नई दिल्ली: दिप्रिंट को पता चला है कि डोमेन एक्सपर्ट्स को सीधे बतौर संयुक्त सचिव और डायरेक्टर नियुक्त करने के लिए केंद्र सरकार की और से लेटरल एंट्री स्कीम को विस्तार देने के कुछ ही दिनों के भीतर, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) ने इन पदों के लिए आरक्षण न होने पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
सरकार के सूत्रों के अनुसार, शुक्रवार को कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) की एक बैठक में आयोग ने इन पदों पर आरक्षण न देने के सरकार के फैसले पर सवाल उठाए हैं, हालांकि सिविल सर्विसेज़ में ऐसा करना, संवैधानिक रूप से अनिवार्य है- जिसके ज़रिए आमतौर पर संयुक्त सचिव और डायरेक्टर स्तर पर नियुक्तियां होती हैं.
एक सरकारी अधिकारी ने, जो नाम छिपाना चाहते थे, कहा, ‘सरकारी नौकरियों में आरक्षण संवैधानिक और वैधानिक रूप से अनिवार्य है, इसलिए लेटरल एंट्री को उनके दायरे में क्यों नहीं लाया गया है, इसका जवाब मांगा गया है’.
पता चला है कि डीओपीटी ने, जवाब देने के लिए राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग से एक सप्ताह का समय मांगा है. ‘चूंकि ये एक संवैधानिक सवाल है, इसलिए जवाब देने के लिए करीब एक हफ्ते का समय मांगा गया है’.
हालांकि लेटरल एंट्री में आरक्षण न देने के सरकार के फैसले की आलोचना हुई है लेकिन ये पहली बार है कि किसी सरकारी इकाई ने इस बारे में सवाल खड़ा किया है.
दिप्रिंट ने टेक्स्ट मैसेज और कॉल के ज़रिए डीओपीटी प्रवक्ता से संपर्क किया लेकिन इस विषय पर किए गए सवालों का कोई जवाब हासिल नहीं हुआ.
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सरकार का रुख
सरकार अपने रुख पर कायम है कि वो लेटरल एंट्री के लिए आरक्षण नहीं दे सकती, चूंकि विज्ञापन में दिए गए हर पद को एक अकेली पोस्ट माना जाता है.
लेटरल एंट्री के बारे में 2018 की डीओपीटी फाइल नोटिंग्स के अनुसार, ‘एक सिंगल पोस्ट काडर में आरक्षण लागू नहीं होता. चूंकि इस स्कीम के तहत भरा जाने वाला हर पद अकेला पद होता है, इसलिए उसपर आरक्षण लागू नहीं होता’.
ये वो रुख है जिसे सरकार ने संसद के भीतर भी उचित ठहराया है. डीओपीटी के राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने 2019 में राज्य सभा में कहा था, ‘…ये तय किया गया था कि इन सिंगल काडर पदों पर आरक्षण देना मुश्किल है और ये शायद करने योग्य भी नहीं है’.
सरकार ने 2018 में पहली बार संयुक्त सचिव के लिए 10 पदों का विज्ञापन दिया था, जबकि संयुक्त सचिव और डायरेक्टर के 30 और पदों का विज्ञापन इसी महीने दिया गया है.
सरकार के ताज़ा पदों का विज्ञापन निकालने के बाद भीम आर्मी प्रमुख और दलित अधिकार कार्यकर्ता चंद्रशेखर आज़ाद ने इस स्कीम को संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करार दिया और कहा कि 7 मार्च को वो संसद का घेराव करेंगे.
आज़ाद ने एक प्रेस वार्त्ता में कहा, ‘ये एक तरीका है सरकार की पसंद के लोगों को पिछले दरवाज़े से नौकरशाही में घुसाने का. ये न केवल भारतीय संविधान में अवसर की समानता के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि उन लोगों के साथ भी उचित नहीं है, जो पहले से सिविल सर्विसेज़ का हिस्सा हैं और संयुक्त सचिव स्तर तक पहुंचने के लिए जिन्हें बरसों गुज़ारने पड़ते हैं.
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