नई दिल्ली: इस महीने की शुरुआत में कर्नाटक हाई कोर्ट (HC) ने तीन मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज कर दिया, जिन्हें जमखंडी में एक मंदिर के पास इस्लाम का प्रचार करने वाले पर्चे बांटने और हिंदू धर्म के खिलाफ कथित आपत्तिजनक टिप्पणियां करने का आरोपी बनाया गया था. कोर्ट को धर्मांतरण या उसकी कोई कोशिश का कोई सबूत नहीं मिला.
कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा कि आरोप “कर्नाटक धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार संरक्षण अधिनियम (KPRFR Act)” के तहत अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. कोर्ट ने यह भी कहा कि शिकायत करने वाला व्यक्ति इस कानून के तहत कानूनी रूप से शिकायत करने का अधिकारी नहीं था.
एफआईआर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 299, 351(2), और 3(5) तथा KPRFR अधिनियम, 2022 की धारा 5 के तहत दर्ज की गई थी. हाई कोर्ट ने पाया कि इन अपराधों के लिए जरूरी कोई भी तत्व मौजूद नहीं है.
KPRFR अधिनियम की धारा 3 गलत तरीकों से धर्म परिवर्तन को प्रतिबंधित करती है, जैसे झूठे वादे, जोर-जबरदस्ती या विवाह का झांसा. धारा 5 इस उल्लंघन पर सजा का प्रावधान करती है। धारा 4 यह सीमित करती है कि इस अधिनियम के तहत शिकायत कौन कर सकता है—केवल वही व्यक्ति जिसने धर्म बदला हो या उसके करीबी रिश्तेदार.
एफआईआर रद्द करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए 17 जुलाई को कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस वेंकटेश नाइक टी. ने कहा कि शिकायतकर्ता के पास कानूनी आधार (locus standi) नहीं था और एफआईआर में आरोपित अपराधों के आवश्यक तत्व नहीं थे.
कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा: “मान लें कि एफआईआर में किए गए सभी आरोप सही हैं, फिर भी यह धारा 3 के तहत अपराध के आवश्यक तत्वों को पूरा नहीं करते. एफआईआर में यह आरोप नहीं है कि याचिकाकर्ताओं ने किसी व्यक्ति को किसी अन्य धर्म में धर्मांतरित किया या ऐसा करने की कोशिश की. इन आवश्यक तत्वों की अनुपस्थिति में यह आरोप अधिनियम के तहत अपराध नहीं बनाते.”
‘धर्मांतरण’ मामले की पृष्ठभूमि
एफआईआर के अनुसार, शिकायतकर्ता 4 मई 2025 को लगभग शाम 4.30 बजे जमखंडी के रामतीर्थ मंदिर गए थे. उन्होंने आरोप लगाया कि तीन मुस्लिम पुरुष मंदिर के पास इस्लाम की शिक्षाओं को बढ़ावा देने वाले पर्चे बांट रहे थे और मौखिक रूप से अपने धार्मिक विश्वासों की व्याख्या कर रहे थे.
एफआईआर के अनुसार, मंदिर में मौजूद भक्तों ने जब उनकी गतिविधियों के बारे में पूछा तो उन्होंने “हिंदू धर्म की आलोचना” शुरू कर दी और “आपत्तिजनक टिप्पणियां” कीं. एफआईआर में आरोप है कि उन्होंने कहा, “अगर आप हिंदू बने रहे तो ईश्वर को नहीं पा सकोगे. अल्लाह के अलावा कोई ईश्वर नहीं है और बाकी सारे भगवान काफिर हैं.” साथ ही, उन्होंने कथित तौर पर दावा किया कि उनका मिशन है कि “पूरी दुनिया को इस्लाम की ओर मोड़ना” और यह भी कहा कि अगर कोई उन्हें रोकने की कोशिश करेगा तो “हम तुम्हारी जान नहीं बख्शेंगे.”
एफआईआर में यह भी आरोप है कि इन तीन मुस्लिम पुरुषों ने इस्लाम में धर्मांतरण के लिए गाड़ी और दुबई में नौकरी जैसे प्रलोभन दिए.
इसके तुरंत बाद, आरोपियों ने कर्नाटक हाई कोर्ट में याचिका दायर कर एफआईआर को रद्द करने की मांग की. उन्होंने कहा कि वे केवल “अल्लाह और पैगंबर मोहम्मद की शिक्षाओं का प्रचार” कर रहे थे. उन्होंने यह भी कहा कि किसी व्यक्ति को किसी धर्म से दूसरे धर्म में बदलने की कोई कोशिश का आरोप नहीं है, इसलिए धारा 5 के तहत दंडात्मक प्रावधान लागू नहीं होता. साथ ही उन्होंने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता उस श्रेणी में नहीं आता जिसे धारा 4 के तहत पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का अधिकार है। इसलिए, एफआईआर कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है.
हालांकि, अभियोजन पक्ष ने याचिका का विरोध किया और कहा कि एफआईआर में KPRFR अधिनियम की धारा 5 के तहत एक संज्ञेय अपराध बताया गया है.
KPRFR अधिनियम की धारा 4 विशेष रूप से यह निर्धारित करती है कि केवल धर्मांतरित व्यक्ति या उसके करीबी रिश्तेदार ही पुलिस में शिकायत दर्ज करा सकते हैं. अगर कोई बाहरी व्यक्ति शिकायत करता है तो उसे लोक्स स्टैंडी नहीं माना जाता. यानी, उसे कानूनी रूप से इस मामले को शुरू करने का अधिकार नहीं है.
लोक्स स्टैंडी का मतलब है किसी व्यक्ति का अदालत में कार्रवाई शुरू करने या उसकी बात सुने जाने का कानूनी अधिकार—यह इस पर निर्भर करता है कि उस व्यक्ति की मामले में पर्याप्त और प्रत्यक्ष रुचि है या नहीं. सीधे शब्दों में कहें तो, केवल वही व्यक्ति जो सीधे तौर पर प्रभावित है या जिसे कानूनन अधिकार मिला हो, वह ही मामला शुरू कर सकता है.
‘धर्मांतरण’ मामले में अदालत के निष्कर्ष
अपने फैसले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि KPRFR अधिनियम की धारा 3 में गलत जानकारी, बल, धोखा, अनुचित प्रभाव, दबाव, लालच या शादी का वादा करके धर्म परिवर्तन पर रोक लगाई गई है. धारा 4 में शिकायतकर्ता के अधिकार (locus) को सीमित व्यक्तियों तक रखा गया है, और धारा 5 में धारा 3 के उल्लंघन पर सजा का प्रावधान है.
हाईकोर्ट ने कहा: “इस मामले में शिकायत एक तीसरे व्यक्ति द्वारा दर्ज कराई गई थी, जो धारा 4 में बताए गए लोगों की श्रेणी में नहीं आता. इसलिए, दूसरे प्रतिवादी द्वारा दर्ज की गई एफआईआर, जिसे कानूनी तौर पर शिकायत दर्ज करने का अधिकार (लोक्स स्टैंडी) नहीं है, वह अवैध है.”
इसके अलावा, यह आरोप भी नहीं लगाया गया था कि आरोपियों ने किसी व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में बदलने की कोशिश की या ऐसा किया.
हाईकोर्ट ने कहा, “इन आवश्यक तत्वों की अनुपस्थिति के कारण आरोप अधिनियम के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आते. इसलिए, एफआईआर का पंजीकरण और उस पर आधारित चार्जशीट का दाखिल होना अवैध है.”
याचिका को स्वीकार करते हुए, कर्नाटक हाईकोर्ट ने एफआईआर और उससे जुड़े सभी कानूनी कार्यवाही को रद्द कर दिया.
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