नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंगलवार को रबी सीजन की कई फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाने का फैसला किया और अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इसका उद्देश्य घरेलू उत्पादकों को प्रोत्साहित कर तेजी से बढ़ते देश के चालू खाता घाटे (सीएडी) में कमी लाना है.
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए सभी अनिवार्य रबी फसलों के लिए एमएसपी बढ़ाने को मंजूरी दी. मसूर के लिए 500 रुपये प्रति क्विंटल की सबसे ज्यादा एमएसपी वृद्ध की गई है, इसके बाद रेपसीड और सरसों में 400 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि हुई है. सनफ्लावर के एमएसपी में 209 रुपये प्रति क्विंटल और गेहूं, जौ और चना के लिए क्रमश: 110 रुपये, 100 रुपये और 105 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई.
एमएसपी में वृद्धि का फैसला, खासकर दाल और तिलहन जैसे रेपसीड और सरसों के लिए घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने का सरकार का एक प्रयास है ताकि इन दोनों फसलों के लिए भारत की आयात निर्भरता कम हो सके.
मुंबई स्थित क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स के चीफ इकोनॉमिस्ट डी.के. पंत ने दिप्रिंट को बताया, ‘दालों और खाद्य तेलों के मामले में आयात पर हमारी काफी ज्यादा निर्भरता है.’
उन्होंने कहा, ‘देखिए वैश्विक कीमतों में वृद्धि की वजह से देश जिस स्थिति का सामना कर रहा है, उसमें इसलिए आपका चालू खाता घाटा बढ़ रहा है और इसका आपकी मुद्रा पर प्रभाव पड़ रहा है. इसलिए यह उच्च जिंस कीमतों और कमजोर मुद्रा की दोहरी मार है.’
पंत ने कहा, ‘अब, यदि एमएसपी बढ़ाकर आप घरेलू उत्पादन बढ़ा सकते हैं तो अनुकूल प्रभाव पड़ सकता है जिससे आपकी आयात निर्भरता घट जाएगी.’
ताजा उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक भारत का सीएडी— जिसका संबंध निर्यात की तुलना में आयात अधिक होने से है—अप्रैल-जून तिमाही में बढ़कर 23.9 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया. यह कम से कम तीन साल में सबसे ज्यादा है. कुछ आकलन जुलाई-सितंबर 2022 तिमाही में सीएडी के 40 अरब डॉलर तक बढ़ने का अनुमान लगाते हैं.
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उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन
कंसल्टेंसी फर्म अर्न्स्ट एंड यंग के भारत के मुख्य नीति सलाहकार डी.के. श्रीवास्तव ने दिप्रिंट को बताया, सरकार की तरफ से एमएसपी में इतनी अहम वृद्धि की एक वजह यह सुनिश्चित करना भी हो सकता है कि घरेलू उत्पादन या तो बढ़े या समान रहे खासकर ऐसे समय में जब वैश्विक स्तर पर खाद्य की कमी का अनुमान लगाया जा रहा है.
उन्होंने स्पष्ट किया, ‘सारी दुनिया की अर्थव्यवस्था विभिन्न खाद्य पदार्थों की अनुमानित कमी से प्रभावित हो रही है और भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसके किसी प्रभाव से बचने के लिए सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि चयनित फसलों का उत्पादन बनाए रखने या बढ़ाने के लिए किसानों को पर्याप्त प्रोत्साहन दिया जाए.’
श्रीवास्तव ने आगे कहा कि सरकार अपने भंडार के लिए खरीद भी करना चाहती है. साथ ही जोड़ा कि एमएसपी का उद्देश्य न केवल किसानों को न्यूनतम आय प्रदान करना है बल्कि यह सरकार को इन फसलों की खरीद में भी मदद करता है.
एमएसपी वृद्धि की जानकारी देने वाली प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, सरकार उत्पादन लागत को देखते हुए किसानों को उचित मेहनताना मुहैया कराने पर विचार कर रही है.
इसमें कहा गया है, ‘मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए रबी फसलों के लिए एमएसपी में वृद्धि केंद्रीय बजट 2018-19 की घोषणा के अनुरूप है, जिसमें एमएसपी को अखिल भारतीय स्तर पर औसत उत्पादन लागत के कम से कम 1.5 गुना के स्तर पर लाने का लक्ष्य है. ताकि किसानों को उचित पारिश्रमिक मिल सके.
इसमें कहा गया है कि रेपसीड और सरसों के लिए अधिकतम रिटर्न दर 104 प्रतिशत है, इसके बाद गेहूं के लिए 100 प्रतिशत, मसूर के लिए 85 प्रतिशत, चना के लिए 66 प्रतिशत, जौ के लिए 60 प्रतिशत और सनफ्लावर के लिए 50 प्रतिशत है.
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‘भाजपा का वादा’
अपने 2018-19 के बजट भाषण में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि सरकार ने किसानों को उनकी उत्पादन लागत का 1.5 गुना दाम दिलाने के भाजपा के घोषणापत्र के वादे को बरकरार रखा है.
जेटली ने कहा था, ‘हमारी पार्टी के घोषणापत्र में कहा गया है कि किसानों को अपनी उपज लागत से कम से कम 50 फीसदी ज्यादा यानी अपने उत्पादन लागत से डेढ़ गुना कमाई होनी चाहिए.’
उन्होंने आगे कहा कि सरकार इस प्रस्ताव को लेकर बेहद संवेदनशील है और रबी की अधिकांश फसलों के लिए लागत का कम से कम डेढ़ गुना एमएसपी घोषित किया है.
मंगलवार को जारी प्रेस रिलीज में कहा गया है कि सरकार खासकर तिलहन और दलहन का उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है. सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि तिलहन उत्पादन ‘2014-15 में 27.51 मिलियन टन’ से बढ़कर ‘2021-22 में 37.7 मिलियन टन’ हो गया है, जो 37 प्रतिशत की वृद्धि है.
प्रेस रिलीज के मुताबिक, ‘2014-15 से दलहन और तिलहन की उत्पादकता में काफी वृद्धि हुई है. दालों की उत्पादकता 728 किलोग्राम/हेक्टेयर (2014-15) से बढ़कर 892 किलोग्राम/हेक्टेयर (चौथा अग्रिम अनुमान, 2021-22) हो गई है जो कि 22.53% की वृद्धि को दर्शाती है. इसी तरह तिलहन फसलों की उत्पादकता 1,075 किलोग्राम/हेक्टेयर (2014-15) से बढ़कर 1,292 किलोग्राम/हेक्टेयर (चौथा अग्रिम अनुमान, 2021-22) हो गई है.
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