हरियाणा में अनिल विज की धमाकेदार शुरुआत
गुरुवार को हरियाणा के कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ लेने वाले अनिल विज का अधिकारियों के साथ टकराव का एक सुप्रसिद्ध इतिहास रहा है. 2014 से 2019 और 2019 से 2024 तक उनके पहले और दूसरे कार्यकाल में ऐसी घटनाएं हुई थीं और ऐसा लगता है कि वे दोबारा ऐसा कर रहे हैं. शपथ ग्रहण के बाद विज उसी शाम पंचकूला से अंबाला कैंट के सर्किट हाउस पहुंचे. वहां पहुंचने पर उन्हें यह देखकर नाराज़गी हुई कि जिले के कुछ प्रमुख अधिकारी बैठक में अनुपस्थित थे. उन्होंने अपना आपा खोते हुए तुरंत उन अधिकारियों को भी जाने का आदेश दिया जो बैठक में मौजूद थे.
प्रशासन की ओर से अतिरिक्त उपायुक्त (एडीसी) अपराजिता, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट सतिंदर सिवाच और नगर परिषद के कुछ अधिकारी मौजूद थे.
विज ने जैसे ही अपनी सीट संभाली, उन्होंने नाराज़गी ज़ाहिर की और एडीसी द्वारा कई अन्य अधिकारियों की मौजूदगी को उजागर करने का प्रयास उनके गुस्से को कम करने में कोई मदद नहीं कर सका. विज ने पूछा, “समिति के अधिकारियों के साथ मुझे क्या करना चाहिए? क्या मैं यहां सड़क बनाने के लिए हूं? यह गलत है. आप चले जाइए और हम खुद ही सब कुछ संभाल लेंगे.”
पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) विजय कुमार ने हस्तक्षेप करते हुए विज को बताया कि पुलिस अधीक्षक पंचकूला में वीआईपी ड्यूटी पर हैं, लेकिन इससे विज का गुस्सा और बढ़ गया और उन्होंने पलटवार करते हुए कहा, “उस ड्यूटी को भूल जाइए. बाकी अधिकारी कहां हैं? इतने सारे विभाग हैं, बाकी कहां हैं?”
मंत्री ने जोर देकर कहा कि अधिकारियों को दोपहर दो बजे बैठक के समय के बारे में सूचित किया गया था, लेकिन चार घंटे बाद भी वह नहीं पहुंचे. निराश होकर उन्होंने बैठक रद्द कर दी और अधिकारियों को कमरे से बाहर जाने का निर्देश दिया और दोहराया, “हम इसे खुद संभाल लेंगे”.
मांडविया फिर से साइकिल पर सवार
श्रम मंत्री मनसुख एल. मांडविया का साइकिल चलाने का शौक जगज़ाहिर है. उन्होंने 2012 में पहली बार सांसद चुने जाने के बाद साइकिल से संसद जाना शुरू किया था. उस समय कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार सत्ता में थी और मीरा कुमार स्पीकर थीं. जब मांडविया ने कुमार से साइकिल के लिए पार्किंग की जगह मांगी तो उन्होंने मज़ाकिया अंदाज़ में पूछा, “फोटो खिंचवाने के लिए कर रहे हो…?”
2016 में राज्य मंत्री बनने के बाद भी मांडविया 9 साल तक साइकिल से संसद जाते रहे. हालांकि, अपने व्यस्त कार्यक्रम के कारण उन्हें आखिरकार यह आदत छोड़नी पड़ी.
अब भले ही वे काम पर जाने के लिए साइकिल न चला रहे हों, लेकिन पूर्व मंत्री कमलनाथ की बदौलत मांडविया फिर से साइकिल चला रहे हैं.
मंत्री रहते हुए मांडविया को 1 तुगलक रोड बंगला दिया गया था, जो पहले कमलनाथ को आवंटित था. अपने कार्यकाल के दौरान, नाथ ने घर का जीर्णोद्धार करवाया था, जिसमें अब साइकिलिंग ट्रैक के साथ एक विशाल लॉन है. यह व्यवस्था मांडविया को काम से घर लौटने के बाद हर दिन साइकिल चलाने की सुविधा देती है.
पत्रकारों के साथ अनौपचारिक बातचीत के दौरान उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा, “कमलनाथ विरासत में मुझे अच्छा घर दे गए हैं.”
महायुति कैबिनेट ड्रामा
गुरुवार को महायुति सरकार की दूसरी आखिरी कैबिनेट बैठक के दौरान एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 38 फैसले लिए. हालांकि, चर्चा सिर्फ लिए गए फैसलों की संख्या को लेकर नहीं, बल्कि डिप्टी सीएम अजित पवार के अचानक और जल्दी बैठक से चले जाने को लेकर हुई.
मंत्रालय के सूत्रों से पता चलता है कि शिंदे को उम्मीद थी कि कैबिनेट बैठक में एक खास प्रस्ताव पेश किया जाएगा और इस पर डिप्टी सीएम पवार से उनकी कहासुनी हो गई, जो राज्य के वित्त विभाग की देखरेख करते हैं. सूत्र ने बताया कि शिंदे ने पवार से प्रस्ताव के बारे में सवाल किया, ज़ाहिर तौर पर पवार की पसंद के हिसाब से कुछ ज्यादा ही आक्रामक तरीके से, जिसके चलते पवार बाहर चले गए. इसके बाद, शिंदे ने अपनी हताशा एक सरकारी अधिकारी पर निकाली — जो इस मामले में एक दुर्भाग्यपूर्ण बलि का बकरा हैं.
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जम्मू-कश्मीर में सिविल सेवकों की दुविधा
केंद्रशासित प्रदेश में उमर अब्दुल्ला सरकार के शपथ ग्रहण के दिन कश्मीर प्रशासनिक सेवा (केएएस) के एक अधिकारी द्वारा एक्स पर की गई पोस्ट ने अधिकारियों के बीच नई चर्चा को जन्म दिया है.
6 साल बाद निर्वाचित सरकार की वापसी के साथ दो सत्ता केंद्रों को संभालने को लेकर जम्मू-कश्मीर की नौकरशाही में काफी चिंता के बीच, जीशान खान द्वारा की गई पोस्ट ने नौकरशाही के बीच भ्रम को उजागर किया, जो अभी भी आधिकारिक तौर पर उपराज्यपाल और केंद्र को रिपोर्ट करती है.
खान ने लिखा: “एलजी शासन के दौरान, हमने परिणाम हासिल किए और यह जारी रहेगा. पहले की तरह अवैध काम बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.”
इसके बाद अधिकारी ने यह कहकर पोस्ट को संतुलित किया कि अब अंतर यह है कि “हमारे पास एक ऐसा प्रतिनिधि है जिसे हम जानते हैं”.
अधिकारी समूहों के बीच उनके ट्वीट के वायरल होने के बाद, खान को सार्वजनिक रूप से “पक्ष लेने” के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा. हालांकि, बाद में उन्होंने पोस्ट को हटा दिया, लेकिन कई अधिकारियों ने इसे आगे आने वाली दुविधाओं और चुनौतियों का प्रतिबिंब माना.
तमिलनाडु में एक और ‘बेटे’ का उदय
तमिलनाडु में एक नया राजनीतिक व्यक्तित्व उभर रहा है, जो सत्तारूढ़ DMK के भीतर एक ट्रेंड को दर्शाता है. मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन को उपमुख्यमंत्री नियुक्त किए जाने के साथ, AIADMK पार्टी के भीतर भी इसी तरह के ‘बेटे’ के उदय की आशंका बढ़ रही है.
AIADMK महासचिव और विपक्ष के नेता एडप्पाडी के. पलानीस्वामी (EPS) अपने बेटे मिथुन को 2026 के विधानसभा चुनावों के लिए चुनावी राजनीति में उतारने की तैयारी कर रहे हैं. पिता और पुत्र दोनों अपने गृह जिले सलेम में अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने पर विचार कर रहे हैं.
हालांकि, मिथुन पार्टी के मामलों में लॉ प्रोफाइल रखते हैं, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद से वे पर्दे के पीछे काफी सक्रिय रहे हैं.
अफवाहों से पता चलता है कि CM स्टालिन के बेटे उदयनिधि के DMK में उभरने की EPS की अपेक्षाकृत हल्की आलोचना उनके अपने बेटे के राजनीतिक पदार्पण की तैयारियों से जुड़ी हुई है.
सपा का ‘पारिवारिक मामला’
वंशवाद की बात करें तो उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) के उम्मीदवारों की सूची में बड़े पैमाने पर प्रमुख नेताओं के रिश्तेदार शामिल हैं. अब तक घोषित सात उम्मीदवारों में से छह राजनीतिक परिवारों से हैं.
मैनपुरी की करहल सीट पर अखिलेश ने अपने चचेरे भाई तेज प्रताप यादव ‘तेजू’ को मैदान में उतारा है. सांसद चुने जाने के बाद अखिलेश के इस्तीफा देने के बाद यह सीट खाली हो गई थी.
अन्य उम्मीदवारों में सीसामऊ में पूर्व विधायक इरफान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी, मंझवा में पूर्व सांसद रमेश बिंद की पत्नी ज्योति बिंद, मीरापुर में पूर्व विधायक कादिर राणा की बहू सुंबल राणा, कठेरी में मौजूदा सांसद लालजी वर्मा की पत्नी शोभावती वर्मा और मिल्कीपुर में मौजूदा सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद शामिल हैं.
भाजपा जहां पार्टी पर ‘परिवारवाद’ (वंशवाद की राजनीति) को बढ़ावा देने का आरोप लगा रही है, वहीं सपा के पदाधिकारी इसका बचाव करते हुए तर्क दे रहे हैं कि जब किसी वरिष्ठ नेता के बेटे, बेटी या बहू को टिकट मिलता है, तो इससे परिवार के अन्य सदस्यों को चुनाव के दौरान अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने की प्रेरणा मिलती है. इसे आप सपा का ‘जीतने का फॉर्मूला’ कह सकते हैं.
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