लखनऊ : कोर्ट की अवमानना के मामले में वकील प्रशांत भूषण से भिड़ने से लेकर मथुरा में ‘श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर’ के लिए कानूनी लड़ाई शुरू करने तक 30 वर्षीय वकील महक माहेश्वरी अपने गुरु के नक्शे कदम पर चल रहे हैं. उनके गुरू कोई और नहीं बल्कि राज्यसभा सांसद और अक्सर मुकदमे दायर करने- (खासकर जब मंदिरों की बात हो तो) वाले सुब्रमण्यम स्वामी हैं.
दिप्रिंट से बात करते हुए माहेश्वरी ने खुद को एक ‘राष्ट्रवादी’ और कृष्ण भक्त बताया. उन्होंने कहा कि वह ध्वस्त मंदिरों के संबंध में ‘ऐतिहासिक क्रम में सुधार’ के लिए किसी भी आंदोलन का समर्थन करेंगे.
उन्होंने कथित तौर पर कृष्ण जन्मस्थली पर बनी मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद को उसकी जगह से हटाने और यह जमीन हिंदुओं को सौंपने के लिए एक याचिका दायर की थी, लेकिन 19 जनवरी 2021 को याचिकाकर्ता की अनुपस्थिति के कारण कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया.
माहेश्वरी ने कहा कि वह कोर्ट के सामने पेश नहीं हो पाए क्योंकि वह पिछले साल वीडियो लिंक पाने में नाकाम रहे थे, लेकिन इसे खारिज किए जाने के तुरंत बाद बहाली याचिका दायर की.
इसके बाद, इसी साल 17 फरवरी को इलाहाबाद हाई कोर्ट की खंडपीठ, जिसमें चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस प्रकाश पडिया शामिल थे, ने याचिका को बहाल कर दिया. अब इस पर 25 जुलाई को सुनवाई होगी.
इसने माहेश्वरी को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है.
वह पहली बार 2020 में उस समय लोगों की नजर आए जब उन्होंने प्रशांत भूषण के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिन्होंने भारत के तत्कालीन चीफ जस्टिस एस.ए. बोबडे और उनके कुछ पूर्ववर्तियों के खिलाफ एक ‘निंदनीय’ ट्वीट किया था. यद्यपि भूषण ने कहा कि ट्वीट आलोचना के दायरे में आता है, सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना की कार्यवाही शुरू की और सांकेतिक तौर पर उन पर 1 रुपये का जुर्माना लगाया.
सीए से वकील बने माहेश्वरी ने सुब्रमण्यम स्वामी के साथ की इंटर्नशिप
मूलत: मध्य प्रदेश के गुना के रहने वाले माहेश्वरी भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रमेश चंद्र लाहोटी के दूर के रिश्तेदार होने का दावा करते हैं, जो कि खुद भी गुना के रहने वाले हैं.
माहेश्वरी ने इंदौर में चार्टर्ड अकाउंटेंसी का कोर्स लगभग पूरा कर लिया था, तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई और उन्होंने अंतिम चरण में पढ़ाई छोड़ दी और वकालत की ओर रुख किया.
उन्होंने बताया, ‘मुझे कराधान के मामलों में दिलचस्पी थी, लेकिन वे आसानी से आपके पास नहीं आते. ऐसा नहीं है कि मैं केवल मंदिर से जुड़े मुद्दों को उठाता हूं, मैंने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में भी केस लड़े हैं.’
सुब्रमण्यम स्वामी को अपना गुरु बताने वाले माहेश्वरी कहते हैं, ‘सौभाग्य से, मुझे 2018 में डॉ. स्वामी के साथ इंटर्नशिप करने का मौका मिला. वह बहुत सरल स्वभाव के व्यक्ति हैं और मुझे पसंद है, क्योंकि मैं भी ऐसा ही हूं. मैं अभी भी उनके साथ जुड़ा हुआ हूं.’
इस इंटर्नशिप के दौरान मंदिर से जुड़े कई केस के अलावा माहेश्वरी ने नेशनल हेराल्ड और सुनंदा पुष्कर जैसे मामलों पर भी काम किया. हेराल्ड केस में स्वामी ने कांग्रेस नेताओं सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ धोखाधड़ी और धन के दुरुपयोग के आरोप लगाए थे, जबकि कांग्रेस नेताओं ने इसे निराधार बताया था. वहीं 2014 में सुनंदा पुष्कर की मौत के मामले में स्वामी ने एक अभियान चलाया और उनके पति व कांग्रेस सांसद शशि थरूर के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया.
हालांकि, दिल्ली की एक कोर्ट ने 2021 में थरूर को बरी कर दिया.
उन्होंने बताया, ‘मैंने नेशनल हेराल्ड मामले में इस पर रिपोर्ट तैयार की थी कि इसमें आईपीसी की धारा 409 (आपराधिक विश्वासघात) कैसे लागू होती है, जिसके आधार पर मामला आगे बढ़ा. राम मंदिर मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में मेरी हाजिरी लगी और तिरुमाला देवस्थानम मामले में भी मैंने स्वामी के लिए लीगल रिसर्च की. मेरे तमाम बड़े मामले स्वामी के नेतृत्व वाले रहे हैं.’
स्वामी कई वर्षों तक अयोध्या में राम मंदिर मामले में एक मुखर पैरोकार थे. सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार 2019 में इसके निर्माण का रास्ता साफ कर दिया.
सांसद ने तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) की ओर से एक तेलुगु अखबार के खिलाफ भी याचिका दायर की थी, जिसने 2019 में दावा किया था कि टीटीडी ने अपनी वेबसाइट पर यीशु मसीह की एक तस्वीर प्रदर्शित की थी.
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‘कृष्ण मंदिर बनने का परिवार का सपना पूरा करने का इच्छुक एक राष्ट्रवादी’
माहेश्वरी कहते हैं कि उनका एक मिशन है, वह मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद की जगह कृष्ण मंदिर बनने का अपनी परदादी का सपना पूरा करना चाहते हैं.
यह तर्क देते हुए कि मस्जिद कृष्ण जन्मभूमि पर बनी है, उनकी जनहित याचिका में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग राडार तकनीक का उपयोग करके कोर्ट की निगरानी में विवादित ढांचे की उत्खनन की मांग की गई है.
यह पूछे जाने पर कि किस बात ने उन्हें इस मामले में एक जनहित याचिका का मसौदा तैयार करने के लिए प्रेरित किया, माहेश्वरी ने कहा कि वह एक कृष्ण भक्त हैं और उनके परिवार की जड़ें मथुरा से जुड़ी हैं.
उन्होंने कहा, ‘मेरी परदादी ने मुझे वही सब बताया जो उन्होंने केशवदेव मंदिर के इतिहास के बारे में क्या सुना था, कैसे औरंगजेब ने इसे तोड़ा और कैसे मस्जिद का निर्माण कराया. मैं बचपन में नियमित रूप से मथुरा जाता था और अपनी याचिका में मैंने इसका उल्लेख भी किया है. मैं यह जानने को बेचैन था कि यहां मस्जिद क्यों बनाई गई जबकि यहां कृष्ण का जन्म हुआ था. मेरी परदादी कहती थीं कि वह अपने जीवनकाल में मंदिर नहीं देख पाएंगी.’
इस मुद्दे पर जारी राजनीति के बारे में पूछे जाने पर- खासकर यूपी के भाजपा नेता और पूर्व डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की पिछले साल दिसंबर में की गई टिप्पणी के संदर्भ में, जिसमें उन्होंने कहा था कि काशी और अयोध्या में भव्य मंदिरों का निर्माण चल रहा था और अब मथुरा की बारी है- माहेश्वरी कहते हैं कि अभी तो काशी में ‘कुछ भी नहीं’ हुआ है.
उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि अभी काशी में कुछ नहीं हुआ है. केवल मस्जिद के ऊपर एक फ्लाईओवर बन जाने से कुछ नहीं होता है. साथ ही जोड़ा कि मथुरा उनके लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि कृष्ण का जन्म वहीं हुआ था. उन्होंने कहा, ‘कोई अपना जन्मस्थान नहीं बदल सकता. जहां तक राजनीति का सवाल है, तो मैं एक राष्ट्रवादी हूं और देश हित के लिए काम करने वालों का समर्थन करूंगा.’
यह पूछे जाने पर कि क्या इस विवाद से भारत के सामाजिक ताने-बाने को क्षति पहुंचने की आशंका है, जिसके प्रति राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सांसद मनोज कुमार झा ने संसद में आगाह किया है, माहेश्वरी ने इससे अलग राय जताई. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘कोई सामाजिक ताना-बाना नष्ट नहीं किया जा रहा. सामाजिक ताना-बाना तब टूटता है जब दो चीजें विपरीत दिशा में चल रही होती हैं. बाकी एक बहुत ही सामान्य नियम है कि आप सभी को संतुष्ट नहीं कर सकते.’
कानूनी नजरिया
श्री कृष्ण जन्मभूमि मामले में कानूनी रास्ता अपनाने वाले माहेश्वरी पहले व्यक्ति नहीं हैं.
इससे पूर्व, लखनऊ निवासी रंजना अग्निहोत्री और सात अन्य ने मथुरा जिला अदालत में एक मुकदमा दायर किया था. इसमें मस्जिद को हटाने और उस अदालती फैसले को निरस्त करने की मांग की गई थी जिसमें श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही ईदगाह प्रबंधन समिति के बीच भूमि सौदे की पुष्टि की गई थी.
याचिका में यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट, श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को बतौर प्रतिवादी नामित किया गया था, जिसे मथुरा की एक कोर्ट ने सितंबर 2020 में खारिज कर दिया था. याचिका खारिज किए जाने को जिला एवं सत्र अदालत में चुनौती दी गई, जिस पर 22 मार्च को सुनवाई होने थी.
जनवरी में मस्जिद का प्रबंधन संभालने वाली शाही ईदगाह की मैनेजमेंट ट्रस्ट कमेटी ने भी जिला अदालत में एक आवेदन दायर किया, जिसमें 13.37 एकड़ जमीन के स्वामित्व की मांग वाले दीवानी मुकदमे को खारिज किए जाने के खिलाफ दायर अपील को स्वीकारने पर आपत्ति जताई गई थी.
माहेश्वरी का कहना कि ट्रस्ट के लिए इस पर आपत्ति जताना स्वाभाविक था, लेकिन जमीन को ‘सही मालिक’ के पास जानी चाहिए. उन्होंने ‘इस क्रम में सुधार’ का आह्वान किया.
उन्होंने कहा, ‘हां, यह (सुधार किया जाना) आवश्यक है. मैं भगवान कृष्ण का भक्त हूं और उनकी शिक्षाएं बहुत व्यावहारिक हैं. अयोध्या मामले की तरह समानता होनी चाहिए. हम हिंसा में विश्वास नहीं करते, इसलिए कानूनी रास्ता अपना रहे हैं.’
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