नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक सेना लद्दाख में सैन्य वापसी को लेकर चीन के प्रति काफी सतर्कता बरत रही है क्योंकि उसे लगता है कि बीजिंग इस पूरी प्रक्रिया को सर्दियों तक खींचने की कोशिश कर सकता है और इस दौरान ध्यान बंटाने के लिए कहीं और संभवत: पूर्वोत्तर में कुछ दुस्साहस कर सकता है.
सूत्रों ने कहा कि यह संभावित परिदृश्य नई दिल्ली में सैन्य और सुरक्षा योजनाकारों के साथ-साथ उत्तरी और पूर्वी कमान से जुड़े लोगों के दिमाग में तेजी से घूम रहा है.
सूत्रों ने कहा कि चीन वापसी पर वार्ता प्रक्रिया को ‘जानबूझकर टालता’ प्रतीत हो रहा है.
एक सूत्र ने कहा, ‘चीन ने बड़ी तादाद में सैनिक बढ़ाए हैं. हमने भी लद्दाख सेक्टर में बड़ी संख्या में सैनिकों को जुटा रखा है. वार्ता प्रक्रिया काफी समय से जारी है और ऐसा लगता है कि चीन जानबूझकर इसे लंबा खींच रहा है.’
एक दूसरे सूत्र ने कहा, ‘आशंका है कि एक तरफ चीन हमें लद्दाख में उलझाए रखेगा और दूसरी ओर किसी अन्य क्षेत्र, संभवत: अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर कुछ कर सकता है. इसके साथ ही नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान की तरफ से भी दबाव बढ़ाया जा सकता है.’
सूत्र ने आगे कहा कि 1962 का युद्ध इस संदर्भ में सबसे बड़ा सबक है क्योंकि तब चीनियों ने एक साथ कई मोर्चों पर दुस्साहस और स्मोकस्क्रीनिंग का इस्तेमाल करके भारत के खिलाफ सीधा युद्ध छेड़ दिया था. इसके बावजूद सुरक्षा व्यवस्था से जुड़े में एक वर्ग का मानना है कि चीन अब भारत को हतप्रभ नहीं कर सकता क्योंकि उसने सीमा पर अपनी सुरक्षा मजबूत कर ली है.
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‘वो बाद में फिर लौट सकते हैं’
भारतीय सेना ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर उत्तरी (लद्दाख), मध्य (उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश) और पूर्वी (सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश) सेक्टरों में अपनी उपस्थिति पहले ही बढ़ा दी है.
सैन्य वापसी प्रक्रिया, जो मई में चीनी अतिक्रमण से उपजी तनाव की स्थिति के समाधान का प्रयास है, को लेकर सेना की आशंकाओं को किसी और ने नहीं बल्कि खुद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले हफ्ते अपनी लद्दाख यात्रा के दौरान उजागर किया था.
उन्होंने कहा था कि दोनों देशों के बीच चल रही बातचीत से स्थिति का समाधान निकलना चाहिए लेकिन वह इसकी ‘गारंटी’ नहीं दे सकते कि इसमें कितनी दृढ़ता होगी.
दूसरे सूत्र ने कहा कि भले ही वापसी प्रक्रिया जारी है, लेकिन ‘कुछ भी चीनियों को फिर लौटने से नहीं रोक सकता’. सूत्र ने आगे जोड़ा, ‘किसी को कभी पता नहीं होता है कि दूसरे के दिमाग में क्या चल रहा है. इसलिए वापसी प्रक्रिया की नीति पर विश्वास तो है लेकिन यह सत्यापित नहीं है.’
हालांकि, एक तीसरे सूत्र ने कहा कि चीन अब भारत को चौंका नहीं पाएगा क्योंकि सेना ने पूरी एलएसी पर यह सुनिश्चित करने के लिए पहले ही उपयुक्त कदम उठा लिए हैं कि बीजिंग लद्दाख की पुनरावृत्ति न कर पाए.
सूत्र ने आगे कहा, ‘चीन के पास अब कोई सरप्राइज फैक्टर नहीं रह गया है. लद्दाख में उन्हें शुरू में पहला कदम उठाने की वजह से फायदा मिला था लेकिन उनका वहां मुकाबला किया गया और अब तो हर जगह तैयारी है.’
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इतिहास का फैक्टर
सूत्रों ने कहा कि 1962 का अनुभव चीनी इरादों को लेकर आशंकाओं का भाव पैदा करता है. उस साल हुए युद्ध में चीन की तरफ से धोखेबाजी का सहारा लिया गया था.
वे 20 अक्टूबर को वास्तविक युद्ध की शुरुआत से काफी पहले ही लद्दाख में कई स्थानों पर घुसपैठ कर चुके थे और हमले पूर्ववर्ती नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (एनईएफए, अब अरुणाचल प्रदेश) पर बोले गए थे.
यहां तक की सीधा आक्रमण एनईएफए पर भी नहीं किया गया था. स्वर्गीय ब्रिगेडियर जेपी दलवी ने अपनी पुस्तक हिमालयन ब्लंडर में लिखा था, ‘चीन ने 8 सितंबर 1962 को थगला रिज क्षेत्र में घुसपैठ के साथ पहली चिंगारी छोड़ी थी, लेकिन इसे पूर्ण स्तर के आक्रमण के रूप में नहीं समझा गया. इसे सीमा पर विवाद की एक और मामूली घटना के तौर पर खारिज कर दिया गया, जिससे ‘स्थानीय स्तर पर मजबूती से’ निपटा जा सकता था.’
यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें चीन की तरफ से फिर ऐसा ही कुछ करने की आशंका है, एक सूत्र ने कहा कि चीन के किसी भी कदम का मुकाबला करने के लिए पूरी एलएसी पर पुख्ता उपाय किए गए हैं.
सेना पहले ही एलएसी में अपनी तैयारी का अनुमान इस आधार पर लगा रही है कि सैन्य वापसी की प्रक्रिया लद्दाख की लंबी, बर्फीली सर्दियों तक जारी रहेगी. इसके ध्यान में रखते हुए एलएसी से लगे विभिन्न स्थानों पर तैनात 30,000 अतिरिक्त सैनिकों के लिए उचित साजो-सामान और पर्याप्त मात्रा में राशन की आपूर्ति सुनिश्चित करने का व्यापक अभियान जारी है.
सेना यह सुनिश्चित करने के लिए खरीद में भी जुटी है कि हालात बिगड़ने की स्थिति में अन्य चीजों के साथ हथियारों और निगरानी उपकरणों की भी कोई कमी न हो पाए.
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