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Sunday, 22 December, 2024
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लखीमपुर खीरी के किसान सरकार को उचित मूल्यों पर क्यों नहीं बेच पा रहे अपनी उपज

लखीमपुर खीरी के धान और गेंहू किसानों ने कहा, कि उन्हें अकसर मजबूरी में अपनी उपज कमीशन एजेंट्स को बेंचनी पड़ती है, क्योंकि सरकारी अधिकारी उनकी उपज की ख़रीद से बचने के लिए, कुछ न कुछ बहाने बना देते हैं.

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लखीमपुर खीरी: बृहस्पतिवार सवेरे लखीमपुर खीरी की मंडी लखपेड़ागंज केंद्र एफएसएस पर, धान से लदे ट्रकों की लाइन लगी थी. कमीशन एजेंट्स और व्यापारियों के साथ क़ीमतों की सौदेबाज़ी करते, पूरे ज़िले से आए किसान एक दूसरे की आवाज़ से ऊंचा बोलने की कोशिश कर रहे थे.

इस बीच, दूसरी तरफ बैठे सरकारी पदाधिकारियों ने ख़ामोशी इख़्तियार की हुई थी, और सिर्फ निगाहों के सहारे आपस में संचार कर रहे थे.

उत्तर प्रदेश में धान की ख़रीद 1,975 रुपए प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सरकार द्वारा की जाती है, लेकिन कमीशन एजेंट्स इसके लिए 1,100-1,200 प्रति क्विंटल से ज़्यादा नहीं देते.

लेकिन, सरकार को अपनी उपज बेचना हमेशा आसान नहीं होता.

फिर भी सिकंदराबाद के 62 वर्षीय किसान इंदरजीत सिंह ने, सरकारी अधिकारियों को धान बेंचने की कोशिश में, अपनी क़िस्मत आज़माने का फैसला किया.

सेंटर कॉर्डिनेटर रोहित कुमार ने पहले सिंह से कहा, कि अगर नमी का स्तर 17 प्रतिशत से अधिक हुआ, तो वो उनकी उपज नहीं ख़रीद पाएंगे. इस समय तक बहुत से दूसरे किसान सरकारी कॉर्डिनेटर से अगली मेज़ की तरफ बढ़ गए थे, और उसके अगले क़दम का इंतज़ार कर रहे थे.

‘वो 16.6 प्रतिशत है’ सिंह ने इस उम्मीद में कहा, कि इस बार वो अपनी उपज का उचित दाम ले पाएंगे. लेकिन फिर एक दूसरे कर्मचारी ने दख़ल देते हुए कहा, कि नमी का प्रतिशत 14 तक होना चाहिए.

जब दिप्रिंट ने उससे कहा कि सरकारी नियमों के अनुसार, ये नमी वास्तव में 17 प्रतिशत से कम होनी चाहिए, तो उस वर्कर ने सिंह से कहा, कि वो अपना पेपरवर्क ऑनलाइन पूरा करें.

सिंह ने पूछा, ‘लेकिन नेट कनेक्टिविटी ही नहीं है. मैं अपना पेपरवर्क ऑनलाइन कैसे करूंगा’.

ये बातचीत उन बहुत सी समस्याओं की सिर्फ एक मिसाल है, जो लखीमपुर के बहुत से धान और गेंहू उत्पादकों को, अपनी उपज के वाजिब दाम हासिल करने में पेश आती हैं, भले ही सरकार दावा करती हो कि वो सीधे किसानों से ख़रीद करती है.

लखपेड़ागंज केंद्र पर किसानों ने आरोप लगाया, कि उन्हें अपनी फसल को सरकारी केंद्र पर बेंचने से रोकने के लिए, तरह तरह के बहाने किए जाते हैं.

सिकंदराबाद के एक निवासी गुरमेल सिंह ने कहा, ‘कभी वो कहते हैं कि नेट नहीं चल रहा है, फिर कहते हैं कि धान में नमी है, फिर ये दावा करते हैं कि ये साफ नहीं है. लेकिन अगर आप उन्हें कट देने के लिए राज़ी हो जाएं, तो ये सारे बहाने ग़ायब हो जाते हैं’.

लखीमपुर खीरी हाल ही में सुर्ख़ियों में था, जब तीन एसयूवी गाड़ियों के एक क़ाफिले ने, जिनमें से एक गाड़ी कथित रूप से, केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा की थी, प्रदर्शनकारी किसानों को रौंदते हुए चार को मार डाला. इसके बाद जो हिंसा भड़की उसमें चार और लोग मारे गए. शनिवार को उत्तर प्रदेश पुलिस ने, आशीष मिश्रा को गिरफ्तार कर लिया.

सिकंदराबाद का एक किसान गुरमेल सिंह यूपी के लखीमपुर खीरी में मंडी में अनाज की जांच करता हुआ । फोटोः नीलम पाण्डेय । दिप्रिंट

लखीमपुर खीरी के धान किसान

‘भारत का चीनी का कटोरा’ कहा जाने वाला लखीमपुर खीरी, जो उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 130 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, व्यापक रूप से गन्ने की खेती के लिए जाना जाता है. लेकिन यहां के किसान गेहूं और धान भी उगाते हैं.

किसानों से धान की ख़रीद के बारे में पूछने पर कुमार ने दिप्रिंट से कहा, कि सरकार ने अभी तक कोई ख़रीद नहीं की है.

उन्होंने कहा, ‘सीज़न अभी अक्तूबर से शुरू हुआ है, और अभी केवल सात दिन ही हुए हैं. हम निश्चित रूप से ख़रीद करेंगे’. उन्होंने ये भी कहा कि एक बार प्रक्रिया शुरू हो जाए, तो वो हर रोज़ क़रीब 350 क्विंटल धान की ख़रीदारी करते हैं.


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केंद्र के इंचार्ज ज्ञान सिंह यादव ने ये भी बताया, कि पिछले सीज़न में उन्होंने 26,000 क्विंटल धान की ख़रीद की थी.

उन्होंने कहा, ‘हम 17 प्रतिशत से कम स्वीकार नहीं कर सकते, लेकिन हमारे पास एक ड्रायर तथा थ्रेशिंग की भी सुविधाएं हैं. कभी कभी धान साफ नहीं होता, और हम वो काम (उपज की सफाई) भी कराते हैं.

लखपेड़ागंज सेंटर की घटनाओं के बारे में बताए जाने पर, कुमार ने कहा कि इंटरनेट कनेक्टिविटी भी जल्द ही बहाल कर दी जाएगी, और त्योहारी सीज़न अभी शुरू हुआ है, इसलिए अधिकांश किसानों ने अपनी उपज बेंचनी शुरू नहीं की है.

उन्होंने कहा, ‘ऐसे 15 केंद्र हैं जहां किसान अपनी उपज सीधे सरकार को बेंच सकते हैं. केंद्र पर हमारे पास तमाम सुविधाएं होती हैं’.

लखीमपुर खीरी में सरकारी कोऑर्डिनेटर, रोहित कुमार (ओरेंज कलर में) । फोटोः प्रवीण जैन । दिप्रिंट

इस बीच ज़िले के किसान तीन विवादास्पद कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं, और उन्होंने कहा कि एमएसपी को क़ानूनी अधिकार बना दिया जाना चाहिए, ताकि सुनिश्चित हो सके कि खुले बाज़ार में भी, वो अपनी उपज वाजिब दामों पर बेंच सकें.

सेंटर पर अपनी उपज बेंचने आए एक और किसान बोध नारायण ने कहा, ‘किसानों के इस मुद्दे को वो हिंदू-सिख रंग देने की कोशिश कर रहे हैं, और दोनों को एक दूसरे के सामने खड़ा करना चाह रहे हैं. हम सब किसान हैं. हमारी चिंताएं एक हैं और हम चाहते हैं, कि सरकार एमएसपी को एक क़ानूनी अधिकार बना दे. कृषि क़ानूनों में वो बदलाव कर दीजिए, फिर किसी को कोई दिक़्क़त नहीं होगी’.

लखीमपुर के मकसोहा गांव के संतोष कुमार ने कहा, ‘मुझे खाद और मज़दूरी पर ख़र्च करना पड़ता है, जिसके बाद मेरे पास कुछ नहीं बच पाता. मेरे धान में थोड़ी नमी है, और चूंकि सरकार उसे न तो सुखाएगी न ख़रीदेगी, इसलिए मुझे उसे कमीशन एजेंट के ज़रिए बेंचना पड़ेगा. मैं लाचार हूं, मैं अपने परिवार को भूखा नहीं रख सकता’.

हालांकि सरकारी केंद्रों पर सुखाने की सुविधाएं मौजूद हैं, लेकिन दिप्रिंट ने पाया कि उनमें ताला पड़ा था, और वो इस्तेमाल में नहीं थीं.

इस बीच योगी आदित्यनाथ की सरकार की मानें, तो जब से बिचौलिए ख़त्म हुए हैं, तब से ख़रीद प्रक्रिया बहुत बेहतर हो गई है.

यूपी के कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा, ‘जहां तक धान ख़रीद का सवाल है, तो सीज़न अभी शुरू हुआ है और सरकार किसानों से ख़रीद करती है. नेटवर्क कनेक्टिविटी एक ऐसा मसला है, जिसका सामना लखीमपुर नेपाल से निकटता की वजह से करता है. हम केंद्र सरकार के साथ मिलकर, इस मसले से निपटने की कोशिश कर रहे हैं’.

सिंह ने दिप्रिंट से कहा, ‘ख़रीद का काम अब बहुत बेहतर हो गया है, क्योंकि हमने आढ़तियों को ख़त्म कर दिया है. इसलिए लोगों को अब बेहतर दाम मिलते हैं. हर कृषि उत्पाद की चाहे वो धान हो, अनाज और गन्ना हो, योगी सरकार ने इतनी ख़रीद की है जितनी पिछले 10 वर्षों में, बीएसपी (बहुजन समाज पार्टी) एसपी (समाजवादी पार्टी) सरकारों ने मिलाकर भी नहीं की थी.

गन्ने की मुसीबतें

ये सिर्फ धान उत्पादक नहीं हैं जिन्हें अपनी फसल बेचने में समस्याएं पेश आ रही हैं. मिलों से भुगतान में देरी और गन्ने के नीचे न्यूनतम मूल्य के कारण, ज़िले के गन्ना किसान भी इसी तकलीफ से गुज़र रहे हैं.

चीनी मिलें किसानों की ज़मीन के आकार के हिसाब से, उनकी उपज की ख़रीद के लिए पर्चियां जारी करती हैं. उत्तर प्रदेश में ऐसी 120 चीनी मिलें हैं.

लखीमपुर खीरी के ज्ञानपुर गांव के एक किसान जावेद ख़ान ने कहा, ‘बड़े किसान की पर्ची आसानी से बन जाती है. हमें मजबूरन निजी व्यवसाइयों को बेंचना पड़ता है, या बहुत कम पर्चियां मिलती हैं. अगर हमें पर्ची मिल जाए तो मिल से 325 रुपए के दाम का आश्वासन रहता है, लेकिन हमारे पास अकसर काफी स्टॉक होता है, इसलिए हमारे पास कोई रास्ता नहीं बचता, सिवाए इसके कि खुले बाज़ार में उसे निजी व्यवसाइयों को 200 रुपए के रेट पर बेंचे’.

उन्होंने आगे कहा, ‘मेरे पास 12-13 बीघा है इसलिए मुझे अमूमन 4 पर्चियां मिलती हैं. तकनीकी रूप से एक पर्ची में 40-50 क्विंटल आ जाता है. लेकिन हम उससे कहीं ज़्यादा पैदा करते हैं, इसलिए उसे खुले बाज़ार में बेंचना पड़ता है. अभी तक मुझे पिछले सीज़न का भुगतान नहीं मिला है, जिसकी वजह से मुझे क़र्ज़ लेना पड़ा, लेकिन उसका ब्याज बहुत अधिक है’.

ज्ञानपुर के एक और किसान देशराज वर्मा ने कहा, कि पर्चियां मिलने में देरी के नतीजे में, अकसर फसल सूखने लगती है.

उन्होंने आगे कहा, ‘ये समय सबसे ख़राब रहा है, क्योंकि फसल सूख गई जिससे 55,000 रुपए का नुक़सान हो गया. पिछली बार मुझे नौ पर्चियां मिलीं थीं, लेकिन अभी तक सिर्फ दो का भुगतान हुआ है. किसान के तौर पर गुज़ारा करना बहुत मुश्किल हो गया है’.

अपने खेत में गन्ना किसान देशराज वर्मा । फोटोः प्रवीण जैन । दिप्रिंट

ज़िले के दूसरे बहुत से गांवों के किसानों ने भी, इसी तरह की पीड़ा का इज़हार किया.

झाउ पूर्वा गांव के मोहम्मद सुहेल ने कहा कि भुगतान में देरी की वजह से, उनके जैसे किसानों को बहुत मुश्किलें पेश आती हैं.


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उन्होंने कहा, ‘फसलों को बचाकर रखना पड़ता है. हम कीटनाशकों और खाद पर इतना ख़र्च करते हैं, और आख़िरकार जब हम उसे बेंच पाते हैं, तो भुगतान में देरी एक बड़ी परेशानी बन जाती है’.

सिकंदरपुर गांव के निवासी छाबेग सिंह ने भी कहा, कि जब तक चीनी मिलों से होने वाले भुगतान को पटरी पर नहीं लाया जाता, तब तक किसान मुसीबतें झेलते रहेंगे.

उन्होंने कहा, ‘(आमतौर पर) पिछले साल मिलें 7 नवंबर को शुरू हो गईं थीं, और 5-6 अप्रैल 2021 तक चलती रहीं. (लेकिन) 15 दिसंबर के बाद से हमें कोई भुगतान नहीं मिला है. हम इस तरह कैसे काम कर सकते हैं? हमें ढुलाई पर ख़र्च करना होता है, गन्ने की छिलाई, कीटनाशकों, और फर्टिलाइज़र्स पर पैसा ख़र्च होता है. कभी कभी हमें ज़मीन ठेके पर लेनी पड़ती है, इसलिए हम नुक़सान में चल रहे हैं’.

लेकिन बीजेपी के सिंह की मानें तो अधिकांश मिलों ने, अपने बक़ाया का भुगतान कर दिया है.

उन्होंने कहा, ‘बजाज शुगर मिल्स को छोड़कर, सभी दूसरी मिलों ने अपने भुगतान कर दिए हैं. उन्होंने 92 से 100 प्रतिशत तक भुगतान कर दिए हैं. बजाज मिल्स के मामले को गंभीरता से लिया जा रहा है. हमने उसके डायरेक्टर पर मुक़दमा कर दिया है, और मालिकों के ख़िलाफ भी एफआईआर दर्ज करा दी है’.

उत्तर प्रदेश सरकार के गन्ना एवं आबकारी विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजय भूसरेड्डी ने कहा, ‘गन्ने का 87% भुगतान कर दिया गया है. 33,000 करोड़ में से सिर्फ 4,000 करोड़ रुपए बक़ाया हैं. हम केंद्र सरकार से भी 600 करोड़ रुपए मिलने की अपेक्षा कर रहे हैं. सभी भुगतान पटरी पर हैं’.

ज़िले के गन्ना किसान कृषि क़ानूनों से भी ख़ुश नहीं हैं, क्योंकि उनका मानना है कि इससे अनुबंध खेती को बढ़ावा मिलेगा.

किसान मंदीप सिंह ने कहा, ‘अनुबंध खेती के तहत, कंपनी किसान से उस फसल को उगाने का क़रार करती है जो वो चाहती है, वो नहीं जो किसान चाहता है. इस तरह कंपनी उपज की मुख्य ख़रीदार बन जाती है, और वो अपनी मर्ज़ी के दाम तय करके, इस स्थिति का नाजायज़ फायदा उठा सकती है. ये कंपनियां बड़े किसानों के साथ काम करना पसंद करती हैं, इसलिए हम जैसे लोगों की मुसीबतें और बढ़ जाएंगी.

किसान ये भी चाहते हैं कि न्यूनतम मूल्य बढ़ाकर, 450 से 500 रुपए क्विंटल तक कर दिया जाना चाहिए. यूपी सरकार ने पिछले साल ये दाम 325 रुपए से बढ़ाकर 350 रुपए कर दिये थे, लेकिन किसानों का दावा है कि उन्हें अभी तक, अपनी उपज के बढ़े हुए दाम नहीं मिले हैं.

ज़िले के एक गन्ना किसान अमनदीप सिंह ने कहा, ‘हम अपने लिए नहीं बल्कि पूरे किसान समुदाय के लिए लड़ रहे हैं. मीडिया में बहुत से लोग दावा करते हैं, कि केवल ‘सरदार किसान’ नाराज़ हैं, लेकिन मैं आपको बताता हूं कि सारे किसान ग़ुस्से में हैं. इसका असर चुनावों में दिखेगा’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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