गुरुग्राम: एनसीआर की मिलेनियम सिटी, जहां गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसे दिग्गजों के ऑफिस हैं और जहां देश की सबसे महंगी रिहायशी कॉलोनियां मौजूद हैं, वहां हर साल मानसून आते ही वही नज़ारा देखने को मिलता है—कमर तक भरा पानी, डूबी सड़कें, खुले मैनहोल, लटकते बिजली के तार, तैरती गाड़ियां और घंटों लंबा ट्रैफिक जाम.
हर साल की तरह इस बार भी गुरुग्राम में मानसून ने शहर की तैयारियों की पोल खोल दी है. 9 जुलाई की रात महज़ चार घंटे में 133 मिमी बारिश हुई. नतीजा—8 लोगों की जान चली गई. किसी ने पानी में करंट वाले तार को छू लिया, तो कोई गाड़ी से गिरकर हादसे का शिकार हो गया.
बारिश इतनी तेज़ थी कि साउदर्न पेरिफेरल रोड (SPR) का एक हिस्सा धंस गया. यही सड़क गुरुग्राम-फरीदाबाद रोड और NH-48 को जोड़ती है. इस साल यह तीसरी बार है जब यही हिस्सा धंसा और एक बड़ा गड्ढा बना और एक ट्रक उसमें समा गया.
सोशल मीडिया पर मज़ाक चल पड़ा — ‘‘डिज़्नीलैंड जाने की ज़रूरत नहीं, गुरुग्राम खुद एक वॉटरपार्क बन गया है.’’
लेकिन यह मज़ाक नहीं, एक गंभीर चिंता है. गुरुग्राम हरियाणा की जीडीपी में करीब 60 फीसदी योगदान देता है, लेकिन शहर का बुनियादी ढांचा उसी अनुपात में मजबूत नहीं हो पाया.
शहरवासियों की कहानी हर साल एक जैसी होती है—कैसे पानी में डूबी सड़कों और घंटों के ट्रैफिक से जूझकर घर पहुंचे, लेकिन जवाब अब तक नहीं मिला. इस बार भी नगर निगम और प्रशासन ने वही तर्क दिया—बारिश बहुत तेज़ थी और इतने कम वक्त में इतने पानी से निपटना मुश्किल है.
लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि असली वजह कुछ और है. 2016 में नाम बदला गया गुरुग्राम दरअसल एक नया शहर है, जो अरावली की तलहटी में बसा है. 2000 के दशक में यह इलाका गांवों और खेतों से शहरी नक्शे में बदला गया.
गुरुग्राम महानगर विकास प्राधिकरण (GMDA) रियल एस्टेट कंपनियों से एक्सटर्नल डेवलपमेंट चार्ज (EDC) के रूप में करोड़ों रुपये वसूलता है. इस पैसे से सड़कें, नालियां और सीवरेज लाइन जैसी बाहरी सुविधाएं बननी चाहिएं.
लेकिन शहरी मामलों के जानकार कहते हैं कि इस फंड का कितना हिस्सा असल में बुनियादी ढांचे पर खर्च होता है, इसका कोई स्पष्ट हिसाब नहीं है.
शहर विशेषज्ञों, योजनाकारों और रहवासियों की राय में गुरुग्राम इस बात का जीता-जागता उदाहरण बन गया है कि आधुनिक शहर कैसे न बनाए जाएं. बिना योजना के तेज़ रफ्तार शहरीकरण, बेतरतीब अतिक्रमण, सिस्टम की अनदेखी और संस्थागत फेल्योर—इन सबने मिलकर इस शहर को हर मानसून में डूबने के लिए मजबूर कर दिया है.
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गुरुग्राम की प्लानिंग की उलटी गिनती: पहले रियल एस्टेट प्रोजेक्ट बने, बाद में आया इन्फ्रास्ट्रक्चर
गुरुग्राम में हर साल मानसून के साथ लौटती जलभराव और अव्यवस्था की तस्वीर सिर्फ बारिश का मसला नहीं है, यह शहर की शुरूआती प्लानिंग की एक बुनियादी गलती का नतीजा है — जिसमें मकान पहले बने, लेकिन बुनियादी ढांचा यानी ‘ट्रंक इन्फ्रास्ट्रक्चर’ बहुत बाद में आया.
शहरी विकास मामलों से जुड़े विशेषज्ञों के मुताबिक गुरुग्राम उन भारतीय शहरों में है जहां शहर का ढांचा तैयार करने की ज़िम्मेदारी प्राइवेट डेवलपर्स पर छोड़ दी गई और सरकार ने केवल बड़ी सड़कों, सीवरेज, पानी, बिजली जैसी ‘बाहरी ढांचागत सुविधाएं’ अपने ज़िम्मे रखीं.
पूर्व केंद्रीय शहरी विकास सचिव सुधीर कृष्णा, जो खुद गुरुग्राम के सेक्टर 61 में रहते हैं, ने दिप्रिंट से कहा, “यह आधिकारिक नीति थी. गुरुग्राम बाकी भारतीय शहरों की तुलना में कहीं ज्यादा बेतरतीब है. यहां ज्यादातर विकास डेवलपर्स या कॉलोनाइज़र्स के भरोसे छोड़ा गया. कॉलोनाइज़र किसानों से ज़मीन खरीदते थे, प्लॉट काटते थे और बिल्डरों को बेच देते थे. बिल्डर फिर अपना प्रोजेक्ट बनाते थे, कॉलोनी के अंदर की सड़कें, नालियां, सीवरेज लाइनें बनाते थे और घर बेच देते थे.”
बाहरी ढांचा — जैसे मेन रोड, मुख्य नालियां, सीवरेज और बिजली नेटवर्क — तैयार करने की ज़िम्मेदारी गुरुग्राम महानगर विकास प्राधिकरण (GMDA), जो पहले हुडा (HUDA) हुआ करता था, के पास थी. इसके लिए प्राइवेट डेवलपर्स से External Development Charges (EDC) के नाम पर करोड़ों की वसूली की गई.
नेशनल रियल एस्टेट डेवलपमेंट काउंसिल (NAREDCO) के दिल्ली चैप्टर के अध्यक्ष हर्ष बंसल ने कहा, “असल में जब लोग कॉलोनियों में रहने लगे, तब जाकर GMDA ने बाहरी ढांचे पर काम शुरू किया.”
सुधीर कृष्णा का मानना है कि इस तरह का मॉडल कभी काम नहीं कर पाया है और गुरुग्राम इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.
पूर्व शहरी विकास सचिव सुधीर कृष्णा का मानना है कि गुरुग्राम में एक और बड़ी समस्या डेवलपर्स की असमानता है.
उन्होंने कहा, “जब तक डीएलएफ जैसे बड़े डेवलपर हैं, वह अपने इलाकों में इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप करेंगे, लेकिन सड़क के दूसरी तरफ जो छोटे डेवलपर हैं, वे या तो दिवालिया हो चुके हैं या कानूनी मामलों में फंसे हुए हैं. कई तो गायब ही हो चुके हैं…ऐसे में नाली, फुटपाथ और सब्सिडियरी रोड जैसी सुविधाएं बनाने वाला कोई नहीं बचता.”
नेशनल रियल एस्टेट डेवलपमेंट काउंसिल (NAREDCO) दिल्ली चैप्टर के अध्यक्ष और यूनिटी ग्रुप के सीएमडी हर्ष बंसल, जिनकी कंपनी गुरुग्राम में कमर्शियल प्लॉट्स की मालिक है, उन्होंने कहा कि डेवलपर्स की ज़िम्मेदारी सिर्फ अपनी कॉलोनी या अपार्टमेंट के भीतर के इन्फ्रास्ट्रक्चर तक सीमित होती है.
बंसल ने कहा, “यही फर्क है नोएडा और गुरुग्राम में, नोएडा में पहले अथॉरिटी ने पूरा ट्रंक इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाया और फिर विकसित प्लॉट बेचे. उस इन्फ्रास्ट्रक्चर की लागत प्लॉट की कीमत में जोड़ दी जाती है. गुरुग्राम में डेवलपर सीधे किसानों से ज़मीन खरीदते हैं, प्रोजेक्ट बनाते हैं और बेच देते हैं. उसके बाद GMDA इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाता है.”
उन्होंने बताया कि डेवलपर्स को External Development Charge (EDC) देना अनिवार्य है, जो फिलहाल प्रति एकड़ 2 करोड़ रुपये है. बंसल ने कहा, “बिना EDC दिए किसी डेवलपर को निर्माण की अनुमति नहीं मिलती.”
शहरी क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि GMDA द्वारा एकत्र किए गए EDC का कितना हिस्सा वास्तव में शहर की मूलभूत सुविधाओं को सुधारने में खर्च किया गया है — इस पर पारदर्शिता नहीं है.
2011 में हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (HUDA) ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में दाखिल एक हलफनामे में माना था कि दिसंबर 2010 तक गुरुग्राम के निवासियों से 5,702 करोड़ रुपये EDC के रूप में इकट्ठा किए गए थे. इसमें से 2,700 करोड़ रुपये खर्च नहीं हुए थे और वे बैंक में फिक्स्ड डिपॉजिट के रूप में रखे गए थे.
यह हलफनामा एक जनहित याचिका (PIL) के जवाब में दाखिल किया गया था. इसमें HUDA ने यह भी तर्क दिया था कि EDC का एक हिस्सा गुरुग्राम मेट्रो के विकास में खर्च करना उचित था.
हरियाणा सरकार के टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग ने इस साल फरवरी में राज्यभर के इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए एक्सटर्नल डेवलपमेंट चार्ज (EDC) से 1,000 करोड़ रुपये मंजूर किए थे. इसमें से गुरुग्राम महानगर विकास प्राधिकरण (GMDA) को 333 करोड़ रुपये मिले, जबकि हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (HSVP) को गुरुग्राम समेत अन्य शहरी क्षेत्रों के लिए 576 करोड़ रुपये आवंटित किए गए.
राज्य सरकार के एक सूत्र के मुताबिक, इन फंड्स का अब तक किसी भी इंफ्रास्ट्रक्चर अपग्रेड में उपयोग नहीं हुआ है. ज्यादातर पैसा फाइलों और नौकरशाही की देरी में अटका हुआ है.
“गुरुग्राम को बिना सोच-समझ के बेच दिया गया”
देश के जाने-माने आर्किटेक्ट और सीपी कुकरेजा आर्किटेक्ट्स के प्रबंध निदेशक, दिक्षु सी. कुकरेजा ने कहा कि गुरुग्राम की मौजूदा स्थिति पूर्ववर्ती सरकारों की अव्यवस्थित शहरी सोच का नतीजा है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “लोगों को सीधे किसानों से ज़मीन खरीदने दी गई, लैंड यूज़ बदलवा दिया और निर्माण शुरू कर दिया. बस ज़मीन का टुकड़ा बेच देना ही मकसद था. यह शहर बनाने का सबसे खराब तरीका है. पूरी तरह बिना योजना के विकास हुआ, जो योजना थी भी, वह सिर्फ कागज़ों पर थी.”
संजय लाल, जो फेडरेशन ऑफ अपार्टमेंट ओनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं, उन्होंने कहा कि गुरुग्राम में जलभराव और सड़क जाम की समस्या 2016 से और बदतर हो गई है.
उन्होंने आरोप लगाया, “तब भी हम रातभर गाड़ियों में फंसे रहे थे और आज भी वही हाल है. बिना प्लानिंग के बिल्डिंग्स को अप्रूवल दे दिए गए. नालों के प्राकृतिक बहाव को ध्यान में नहीं रखा गया और नतीजा यह है कि हर जगह जल निकासी के रास्ते बंद हो गए हैं.”
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बिना संतुलन की प्लानिंग ने शहर में बना दिए बुनियादी खामियों के गड्ढे
जाने-माने आर्किटेक्ट दिक्षु सी. कुकरेजा का कहना है कि विकास प्राधिकरणों की टुकड़ों-टुकड़ों में की गई प्लानिंग ने गुरुग्राम को एक शहरी दु:स्वप्न में बदल दिया है.
उन्होंने बताया कि गुरुग्राम में बिल्डर सोसाइटियों और अपार्टमेंट्स से निकलने वाला गंदा पानी और बारिश का पानी आमतौर पर दो तरीकों से निपटाया जाता है—एक तो सोसाइटी के भीतर बने ऑन-साइट सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (STPs) से और दूसरा नगर निगम के सीवरेज नेटवर्क से.
जब किसी ज़मीन का प्लॉट प्राइवेट डेवलपर को बेचा जाता है, तो उसकी ज़िम्मेदारी होती है कि वह अपने प्रोजेक्ट के अंदर सीवेज लाइन डाले और उसे शहर की मुख्य सीवरेज लाइन से जोड़े.
लेकिन कई जगहों पर ऐसा हुआ ही नहीं.
यहां तक कि कुछ पॉश कॉलोनियों में भी डेवलपर्स ने तो अपने स्तर पर नालियां और सीवर लाइनें बना दीं, लेकिन उन्हें शहर की मुख्य लाइनों से जोड़ा ही नहीं गया.
गोल्फ कोर्स रोड स्थित सनसिटी की आरडब्ल्यूए चेयरपर्सन कुसुम शर्मा ने दिप्रिंट से कहा, “आधी सिटी में तूफानी बारिश का पानी निकालने के लिए पाइपलाइन ही नहीं है, इसलिए सड़कें और बेसमेंट पानी से भर जाते हैं.”
पूर्व टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “ड्रेनेज नेटवर्क में कई लिंक ही गायब हैं, जिसकी वजह से पानी निचले इलाकों — जैसे DLF फेज़ 2, सोहना रोड, हीरो होंडा चौक में अटक जाता है.”
उन्होंने कहा, “सीवरेज और ड्रेनेज की देखभाल बहुत खराब है, खासकर जब तेज़ बारिश होती है. पानी के बहाव का कोई रास्ता नहीं होता और वो सड़कों पर फैल जाता है.”
गुरुग्राम नगर निगम (MCG) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा कि शहर की ड्रेनेज व्यवस्था संभालना एक बड़ी चुनौती बन चुका है, क्योंकि जनसंख्या तेज़ी से बढ़ रही है.
2011 की जनगणना के मुताबिक MCG क्षेत्र की आबादी 8.76 लाख थी. अधिकारी ने कहा, “2025 तक हम अनुमान लगा रहे हैं कि यह संख्या 20 से 21 लाख के बीच पहुंच जाएगी — यानी 128% की बढ़ोतरी, जबकि पूरे हरियाणा की आबादी केवल 22% बढ़ी है, जो 2.53 करोड़ से बढ़कर करीब 3.10 करोड़ तक पहुंची है.”
उन्होंने स्वीकार किया, “ऐसे में अगर तेज़ बारिश हो जाए तो हालात और बिगड़ जाते हैं. गुरुग्राम की जनसंख्या पिछले एक दशक में इतनी तेज़ी से बढ़ी है कि बुनियादी ढांचा पीछे छूट गया है. अब यह सिस्टम इतनी भारी बारिश झेलने के लिए तैयार ही नहीं है.”
हर तरफ अतिक्रमण, मास्टर प्लान बस कागज़ों तक सीमित
गुरुग्राम के पास मास्टर प्लान तो है, लेकिन शहरी मामलों के विशेषज्ञों, आर्किटेक्ट्स और रियल एस्टेट डेवलपर्स का मानना है कि यह प्लान केवल कागजों पर है. ज़मीनी हकीकत इससे बहुत अलग है.
साल दर साल मास्टर प्लान को लागू करने में लापरवाही के चलते पूरे शहर में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हुआ है. कई जगहों पर प्राकृतिक झीलों और बरसाती नालों पर भी निर्माण कर दिया गया, जिससे बारिश के पानी का बहाव रुक गया.
हरियाणा टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग के एक रिटायर्ड अधिकारी ने बताया, “पुराने मास्टर प्लान में प्राकृतिक जल स्रोतों और तालाबों के लिए जगह छोड़ी गई थी, लेकिन 2007 से 2012 के बीच जब रियल एस्टेट का बूम आया, तब इन सबको नज़रअंदाज कर निर्माण की इजाज़त दी गई.”
उनके मुताबिक, बिल्डरों को नालों और रीचार्ज ज़ोन (जहां बारिश का पानी ज़मीन में रिसकर नीचे जाता है) पर निर्माण की छूट दी गई, जिससे गुरुग्राम की प्राकृतिक जल निकासी क्षमता खत्म हो गई.
अधिकारी ने कहा, “जो तालाब और मौसमी जलधाराएं गुरुग्राम की पानी सोखने वाली स्पंज की तरह काम करती थीं, अब उनका नामोनिशान नहीं है. बारिश का पानी सोखने के लिए अब शहर में कोई जगह ही नहीं बची.”
पूर्व केंद्रीय शहरी विकास सचिव सुधीर कृष्णा ने याद करते हुए कहा कि कुछ साल पहले तक गुरुग्राम में बड़ी झीलें और गहरे-चौड़े नाले थे.
उन्होंने कहा, “लेकिन अब ये नाले चौड़ाई और गहराई दोनों में सिमट गए हैं — अतिक्रमण और कंस्ट्रक्शन की वजह से. नतीजा ये हुआ है कि अब इनमें पानी ले जाने की क्षमता भी कम हो गई है.”
कुकरेजा का कहना है कि इसके लिए सबसे ज़िम्मेदार हैं — प्राकृतिक जल निकासी तंत्र पर अतिक्रमण और तेज़ लेकिन अव्यवस्थित शहरीकरण.
उन्होंने साफ कहा, “गुरुग्राम का मास्टर प्लान कागज़ पर अधूरा है. अगर आप इसे ध्यान से देखें तो इसमें ज़मीनी हकीकत की कोई झलक नहीं मिलती. दुनिया भर में शहरों की प्लानिंग में जिस ‘ब्लू और ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर’ को आधार माना जाता है — यानी जल प्रबंधन और हरियाली — वह गुरुग्राम के प्लान में गायब है.”
कुकरेजा ने बताया कि गोल्फ कोर्स एक्सटेंशन रोड, सोहना रोड जैसे इलाकों में तूफानी पानी के पुराने बहाव के रास्तों, नालों और बाढ़ प्रभावित निचले इलाकों पर बड़ी-बड़ी इमारतें बना दी गईं. इससे शहर का सतही जल प्रवाह पूरी तरह बाधित हो गया.
उन्होंने बादशाहपुर नाले का ज़िक्र करते हुए कहा कि यह गुरुग्राम की प्रमुख जल निकासी लाइन है, जो गोल्फ कोर्स एक्सटेंशन रोड और साउदर्न पेरिफेरल रोड जैसे इलाकों को कवर करती है. आज इस नाले की हालत इतनी खराब है कि इसका बहाव तक रुक गया है.
गुरुग्राम नगर निगम (MCG) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी माना कि हाल ही में विकसित किए गए कई इलाकों में ड्रेनेज नेटवर्क या तो अधूरा है या बिल्कुल मौजूद ही नहीं है.
उन्होंने कहा, “कई जगहों पर पानी के रास्ते ऐसे खत्म हो जाते हैं जहां से वह आगे जा ही नहीं सकता. ऊपर से बिल्डरों ने प्राकृतिक नालों और तालाबों को पाटकर कॉम्प्लेक्स बना दिए हैं, जिससे पानी का बहाव और भी बाधित हो गया है.”
हर साल मानसून से पहले ड्रेनेज की सिल्ट यानी गाद निकालना ज़रूरी होता है, लेकिन अधिकारी मानते हैं कि यह काम न तो समय पर होता है और न ही पूरी तरह से.
MCG का दावा है कि उसने 2016 से अब तक नालों की सफाई और निर्माण पर 450 करोड़ रुपये खर्च किए हैं ताकि जलभराव न हो, लेकिन बुधवार की बारिश ने इस दावे की पोल खोल दी, जब शहर एक बार फिर पानी में डूब गया.
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आधी दर्जन एजेंसियां, लेकिन ज़िम्मेदार कौन?
यह सिर्फ गुरुग्राम की नहीं, बल्कि देश के ज्यादातर शहरों की कहानी है — कई एजेंसियां, बंटी हुई जिम्मेदारियां और नतीजा: शून्य जवाबदेही. गुरुग्राम में कम से कम आधा दर्जन एजेंसियां शहर को संभालने का दावा करती हैं — GMDA, MCG, HUDA, हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (HSVP) और कुछ अन्य निकाय.
कुकरेजा का कहना है कि गुरुग्राम की बदहाली की एक बड़ी वजह संस्थागत बिखराव है. उन्होंने कहा, “GMDA, MCG और HUDA जैसे निकायों के बीच समन्वित योजना की पूरी तरह से कमी है.”
हालांकि, MCG कमिश्नर प्रदीप दहिया इससे इत्तेफाक नहीं रखते. दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, “हर एजेंसी की भूमिका स्पष्ट है.”
उन्होंने कहा, “GMDA पूरे गुरुग्राम महानगर क्षेत्र के लिए रणनीतिक प्लानिंग, बड़े स्तर के इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स और लॉन्ग टर्म डेवलपमेंट पर फोकस करता है.”
वहीं, MCG शहर की नगरपालिका सीमा के भीतर रोज़मर्रा की नागरिक सेवाएं, सफाई, सड़कें, बत्ती, कूड़ा प्रबंधन जैसी सुविधाओं का संचालन करती है और सीधे नागरिकों से संपर्क में रहती है.
दहिया ने एक उदाहरण देते हुए बताया, “एनएच-48 के पुलों के नीचे सिल्ट जमा थी. हमने NHAI के साथ मिलकर समन्वय किया और सफाई करवाई.”
सुधीर कृष्णा मानते हैं कि इस बंटे हुए ढांचे को एकजुट करने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा, “अलग-अलग एजेंसियों को एक साथ बैठकर यह तय करना चाहिए कि वे मिलकर कैसे काम करेंगी. यह जिम्मेदारी टालने या दोषारोपण का खेल नहीं होना चाहिए.”
उन्होंने यह भी कहा कि इतनी सारी एजेंसियों के कारण आम नागरिकों को यह तक समझ नहीं आता कि सड़क टूटी हो, बिजली गई हो या नाली जाम हो — तो जाएं किसके पास?
जलभराव से निपटने की कोशिशें: बहुत कम, बहुत देर से?
गुरुग्राम के डिप्टी कमिश्नर अजय कुमार का कहना है कि बुधवार की मूसलधार बारिश के दौरान जलभराव रोकने के लिए प्रशासन ने कोई कसर नहीं छोड़ी.
उन्होंने कहा कि गुरुग्राम की स्थिति की तुलना 2016 से करना उचित नहीं है, जब भारी बारिश के चलते पूरा शहर डूब गया था.
अजय कुमार ने दिप्रिंट से कहा, “बीते दशक में काफी सुधार हुआ है. 2016 में GMDA ने 100 से ज़्यादा ऐसे पॉइंट्स चिन्हित किए थे जहां जलभराव होता था. अब ये संख्या घटकर सिर्फ 15 रह गई है. इसी तरह MCG ने 150 इलाकों की पहचान की थी, जिनमें अब काफी सुधार देखा गया है.”
गुरुग्राम की मेयर राज रानी मल्होत्रा ने कहा कि शहर की समस्याओं को अलग-थलग करके नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि बुधवार को दिल्ली में भी हालात कुछ अलग नहीं थे.
उन्होंने कहा, “सिर्फ गुरुग्राम ही नहीं, दिल्ली में भी यही कहानी थी. हमारे एक पारिवारिक मित्र दिल्ली से रात 8 बजे निकले और गुरुग्राम पहुंचते-पहुंचते सुबह के 2 बज गए.”
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