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Tuesday, 19 November, 2024
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शादी, कैदियों के हमले और 2 साल की जेल के बाद कोर्ट ने क्यों दी इशरत जहां को जमानत

पूर्व कांग्रेस पार्षद इशरत जहां को सोमवार को, दिल्ली दंगों की साज़िश रचने के मामले में दर्ज FIR के सिलसिले में ज़मानत दे दी गई. ये है ज़मानत आदेश तक का घटनाक्रम.

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नई दिल्ली: तीन साल की क़ैद, तीन आरोप पत्रों से सामना, शादी, ‘कोविड लक्षण’, साथी क़ैदियों द्वारा कथित रूप से पिटाई, और इस दावे के बाद कि अभियोजन पक्ष को उसकी जेल अवधि बढ़ाकर, ‘तकलीफ पहुंचाने में मज़ा आ रहा है’, सोमवार को पूर्व कांग्रेस पार्षद इशरत जहां को दिल्ली दंगों की साज़िश रचने के मामले में दर्ज, एक एफआईआर के सिलसिले में ज़मानत दे दी गई.

जहां को मूलरूप से फरवरी 2020 दंगों से जुड़ी, एक और एफआईआर के तहत गिरफ्तार किया गया था. उस मामले में 21 मार्च 2020 को उन्हें ज़मानत पर छोड़ दिया गया था. लेकिन, फिर उसी दिन उन्हें साज़िश की इस एफआईआर के सिलसिले में गिरफ्तार कर लिया गया, जिसमें आरोप लगाया गया है कि ‘दिल्ली में जो दंगे हुए वो एक पूर्व-नियोजित साज़िश थे’, और ‘इन दंगों को फैलाने की साज़िश जेएनयू छात्र उमर ख़ालिद और उसके सहयोगियों द्वारा रची गई थी’.

सितंबर 2020 को, इस मामले में 17,000 से अधिक पन्नों की एक चार्जशीट दाख़िल की गई थी. इस चार्जशीट में कहा गया कि जहां का अपने चुनाव क्षेत्र में एक ‘व्यापक जनाधार’ है, और ‘सामूहिक लामबंदी के लिए एक प्रमुख महिला चेहरा’ होने की आड़ में, उसने कथित रूप से ‘सबसे ऊंची स्थानीय कुर्सी हासिल कर ली थी’.

अक्टूबर 2020 में 197 पन्नों की एक और चार्जशीट दायर की गई, जिसमें ख़ालिद और जेएनयू छात्र शरजील इमाम के खिलाफ केस बनाया गया था. इस साल फरवरी में इस मामले में एक तीसरी चार्जशीट दायर की गई.

लेकिन, सोमवार को अतिरिक्त सेशन्स जज अमिताभ रावत ने कहा कि ‘चार्जशीट और गवाहों के बयानात के अनुसार, अभियुक्त इशरत जहां वो शख़्स नहीं है जिसने चक्का-जाम का विचार सुझाया था’.

कोर्ट ने आगे कहा, ‘वो किसी संगठन या किसी फंसाने वाले व्हाट्सएप ग्रुप की सदस्य नहीं हैं, जो पूरी साज़िश में एक अहम रोल अदा करता है. वो मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑफ जेएनयू (एमएसजे) या जामिया समन्वय समिति (जेसीसी), जेससी के बनाए चार में से किसी एक ग्रुप, पिंजरा तोड़, स्टूडेंट्स ऑफ जामिया (एसओजे), अल्यूमनाई एसोसिएशन ऑफ जामिया मिलिया (एएजेएमआई), या फिर डीपीएसजी, किसी की सदस्य नहीं है. अभियोजन का केस ये नहीं है कि उसने इनमें से किसी भी संगठन द्वारा बुलाई गई किसी बैठक में हिस्सा लिया’.


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‘तकलीफ पहुंचाने में मज़ा’: ज़मानत मिलने में एक साल क्यों लगा

दो साल पहले जहां को गिरफ्तार किए जाने के बाद से, उन्हें जून 2020 में शादी करने के लिए 10 दिन की ज़मानत मिली थी. ज़मानत की मियाद ख़त्म होने पर उन्होंने इस आधार पर सात दिन की अतिरिक्त ज़मानत मांगी थी कि उनके पति के एक कोविड-19 पॉज़िटिव व्यक्ति के संपर्क में आने के बाद उनके अंदर भी ‘लक्षण पैदा हो गए थे’.

लेकिन, कोर्ट ने डॉक्टर की राय और अपराध के नेचर को देखते हुए उनके अनुरोध को ख़ारिज कर दिया और कहा कि जहां के पक्ष में ज़मानत अवधि बढ़ाने का मामला नहीं बनता.

दिसंबर 2020 में, जहां ने कोर्ट को बताया कि मंडोली जेल में क़ैदियों ने उसकी बुरी तरह पिटाई की थी और जेल के भीतर उसे लगातार परेशान किया जा रहा है. कोर्ट के आदेश के अनुसार, जहां ने कोर्ट को बताया कि ‘आज दूसरे क़ैदियों ने उसकी बुरी तरह पिटाई की है, और उसे लगातार दूसरे क़ैदियों के हाथों उत्पीड़न और पिटाई का सामना करना पड़ रहा है. उसने एक महिला पूजा @ Golden and Gulshan का नाम लिया है, और ऐसा बताया गया है कि वो एक लेस्बियन है, और उसकी हरकतें बेहद घिनौनी हैं. उसे दूसरी क़ैदियों से अपनी सुरक्षा का डर है’.

जज अमिताभ रावत ने तब जेल अधीक्षक से आरोपों और उनके द्वारा उठाए क़दमों के बारे में विस्तृत जवाब तलब किया था. कोर्ट ने निर्देश दिया, ‘जेल अधीक्षक ये भी सुनिश्चित करेंगे कि दूसरी क़ैदियों की ओर से धमकी, उत्पीड़न, और शारीरिक नुक़सान के मद्देनज़र, मौजूदा अभियुक्त की सलामती और सुरक्षा के तमाम उपाय किए जाएं’.

फिर मार्च 2021 में जहां ने योग्यता के आधार पर, कोर्ट में एक नियमित ज़मानत याचिका दायर की. जवाब में अतिरिक्त सरकारी वकील अमित प्रसाद ने तर्क दिया कि उनकी ज़मानत याचिका कोर्ट में चलने लायक़ नहीं है, चूंकि वो क़ानून के ग़लत प्रावधानों के तहत दायर की गई हैं.

अगस्त 2021 में एक सुनवाई के दौरान, जहां के वकील ने कोर्ट से कहा कि अभियोजन पक्ष इस दलील के सहारे कि उनकी याचिका ग़लत प्रावधानों के तहत दायर की गई है, जेल अवधि बढ़वाकर उन्हें ‘तकलीफ पहुंचाने में मज़ा ले रहा है. उनके वकील की दलील थी कि अभियोजन ने पहले ये तकनीकी आपत्ति नहीं उठाई, और अब उस समय उठा रहा है जब कोर्ट याचिका पर उनके विचार पहले ही सुन चुका था.

लेकिन, याचिका पर महीनों तक बहस करने के बाद अभियोजन की आपत्तियों को देखते हुए, जहां को कुछ और साथी अभियुक्तों के साथ मिलकर सितंबर में ताज़ा ज़मानत अर्ज़ियां दाख़िल करनी पड़ीं.

‘दंगों के लिए शारीरिक रूप से NE दिल्ली में मौजूद नहीं थीं’

अपने ज़मानत आदेश में अब कोर्ट ने कहा कि चार्जशीट के अनुसार, ‘ऊपरी तौर पर देखने से पता चलता है कि हानिकारक चक्का-जाम करने की साज़िश पहले से सोची-समझी थी, और दिल्ली में 23 जगहों पर एक पूर्व-नियोजित प्रदर्शन की भी साज़िश थी, जिसे बाद में बढ़कर टकराव के चक्का-जाम, और हिंसा के उकसावे में बदल जाना था, जिसके नतीजे में दंगे होने थे’.

उसमें कहा गया कि ‘इस्तेमाल किए गए हथियार, हमले के तरीक़े, और उससे हुई तबाही से पता चलता है कि वो पूर्व-नियोजित था’.

जज रावत ने कहा कि साज़िश के इस पूरे मामले में ‘विभिन्न समूह और लोग शामिल हैं, जो एक दूसरे के साथ साज़िश करके, विरोध प्रदर्शन की आड़ में टकराव वाले चक्का-जाम कराए’ जिसके नतीजे में दंगे भड़क उठे.

उन्होंने फिर आगे कहा कि जहां ख़ुरेजी में प्रदर्शन-स्थल पर मौजूद थीं, जो नागरिकता संधोशन एक्ट-राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के खिलाफ प्रदर्शन स्थलों में से एक था, लेकिन वो उत्तर-पूर्वी दिल्ली में स्थित नहीं है, जहां दंगे हुए थे.

कोर्ट ने कहा, ‘वो (ख़ुरेजी) इलाक़ा उत्तर-पूर्वी दिल्ली से लगा हुआ नहीं है. अगर ये मान भी लिया जाए कि वो दूसरे अभियुक्तों के संपर्क में थीं, तो भी सच्चाई ये है कि न तो वो दंगों के लिए शारीरिक रूप से उत्तर-पूर्वी दिल्ली में मौजूद थीं, न किसी संगठन या व्हाट्सएप ग्रुप का हिस्सा थीं, न फोन कॉल्स की झड़ी या किसी सीसीटीवी फुटेज में उनका नाम सामने आया, और न ही वो किसी षड्यंत्रकारी बैठक में शरीक हुईं’.

इसलिए जहां को 50,000 रुपए के निजी मुचलके और उसके साथ दो स्थानीय ज़मानतदार पेश करने की शर्त पर ज़मानत दे दी गई.

कोर्ट ने ये भी निर्देश दिया कि कोर्ट की अनुमति के बिना, न तो वो दिल्ली छोड़ेंगी और न ही किसी तरह की अपराधिक गतिविधि में शामिल होंगी. अन्य बातों के अलावा, ज़मानत की शर्तों में ये भी शामिल है कि वो किसी सबूत से छेड़छाड़ या किसी गवाह से संपर्क नहीं करेंगी.


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निचली अदालत से पहली ज़मानत

6 मार्च 2020 को दर्ज की गई ये एफआईआर नंबर 59, शुरू में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं 147, 148, 149 और 120(बी), के तहत दर्ज की गई थी, जिनका संबंध बलवा करने, घातक हथियारों से लैस होने और विधि विरुद्ध जनसमूह से है. ये सभी धाराएं ज़मानती हैं.

केस को स्पेशल सेल के पास भेजे जाने के बाद, एफआईआर में आईपीसी की धाराएं 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 124-ए (देशद्रोह), और 153-ए (धर्म के आधार पर समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाना), तथा आर्म्स एक्ट की धाराएं भी जोड़ दी गईं.

21 अप्रैल 2021 को पुलिस ने एफआईआर में कड़े गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम की धाराएं 13, 16, 17 और 18 भी जोड़ दीं. इन धाराओं का संबंध ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि, आतंकी गतिविधि को अंजाम देने, आतंकी गतिविधि के लिए धन जुटाने और किसी आतंकी गतिविधि के लिए षडयंत्र से है.

इस एफआईआर में कुल 18 लोगों को अभियुक्त बनाया गया है. इनमें जहां, इमाम, पूर्व आप पार्षद ताहिर हुसैन, पिंजरा तोड़ कार्यकर्ता नताशा नरवाल और देवांगना कलीता, जामिया छात्र आसिफ इक़बाल तनहा, जामिया समन्वय समिति की मीडिया को-ऑर्डिनेटर सफूरा ज़रगर, और कार्यकर्ता गुलफिशा फातिमा तथा तस्लीम अहमद शामिल हैं.

जहां इस केस में पहली शख़्स हैं जिन्हें निचली अदालत से मेरिट के आधार पर ज़मानत मिली है. पिछले साल जून में, दिल्ली हाईकोर्ट ने कलीता, नरवाल और तनहा को ज़मानत दे दी थी. लेकिन कुछ ही दिनों के भीतर सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप कर दिया. उसने ज़मानत आदेश में दख़ल नहीं दिया, लेकिन ये ज़रूर कहा कि जब तक वो केस की सुनवाई नहीं कर लेता, तब तक हाईकोर्ट की यूएपीए की व्याख्या को ‘कोई नज़ीर नहीं माना जाएगा’.

ज़रगर को भी जून 2020 में ज़मानत पर छोड़ दिया गया. लेकिन उनकी रिहाई मेरिट पर नहीं, बल्कि विशुद्ध तौर पर ‘मानवीय आधार’ पर थी, चूंकि 27 वर्षीय महिला उस समय गर्भवती थी.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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