नई दिल्ली: एमवे इंडिया जो ग्राहकों को बहुत सारी वस्तुएं और ‘व्यवसाय के अवसर’ बेचती है, उस पर प्रवर्त्तन निदेशालय (ईडी) ने ‘मल्टी-लेवल मार्केटिंग घोटाला’ करने का आरोप लगाया है, जिसका मुख्य लक्ष्य अपनी, ‘बेहद महंगी वस्तुएं’ बेचना नहीं, बल्कि आम लोगों को अमीर बनने की योजनाओं में शामिल होने के लिए लुभाना है.
ईडी ने सोमवार को एमवे इंडिया एंटरप्राइज़ेज़ प्राइवेट लिमिटेड की 757.77 करोड़ रुपए की संपत्ति क़ुर्क़ कर ली. इससे पहले उसने धन-शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत, मनी लॉण्डरिंग के आरोपों की जांच की थी.
कंपनी के खिलाफ अपने आरोपों की फेहरिस्त में, ईडी ने कहा कि एमवे डायरेक्ट-सेलिंग मल्टी-लेवल मार्केटिंग (एमएलएम) नेटवर्क्स की आड़ में एक ‘पिरामिड फ्रॉड चला रही है’.
ईडी ने कहा कि एमवे का ज़ोर अपने उत्पादों पर नहीं, बल्कि ये ‘प्रचार करने पर है कि कंपनी के साथ मिलकर सदस्य किस तरह अमीर बन सकते हैं’. केंद्रीय एजेंसी ने आरोप लगाया कि उत्पादों का इस्तेमाल, केवल एक प्रत्यक्ष बिक्री कंपनी के तौर पर इस ‘एमएलएम पिरामिड फ्रॉड के स्वांग के लिए’ किया जाता है.
इस घटनाक्रम के बाद, एमवे ने एक बयान में दावा किया कि ईडी की जांच-पड़ताल का ताल्लुक़ 2011 से है, और उसके बाद से कंपनी जांच में सहयोग कर रही है, और आवश्यक जानकारी साझा कर रही है.
एमवे इंडिया के बयान में कहा गया, ‘हम संबंधित सरकारी अथॉरिटीज़ तथा क़ानूनी अधिकारियों के साथ सहयोग करते रहेंगे, जिससे कि लंबित मुद्दों का एक न्यायसंगत, क़ानूनी, और तर्कसंगत निष्कर्ष निकल सके’.
दिप्रिंट एक नज़र डालता है कि एमवे भारत में किस तरह काम करती है, और ईडी ने इस पर ‘घोटाले’ का आरोप क्यों लगाया है.
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‘पिरामिड फ्रॉड’
सोमवार को एजेंसी ने बताया कि ईडी द्वारा क़ुर्क़ की गई एमवे संपत्तियों में, तमिलनाडु के डिंडिगुल ज़िले में फैक्ट्री की इमारतें, मशीनरी, वाहन, बैंक खाते, और फिक्स्ड डिपॉज़िट्स शामिल हैं.
क़ुर्क़ की गई 757.77 करोड़ रुपए मूल्य की संपत्तियों में, 411.83 करोड़ रुपए मूल्य की अचल और चल संपत्तियां, और 36 अलग-अलग खातों में रखे 345.94 करोड़ रुपए शामिल हैं.
ईडी के अनुसार, कंपनी ने 2002-03 से 2021-22 के बीच अपने व्यापार संचालन के ज़रिए 27,562 करोड़ रुपए एकत्र किए. इस रक़म में से एमवे ने इस अवधि में भारत तथा अमेरिका में, अपने वितरकों और सदस्यों को 7,588 रुपए का भुगतान किया.
अपने बयान में एमवे ने उल्लेख किया कि उसके पास भारत में ‘5.5 लाख प्रत्यक्ष विक्रेता’ हैं, और बिज़नेस मॉडल की एक ‘भ्रामक धारणा’ से उनकी आजीविका पर असर पड़ेगा.
लेकिन, ईडी ने कहा है कि उसके सदस्य कंपनी के बेहद महंगे उत्पाद ख़रीदकर, पहले ही अपनी ‘मेहनत की कमाई’ गंवा चुके हैं.
ईडी ने अपने बयान में कहा, ‘देखा गया है कि कंपनी द्वारा पेश की गई अधिकतर वस्तुओं के दाम, खुले बाज़ार में प्रतिष्ठित निर्माताओं की लोकप्रिय वैकल्पिक वस्तुओं के मुक़ाबले बहुत ज़्यादा हैं’.
उसमें आगे कहा गया कि नए सदस्य ‘वस्तुओं को इस्तेमाल करने के लिए नहीं बल्कि अमीर बनने के लिए ख़रीद रहे थे’, जिसके लिए वो एक ‘अपलाइन’ बन जाते थे- एक एमएलएम शब्द जिसका आशय ऐसे व्यक्ति से होता है, जो दूसरे सदस्यों की भर्ती करता है.
अपनी वेबसाइट में एमवे व्याख्या करती है, कि वो सदस्यों को न केवल उत्पादों को ग्राहकों को बेचने, बल्कि ‘दूसरों को ऐसा करने के लिए स्पॉन्सर’ करने पर ‘पुरस्कृत’ करती है. संक्षेप में, इसका मतलब ये है कि मौजूदा वितरकों या ‘प्रत्यक्ष विक्रेताओं’ को नए सदस्य भर्ती करने के लिए कमीशन जैसे प्रलोभन दिए जाते हैं.
ग़ौरतलब है कि प्रवर्त्तन निदेशालय ने कहा, कि एमवे में अपलाइन सदस्यों द्वारा प्राप्त किए गए कमीशन के कारण ही, कंपनी की चीज़ों के दाम इतने ऊंचे होते हैं.
पिरामिड स्कीम में निवेशकों या सदस्यों की संख्या पिरामिड की हर परत में बढ़ती जाती है. उपभोक्ता संरक्षण (प्रत्यक्ष बिक्री) नियम, 2021 में प्रत्यक्ष बिक्री कंपनियों के पिरामिड स्कीम को बढ़ावा देने, या प्रत्यक्ष-बिक्री व्यवसाय की आड़ में, किसी व्यक्ति को ऐसी स्कीम में पंजीकृत करने को अवैध क़रार दे दिया गया है.
अपनी ओर से एमवे ने दावा किया है, कि उसने नियमों का उल्लंघन नहीं किया है.
अपने बयान में कंपनी ने कहा, ‘हाल ही में प्रत्यक्ष बिक्री के उपभोक्ता संरक्षण (प्रत्यक्ष बिक्री) नियम, 2021 में समावेश से, उद्योग में बेहद ज़रूरी क़ानूनी और विनियामक स्पष्टता आ गई है, और साथ ही ये भी पुष्टि हुई है कि एमवे इंडिया, भारत में सभी क़ानूनों तथा नियमों का अक्षरश: पालन कर रही है.’
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पिछले विवाद
अमेरिका स्थित कंपनी एमवे बहुत सारी तेज़ी से बिकने वाली उपभोक्ता वस्तुएं (एफएमसीजी) बेचती है, जिनमें भोजन पकाने के बर्तन, पोषक तत्वों की ख़ुराकें और प्रसाधन का सामान शामिल हैं. कंपनी ने भारत में अपना संचालन 1995 में शुरू किया था, और भारत तथा विदेशों में वो पहले भी विवादों में घिर चुकी है, जिनका संबंध 2006 से है.
इसकी वेबसाइट के अनुसार, एमवे के ‘व्यवसाय मालिक’ तीन तरह से पैसा कमाते हैं- उत्पाद की ग्राहकों को प्रत्यक्ष बिक्री, बिक्री की मात्रा के आधार पर कमीशन या बोनस, और अंत में कारोबार के विकास पर प्रोत्साहन.
2013 में मिंट की एक रिपोर्ट में कहा गया, ‘बिज़नेस मॉडल में अक्सर पिरामिड स्कीमों के साथ ओवरलैप देखा जाता है, जो सदस्यों को बिक्री की प्राप्ति के बिना, ज़्यादा लोगों को नेटवर्क में जोड़ने के लिए मुआवज़ा देती हैं’.
2013 में, एमवे इंडिया के तत्कालीन सीईओ और एमडी विलियम स्कॉट पिंकनी को, केरल पुलिस ने वाइस-प्रेसिडेंट और डायरेक्टर संजय मल्होत्रा, तथा चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर अंशु बुद्धिराजा के साथ गिरफ्तार कर लिया था. उनकी गिरफ्तारी 2011 में मिली एक शिकायत के सिलसिले में, बहुत अधिक क़ीमतें लगाने, अपने प्रत्यक्ष बिक्री नेटवर्क के सदस्यों को ठगने,और धोखाधड़ी के आरोपों में की गई थी.
2014 में पिंकनी को आंध्र प्रदेश पुलिस ने धोखाधड़ी के आरोप में, कंपनी के गुरुग्राम दफ्तर से गिरफ्तार किया था और उसे कुरनूल ले गई थी.
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