नयी दिल्ली, 31 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को हैरानी जताई कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) सांसदों द्वारा दायर पत्र याचिकाओं पर क्यों विचार कर रहा है।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की एक अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि उसका मानना है कि एनजीटी का अधिकार क्षेत्र उन लोगों के लिए उपलब्ध है, जो अदालतों का रुख नहीं कर सकते।
पीठ ने कहा, “यह क्या है, राष्ट्रीय हरित अधिकरण संसद सदस्यों के पत्रों पर विचार कर रहा है। हमारा मानना है कि यह अधिकार क्षेत्र उन लोगों के लिए उपलब्ध है, जो अदालतों का रुख नहीं कर सकते हैं। आम नागरिक, सांसद नहीं।”
विशाखापत्तनम के रुशिकोंडा हिल्स में निर्माण कार्य को रोकने के एनजीटी के आदेश के खिलाफ आंध्र प्रदेश सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की गई।
राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह पर्यटन के लिए एक महत्वपूर्ण जनहित परियोजना है। उन्होंने कहा कि 300 से अधिक लोगों को रोजगार मिला है और 180 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है।
इस पर, पीठ ने पूछा कि क्या उनके पास उस फैसले की प्रति है, जिसमें कहा गया है कि एनजीटी संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत उच्च न्यायालय का अधीनस्थ न्यायाधिकरण है।
सिंघवी ने इस पर अदालत से वक्त मांगा और मामले की सुनवाई को बुधवार तक के लिये स्थगित कर दिया गया।
एनजीटी ने सांसद के रघु रामकृष्ण राजू द्वारा दायर एक याचिका पर यह आदेश दिया था, जिसमें परियोजना के तहत तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) मानदंडों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था।
पर्यावरण संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्र निस्तारण के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम 2010 के तहत राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना की गई थी।
भाषा
प्रशांत दिलीप
दिलीप
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