scorecardresearch
Friday, 27 December, 2024
होमदेशअर्थजगतबेमौसम गर्मी और संभावित खराब मानसून में आपके सपनों का घर खरीदना क्यों हो सकता है महंगा

बेमौसम गर्मी और संभावित खराब मानसून में आपके सपनों का घर खरीदना क्यों हो सकता है महंगा

प्रतिकूल मौसम से फसल की पैदावार कम होगी, जिससे खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ेगी. इसलिए, आरबीआई ब्याज दरों को कम नहीं करेगा या फिर उन्हें मामूली रूप से बढ़ा भी सकता है.

Text Size:

नई दिल्ली: संबंधित मौसमी घटनाओं की एक सीरीज़ का मतलब यह हो सकता है कि भारत में इस समय बेमौसम गर्मी महसूस की जा रही है, साथ ही संभावित रूप से खराब मानसून के साथ, भारतीयों के लिए उनके सपनों का घर और अन्य संपत्ति खरीदना महंगा हो सकता है.

हालांकि, भारत गर्मी जैसी स्थितियों की समय से पहले अनुभव कर रहा है, कृषि विशेषज्ञों को चिंता है कि इससे देश में गेहूं और अन्य फसलों के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.

इसके अलावा, मौसम पर नज़र रखने वाले विशेषज्ञों के अनुसार, अल नीनो प्रभाव (एक चक्रीय मौसम पैटर्न) की संभावित शुरुआत सामान्य मानसून की संभावना को कम कर सकती है, जो भारत के फसल उत्पादन को और नुकसान पहुंचाएगा.

फसल की कम पैदावार के बदले में खाद्य मुद्रास्फीति के बढ़ने की आशंका होगी. इसी समय, कोर मुद्रास्फीति, जो कि ईंधन और भोजन को छोड़कर, समग्र मुद्रास्फीति है, परेशान करने वाली बनी हुई है और भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के लिए चिंता का एक बड़ा कारण है.

ऐसे में अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इस बात की पूरी संभावना है कि एमपीसी अप्रैल में होने वाली अपनी अगली बैठक में ब्याज दरों में कटौती नहीं करेगी. हालांकि, समिति बाद में दरों में वृद्धि भी कर सकती है.

अधिक ब्याज दरों का मतलब होगा कि होम लोन और बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा दिए गए अन्य ऋण अधिक महंगे हो जाएंगे, जिससे घर या कार खरीदना अधिक महंगा हो जाएगा.


यह भी पढ़ेंः वैज्ञानिकों की राय- अल नीनो के असर के बारे अभी से कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी, थोड़ा इंतजार करना होगा


समय से पहले गर्मी का आगमन

28 फरवरी को जारी एक विज्ञप्ति में, भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने कहा कि मार्च 2023 के लिए मासिक अधिकतम तापमान “दुनिया के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से ऊपर रहने की संभावना है, सिवाय प्रायद्वीपीय भारत के जहां सामान्य से नीचे अधिकतम तापमान की संभावना है.”

इसमें कहा गया है कि मार्च के दौरान भारत के अधिकांश हिस्सों में भी हालांकि, न्यूनतम तापमान भी सामान्य से ऊपर रहेगा.

फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) में खाद्य प्रसंस्करण के सलाहकार और पूर्व केंद्रीय कृषि सचिव सिराज हुसैन ने दिप्रिंट को बताया, “फरवरी और मार्च में असामान्य रूप से उच्च तापमान से गेहूं और अन्य फसलों के उत्पादन को नुकसान पहुंचेगा. अगर गर्मी बनी रहती है, तो गेहूं का उत्पादन 112 मीट्रिक टन नहीं हो सकता है, जिसकी सरकार उम्मीद कर रही है.”

हुसैन ने समझाया, हालांकि, इस साल स्थिति अलग है क्योंकि गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया है – जिससे घरेलू बाज़ार के लिए उच्च स्टॉक उपलब्ध होगा. अन्य संभावित सरकारी कार्रवाई भी बाज़ार में गेहूं की अधिक उपलब्धता सुनिश्चित कर सकती है.

उन्होंने कहा, “आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत स्टॉक सीमा लागू करने का वास्तविक खतरा है. इसलिए, सरकार को 25 मीट्रिक टन गेहूं की खरीद करने में सक्षम होना चाहिए और मुद्रास्फीति बढ़ने की स्थिति में कुछ को खुले बाज़ार में जारी करने की स्थिति में होगी.”

हालांकि, भले ही यह सब कुछ हो जाए और सरकार गेहूं की कीमतों की मुद्रास्फीति को कम करने में कामयाब हो जाए, फिर भी औसत से कम मानसून के कारण खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि हो सकती है.

अल नीनो प्रभाव एक चक्रीय मौसम पैटर्न घटना है जिसके परिणामस्वरूप आमतौर पर मानसून की कमी होती है. इस प्रभाव का विलोम ला नीना है, जिसके परिणामस्वरूप मानसून मजबूत होता है, जबकि आईएमडी का कहना है कि ला नीना का प्रभाव कम हो रहा है और भारत एक तटस्थ स्थिति की ओर बढ़ रहा है, अन्य मौसम विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अल नीनो प्रभाव इस साल वापस आ सकता है.

उन्होंने कहा, “मुख्य चिंता अल नीनो प्रभाव की संभावना है, जिसके परिणामस्वरूप औसत से कम मानसून होगा, जिसके परिणामस्वरूप खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ेगी, क्योंकि खरीफ फसल प्रभावित हो सकती है.”

महंगाई पर चिंता

एमपीसी ने पिछले महीने अपनी बैठक में बेंचमार्क रेपो दर को 25 आधार अंकों से बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत करने का फैसला करने का एक मुख्य कारण उच्च कोर मुद्रास्फीति की निरंतरता थी.

आरबीआई द्वारा जारी समिति की बैठक के अनुसार, “संतुलन पर, एमपीसी का विचार है कि मुद्रास्फीति की उम्मीदों को स्थिर रखने, मुख्य मुद्रास्फीति की दृढ़ता को तोड़ने और मध्यम अवधि के विकास की संभावनाओं को मजबूत करने के लिए आगे अंशांकित मौद्रिक नीति कार्रवाई की आवश्यकता है.” तदनुसार, एमपीसी ने नीतिगत रेपो दर को 25 आधार अंकों से बढ़ाकर 6.50 प्रतिशत करने का निर्णय लिया.”

यदि बेमौसम गर्मी या खराब मानसून के कारण खाद्य मुद्रास्फीति फिर से बढ़ती है, तो अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इसका मतलब यह हो सकता है कि एमपीसी अप्रैल में अपनी अगली बैठक में ब्याज दरों को कम नहीं करेगी और बाद में दरों में मामूली वृद्धि भी कर सकती है.

डी.के. ईवाई इंडिया के मुख्य नीति सलाहकार श्रीवास्तव ने दिप्रिंट को बताया. “सबसे अच्छा यही कहा जा सकता है कि अगली बैठक में कटौती की संभावना कम है.”

श्रीवास्तव ने आगे कहा कि यह संभावना है कि यूएस फेडरल रिजर्व अपनी दरों में वृद्धि जारी रखेगा, जो भारत में एमपीसी द्वारा मामूली दर वृद्धि को प्रेरित करेगा.

(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ेंः फरवरी में मार्च जैसी गर्मी! उत्तर भारत में क्यों बढ़ रहा हैं तापमान


 

share & View comments