी इस तटीय सड़क और उसके आसपास खुली जगह को बनाने के लिए अरब सागर से 111 हेक्टेयर क्षेत्र को रिक्लेम (पुनः प्राप्त) कर रही है.

इस साल, निगम का सबसे अधिक बजट आवंटन तटीय सड़क परियोजना के लिए था, जिसके लिए उसने 3,500 करोड़ रुपये अलग रखे.

इस नागरिक निकाय ने गोरेगांव-मुलुंड लिंक रोड परियोजना और मुंबई सीवेज डिस्पोजल परियोजना के लिए क्रमशः 1,300 करोड़ रुपये और 1,340 करोड़ रुपये का बड़ा आवंटन भी किया है.

मुंबई के पूर्व-पश्चिम को जोड़ने वाली एक प्रमुख योजना, गोरेगांव-मुलुंड सड़क परियोजना, में नई सड़कों का निर्माण, मौजूदा सड़कों को चौड़ा करना, फ्लाईओवर का निर्माण और साथ ही पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के नीचे 4.7 किलोमीटर की जुड़वां सुरंगें बनाया जाना शामिल हैं. इसमें 700 से अधिक परिवारों और 50 वाणिज्यिक संरचनाओं का पुनर्वास कार्य भी शामिल है.

मुंबई सीवेज डिस्पोजल परियोजना, जिसकी अनुमानित लागत 16,000 करोड़ रुपये से अधिक है, में प्रतिदिन कुल मिलाकर 2,464 मिलियन लीटर की क्षमता वाले सात सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करना शामिल है.

इसके अलावा, बीएमसी एक डिसेलिनेशन प्लांट (खारे पानी को मीठा पानी बनाने वाला संयंत्र) भी स्थापित करने जा रहा है.


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राजनीतिक शक्ति केंद्र

शहरी योजनाकार सुलक्षणा महाजन ने दिप्रिंट को बताया कि ‘बीएमसी लगभग राज्य सरकार की एक शाखा की तरह ही काम करती है’.

महाजन ने कहा, ‘इसकी सभी प्रमुख नीतियां मंजूरी के लिए राज्य सरकार के पास जाती हैं. राजनीतिक रूप से, बीएमसी को महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसके माध्यम से राज्य सरकार के कामकाज में हिस्सेदारी हासिल करने में मदद होती है.’

हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि निगम के अपने अधिकार काफी सीमित हैं और महत्वपूर्ण नीतिगत मुद्दों पर अंतिम अधिकार राज्य का है. उन्होंने बताया कि कैसे, 2015 में, देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने बीएमसी द्वारा तैयार किए गए मुंबई विकास योजना के मसौदे को रद्द कर दिया था और नयी योजना बनाने के लिए एक समिति नियुक्त कर दी थी.

मुंबई के एक अन्य शहरी योजना विशेषज्ञ ने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा कि अगर राज्य सरकार के साथ-साथ बीएमसी में भी एक ही राजनीतिक दल का वर्चस्व होता है तो चीजें सुचारू रूप से चलती हैं.

उन्होंने कहा, ‘जब भी ऐसा नहीं हुआ है, सभी राजनीतिक दलों ने मुंबई में अपने स्वयं के सत्ता केंद्र बनाने की कोशिश की है. उन्होंने नगर निकाय को कमजोर करते हुए बीएमसी के वैकल्पिक प्राधिकरण बनाए हैं, ताकि मुंबई के विकास पर उनकी भी पकड़ हो सके.‘

उन्होंने उदाहरण दिया कि कैसे मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण (एमएमआरडीए) और महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास प्राधिकरण (म्हाडा) जैसे निकाय 1970 के दशक में बनाए गए थे, और बाद के वर्षों में उन्हें और मजबूत किया गया.

इन दोनों निकायों को मुंबई के विभिन्न क्षेत्रों में विशेष नियोजन प्राधिकरण के रूप में नियुक्त किया गया है. एमएमआरडीए के पास बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स और वडाला में आलीशान अचल संपत्ति का नियंत्रण है, और म्हाडा को अपनी जमीन पर भवन निर्माण योजनाओं की मंजूरी देने का अधिकार है.

इसके अलावा, एमएमआरडीए शहर में कई प्रमुख सड़कों का रखरखाव करता है जैसे कि मुख्य पूर्वी और पश्चिमी एक्सप्रेस राजमार्ग.

महाजन ने कहा, ‘जब भी बीएमसी और राज्य सरकार के बीच टकराव हुआ है, राज्य सरकार ने इसके समाधान के रूप में एमएमआरडीए और म्हाडा जैसे निकायों को अधिक शक्तियां प्रदान की हैं. इस तरह का खंडित शासन मुंबई जैसे शहर के लिए बेहद खराब संगठनात्मक ढांचा है. ऐसे हालात में बड़े बजट से कोई फर्क नहीं पड़ता. ‘

साल 2017 के आरजे मलिश्का प्रकरण में भी, शिवसेना के सदस्यों ने बीएमसी के बचाव में अधिकार क्षेत्र की इसी लड़ाई का हवाला दिया था.

उस समय आदित्य ठाकरे के नेतृत्व वाली ‘युवा सेना’ के दो नेताओं ने तत्कालीन बीएमसी आयुक्त अजय मेहता से रेडियो जॉकी मलिश्का के खिलाफ 500 करोड़ रुपये का मानहानि वाला मुकदमा दायर करने का आग्रह किया था. उन्होंने कहा था कि वह गलत तरीके से उन समस्याओं के लिए बीएमसी को दोष दे रही थी जो इस नागरिक निकाय के अधिकार क्षेत्र में थी ही नहीं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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