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Sunday, 22 December, 2024
होमदेशसाइबर बुलिंग को रोकने वाले सरकारी अध्यादेश से केरल के पत्रकारों में क्यों है नाराज़गी

साइबर बुलिंग को रोकने वाले सरकारी अध्यादेश से केरल के पत्रकारों में क्यों है नाराज़गी

केरल के राज्यपाल ने शनिवार को उस अध्यादेश पर दस्तखत कर दिए जिससे महिलाओं और बच्चों की ऑनलाइन बुलिंग और वर्चुअल प्रताड़ना को रोकने के लिए केरल पुलिस एक्ट में बदलाव किए गए हैं.

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बेंगलुरू: केरल के पत्रकार केरल पुलिस अधिनियम संशोधन अध्यादेश को मीडिया का गला घोंटने की एक और कोशिश के तौर पर देख रहे हैं और उनका कहना है कि नया कानून, ऐसी किसी भी खबर पर ऐतराज़ करने के लिए कानूनी आधार दे देता है, जो सत्ताधारी पार्टी को अपने प्रतिकूल लगती हो.

राज्यपाल आरिफ मौहम्म्द खान ने शनिवार को उस अध्यादेश पर दस्तखत कर दिए जिसमें महिलाओं और बच्चों की ऑनलाइन बुलिंग और वर्चुअल प्रताड़ना को रोकने के लिए केरल पुलिस एक्ट में बदलाव किए गए हैं.

मुख्यमंत्री के मीडिया सेल से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘अध्यादेश से सिर्फ पुलिस को सोशल मीडिया में अवांछित तत्वों पर नज़र रखने में मदद मिलेगी’.

बारीकी से नज़र

21 अक्टूबर को सीएम पिनरई विजयन की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, केरल कैबिनेट ने राज्यपाल से अध्यादेश को लागू करने की सिफारिश की है जिसे अधिनियम के अंदर अनुच्छेद 118 (ए) के रूप में सम्मिलित किया जाएगा.

पुलिस एक्ट को संशोधित करने की, राज्य सरकार की सिफारिश में कहा गया है कि अगर सरकार को पता चलता है कि सोशल मीडिया समेत कोई भी मीडिया प्लेटफॉर्म, कोई ऐसी सामग्री तैयार, प्रकाशित या प्रचारित कर रहा है जिससे किसी व्यक्ति को खतरा, अपमान या नुकसान पैदा होता हो तो उस पर दंड के तौर पर 10,000 रुपए जुर्माना या पांच साल तक की सज़ा या दोनों हो सकते हैं.

राज्य के अधिकारियों ने कहा कि इससे दोषियों पर मुकदमा चलाने के लिए कानून लागू करने वालों के हाथ और मज़बूत होंगे लेकिन मीडिया घरानों का कहना है कि इस कानून का इस्तेमाल उनका गला घोंटने के लिए किया जा सकता है.

केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (केयूडब्ल्यूजे) के अध्यक्ष केपी रेजी ने दिप्रिंट से कहा, ‘साइबर बुलिंग को काबू करने की आड़ में सरकार मीडिया पर नियंत्रण करने की योजना बना रही है. लेकिन संशोधन में विशेष रूप से साइबर बुलिंग नहीं बल्कि ‘मास मीडिया’ का उल्लेख किया गया है. इसका मतलब है कि पूरा मीडिया, इसके दायरे में आ जाता है’.

पिनरई विजयन सरकार ने अक्टूबर में एक्ट को बदलने का फैसला किया था, जब महिला कार्यकर्ताओं के एक समूह ने, उनके खिलाफ अपमानजनक वीडियोज़ प्रसारित करने के लिए एक वीडियो ब्लॉगर का सामना कर उसपर हमला किया था. महिलाओं का दावा था कि उन्होंने मामला अपने हाथों में लिया और ब्लॉगर का पता ढूंढ निकाला, चूंकि पुलिस में शिकायत दर्ज करने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई थी.

ब्लॉगर पर हुए हमले की वीडियो को सोशल मीडिया पर शेयर किया गया जिसके बाद केरल सरकार को लगा कि ऐसी घटनाओं को रोकने की ज़रूरत थी.


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‘कानून पर स्पष्टता चाहिए’

केयूडब्लेयूजे ने कहा कि ये अध्यादेश मीडिया का गला घोंटने का प्रयास था और ऐसी किसी भी खबर को गैर-कानूनी की श्रेणी में रखने की कोशिश थी जो सत्ताधारी व्यवस्था के खिलाफ हो.

रेजी ने कहा, ‘हमने राज्यपाल और सीएमओ (मुख्यमंत्री कार्यालय) दोनों को ज्ञापन दिए हैं और कहा है कि अध्यादेश पर दस्तखत नहीं होने चाहिएं और ये बात स्पष्ट होनी चाहिए कि क्या मीडिया पर पाबंदी लगाई जाएगी’.

सीएम के मीडिया सेल के एक सीनियर अधिकारी ने कहा कि मीडिया घराने ‘अध्यादेश का गलत अर्थ’ निकाल रहे हैं, जिसका मकसद महिलाओं और बच्चों की ऑनलाइन प्रताड़ना को रोकना है. संशोधन में सिर्फ सोशल मीडिया के ज़रिए, किसी को डराने-धमकाने, बदनाम करने या अपमानित करने को एक दंडनीय अपराध बनाने की बात की गई है.

अधिकारी ने ये भी कहा था, ‘बोलने की आज़ादी एक मौलिक अधिकार है जिसका संविधान में उल्लेख है और ये मीडिया की आवाज़ को दबाने की कोशिश नहीं है’.

16 नवंबर को सीएम विजयन ने ऐलान किया कि उनकी सरकार मीडिया में आई खबरों के सत्यापन की जांच करने के लिए एक टीम बनाएगी और सुनिश्चित करेगी कि छपे हुए लेख गढ़े हुए न हों.

विजयन ने, जो केरल मीडिया अकादमी द्वारा आयोजित एक सेमिनार में बोल रहे थे, कहा कि इस कदम से फेक न्यूज़ रोकने में मदद मलेगी. लेकिन, पत्रकारों ने ऐतराज़ उठाते हुए कहा कि ये मीडिया को चुप करने की कोशिश है.

विजयन ने इन आपत्तियों का इस आधार पर जवाब दिया कि मीडिया घराने असत्यापित तथ्य, आधे-झूठ और गढ़ी हुई कहानियां छापते हैं. उन्होंने मीडिया पर पक्षपात तक का आरोप लगाया और कहा कि खबर देने से पहले, वो तथ्यों की पुष्टि करने की कोशिश नहीं करता.

अपनी बात के समर्थन में उन्होंने मिसाल दी कि सीएम और स्वास्थ्य मंत्रालय की नियमित प्रेस वार्ताओं को, जनसंपर्क एक्सरसाइज़ बताकर, उनकी आलोचना की जाती है.


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केरल सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड

ये पहली बार नहीं है कि केरल सरकार पर मीडिया को चुप कराने का आरोप लगाया गया है. 2018 में सीएम ने नियमित कैबिनेट ब्रीफिंग्स बंद कर दीं थीं और कहा था कि बैठकों की मुख्य बातें, राज्य के जनसंपर्क विभाग (पीआरडी) द्वारा साझा कर दी जाएंगी.

उन्होंने मंत्रियों को भी निर्देश जारी कर दिए कि मीडिया से कोई भी बातचीत, पीआरडी की मंज़ूरी के बाद ही की जाएगी.

दिसंबर 2018 में सीएमओ ने एक सर्कुलर जारी किया, जिसके ज़रिए प्रेस वार्ताओं के लिए पीआरडी से अनुमति लेना, इस आधार पर अनिवार्य कर दिया गया कि मीडिया सार्वजनिक स्थानों पर ‘अनावश्यक भीड़’ जमा कर देता है.

2017 में विजयन ने, जो भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और बीजेपी के बीच हुई, एक द्विपक्षीय बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे, उस होटल के प्रबंधन को जहां मीटिंग हो रही थी, निर्देश दिया कि मीडिया को अंदर न आने दिया जाए. आखिरकार, जब मीडिया किसी तरह अंदर आ गया तो उन्होंने होटल मैनेजर को बुलाकर उससे लिखित स्पष्टीकरण मांग लिया.

हालांकि इस मामले में विजयन सरकार को न सिर्फ मीडिया बल्कि कांग्रेस और बीजेपी की ओर से भी आलोचना का शिकार होना पड़ा.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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