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Thursday, 19 December, 2024
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क्यों ममता ने पुरुलिया में आदिवासियों को बुला कर सरकारी सेवाओं के लिए दी गई रिश्वत का डिटेल मांगा

सोमवार को हुई पुरुलिया की इस बैठक में बोलते हुए, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जिलाधिकारी को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि उनके अधिकार क्षेत्र में कोई भी सरकारी अधिकारी अपना काम करने के लिए रिश्वत न मांगे.

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कोलकाता: पश्चिम बंगाल में आगामी पंचायत चुनाव से पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी यह दिखाने का हर संभव प्रयास कर रही हैं कि भ्रष्टाचार के प्रति उनकी नीति ‘जीरो टॉलरेंस’ (एकदम बर्दाश्त न करने की) वाली है.

30 मई को, राज्य के पुरुलिया जिले में आयोजित एक प्रशासनिक समीक्षा बैठक के दौरान मुख्यमंत्री बनर्जी ने जिले के बलरामपुर प्रखंड से तीन आदिवासी परिवारों को मंच पर बुलाया और उनसे कैमरे पर यह बयां करने को कहा कि कैसे उन्हें सरकारी सेवाएं प्राप्त करने के लिए कथित रूप से रिश्वत देनी पड़ी.

ममता ने कहा, ‘मेरे पीछे गरीब, परेशान आदिवासी परिवार बैठे हैं. वे अपनी जमीन का दाखिल ख़ारिज (म्यूटेशन) नहीं करवा पा रहे हैं और इसी वजह से सरकारी योजनाओं से वंचित हो रहे हैं. मुझे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों से ढेरों शिकायतें प्राप्त हुई हैं, जो अपनी भूमि का म्यूटेशन नहीं करवा पा रहे हैं. पुरुलिया के जिलाधिकारी (डीएम) द्वारा पिछले छह माह से यहां ठीक से काम नहीं किया जा रहा है.’

विपक्ष द्वारा लगातार लगाए जा रहे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के लिए निशाने पर रहीं ममता बनर्जी 2024 के लोकसभा चुनाव, और उससे भी पहले, अगले साल होने वाले पंचायत चुनाव के लिए अपनी एक साफ छवि पेश करने के प्रति इच्छुक हैं.

इसी बैठक में बोलते हुए मुख्यमंत्री ने डीएम को यह सुनिश्चित करने का भी आदेश दिया कि उनके जिले में कोई भी सरकारी अधिकारी अपना काम पूरा करने के लिए रिश्वत न मांगे. उन्होंने कहा कि अगर उनकी पार्टी के सदस्य भी इस तरह के भ्रष्टाचार में लिप्त होते हैं तो वह उन्हें ‘कम-से-कम चार बार थप्पड़ मारेंगी’..

तृणमूल कांग्रेस की मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य ने दिप्रिंट के साथ बातचीत में कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ मुख्यमंत्री की ‘जीरो टॉलरेंस’ वाली नीति है, चाहे वह सरकार में हो या पार्टी के भीतर. भट्टाचार्य ने कहा, ’ममता बनर्जी जो कहती हैं वही करती हैं. अगर भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं, तो वह कार्रवाई करने से कभी नहीं कतराती हैं, चाहे संबंधित व्यक्ति कोई भी हो.’

हालांकि, भाजपा ने मुख्यमंत्री के ‘कड़े रुख’ का मजाक उड़ाने की कोशिश की, और उनकी सरकार के रहते हो रहे ‘भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई की कमी’ को उजागर करने के लिए वर्तमान में सीबीआई द्वारा जांच किये जा रहे कथित स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) भर्ती घोटाले का हवाला दिया.

भाजपा नेता प्रियंका टिबरेवाल ने कहा, ‘अगर ममता बनर्जी जो कहती हैं वही करतीं, तो उनके मंत्रियों पार्थ चटर्जी और परेश अधिकारी, जिनकी एसएससी घोटाले में जांच की जा रही है, को हटा दिया जाना चाहिए था. मुख्यमंत्री को सरकार और उनकी पार्टी के भीतर हो रहे भ्रष्टाचार की बखूबी जानकारी है, लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की. वह केवल कैमरों के सामने बातें करती हैं.’


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ममता का ‘मिशन क्लीन-अप’

30 मई को हुई प्रशासनिक बैठक में मुख्यमंत्री के सामने अपनी दुःख भरी कहानी सुनाने के लिए आमंत्रित लोगों में से एक पुरुलिया के बलरामपुर ब्लॉक के राजेन हेब्राम थे.

हेब्राम ने कहा कि 2011 में उनके पिता की मृत्यु के बाद वे अपने पिता के नाम वाली जमीन अपने नाम पर ट्रांसफर करवाने के लिए प्रखंड के भूमि सुधार कार्यालय (बीएलएलआरओ) में गए थे, लेकिन कुछ ‘बिचौलियों’ द्वारा उनसे कागजी कार्रवाई पूरी करने के लिए पैसे मांगे गए.

उन्होंने आरोप लगाया, ‘मुझे हरेक पन्ने की फोटोकॉपी के लिए 100 रुपये देने पड़े और मुझे कार्यालय के बाहर एक स्टेशनरी स्टोर में जाने के लिए कहा गया, जहां मुझे अपनी ‘कागजी कार्रवाई’ के लिए 2,500 रुपये का भुगतान करना पड़ा.’

इसी बैठक में मौजूद बलरामपुर के एक अन्य निवासी जादव महतो ने कहा कि वह अपनी जमीन का दाखिल ख़ारिज करवाना चाहते थे और उन्हें इसके लिए 15,000 रुपये रिश्वत के रूप में देने के लिए कहा गया था.

इसके बाद ममता बनर्जी ने बलरामपुर के थाना प्रभारी पुलिस निरीक्षक से पूछा कि क्या उन्हें पता है कि बीएलएलआरओ उनके अधिकार क्षेत्र में कहां स्थित है. उन्होंने दावा किया कि सरकारी कार्यालय के सामने बनी दो दुकानें – एक टूटे साइनबोर्ड वाली दुकान, जिसका मालिक कनाली किंकरiनाम का एक व्यक्ति है, और दूसरी जिसे प्रियंका वेरायटीज़ कहा जाता है, वे जगहें है जहां से ये सब ‘अवैध’ काम हुए हैं.

उन्होंने बलरामपुर थाने के अधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा, ‘जब गरीब लोग भूमि सुधार कार्यालय में आते हैं, तो उन्हें उन दो दुकानों पर जाकर यह समझने के लिए बोला जाता है कि क्या करना होगा. चूंकि आदिवासी पढ़े-लिखे नहीं हैं, इसलिए उन्हें सरकारी काम के लिए 1,000 रुपये से 2,500 रुपये तक की रिश्वत देने के लिए कहा जाता है और कभी-कभी, जमीन के आकार के आधार पर, यह राशि 30,000 रुपये तक पहुंच सकती है. ये बिचौलिये लोग हैं. मुझे तुरंत एक जांच रिपोर्ट चाहिए.’

मुख्यमंत्री ने इस बैठक में पुरुलिया के पुलिस अधीक्षक एस सेल्वामुरुगन की खिंचाई करते हुए उनसे पूछा कि क्या उन्होंने उन दुकानों पर छापामारी की है या उन्हें पुरुलिया जिले के साथ लगी ‘झारखंड की सीमा से भाग जाने’ की अनुमति दे दी है.

इसके एक घंटे के अंदर-अंदर सेल्वामुरुगन ने ममता बनर्जी को सूचित किया कि उन दो आरोपियों को हिरासत में लिया गया है और उनकी दुकानों को आगे की जांच के लिए सील कर दिया गया है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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