नई दिल्ली: कलकत्ता हाईकोर्ट का कोर्ट रूम नंबर 17 वकीलों, याचिकाकर्ताओं, लॉ इंटर्न, मीडियाकर्मियों और यहां तक कि लोगों से खचाखच भरा रहता है, जो सुर्खियां बटोरने वाले जज न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय की एक झलक पाने के लिए इस तंग कोर्ट रूम में आते जाते रहते हैं.
पिछले दो सालों में, न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय पश्चिम बंगाल में एक घरेलू नाम बन गए हैं, जब उन्होंने अगस्त 2021 से पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में पोस्ट के बदले नकद घोटाले का आरोप लगाने वाली कई याचिकाएं उठाईं.
नवंबर 2021 से, हाईकोर्ट के जज ने कथित घोटाले की 10 सीबीआई जांच का आदेश दिया है और प्राथमिक विद्यालयों में भर्ती सहायक शिक्षकों, ग्रुप सी और ग्रुप डी की 1,200 से अधिक “अनियमित” नियुक्तियों को खत्म कर दिया.
इस सप्ताह की शुरुआत में, न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने अदालत के शेरिफ को एक वकील को गिरफ्तार करने का आदेश दिया, जो एक विधवा की पेंशन याचिका की सुनवाई के दौरान हंस रहा था. जज ने वकील को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया.
कलकत्ता हाईकोर्ट के बार एसोसिएशन ने मुख्य जज टी.एस. शिवगणन ने न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय की पीठ से सभी न्यायिक कार्य वापस लेने की मांग के साथ एक पत्र लिखा है. दिप्रिंट के पास पत्र की एक प्रति है.
इसके बाद, एचसी ने 18 दिसंबर को एक विशेष सुनवाई की जिसमें दो जजों की पीठ ने वकील प्रोसेनजीत मुखर्जी की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी.
हाईकोर्ट ने कहा, “न्याय प्रशासन एक धारा है जिसे साफ और स्वच्छ रखना होगा. इसे प्रदूषण रहित रखना होगा. न्याय प्रशासन कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो केवल बेंच से संबंधित है. इसका संबंध बार से भी है. बार जजों की भर्ती का प्रमुख आधार है. किसी भी वकील के आचरण पर उंगली नहीं उठानी चाहिए. मामले का संचालन करते समय वह कोर्ट के एक अधिकारी के रूप में काम करते हैं.”
इसमें आगे कहा गया, “यह अच्छी तरह से स्थापित है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए न्याय प्रशासन की शुद्धता बनाए रखना अदालतों का एकमात्र कार्य है.”
इसमें आगे कहा गया, “अदालत को न्याय के व्यवस्थित प्रशासन के लिए आवश्यक न्यायिक संयम और अनुशासन भी बनाए रखना चाहिए क्योंकि ये सभी इसकी प्रभावशीलता के लिए हैं. नम्रता हमारे जजों के अंदर होनी चाहिए. निर्णय लेने की प्रक्रिया में यह जजों के लिए आदेश देने, सम्मान करने के लिए उतनी ही आवश्यक है जितनी न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए.”
यह पहली बार नहीं है जब जज को विरोध का सामना करना पड़ा है क्योंकि पिछले साल अप्रैल में टीएमसी समर्थक वकीलों ने 20 दिनों के लिए उनकी अदालत का बहिष्कार किया था और दूसरों को उनके अदालत कक्ष में प्रवेश करने से रोकने की कोशिश की थी.
ऐसी ही एक सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने तृणमूल कांग्रेस से कहा कि वह पार्टी का चुनाव चिह्न वापस लेने के लिए चुनाव आयोग को लिखे, लेकिन उन्होंने इस टिप्पणी को अपने आदेश की प्रति में शामिल नहीं किया.
मुख्य न्यायाधीश को शिकायत पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले बार एसोसिएशन के सचिव विश्वब्रत बसु मलिक ने कहा कि न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय की हरकतें गुमराह करने वाली हैं. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “कुछ वरिष्ठ वकील हैं जो न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय का मार्गदर्शन करते हैं और उनके द्वारा उन्हें गुमराह किया जा रहा है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि उनका राजनीतिक झुकाव वामपंथ की ओर है और शायद इसलिए कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है, वह अक्सर अपना आपा खो देते हैं.”
बार एसोसिएशन का कहना है कि जब तक जज माफी नहीं मांगेंगे तब तक बहिष्कार जारी रहेगा.
कोलकाता के हाजरा लॉ कॉलेज से स्नातक, न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय को 2018 में कलकत्ता हाईकोर्ट में अतिरिक्त जज के रूप में नियुक्त किया गया था. दो साल बाद उन्हें स्थायी जज बना दिया गया था.
पिछले साल अगस्त में, उन्होंने मीडिया को कैमरे पर कार्यवाही रिकॉर्ड करने की अनुमति दी, इससे बहुत पहले सुप्रीम कोर्ट ने लाइव स्ट्रीमिंग को हरी झंडी दे दी थी. इससे वकीलों में आक्रोश फैल गया और उन्होंने इस कार्रवाई को अदालत को ‘बाजार’ में तब्दील करने वाला करार दिया.
बीजेपी नेता और वकील प्रियंका टिबरेवाल ने दिप्रिंट को बताया कि जस्टिस गंगोपाध्याय तृणमूल कांग्रेस को आईना दिखाने के लिए उनके सॉफ्ट-टारगेट बन गए.
उन्होंने कहा, “जस्टिस गंगोपाध्याय निडर होकर काम कर रहे हैं और संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार आदेश पारित कर रहे हैं. लेकिन वह टीएमसी के लिए निशाना बन गए हैं और सिर्फ वह ही नहीं, जस्टिस अमृता सिन्हा, जस्टिस राजशेखर मंथा को भी टीएमसी का खामियाजा भुगतना पड़ा है.”
कथित शिक्षक भर्ती घोटाले में उनके आदेश के कारण ही ममता बनर्जी के करीबी सहयोगी और पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी हुई, जो अभी भी जेल में हैं. मई 2022 में न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने देर रात 10.30 बजे सुनवाई में सीबीआई को सबूतों से छेड़छाड़ से बचने के लिए दो घंटे के भीतर स्कूल सेवा आयोग कार्यालय को सील करने का आदेश दिया.
न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय पिछले सितंबर में एक टीवी इंटरव्यू के बाद विवादों में घिर गए थे, जिसमें उन्होंने भर्ती घोटाले की सुनवाई के दौरान अपने व्यक्तिगत विचार और पाठ्यक्रम साझा किए थे. इससे सत्तारूढ़ टीएमसी नाराज हो गई जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट का ध्यान इंटरव्यू की ओर गया.
इसके बाद, भारत के मुख्य जज ने अप्रैल में कलकत्ता हाईकोर्ट के तत्कालीन कार्यवाहक मुख्य जज को भर्ती मामले को तुरंत किसी अन्य पीठ को सौंपने का आदेश दिया.
न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय अगस्त 2024 में सेवानिवृत्त होने वाले हैं और वे कथित भर्ती घोटाले और पश्चिम बंगाल मदरसा आयोग द्वारा की गई नियुक्तियों से संबंधित मामलों की सुनवाई जारी रखेंगे, जिनमें राज्य सरकार प्रतिवादी है.
(संपादन: ऋषभ राज)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: मराठा कोटा पर चर्चा के लिए शिंदे बुलाएंगे विशेष सत्र, पाटिल ने विरोध प्रदर्शन फिर शुरू करने की दी धमकी