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Thursday, 12 December, 2024
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यहोवा के साक्षी कौन हैं, ईसाई समूह जिनकी प्रार्थना सभा पर केरल में बमबारी की गई थी

1986 में सुप्रीम कोर्ट ने तीन स्कूली छात्रों, जो यहोवा के साक्षी थे, के राष्ट्रगान न गाने के फैसले को बरकरार रखा, क्योंकि उनका मानना था कि यह उनके धार्मिक सिद्धांतों के खिलाफ था.

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नई दिल्ली: रविवार को केरल में कोच्चि के कलामासेरी इलाके में एक कन्वेंशन सेंटर में एक कम तीव्रता का विस्फोट हुआ, जिसमें ईसाई संप्रदाय – यहोवा के साक्षियों – के तीन दिवसीय कन्वेंशन को निशाना बनाया गया. इस विस्फोट को आतंकी हमले के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें कम से कम तीन लोगों की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए. हमले में घायल 50 लोगों को तत्काल इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया.

बताया जा रहा है कि जांचकर्ता घटना के कई पहलुओं पर जांच कर रहे हैं.

सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि कोच्चि ऐतिहासिक रूप से एक यहूदी केंद्र है और हो सकता है कि जो लोग वहां इकट्ठा हुए थे उन्हें गलती से यहूदी समझ लिया गया हो, या फिर जानबूझ कर उन्हीं पर हमला किया गया हो.

यहोवा के साक्षियों की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, कॉन्ग्रेगेशन या समूह 1905 से भारत में मौजूद है. इसके मुताबिक “साक्षियों को भारत के संविधान की गारंटी का लाभ मिलता है, जिसमें सभी को अपना धर्म मानने, उस पर आचरण करने और उसका प्रचार-प्रसार करने का अधिकार शामिल है.”

इसी वेबसाइट में कहा गया है कि दुनिया भर में 86 लाख से अधिक और भारत में 56,000 से अधिक यहोवा के साक्षी हैं.

जहां तक उनके आचरण की बात है, यह कहता है: “हम अपने सभी कार्यों को निःस्वार्थ प्रेम के साथ करने की कोशिश करते हैं. (यूहन्ना 13:34, 35) हम उन सभी कार्यों से बचते हैं जो ईश्वर को नाराज़ करती है, जिनमें खून लेने (ब्लड-ट्रांसफ्यूज़न) के ज़रिए खून का दुरुपयोग करना भी शामिल है. (ऐक्ट्स 15:28, 29; गैलेशियंस 5:19-21) हम शांतिपूर्ण हैं और युद्ध में भाग नहीं लेते हैं.”

इसमें कहा गया है कि जबकि हमारा समूह सरकार का सम्मान करती है और उसके कानूनों का पालन करती है, लेकिन हम ऐसा तब तक करते हैं “जब तक ये हमें भगवान के कानूनों की अवज्ञा करने के लिए नहीं कहते हैं.”

1986 में, सुप्रीम कोर्ट ने संप्रदाय से जुड़े एक ऐतिहासिक मामले पर विचार किया था. बिजो इमैनुएल और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य मामले में, शीर्ष अदालत ने स्कूली छात्रों, जो यहोवा के साक्षी थे, की राष्ट्रगान न गाने के विकल्प को बरकरार रखा, क्योंकि उनका मानना था कि यह उनके धार्मिक सिद्धांतों के खिलाफ है.

इस मामले में यहोवा के साक्षियों पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा? दिप्रिंट इस बारे में आपको बता रहा है.

तीन भाई बहन

सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष मामला तीन भाई-बहनों – बिजो, बीनू मोल और बिंदू इमैनुएल – द्वारा दायर किया गया था जो यहोवा के साक्षी थे.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, सुबह की सभा के दौरान जब राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ गाया जाता था तो तीनों बच्चे खड़े होते थे, लेकिन सम्मानपूर्वक साथ नहीं गाते थे. ऐसा इसलिए था क्योंकि उनका मानना था कि इसे गाना उनकी धार्मिक आस्था के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ है.

शीर्ष अदालत के अनुसार, उन्होंने वर्षों तक ऐसा किया जब तक कि जुलाई 1985 में “किसी देशभक्त व्यक्ति ने इस पर ध्यान नहीं दिया”. इसमें कहा गया है कि इन सज्जन को लगा कि बच्चों द्वारा राष्ट्रगान न गाना देश-विरोधी कार्य है. और यह व्यक्ति विधान सभा के सदस्य हुआ करते थे.

इसके बाद जुलाई 1985 में स्कूलों के उप निरीक्षक के निर्देशन में प्रधानाध्यापिका द्वारा बच्चों को उनके स्कूल से निकाल दिया गया. उनके माता-पिता ने इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी, जिसने अक्टूबर 1985 में उनके निष्कासन को बरकरार रखा. इसके बाद मामला शीर्ष अदालत में पहुंच गया.


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कौन हैं यहोवा के साक्षी?

सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में, बच्चों ने, अपने माता-पिता के माध्यम से, समझाया था, “जो छात्र साक्षी हैं, वे राष्ट्रगान नहीं गाते हैं, हालांकि वे ऐसे अवसरों पर राष्ट्रगान के प्रति अपना सम्मान दिखाने के लिए खड़े होते हैं. वे केवल अपने धर्म के प्रति दृढ़ विश्वास और आस्था के कारण इसे गाने से परहेज करते हैं क्योंकि उनका धर्म उन्हें अपने भगवान यहोवा की प्रार्थना के अलावा किसी भी प्रार्थना में शामिल होने की अनुमति नहीं देता है.”

इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला यहोवा के साक्षियों पर एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के उद्धरण से शुरू हुआ. एनसाइक्लोपीडिया कहता है, यहोवा के साक्षी “1870 की शुरुआत में चार्ल्स टेज़ रसेल द्वारा शुरू किए गए एपोकैलिप्टिक संप्रदाय के अनुयायी हैं.”

इसमें आगे बताया गया है, “साक्षी भी सिविल सोसायटी से अलग रहते हैं, वोट देने से इनकार करते हैं, सार्वजनिक पद की दौड़ में शामिल होते हैं, किसी भी सशस्त्र बल में सेवाएं देते हैं, झंडे को सलामी देते हैं, राष्ट्रगान के लिए खड़े होते हैं, या निष्ठा की शपथ लेते हैं. उनके धार्मिक रुख के कारण विभिन्न सरकारों के साथ टकराव हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप मुकदमा, भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसा, कारावास, यातना और मौत हुई है.

‘यहोवा, सर्वोच्च शासक’

1986 के फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने ‘एडिलेड कंपनी ऑफ जेहोवाज़ विटनेसेस बनाम द कॉमनवेल्थ’ मामले में ऑस्ट्रेलियाई उच्च न्यायालय के 1943 के फैसले का भी हवाला दिया. इस फैसले में कहा गया है कि “यहोवा के साक्षी पूरे ऑस्ट्रेलिया और अन्य जगहों पर व्यापक रूप से संगठित व्यक्तियों का एक संघ है जो बाइबिल की शाब्दिक व्याख्या को उचित धार्मिक मान्यताओं के लिए मौलिक मानते हैं.”

ऑस्ट्रेलियाई उच्च न्यायालय ने आगे कहा था कि “यहोवा के साक्षी मानते हैं कि ईश्वर, यहोवा, ब्रह्मांड का सर्वोच्च शासक है.”

शैतान या लुसिफर मूल रूप से ईश्वर की संस्था के भाग हैं और हर तरह से बेहतर मनुष्यों को को उसके अधीन रखा गया. उसने ईश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया और ईश्वर को चुनौती देने के लिए अपना खुद का संगठन स्थापित किया और उस संगठन के माध्यम से दुनिया पर शासन किया. वह संगठित राजनीतिक, धार्मिक और वित्तीय निकायों जैसी भौतिक एजेंसियों के माध्यम से दुनिया पर शासन और नियंत्रण करता है.

ऑस्ट्रेलियाई उच्च न्यायालय ने कहा, “उनका मानना है कि ईसा मसीह उन सभी मनुष्यों को मुक्ति दिलाने के लिए पृथ्वी पर आए थे जो स्वयं को पूरी तरह से ईश्वर की इच्छा और उद्देश्य की पूर्ति के लिए समर्पित कर देंगे और वह फिर से पृथ्वी पर आएंगे (उनका दूसरी बार आना पहले ही शुरू हो चुका है) और बुराई की सभी शक्तियों को उखाड़ फेंकेंगे.”

इसमें कहा गया है कि यहोवा के साक्षी पूरी तरह से ईश्वर के राज्य के प्रति समर्पित ईसाई हैं, जो कि “धर्मतंत्र” है, दुनिया के राजनीतिक मामलों में उनकी कोई भूमिका नहीं है और उन्हें राष्ट्रों के बीच युद्ध में किसी भी तरह से हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. उन्हें पूरी तरह से तटस्थ होना चाहिए, यह दावा किया गया, और कहा कि जब भी ईश्वर के नियमों और मनुष्य के कानूनों के बीच संघर्ष होता है, तो “ईसाइयों को हमेशा मनुष्य के कानून के बजाय ईश्वर के कानून का पालन करना चाहिए”.

क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने महसूस किया कि केरल उच्च न्यायालय ने “खुद को गलत दिशा में निर्देशित किया और गलत दिशा में चला गया”.

यहोवा के साक्षियों की मान्यताओं पर ध्यान देते हुए, अदालत ने कहा, “यह स्पष्ट है कि यहोवा के साक्षी, चाहे वे कहीं भी हों, धार्मिक विश्वास रखते हैं जो हमें अजीब या विचित्र भी लग सकते हैं, लेकिन उनकी मान्यताओं की ईमानदारी संदेह से परे है.”

इसके बाद पूछा गया, “क्या वे संविधान द्वारा संरक्षण पाने के हकदार हैं?”

सकारात्मक जवाब देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रगान के गायन में शामिल नहीं होने वाले बच्चों को स्कूल से निष्कासित करना, हालांकि वे राष्ट्रगान गाते समय सम्मानपूर्वक मौन खड़े थे, अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है.

अदालत ने यह भी कहा कि वह इस बात से संतुष्ट है कि तीन बच्चों को उनके “ईमानदारी से धार्मिक विश्वास” के लिए स्कूल से निष्कासित करना – राष्ट्रगान नहीं गाना लेकिन गाते समय सम्मानपूर्वक खड़ा होना – संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धर्म को मानना, आचरण करना और प्रचार करना और अंतरात्मा की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है.

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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