नई दिल्ली: पूर्वोत्तर दिल्ली में भड़के हिंदू-मुस्लिम दंगों ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत यात्रा को कमतर किया जिसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभूतपूर्व कदम उठाते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को हिंसा प्रभावित क्षेत्र में भेजकर कानून और शांति स्थापित सुनिश्चित की. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.
मंगलवार शाम से डोभाल दो बार उस क्षेत्र में जा चुके हैं, स्थानीय पुलिस स्टेशन का दौरा किया, सड़कों पर चले, पीड़ित लोगों से मुलाकात की और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का आश्वासन दिया- ये सब टेलीविजन के कैमरे के रहते हुआ.
इस मामले पर उनका हस्तक्षेप असामान्य है. चूंकि ये एनएसए का काम नहीं है कि कानून स्थापित करे और सरकार का चेहरा बनकर उभरे वो भी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में जहां चार दिनों में 25 लोगों की मौत हो चुकी है.
कानून स्थापित करने का काम देश के गृह मंत्री अमित शाह का है क्योंकि दिल्ली पुलिस उन्हीं को रिपोर्ट करती है लेकिन डोभाल की यात्रा ने सभी को चौंका दिया.
दिल्ली चुनावों के बीच शाह द्वारा दिए गए ध्रुवीकृत भाषणों की आलोचना हो रही है जो उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून के मद्देनज़र दिए थे. पिछले साल गृह मंत्री बनने के बाद प्रशासकीय सुरक्षा पर उनकी पकड़ हो चुकी है.
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान सुरक्षा का जिम्मा डोभाल संभाल रहे थे.
डोभाल को सरकार के चेहरे के तौर पर भेजा गया
सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान इस तरह की हिंसा से प्रधानमंत्री खुश नहीं है वो भी तब जब गुजरात में हजारों लोगों ने उनका जोरदार स्वागत किया था.
सरकार के एक शीर्ष सूत्र ने कहा कि ‘यह ठीक नहीं है. प्रधानमंत्री मीडिया जिसमें विदेशी मीडिया से खुश नहीं है जिसमें वो ट्रंप की यात्रा को सड़कों पर हुई हिंसा से जोड़ रहे हैं. यह नुकसान पहुंचाने वाला था.’
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सूत्र ने कहा कि मोदी ने इस मसले पर डोभाल को सही आदमी के तौर पर एक से ज्यादा कारणों के लिए चुना है.
1968 बैच के केरल कैडर के आईपीएस अधिकारी डोभाल इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं. मोदी के नजदीकी माने जाने वाले डोभाल को 2014 में एनएसए नियुक्त किया गया. उसी साल भाजपा सत्ता में आई थी.
इन दंगों ने दिल्ली पुलिस की नाकामियों को सामने लाकर रख दिया है. वो भी उस समय जब पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को सेवानिवृत्ति के बाद एक महीने का कार्यकाल बढ़ा दिया गया.
सूत्रों ने कहा कि ‘कोई भी मामले पर आगे बढ़ता हुआ नहीं दिखा. यह एक कारण था कि प्रधानमंत्री ने डोभाल को कहा कि आपको ये जिम्मेदारी लेनी चाहिए.’
ऐसे हालात में मंगलवार को एसएन श्रीवास्तव को दिल्ली पुलिस का स्पेशल कमिश्नर नियुक्त कर दिया गया.
एक और कारण जिसकी वजह से एनएसए को हिंदू-मुस्लिम दंगों को संभालने के लिए भेजा गया वो ये था कि डोभाल से सिवा अमित शाह दंगा प्रभावित क्षेत्रों में घूम नहीं पाते और न ही मुसलमानों से मिल पाते.
एक और अन्य सूत्र ने कहा कि ‘डोभाल को ऐसे मामलों से निपटने में महारत हासिल हैं. वो सरकार के कश्मीर में महत्वपूर्ण व्यक्ति रह चुके हैं. अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद वो वहां जाकर स्थानीय लोगों से मिले भी थे.’
शाह को कमतर दिखाने की कोशिश नहीं है
डोभाल को हिंसा प्रभावित क्षेत्र में भेजने के बाद ये बात तेज़ी से होने लगी कि ये शाह को कमतर दिखाने की कोशिश है. सूत्र इस यात्रा की ऐसी व्याख्या को नकार रहे हैं.
एक सूत्र ने कहा कि ‘ऐसी बातों में ज़रा भी सच्चाई नहीं है. प्रधानमंत्री सरकार की तरफ से एक विश्वसनीय चेहरा चाहते थे जो जमीन पर जाकर मामले को देखे. ऐसे में डोभाल को सही व्यक्ति के तौर पर देखा गया.’
सूत्र ने कहा कि हालांकि डोभाल ग्राउंड जीरो पर थे लेकिन शाह को सारी खबर थी. ‘डोभाल बुधवार को दंगा प्रभावित क्षेत्र की यात्रा के बाद तुरंत शाह से मिलने गए और उन्हें जानकारी दी.’
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दूसरे सूत्र ने कहा कि एनएसए प्रधानमंत्री मोदी और शाह के साथ करीबी से काम कर रहे थे जहां वो 25 फरवरी से ही घंटे दर घंटे उन्हें जानकारी दे रहे थे.
शाह ने दर्जन भर से ज्यादा बैठक सुरक्षा अधिकारियों और आईबी अधिकारियों के साथ की. उन्होंने दिल्ली के सीएम केजरीवाल के साथ भी मामले की स्थिति पर समीक्षा बैठक की. गृह मंत्रालय के सूत्र के अनुसार डोभाल ‘सुरक्षा समीक्षा’ के दौरान मौजूद थे जो शाह ने मंगलवार शाम को बुलाई थी.
सूत्र ने कहा कि उसी बैठक में हुई चर्चा के बाद ही एनएसए सीलपुर के डिप्टी कमिश्नर के दफ्तर पहुंचे थे.
(स्नेहेश एलेक्स फिलिप के अतिरिक्त इनपुट के साथ)
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