यह दिप्रिंट की तीन-पार्ट वाली सीरीज़ की तीसरी रिपोर्ट है. पहली और दूसरी रिपोर्ट यहां पढ़ें.
नई दिल्ली: बिना सुरक्षा वाले रनवे, धुंधले या भ्रमित करने वाले निशान, अनदेखे किए गए वाइल्डलाइफ खतरे, बेतरतीब उगी हुई घास-पौधों की झाड़ियां — ये सब कुछ वो निष्कर्ष हैं जो एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (AAIB) ने अपनी अंतिम जांच रिपोर्टों में बताए हैं. इनसे साफ झलकता है कि एयरपोर्ट मैनेजमेंट के हर स्तर पर और नियामक निगरानी में लगातार ज़िम्मेदारी की कमी और लापरवाही का पैटर्न मौजूद है.
अहमदाबाद में हुए एयर इंडिया क्रैश ने देश के एविएशन सेक्टर को सुर्खियों में ला दिया है. 12 जून को हुए इस हादसे में कम से कम 275 लोगों की मौत हुई थी. इसके बाद से एयरलाइन पर लगातार सवाल उठ रहे हैं, वहीं AAIB को भी आलोचना झेलनी पड़ी जब उसने अपनी शुरुआती रिपोर्ट जारी की.
दिप्रिंट की तीन-पार्ट वाली विश्लेषण सीरीज़ की आखिरी रिपोर्ट में हम देख रहे हैं कि 2012 से अब तक जारी AAIB की 68 अंतिम जांच रिपोर्टें सिस्टम की उन खामियों को सामने लाती हैं, जिन्हें अब तक हेडलाइंस में ज़्यादा जगह नहीं मिली.

जहां पार्ट 2 में यह दिखाया गया था कि AAIB ने अपनी 67 प्रतिशत अंतिम रिपोर्टों में हादसों के लिए पायलट की कार्रवाई को ज़िम्मेदार बताया है, वहीं पार्ट 1 में यह साफ हुआ था कि अलग-अलग ऑपरेटरों को ब्यूरो ने उनकी बार-बार दोहराई जाने वाली लापरवाही और प्रोटोकॉल उल्लंघन के लिए कठघरे में खड़ा किया है.
वॉचडॉग पर नज़र
AAIB की रिपोर्ट्स में एक बड़ा मुद्दा है AAIB और डीजीसीए के बीच टकराव. उदाहरण के लिए 2020 का एयर इंडिया एक्सप्रेस क्रैश लें. इस हादसे की जांच के दौरान डीजीसीए की डायरेक्टरेट ऑफ एयर सेफ्टी (डीएएस, जो डीजीसीए का एक स्पेशलाइज्ड डिवीज़न है, के अधिकारियों ने “जांच टीम से मिलने आने से ही मना कर दिया”.
यह मीटिंग इसलिए बुलाई गई थी ताकि डीजीसीए द्वारा दिए गए फ्लाइट ऑपरेशंस क्वालिटी एश्योरेंस मॉनिटरिंग (FOQA) से जुड़े डेटा की अस्पष्टताओं को साफ किया जा सके. यह सिस्टम सुरक्षा निगरानी के लिए फ़्लाइट डेटा इकट्ठा करता और उसका विश्लेषण करता है.
AAIB ने कहा, डीजीसीए का इस मीटिंग को छोड़ना एयरक्राफ्ट (इंवेस्टिगेशन ऑफ एक्सीडेंट्स एंड इंसीडेंट्स) रूल्स, 2017 का उल्लंघन था. इसके अलावा उसने यह भी बताया कि एविएशन वॉचडॉग यानी डीजीसीए का सिविल एविएशन रिक्वायरमेंट्स (सीएआर), जो डिजिटल फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (डीएफडीआर) डेटा की मॉनिटरिंग से जुड़ा है, उसमें “exceedance parameters (सीमाओं से ज़्यादा जाने वाले सुरक्षा स्तरों) के मूल्यों में अस्पष्टता” है.
AAIB ने यह भी लिखा कि 2010 के मैंगलोर क्रैश की जांच कर चुकी कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी (सीओआई) ने साफ सिफारिश की थी कि सीएआर में संशोधन कर इन अस्पष्टताओं को दूर किया जाए, लेकिन इसके बावजूद, 2017 में सीएआर में बदलाव किए गए तो भी “exceedance limits से जुड़ी कोई अस्पष्टता दूर नहीं हुई.”
2021 में आई अंतिम रिपोर्ट में यह भी दर्ज किया गया कि डीजीसीए क्रिटिकल एयरफ़ील्ड्स और रात के समय होने वाली फ्लाइट्स (red-eye flights) की निगरानी नहीं कर रहा था.
एयरक्राफ्ट हादसों और घटनाओं की प्रमुख जांच एजेंसी के तौर पर AAIB, डीजीसीए से अलग काम करता है. वहीं, डीजीसीए का काम है एविएशन नियमों और रेगुलेशंस का पालन करवाना.
एक और मामले में AAIB ने पाया कि “डीजीसीए ने ऑपरेटर के ऑपरेशंस मैनुअल को मंजूरी देने से पहले सीएआर के नियमों का ठीक से पालन नहीं किया.”
यह बात 2021 में हुई उस दुर्घटना की अंतिम रिपोर्ट में कही गई जिसमें मध्य प्रदेश डायरेक्टरेट ऑफ एविएशन (DoA) का विमान शामिल था. इसके अलावा एजेंसी ने यह भी लिखा कि DoA के accountable manager को मंजूरी दी गई, जबकि उनका एविएशन से कोई बैकग्राउंड ही नहीं था.
सेफ्टी मैटर्स फाउंडेशन के कैप्टन अमित सिंह ने कहा कि अब “पूरे सिस्टम को बदलने की ज़रूरत है ताकि आसमान में सुरक्षा सुनिश्चित हो सके.”
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “भारतीय एविएशन में ऑडिटर की ऑडिट कौन करता है? समय की मांग है कि एक बड़ा बदलाव हो, क्योंकि सुरक्षा संस्कृति अब पूरी तरह बिगड़ चुकी है. हर कोई बस अपने लिए काम कर रहा है, सुरक्षा की किसी को परवाह नहीं. पुरानी सिफारिशें भी दबा दी गई हैं.”
सिंह ने यह भी आरोप लगाया कि AAIB और डीजीसीए, दोनों ही नागरिक उड्डयन मंत्रालय को खुश करने के लिए काम करते हैं. “इनके साथ काम करने वाले कई लोग पहले एयरलाइन कंपनियों से आए हुए हैं और यह साफ तौर पर conflict of interest है. नियुक्तियां मंत्रालय से होती हैं, तो ऐसे में AAIB स्वतंत्र जांच कैसे करेगा? वे सब कुछ नौकरशाही तरीके से कर रहे हैं.”
सिंह ने आगे कहा, “एविएशन संस्थाओं में स्वतंत्र मानव संसाधनों की कमी है। किसी भी तरह के conflict of interest से बचाव के लिए कोई स्पष्ट सुरक्षा व्यवस्था नहीं है. डीजीसीए की आधी पोस्टें खाली पड़ी हैं.”
जुलाई में नागरिक उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू ने राज्यसभा को बताया था कि डीजीसीए की 410 रिक्तियों में से 190 इस साल भरी जाएंगी.
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बाउंड्री वॉल और गार्ड
दिसंबर 2015 में स्पाइसजेट की एक फ्लाइट, जिसमें 49 यात्री सवार थे, जबलपुर में लैंडिंग के दौरान जंगली सूअरों से टकरा गई. अपनी अंतिम रिपोर्ट में AAIB ने हादसे का कारण रनवे और ऑपरेशनल एरिया में वाइल्डलाइफ की मौजूदगी को बताया.
जांच में एयरफील्ड की पैरीमीटर वॉल में 20 जगह टूट-फूट और दीवारों के नीचे कई खाली हिस्से मिले. रिपोर्ट में लिखा गया, “ये खाली जगहें इतनी बड़ी थीं कि जंगली जानवर किसी भी समय एयरोड्रोम के अंदर आ सकते थे.”
जबलपुर एयरफील्ड और एयर ट्रैफिक कंट्रोल (एटीसी) का संचालन एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) के हाथ में है.

इसी तरह 2014 में भी एक घटना हुई थी जब स्पाइसजेट का विमान, जिसमें 151 यात्री थे, सूरत एयरपोर्ट पर रनवे पर खड़ी भैंस से टकरा गया. यहां भी AAIB को बाउंड्री वॉल में कई जगह दरारें और टूट-फूट मिलीं. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि AAI के नियमों के मुताबिक, पैरीमीटर और फेंस की रोज़ाना जांच होनी चाहिए, लेकिन कोई रिकॉर्ड नहीं रखा गया था.
ऐसा ही एक मामला कर्नाटक के जक्कूर एयरोड्रोम में 2022 में सामने आया, जब एक विमान को भारी नुकसान हुआ. AAIB की रिपोर्ट में लिखा गया, “टूटी हुई पैरीमीटर वॉल के पास का इलाका पूरी तरह सुरक्षित नहीं था” और यह भी कहा कि “ऑपरेशनल एरिया में जानवरों की आवाजाही एटीसी ने नोटिस ही नहीं की.”
इसके अलावा रिपोर्ट में यह भी दर्ज हुआ कि रनवे पर पक्षियों की गतिविधि थी और उसे रोकने के लिए कोई उपाय नहीं किया गया.
AAIB ने लिखा, “एयरफील्ड के नॉर्थ ईस्ट हिस्से में, रनवे 26 के बाईं ओर लगभग 144 मीटर का हिस्सा खुला है. इस खुले हिस्से पर एक सुरक्षा गार्ड तैनात है, लेकिन उसे सुरक्षित करने के लिए कांटेदार तार या फेंसिंग का कोई इंतज़ाम नहीं है. इसलिए ऑपरेशनल एरिया में आवारा जानवरों के आने से पैदा होने वाली खतरनाक स्थिति को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.”
यह एयरोड्रोम गवर्नमेंट फ्लाइंग ट्रेनिंग स्कूल (जीएफटीएस), कर्नाटक के स्वामित्व में है और एटीसी सेवाएं भी यही स्कूल प्रदान करता है.
गायब निशानियां और सीसीटीवी फुटेज
2021 में हुई एयर इंडिया एक्सप्रेस विमान दुर्घटना की रिपोर्ट में AAIB ने लिखा कि विजयवाड़ा एयरपोर्ट पर ऑपरेटर ने डीजीसीए द्वारा बार-बार बताए जाने के बावजूद, एयरोड्रोम मार्किंग्स पर कोई कार्रवाई नहीं की. विजयवाड़ा एयरपोर्ट का संचालन और प्रबंधन एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया करती है.
रिपोर्ट में पाया गया कि टैक्सीवे और एप्रन की मार्किंग्स मानक के अनुसार नहीं थीं. कुछ जगहों पर मिटाई गई टैक्सीवे मार्किंग्स सफेद रंग की थीं, जो टारमैक से मेल नहीं खाती थीं और अब भी दिख रही थीं. AAIB ने लिखा, “यह पायलटों के दिमाग में शक या भ्रम पैदा कर सकता है.”
एप्रन की मार्किंग्स धुंधली और उलझाने वाली थीं. रिपोर्ट में कहा गया, “अक्षर और अंक मानक आकार के अनुसार नहीं थे. जो मार्किंग्स अब उपयोग में नहीं थीं, उन्हें ठीक से मिटाया ही नहीं गया था या वे धुंधली रह गई थीं. पहले भी देखा गया है कि ऐसी अस्पष्ट या भ्रमित करने वाली मार्किंग्स पर पायलटों ने एटीसी को शिकायत की है.”
रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि एप्रन एरिया में एटीसी की निगरानी नहीं थी और एएआई द्वारा बनाए गए एयरोनॉटिकल चार्ट्स अपडेटेड नहीं पाए गए.
जून 2023 में भिवानी एयरोड्रोम (जो हरियाणा सरकार के स्वामित्व में है) पर एक Cessna 172S Skyhawk SP ट्रेनिंग फ्लाइट के दौरान रनवे से बाहर निकल गई और एक पेवर मशीन से टकरा गई. यह एयरोड्रोम FSTC Flying School Private Limited को लीज़ पर दिया गया है, जो डीजीसीए-अनुमोदित फ्लाइंग ट्रेनिंग ऑर्गनाइजेशन (एफटीओ) परमिट के तहत फ्लाइट ट्रेनिंग करता है.
अंतिम रिपोर्ट में दर्ज है कि रनवे के ऊपर लगे CCTV कैमरे नॉन-फंक्शनल थे, लेकिन इसकी जानकारी डीजीसीए को नहीं दी गई, जबकि डीजीसीए Flying Training Circular 1 of 2022 के तहत यह अनिवार्य था.
यह सर्कुलर आवेदन प्रक्रिया, इंस्ट्रक्टर की योग्यता और ट्रेनिंग कोर्सेज़ के सिलेबस जैसे पहलुओं को कवर करता है और यह बताता है कि किसी संगठन को रिमोट पायलट ट्रेनिंग प्रदान करने की अनुमति पाने के लिए क्या प्रक्रिया अपनानी होगी.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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