नई दिल्ली: मंगलवार, 24 दिसंबर को, पांच पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा इंडियन एयरलाइंस के विमान IC-814 के अपहरण के 20 साल हो गए. जिसका मकसद आतंकवादी मसूद अजहर, उमर शेख और मुश्ताक अहमद जरगर की रिहाई थी.
अपहरण और बाद में बंधक-मुक्ति की स्थिति एक सप्ताह तक चली जब तक कि भारत ने लगभग 170 यात्रियों के लिए तीन आतंकवादियों को रिहा करने पर सहमत नहीं हुआ.
IC-814 को 24 दिसंबर 1999 को हाईजैक कर लिया गया था, तब जब वह काठमांडू से दिल्ली के रास्ते पर था. जो अमृतसर और लाहौर में रुका, आखिर में अफगानिस्तान के कंधार में ठहरा.
इस मामले में सीबीआई ने 10 लोगों को आरोपित किया था, जिनमें से पांच अपहर्ताओं सहित सात को पाकिस्तान में मौजूद माना था.
कंधार अपहरण की 20वीं वर्षगांठ पर दिप्रिंट ने रिहा किए गए तीन आतंकवादियों- अजहर, शेख और जरगर की गतिविधियों का पता लगाया और पता चला कि वे अब भी भारत के सुरक्षा प्रतिष्ठान के लिए एक चुनौती हैं.
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मसूद अज़हर, जैश-ए-मोहम्मद
इस रिहाई के बाद मसूद अज़हर ने एक बार फिर से अपने आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद को एकजुट किया और उसके बाद एक के बाद एक भयानक हमले करने शुरू किए जिसमें भारतीय संसद पर दिसंबर 2201 में किया गया हमला भी शामिल था. उसके बाद मसूद ने 2008 मुंबई हमला किया और 2016 में पठानकोट एयर बेस पर.
जैश ने हालिया आतंकी हमला फरवरी 2019 में किया था, जब एक आत्मघाती हमलावर ने पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले में विस्फोटकों से भरे वाहन को टक्कर मार दी थी, जिसमें 40 कर्मी मारे गए थे.
अज़हर को कश्मीर से 1994 में गिरफ्तार किया गया था, ऐसा माना जाता है कि उसे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का समर्थन प्राप्त था. वह आईएसआई के लिए इतना महत्वपूर्ण माना जाता था कि कंधार अपहरण कांड से पहले भी उसे रिहा कराने के कई प्रयास किए गए थे. यहां तक की जुलाई 1995 में, अल-फ़रान, नामक एक कश्मीरी इस्लामी आतंकवादी समूह ने कश्मीर के पहलगाम से छह विदेशी पर्यटकों का अपहरण कर लिया था और पर्यटकों के बदले अजहर की रिहाई की मांग की थी.
इस साल, काफी मांग के बाद, संयुक्त राष्ट्र ने अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया. वर्तमान में, वह गंभीर गुर्दे की बीमारी से पीड़ित बताया जा रहा है और पाकिस्तान के एक सैन्य अस्पताल में उसका इलाज चल रहा है.
उमर शेख, हरकत-उल-अंसार
उमर शेख, संभवत: 2002 में वॉल स्ट्रीट जर्नल के रिपोर्टर पर्ल डेनियल का सिर कलम किया था जो कि अलकायदा के वित्तपोषण की जांच कर रहे थे.
आरोप है कि शेख ने इस्लामिक धर्मगुरु के साथ साक्षात्कार की व्यवस्था करने का वादा करके पर्ल को फंसाया और उसका अपहरण कर लिया. पर्ल पर एक अमेरिकी जासूस होने का आरोप भी लगाया गया था, और शेख ने पर्ल को रिहा करने की एवज़ में पाकिस्तानी सरकार से F-16 फाइटर जेट्स अमेरिकी शिपमेंट से जारी करने की मांग की थी.
शेख ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर पर्ल को नौ दिनों तक बंदी बना कर रखा था, जिसके बाद उनका सिर कलम कर दिया था.
यूके में जन्मा शेख लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स का छात्र था, जहां, माना जाता है कि वह कट्टरपंथी इस्लामवादियों के संपर्क में आया. ऐसा कहा जाता है कि बाद में उसने जैश-ए-मोहम्मद, अल-कायदा और यहां तक कि तालिबान सहित कई आतंकवादी संगठनों के साथ काम किया.
शेख को पहली बार अक्टूबर 1994 में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से गिरफ्तार किया गया था, जब उसने अजहर और हरकत-उल-मुजाहिदीन के प्रमुख कमांडर सज्जाद अफगानी की रिहाई की मांग करने के लिए चार पश्चिमी पर्यटकों का अपहरण कर लिया था.
हालांकि उसकी कोशिशें नाकाम कर दी गईं थी. शेख को गिरफ्तार कर लिया गया और बंधकों को मुक्त करा लिया गया था.
वर्तमान में, शेख, जिसे 12 फरवरी 2002 को लाहौर में गिरफ्तार किया गया था, पर्ल की मौत में उसकी भूमिका के लिए वह पाकिस्तानी जेल में है और उसे मौत की सजा सुनाई गई है.
मुश्ताक अहमद जरगर, अल-उमर मुजाहिद्दीन
मुश्ताक़ अहमद जरगर, जममू और कश्मीर लिबरेशन फ्रंट से जुड़ा है और वह 1992 से जेल में है.
खुफिया सूत्रों ने कहा कि 1999 में उसकी रिहाई के बाद, माना जाता है कि ज़रगर ने एलओसी के करीब मुजफ्फराबाद में अल-उमर मुज़ाहिदीन की गतिविधि को नए सिरे से शुरू किया था. सूत्रों ने यह भी कहा कि ज़रगर ने कश्मीर में ‘युद्ध’ के लिए युवाओं को भर्ती किया है और प्रशिक्षित किया है और माना जाता है कि वो स्लीपर सेल को नवीकृत करने के लिए काम कर रहा है.
ऐसा अंदेशा है कि जून 2019 में कश्मीर के अनंतनाग में हुए आतंकी हमले के पीछे उसी का हाथ है. पेट्रोलिंग पार्टी पर ग्रेनेड से किए गए हमले में पांच सीआरपीएफ के जवान मारे गए थे और अन्य तीन इसमें गंभीर रूप से घायल हुए थे.
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इसके साथ ही 2017 में ज़रगर पर आरोप है कि वह कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों पर ग्रेनेड से हमला करता रहा है.
उसने डेक्कन क्रॉनिकल को फोन करके कहा था, ‘मैं अल-उमर मुज़ाहिदीन प्रमुख मुश्ताक ज़रगर हूं. मैं डोडा (पूर्वी जम्मू क्षेत्र का एक जिला) में हूं और अपने संगठन और जैश-ए-मोहम्मद की ओर से आपसे बात कर रहा हूं. हमने एक साथ हमलों को अंजाम दिया और हम इस तरह के और हमलों की योजना बना रहे हैं. हमारा विश्वास है कि भारत केवल हिंसा की भाषा समझता है. मुसल्लाह जदुज़ुहद (सशस्त्र संघर्ष) ही एकमात्र रास्ता है, क्योंकि यह अकेले ही कब्जे वाली ताकतों को बाहर निकाल सकता है और हमारे कश्मीर को भारतीय से मुक्त कर सकता है.’
पेशे से तांबे का काम करने वाला जरगर, श्रीनगर में पला-बढ़ा और 1988 में हथियार चलाने का प्रशिक्षण पाने के लिए पाकिस्तान चला गया था. 1990 में, उसने जेकेएलएफ से अलग होकर अल-उमर मुजाहिदीन की स्थापना की, जो पाकिस्तान के साथ कश्मीर के विलय पर बल देता है.
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