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Saturday, 18 May, 2024
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‘छत्तीसगढ़ के विकास की जब-जब चर्चा होगी अजीत जोगी का नाम पहले लिया जाएगा’

छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी का 74 वर्ष की उम्र में रायपुर के श्रीनारायण अस्पताल में निधन हो गया. वो लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उनके बेटे अमित जोगी ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी.

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रायपुर: छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी हमेशा अपनी तेज तर्रार और कर्मठ राजनीति के लिए जाने जाते रहे हैं. मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रदेश के विकास के लिए रोडमैप तैयार करना हो या 2004 में भीषण सड़क हादसे से उबरकर अपनी राजनीतिक पारी को जारी रखना, ये उनकी कर्मठता को ही दिखाता है.

जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जोगी पार्टी के संस्थापक और लगभग 30 सालों तक कांग्रेसी रहे जोगी का 74 वर्ष की उम्र में आज 29 मई को निधन हो गया.

अजीत जोगी का जन्म 29 अप्रैल 1946 में प्रदेश के नवीनतम जिले गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में एक साधारण आदिवासी परिवार में हुआ था. आर्थिक तंगी के कारण जोगी को स्कूल भी खाली पैर जाना पड़ता था लेकिन मीडिया में उनके द्वारा स्वयं किए गए दावे के अनुसार उनके माता-पिता के ईसाई धर्म अपनाने के बाद उनकी शिक्षा में मदद मिली और वे अपनी आगे की पढ़ाई अच्छे से कर सके.

जोगी और भारतीय प्रशासनिक सेवा

जोगी शुरू से ही एक मेधावी छात्र थे. सन 1967 में भोपाल के मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, तत्कालीन आरईसी, से गोल्ड मैडल लेकर मेकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री उन्होंने पूरी की और फिर 1968 में प्रथम प्रयास में ही यूपीएससी की परीक्षा पास कर भारतीय पुलिस सेवा में चुने गए. दो साल बाद 1970 में जोगी आईएएस की परीक्षा पास कर भारतीय प्रशासनिक सेवा में आए.

अजीत जोगी के नाम देश में सबसे लंबे समय तक जिलाधीश रहने का भी रिकॉर्ड है. जोगी अकेले ऐसे आईएएस अफसर थे जिन्होंने 14 सालों तक लगातार कई जिलों में कलेक्टर के रूप में काम किया. हालांकि जोगी एक दूरदर्शी प्रशासनिक अधिकारी थे जिसे अपने राजनैतिक पारी का बोध आईएएस रहते होने लगा था.

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जोगी के परिवारिक मित्र रहे पूर्व प्रोफेसर सीपी कटियार के पुत्र सुधीर कटियार कहते हैं, ‘जोगी जब 1978 में रायपुर के कलेक्टर थे तब रविशंकर यूनिवर्सिटी के छात्र किसी मुद्दे पर एक बड़ा आंदोलन कर रहे थे लेकिन उनके साथ कृषि विश्वविद्यालय, चिकित्सा महाविद्यालय और रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों के साथ न आने से आंदोलन फेल होता दिख रहा था. इसके बाद जोगी की कलेक्टर रहते हुए मीटिंग जब छात्रों से हुई तब प्रदेश में पहली बार ऐसा हुआ की ये तीनों कॉलेजों ने भी आंदोलनरत छात्रों को अपना समर्थन दे दिया और फिर प्रदेश सरकार और यूनिवर्सिटी प्रशासन को छात्रों की मांगे माननी पड़ी.’


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जोगी के करीबी रहे धर्मजीत सिंह बताते हैं, ‘नौकरशाह के रूप में कलेक्टर और उससे पहले एडिशनल एसपी रहे जोगी एक बेहद कुशल प्रशासक रहे हैं. जहां भी रहें उन्हें उनकी कुशलता के लिए जाना गया. प्रशासनिक अधिकारी हमेशा उनकी कार्यशैली का अनुसरण करना चाहते हैं.’

1985 में राजनीति में आए

बतौर जिलाधीश लंबे समय तक कार्यरत जोगी तत्कालीन मध्य प्रदेश में कई दिग्गज नेताओं के नजदीक आए और इनमें से एक थे प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कभी भारतीय राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले अर्जुन सिंह. जोगी और सिंह का मध्य प्रदेश की राजनीति में नजदीक आना दोनों की आवश्यकताओं के अनुरूप था. इसकी शुरुआत उस समय हुई जब अजीत जोगी सीधी के कलेक्टर थे जो अर्जुन सिंह का गृह जिला था.

अर्जुन सिंह को यदि मध्य प्रदेश में उनके धुर राजनीतिक प्रतिद्वंदी विद्याचरण और श्यामाचरण शुक्ल बंधुओं के खिलाफ छत्तीसगढ़ क्षेत्र से एक मजबूत हाथ चाहिए था तो वहीं जोगी ने भी प्रदेश में उनके राजनैतिक वर्चस्व और कुशलता को देखते हुए उन्हें अपना गुरु बनाना गलत नहीं समझा. एक तरफ जोगी प्रशासनिक सेवा में रहते हुए अर्जुन सिंह से राजनीतिक दांव पेंच समझते रहे तो दूसरी तरफ उनकी कांग्रेस पार्टी के हाई कमान, गांधी परिवार के साथ भी नजदीकी बढ़ती चली गयी.

बतौर जोगी, जब वे इंदौर के कलेक्टर थे तब एक रात उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यालय से फोन आया कि वे प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा देकर कांग्रेस में शामिल हो जाएं और उन्हें इसका निर्णय लेने के लिए ढाई घंटे का समय दिया गया था. परिणाम स्वरूप जोगी ने सरकारी सेवा से इस्तीफा दिया और उसी मध्यरात्रि को तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दिग्विजय सिंह के साथ इंदौर से भोपाल जाकर पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली. उस समय मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह थे.

पार्टी में औपचारिक रूप से शामिल होने के बाद जोगी को राज्यसभा सदस्य बनाया गया और वे 1986 से 1998 तक लगातार राज्यसभा सदस्य रहे.

1998 में जोगी रायगढ़ से पहली बार लोकसभा सांसद चुने गए लेकिन 1999 के मध्यावर्ती लोकसभा चुनाव में जोगी शहडोल जिले से हार गए. इसके बाद 1998 से 2000 के बीच जोगी कांग्रेस के प्रवक्ता भी रहे.

जोगी बने छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री

छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बनने के बाद कांग्रेस हाईकमान द्वारा उन्हें प्रदेश के अंतरिम सरकार का नेतृत्व संभालने का जिम्मा सौंपा गया. जोगी को प्रदेश कांग्रेस में अर्जुन सिंह कैंप से नजदीकी और गांधी परिवार के करीबी होने के कारण, श्यामाचरण शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल और मोतीलाल वोरा की दावेदारी को कमजोर करने में कामयाबी मिली. मध्य प्रदेश से अलग होंने के बाद भी ज्यादातर विधायक अर्जुन और दिग्विजय कैम्प के समर्थक थे और ऐसे वक्त में जोगी को उनका समर्थन मिला.


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जोगी 2000 से 2003 के बीच राज्य के पहले मुख्यमंत्री रहे. सुधीर कटियार कहते हैं, ‘चाहे नए रायपुर की अवधारणा हो, या प्रदेश में बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर की सुविधाओं का विकास, जोगी सभी विषयों में पूरी पकड़ रखते थे.’

वो बताते हैं, ‘मै इस बात का साक्षी हूं की प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री बनने के बाद जब राज्य में एक नए क्रिकेट स्टेडियम के निर्माण की बात चली तब जोगी जी ने भारत में सबसे सुंदर माने जाने वाले मोहाली क्रिकेट स्टेडियम के आर्किटेक्ट को बुलवाया और उनसे आग्रह किया की रायपुर में उससे भी खूबसूरत और डेढ़ गुना ज्यादा बड़े स्टेडियम बनाने की कवायद शुरू की जाए.’

धर्मजीत सिंह कहते हैं, ‘जोगी जी बहुत ही दूर दृष्टि वाले नेता रहे हैं. हालांकि प्रदेश को चलाने के लिए उनको समय कम मिला लेकिन उन्होंने बड़े-बड़े निर्णय लिए. मुख्यमंत्री बनते ही 2000 में तात्कालीन एमपीईबी का विभाजन एक घंटे के अंदर कर दिया जिससे छत्तीसगढ़ की बिजली प्रदेश के लोगों को मिलने लगी. राज्य परिवहन जैसे घाटे के सरकारी उपक्रम को लाभकारी बना दिया.’

वो कहते हैं, ‘विधानसभा के अंदर जब वे बोलते थे तो पूरी विधानसभा उनको ध्यान से सुनती थी.’

हालांकि 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार के बाद प्रदेश में रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी. इसके बाद जोगी 2004 से 2008 के बीच 14वीं लोकसभा के सदस्य रहे.

जोगी ने 2008 में फिर एक बार अपने गृह क्षेत्र मरवाही सीट से विधानसभा में प्रवेश किया लेकिन अगले ही वर्ष 2009 में महासमुंद सीट से लोकसभा के लिए चुने गए. जोगी ने 2009 में महासमुंद से जीतने के बाद इस सीट को अपने लिए स्थाई रूप से विकसित करने का प्रयास किया लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में वे बीजेपी के चंदू लाल साहू से 133 वोट से हार गए.

‘पैडी और पावर्टी का चोली दामन का साथ’

प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार उचित शर्मा जिन्होंने अजीत जोगी की राजनीति और प्रशासनिक क्षमता बड़े करीब से देखी है, वो कहते हैं, ‘अजीत प्रमोद जोगी अच्छी तरह जानते थे कि किसान ही छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी ताकत है. यही वजह रही कि उन्होंने सीएम की कुर्सी संभालते ही किसानों की आय बढ़ाने के लिए उन्हें फसल चक्र परिवर्तन करने के लिए प्रेरित किया.

शर्मा के अनुसार जोगी का स्लोगन था ‘पैडी और पावर्टी का चोली दामन का साथ है.’ वो कहते हैं, ‘जोगी सरकार ने फसल चक्र परिवर्तन योजना चलाई जिससे धान के साथ दलहन, तिलहन की पैदावार से किसानों की आमदनी बढ़ी. उन्होंने छोटे किसानों और सब्जी उत्पादक किसानों को सिंचाई की कोई परेशानी ना हो इसके लिए ‘जोगी डबरी’ योजना चलाई ताकि वो साल भर आसानी से फसल की सिंचाई कर सकें.’

धर्मजीत सिंह कहते हैं, ‘जोगी ने गरीबी से जीवन यात्रा शुरू करके बुलंदियों को छुआ है. जहां पर भी रहे गरीबों के लिए काम किया और छत्तीसगढ़ के हितों को सर्वोपरि रखा. यह प्रदेश उन्हें विकास के मार्गदर्शक के रूप में याद रखेगा. जब-जब छत्तीसगढ़ के विकास की चर्चा होगी अजीत जोगी का नाम पहले लिया जाएगा.’

रोचक था 2014 का महासमुंद लोकसभा चुनाव

भाजपा के चंदू लाल साहू के अलावा इसी नाम से 11 अन्य प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे थे. ऐसा माना जा रहा था कि एक ही नाम के प्रत्याशियों का इतनी बड़ी संख्या में चुनाव मैदान में आना भाजपा के चंदू लाल साहू को हराने के लिए किया गया था. लेकिन फिर भी अजीत जोगी भाजपा प्रत्याशी से 133 वोटों से चुनाव हार गए.

टेप कांड और कांग्रेस से निष्कासन

जोगी के 2014 लोकसभा चुनाव के हार के बाद उनके नेतृत्व के लिए इसी वर्ष प्रदेश में अंतागढ़ विधानसभा उपचुनाव के रूप में एक बड़ी चुनौती सामने आई. इस चुनाव में कांग्रेस ने मंतूराम पवार को प्रत्याशी बनाया था. पवार जोगी के काफी करीबी माने जाते थे लेकिन नाम वापसी के आखिरी दिन पवार ने पार्टी नेतृत्व को बिना बताए अपना नाम वापस ले लिया.

इसके बाद 2015 के आखिरी में एक टेप सामने आया जिसमे आरोप लगा कि अजीत जोगी, उनके बेटे अमित जोगी और पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के दामाद पुनीत गुप्ता को बात करते सुना गया. इस टेप में खरीद फरोख्त और पवार के द्वारा अपना नाम वापस लेने की बातें सामने आई थी. इस टेप के सामने आने के बाद छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने अमित जोगी को पार्टी से निष्कासित कर दिया और अजीत जोगी के निष्कासन के लिए कांग्रेस हाईकमान को अनुशंसा भेज दी गयी.

जोगी की नई पार्टी (जेसीसीजे) का गठन

हालांकि अंतागढ़ चुनाव मामले में कांग्रेस पार्टी ने जोगी को निष्कासित नहीं किया लेकिन बेटे के निष्कासन के बाद वे पार्टी के अंदर अलग थलग पड़ने लगे थे. जोगी के अपने खास समर्थक उनका साथ छोड़कर जाने लगे थे.

2016 में कांग्रेस से अलग होकर उन्होंने जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जोगी (जेसीसीजे) के नाम से एक नया राजनीतिक संगठन बनाया. उस समय प्रदेश में राजनीतिक विश्लेषकों और जानकारों द्वारा यह माना जाने लगा था कि जेसीसीजे कांग्रेस और भाजपा के एकाधिकार पर विराम लगाने का काम कर सकती है.

2016 में जेसीसीजे के गठन के बाद जोगी की पार्टी के लिए 2018 का विधानसभा चुनाव एक बड़ी परीक्षा के रूप में सामने आया. इस चुनाव में जोगी और मायावती ने जेसीसीजे और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन कर सबको चौंका दिया और बड़े-बड़े चुनावी समीकरणों में अपना नाम दर्ज कराने में सफल रहे. माना जा रहा था की यह गठबंधन छत्तीसगढ़ में कुछ उलटफेर करेगा लेकिन नतीजों से साफ हो गया कि 2018 में कांग्रेस पार्टी की आंधी थी.

जेसीसीजे का प्रदर्शन 5 सीट हासिल कर फ्लॉप शो बनकर रह गया. इन पांच में से जोगी खुद मरवाही सीट से और कोटा विधानसभा क्षेत्र से उनकी पत्नी रेणू जोगी विधायक हैं.

बेटी अनुषा ने की 2000 में आत्महत्या

साल 2000 में जोगी जब अपने मुख्यमंत्री बनने के समीकरण और उससे संबंधित ताना-बाना बुनने में लगे हुए थे तभी 12 मई को उनकी बेटी अनुषा जोगी की मौत की खबर ने पूरे परिवार को झकझोर कर रख दिया. उसकी मौत स्वाभाविक नहीं थी, उसने सुसाइड किया था.

अनुषा की आत्महत्या का रहस्य तो आज तक सही तरह से पता नहीं चला है लेकिन मीडिया की खबरों से यह जाहिर होता है कि उसने पिता से प्रेम विवाह के लिए अनुमति नहीं मिलने के कारण आत्महत्या की थी. जोगी के लिए यह एक विडंबना ही थी की जिस दिन अनुषा ने आत्महत्या की उस दिन जोगी इंदौर में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के आगमन की तैयारियों में जूट थे. अनुषा की मौत के बाद उसका शव ईसाई धर्म के रिवाज के तहत इंदौर के कब्रिस्तान में दफनाया गया था. बाद में छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बनने के बाद अजीत जोगी ने इंदौर कलेक्टर की इजाज़त लेकर अनुषा के शव को कब्रगाह से निकलवाकर अपने गृह क्षेत्र मरवाही में दोबारा दफनाया.

2004 की कार दुर्घटना में बाल-बाल बचे

प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद छत्तीसगढ़ में भाजपा का दबदबा काफी बढ़ चुका था लेकिन 2004 के लोकसभा चुनाव में अजीत जोगी को अपने ऊपर काफी भरोसा था कि वे कांग्रेस की वापसी कराने में कामयाब हो जाएंगे. इसी सोच के तहत जोगी एक के बाद एक ताबड़तोड़ चुनाव प्रचार करते रहे.


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ऐसे ही एक चुनावी रैली से वे लौट रहे थे तब उनकी गाड़ी रायपुर के ही पास मानपुर में एक पेड़ से टकराई और वे बुरी तरह घायल हो गए. इस दुर्घटना में जोगी बच तो गए लेकिन घायल इस कदर हुए कि उनके दोनों पैर निःशक्त हो गए. कई महीनों तक इंग्लैंड में भी इलाज चला लेकिन इसके बाद भी जोगी अपने पैरों पर दोबारा चल नहीं पाए. बाद में न्यूजीलैंड में निर्मित रोबोटिक पैरों का भी सहारा लिया गया लेकिन उससे भी मदद नहीं हो पायी.

सिंह ने बताया, ‘सोलह साल पहले वे एक दुर्घटना में दिव्यांग हुए लेकिन उन्होंने अपनी शारीरिक कमजोरी को अपने ऊपर कभी हावी होने नही दिया. उन परिस्थितियों में भी काफी दौरे करते रहे और मैंने इस वक्त भी उनके जैसे दौरे करने वाला नेता नही देखा.’

अजीत जोगी और उनकी विवादित जाति

अजीत जोगी की जाति का विवाद सदा उनकी राजनीति के साथ चलता रहा है. यह मामला 2001 में जोगी के आदिवासी सुरक्षित विधानसभा सीट मरवाही से उपचुनाव जीतने के बाद ज्यादा गरमाया. एक आदिवासी नेता संत कुमार नेताम द्वारा राष्ट्रीय आदिम जनजाति आयोग में जोगी की जाति के दावे को चुनौती दी जिसके बाद आयोग ने पूर्व मुख्यमंत्री को नोटिस भेजा. इसके जवाब में जोगी ने हाइकोर्ट में आयोग के नोटिस के खिलाफ याचिका लगाई. छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में आयोग के नोटिस को गलत ठहराया और निर्णय दिया कि आयोग उनकी जाति की जांच नही कर सकता.

हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद छत्तीसगढ़ के पूर्व विधानसभ उपाध्यक्ष और भाजपा नेता बनवारीलाल अग्रवाल ने 2002 में जोगी की जाति को चुनौती देते हुए एक याचिका बिलासपुर हाइकोर्ट में दायर की थी. लेकिन हाई कोर्ट ने अग्रवाल की याचिका को बिना कोई कारण बताए सुनवाई करने से इनकार कर दिया था. इसके बाद मामला राजनीतिक रंग में रंगने लगा और कांग्रेस भाजपा के बीच यह विवाद हमेशा ही जीवित रहा.

जोगी की जाति के मुद्दे में एक नया मोड़ 2013 में आया जब हाई कोर्ट ने एक अन्य याचिका पर सरकार से जोगी के जाति संबंधित 1967 के बाद के सभी दस्तावेज जमा करने को कहा.

इसके साथ ही दूसरी तरफ संत कुमार नेताम ने 2011 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और जोगी के खिलाफ फिर याचिका दाखिल की. उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को आदेश दिया की इसकी जांच एक उच्च स्तरीय समिति से कराए. न्यायालय के आदेश के बाद सरकार द्वारा गठित समिति ने अपनी जांच रिपोर्ट 2017 में दी. इस रिपोर्ट में समिति ने जोगी के आदिवासी होने के साक्ष्यों की कमी का हवाला देते हुए उनके आदिवासी होने के दावे को खारिज कर दिया.

समिति की रिपोर्ट को जोगी ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में चुनौती दी. जोगी की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को एक बार फिर दूसरी उच्च स्तरीय समिति से जांच कराने के आदेश दिए. राज्य सरकार ने फिर एक समिति बनाई जिसने अपनी रिपोर्ट सितंबर 2019 में जमा की. इस रिपोर्ट में भी समिति ने जोगी को आदिवासी मानने से इनकार कर दिया. समिति के 2019 में आयी इस रिपोर्ट के बाद जोगी की मरवाही विधानसभा क्षेत्र से वर्तमान विधायकी भी खतरे में पड़ गयी है. हालांकि जोगी ने समिति के फैसले के खिलाफ फिर से उच्च न्यायालय में याचिका लगाई है जिसकी सुनवाई जारी है.

उनकी पार्टी जेसीसीजे की लगातार असफलताओं के बाद अजीत जोगी की जनता के बीच राजनीतिक पैठ कम होने लगी थी. हालांकि राज्य में राजनीतिक विश्लेषक जोगी की पिछड़ी जातियों में पकड़ का लोहा आज भी मानते हैं लेकिन वे मानते हैं कि कांग्रेस के 15 साल बाद सत्ता में आने के बाद जोगी से अब उनके समर्थकों ने ही दूरी बना ली है.

राजनीतिक प्रासंगिकता को बनाये रखने के लिए जोगी ने राजनीतिक बयानबाजी में किसी प्रकार की कमी नहीं की. हाल ही में जोगी ने केंद्र सरकार से अपील की था कि जिस तरह विदेशों में फंसे भारतीयों को वापस लाने की व्यवस्था बनाई जा रही है उसी तरह देश के अन्य हिस्सों में फंसे मजदूरों के लिए भी हवाई सेवा मुहैया कराई जाए.

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