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Friday, 29 March, 2024
होमदेशपूर्वोत्तर दिल्ली में हुई हिंसा भारत का बंदूकों वाला पहला हिंदू-मुस्लिम दंगा क्यों है

पूर्वोत्तर दिल्ली में हुई हिंसा भारत का बंदूकों वाला पहला हिंदू-मुस्लिम दंगा क्यों है

दिल्ली पुलिस ने दावा किया है कि उन्होंने 500 खाली कारतूस बरामद किए हैं जिसमें दंगा प्रभावित पूर्वोत्तर दिल्ली से 0.32 बोर, 9 एमएम यहां तक कि .315 बोर पिस्टल्स शामिल हैं और ये दंगाइयों के हथियारों से फायर की गई थी.

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नई दिल्ली: दिल्ली दंगों में मरने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 38 पहुंच गई है जिसमें से करीब आधे लोग बंदूक की गोली का शिकार हुए हैं. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है. दिल्ली पुलिस के मुताबिक घायलों में से तकरीबन 80 लोग बुलेट से घायल हुए हैं.

दिल्ली पुलिस ने दावा किया है कि उन्होंने 500 खाली कारतूस बरामद किए हैं जिसमें दंगा प्रभावित पूर्वोत्तर दिल्ली से .32 बोर, 9 एमएम यहां तक कि .315 बोर पिस्टल्स शामिल हैं और ये दंगाइयों के हथियारों से फायर की गई थी.

पुलिस के सूत्र ने कहा, ‘खुलेआम हथियारों का इस्तेमाल जिसमें से ज्यादातर देशी कट्टे थे, ये दिखाता है कि लोगों ने पहले से ही हथियारों को जमा कर रखा हुआ था.’ ‘हथियार खरीदने वाले ज्यादातर नौजवान बेरोजगार हैं जो कि उत्तर प्रदेश और बिहार से आए हुए प्रवासी हैं जिनके लिए इन्हें हासिल करना आसान होता है.’

दिल्ली पुलिस ने इस बात को माना कि ये पहला हिंदू-मुस्लिम दंगा है जिसमें इस तरह से बंदूकों का इस्तेमाल हुआ है.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘बंदूकों को खुलेआम इन दंगों में लहराया गया जो कि पहली बार हुआ है.’ ‘त्रिलोकपुरी में हुए दंगों में ईंट, पत्थर और दूसरे हथियारों का प्रयोग किया गया था. यह बेहद भयानक है.’

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अधिकारी ने कहा, ‘यह बड़ी चिंता का विषय है. हम जांच कर रहे हैं कि कैसे इतने सारे लोगों के पास बंदूक आए.’

संभावना जताई जा रही है कि हथियार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश से आए होंगे. ये रास्ते दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में हथियारों के अवैध स्मगलिंग के लिए जाने जाते हैं. पुलिस के सूत्रों ने यह जानकारी दी.

सूत्रों के अनुसार पूर्वोत्तर और बाहरी दिल्ली के हिस्सों में इस तरह के हथियारों की खासा मांग रहती है.

सूत्र ने कहा कि ‘इसके कई कारण है.’ ‘यह इलाके बॉर्डर क्षेत्र से लगे हुए हैं. व्यवस्थित तौर पर गैंग काम करती है और बहुत सारे आपराधिक रिकॉर्ड वाले लोग यहां रहते हैं. इन्हीं क्षेत्रों में ज्यादातर एफआईआर दर्ज की गई हैं.’

उन्होंने कहा, ‘बहुत सार लोग हथियार इसलिए खरीदते हैं क्योंकि वो गैंग के हिस्से हैं और बाकी अपनी सुरक्षा के लिए ऐसा करते हैं.’

हालांकि हथियार सस्ते नहीं होते हैं. देशी कट्टे जो बिहार के मुंगेर में बनते हैं वो आसानी से 7 से 8 हज़ार के बीच मिल जाते हैं वहीं मध्य प्रदेश में मिलने वाले बंदूक 4 से 6 हज़ार के बीच मिलते हैं. जिसके बाद ये दूसरी जगह यानी कि दिल्ली आते आते इनके दाम 30 से 40 हज़ार तक हो जाते हैं.


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सूत्र ने बताया कि दिल्ली पुलिस ने इस क्षेत्र में कई बार छापा मारा है ताकि इस तरह की गतिविधि पर रोक लगे और यहां तक कि यूपी पुलिस भी ऐसे ऑपरेशन में शामिल रही है लेकिन फिर भी हथियारों की आवाजाही रुकी नहीं है.

सूत्र ने कहा, ‘बहुत सारे ऑपरेशन और कदम उठाए गए हैं जिसमें हथियारों की बरामदगी हुई है लेकिन फिर भी बॉर्डर इलाकों से हथियार आ रहे हैं.’ ‘हर बार वो एक नए तरीके से आते हैं.’

मध्य प्रदेश अवैध हथियारों का नया अड्डा बन रहा है

दिल्ली पुलिस के सूत्रों के मुताबिक मध्य प्रदेश अवैध हथियारों का नया केंद्र बनता जा रहा है.

राज्य के चार क्षेत्र- धार, खरगांव, बडवानी और खंडवा से दिल्ली में हथियार आते हैं. ये बात पुलिस के अन्य सूत्र ने दिप्रिंट को बताई.

सूत्र ने बताया कि मुंगेर के स्थानीय समुदाय सिकलीगर्स द्वारा बनाए जाने वाले हथियारों से इनकी गुणवत्ता थोड़ी कम होती है.

उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश के इन चार क्षेत्रों में से ज्यादातर हथियार खरगांव और बडवानी से आते हैं.

.32 बोर पिस्टल और .315 सिंगल शॉट पिस्टल ‘ज्यादा इस्तेमाल’ होता है

वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘2017 तक बिहार का मुंगेर सेमी-ऑटोमेटिक हथियारों का स्त्रोत हुआ करता था और उत्तर प्रदेश का मेरठ सिंगल शॉट कट्टों का स्त्रोत होता था. लेकिन पुलिस के हस्तक्षेप के बाद मुंगेर के उद्योग को हस्तांतरित कर दिया गया.’

अधिकारी ने बताया कि अभी भी अच्छी गुणवत्ता के हथियार मुंगेर से ही आते हैं.

जबकि देशी कट्टे अलग-अलग वेरिएंट में उपलब्ध है जिसमें 318 बोर देशी पिस्टल, .32 बोर पिस्टल सेमी-ऑटोमेटिक पिस्टल, 9 एमएम पिस्टल शामिल है. कारण ये है कि इनके कारतूस आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं.

तीसरे पुलिस सूत्र के मुताबिक अच्छी गुणवत्ता के पिस्टल अभी भी मुंगेर में बनते हैं. मुख्य कच्चा माल जिसमें लोहा जिससे बेरल और हथौड़ा बनाया जाता है- जो कि पिस्टल बनाने के लिए जरूरी है- उसे रेलवे यार्ड के स्क्रैप के जरिए बनाया जाता है.


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जबकि मध्य प्रदेश में इस्तेमाल किया जाने वाला लोहा स्थानीय स्क्रैप डीलर से लिया जाता है.

सूत्र ने कहा, ‘जो लोहा मुंगेर में इस्तेमाल होता है वो रेलवे यार्ड से लिया जाता है जो कि इस क्षेत्र में काफी है. लेकिन मध्य प्रदेश में स्थानीय स्क्रैप डीलर से लोहा लिया जाता है जो कि अध्ययन में पाया गया है कि वो मजबूत नहीं होते.’ ‘यह दोनों की गुणवत्ता का मुख्य कारण है. बैरल और हैमर पिस्टल के दो महत्वपूर्ण हिस्से हैं जिनका मजबूत होना जरूरी है.’

दूसरा कारण ये है कि मुंगेर में पक्का भंगर (फरनेस जिसमें खनिज को पिघलाया जाता है) का इस्तेमाल होता है. लेकिन मध्य प्रदेश में कच्चा भंगर का उपयोग होता है.

सूत्र ने समझाया कि ‘मुंगेर के भंगर ज्यादा गर्मी और दबाव पैदा करते हैं जिससे हथियार मजबूत बनता है. मुंगेर के फरनेस को इस तरह से बनाया जाता है ताकि वो ज्यादा गर्म हो सके. लेकिन मध्य प्रदेश में सब अस्थायी तौर पर होता है. फरनेस कारगर नहीं होते हैं जिससे हथियारों की गुणवत्ता पर असर पड़ता है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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