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Friday, 15 November, 2024
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भारत ने टूटे चावल के निर्यात को क्यों किया बैन, क्या अन्य किस्मों पर भी लग सकता है प्रतिबंध

चीन की मांग की वजह से उच्च निर्यात, देश में चावल की कमी का कारण बना है. देश में टूटे हुए चावल का इस्तेमाल मवेशियों के चारे और इथेनॉल बनाने के लिए किया जाता है. आशंका है कि धान की कम और देरी से हुई बुवाई इसके उत्पादन पर भी असर डाल सकती है.

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नई दिल्ली: 8 सितंबर को दुनिया के सबसे बड़े चावल निर्यातक देश भारत ने खुदरा कीमतों में बढ़ोतरी को नियंत्रित करने के लिए निर्यात प्रतिबंधों की घोषणा की. इस कदम का अनुमान पहले से लगाया जा रहा था क्योंकि कम बारिश के कारण कम और देरी से बुवाई से उत्पादन प्रभावित होने की आशंका बनी हुई है.

इस साल तेज गर्मी गेहूं की उपज में कमी का कारण बनी, जिस वजह से मोदी सरकार ने मई में गेहूं की शिपमेंट पर भी प्रतिबंध लगा दिया था.

लगभग 50 मिलियन टन के वैश्विक चावल व्यापार में भारत का हिस्सा 40 फीसदी है. चावल की कुछ किस्मों पर निर्यात प्रतिबंध क्यों लगाए गए हैं? दिप्रिंट ने इसकी बारीकी से पड़ताल की.


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निर्यात प्रतिबंधों की अब तक की घोषणा

भारत ने 9 सितंबर से बासमती और अधपके (पैराबॉल्ड) चावल को छोड़कर चावल की सभी किस्मों के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगा दिया है. इसके अलावा सरकार ने टूटे चावल के निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है, जो मिलिंग प्रोसेस का एक बाइप्रोडक्ट है.

2021-22 में भारत के कुल 21.2 मिलियन टन चावल निर्यात में बासमती (4 मिलियन टन) और पैराबोल्ड चावल (7.4 मिलियन टन) की हिस्सेदारी 54 प्रतिशत थी. शेष, भारत से लगभग 10 मिलियन टन चावल का निर्यात, जिसमें टूटे और कच्चे चावल शामिल हैं, अब प्रतिबंधित है. यह चावल में वैश्विक व्यापार का लगभग पांचवां हिस्सा है.

टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध क्यों

2021-22 में भारत ने मुख्य रूप से चीन को लगभग 3.9 मिलियन टन टूटे चावल का निर्यात किया, जो इसे पशु आहार के रूप में इस्तेमाल करता है. उच्च निर्यात की वजह से भारत में इसकी कमी हो गई. देश में टूटे हुआ चावल इथेनॉल बनाने और मवेशियों के चारे के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है.

खाद्य मंत्रालय के अनुसार, 2018-19 (1.2 मिलियन टन) की तुलना में 2021-22 में कुल टूटे चावल का निर्यात तीन गुना से ज्यादा किया गया है. यह मुख्य रूप से चीन से आई ज्यादा मांग से प्रेरित था. यहां 2018-19 और 2019-20 में आयात शून्य था. 2020-21 में यह बढ़कर 0.27 मिलियन टन और 2021-22 में 1.6 मिलियन टन हो गया.

अप्रैल और अगस्त 2022 के बीच, भारत पहले ही 2.1 मिलियन टन टूटे चावल का निर्यात कर चुका है, जो पिछले सालों की तुलना में फिर से ज्यादा है. चीन के अलावा, सेनेगल और जिबूती जैसे कुछ गरीब अफ्रीकी देश भी भारत से टूटे हुए चावल का आयात करते हैं. लेकिन इन देशों में इस चावल को अपने खाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.


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टूटे चावल के निर्यात ने भारत को कैसे प्रभावित किया

खाद्य मंत्रालय द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, इथेनॉल और पशु चारा बनाने वाले घरेलू उद्योग उचित मूल्य पर टूटे चावल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. मजबूत निर्यात की वजह से सितंबर की शुरुआत में टूटे चावल की कीमत बढ़कर 22 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई, जो जनवरी की शुरुआत में 16 रुपये प्रति किलोग्राम थी – सिर्फ आठ महीनों में 27 फीसदी की वृद्धि.

भारत ने 2025 तक पेट्रोल के साथ 20 प्रतिशत इथेनॉल मिलाने का लक्ष्य रखा है, जिसे केवल चीनी आधारित फीडस्टॉक से पूरा नहीं किया जा सकता है. यही वजह है कि 2018-19 से अनाज आधारित (मक्का और टूटे चावल) फ़ीड स्टॉक की अनुमति दी गई.

इसके अलावा खाद्य मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, चारे की कीमतों में बढ़ोतरी होने से पोल्ट्री और पशुपालन क्षेत्रों को भारी नुकसान हुआ है. दूध, अंडे और मुर्गी की कीमतों पर प्रभाव को रोकने के लिए, टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना जरूरी था.

क्या सरकार और निर्यात प्रतिबंधों की घोषणा कर सकती है?

खरीफ उत्पादन का लक्ष्य 112 मिलियन टन है. इसकी तुलना में केंद्र सरकार असामान्य बारिश की वजह से चावल के उत्पादन में 6-12 मिलियन टन की कमी की उम्मीद कर रही है. भविष्य में कोई भी प्रतिबंध वास्तविक उत्पादन और घरेलू कीमतों में उतार-चढ़ाव पर निर्भर करेगा.

11 सितंबर की स्थिति के अनुसार, थोक और खुदरा चावल की कीमतें साल-दर-साल क्रमशः 13 फीसदी और 9 फीसदी अधिक थीं.

जापानी थिंक टैंक नोमुरा रिसर्च ने सोमवार को एक नोट में कहा, ‘कुल मिलाकर, (सार्वजनिक) चावल का स्टॉक बफर स्तर से ऊपर रहना चाहिए, लेकिन मौजूदा निर्यात प्रतिबंधों से मांग-आपूर्ति की स्थिति में भौतिक रूप से सुधार नहीं हो सकता है. इसका मतलब है कि चावल की कीमतों में वृद्धि का जोखिम बना हुआ है. ऐसे में हमारा मानना है कि चावल के निर्यात पर और प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं,खासतौर से उन श्रेणियों में जिन्हें अभी भी छूट मिली हुई है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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