scorecardresearch
Thursday, 31 October, 2024
होमदेशविकिपीडिया पर जब अन्य भारतीय भाषाओं में यूजर 'कोविड' और 'ग्रंथ साहिब' खोज रहे थे, तब भोजपुरी पाठक ‘बुर’ तलाश रहे थे

विकिपीडिया पर जब अन्य भारतीय भाषाओं में यूजर ‘कोविड’ और ‘ग्रंथ साहिब’ खोज रहे थे, तब भोजपुरी पाठक ‘बुर’ तलाश रहे थे

दिप्रिंट ने हालिया एनालिसिस जिसमें भोजपुरी विकिपीडिया में शीर्ष के खोज में महिला के जननांग 'बुर' का खुलासा किया गया है के विषय में विशेषज्ञों से बातचीत की. बात में पता चल की भोजपुरी गीतों में तेजी से फैलती अशलीलता सबसे बड़ी चिंता का विषय है.

Text Size:

नई दिल्ली: हाल में लाइव मिंट पोर्टल ने भारतीय भाषाओं में सबसे ज्यादा व्यूड पेजों का तुलनात्मक अध्ययन किया. और कुछ रोचक तत्व सामने आए.

इसके अनुसार हिंदी यूजर्स ने कोरोना के बारे में पढ़ा, पंजाबी यूजर्स ने गुरुग्रंथ साहिब के बारे में, मराठी यूजर्स ने छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में पढ़ा तो भोजपुरी यूजर्स ने ‘बुर’ (वजाइना) शब्द को खोजा.

‘बुर’ का इंग्लिश मतलब है वजाइना यानि महिलाओं का जननांग. भोजपुरी विकिपीडिया पर बुर शब्द के लिए बना पेज, वजाइना की बॉयोलॉजिकल तरीके से व्याख्या करता है.

इस रिपोर्ट में जनवरी 2020 से लेकर जुलाई 2020 तक 14 भारतीय भाषाओं का अध्ययन किया गया है. इस रिपोर्ट में विकीमीडिया स्टैटस्टिक्स को आधार बनाया गया है.

इन आंकड़ों के हिसाब से जब मार्च और अप्रैल महीनों में कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को अपनी गिरफ्त में लिया तब भी भोजपुरी विकिपीडिया पर ‘बुर’ शब्द (महिला के जननांग का स्थानीय शब्द) का पेज ही टॉप पर था.

हालांकि, अप्रैल महीने में मॉब लिंचिंग के बारे में भी खोजा गया. अगर बात दिसंबर 2015 से लेकर अगस्त 2020 तक के दौरान की करें तो अक्टूबर 2017 के बाद से ही लगातार ‘बुर’ पेज कभी पहले, दूसरे और कभी तीसरे नंबर पर रहा.

लाइव मिंट ने अपने एनालिसिस में पाया कि तमिल, असमिया, ओडिया और कन्नड़ पाठकों ने अपनी संबंधित भाषाओं और साहित्य के बारे में जानने की ऑनलाइन कोशिश की.

बता दें कि भोजपुरी में अश्लील और बेहूदा कंटेट काफी तेज़ी से बढ़ रहा है. भोजपुरी उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों और पश्चिमी बिहार में मुख्य रूप से बोली जाने वाली भाषा है जिसे करीब देश में पांच करोड़ से अधिक लोग बोलते हैं.

इस ट्रेंड के बारे में विशेषज्ञ बताते हैं कि इसकी बहुत बड़ी वजह माइग्रेशन है और ये देखा गया कि संभ्रांत और पढ़े-लिखे वर्ग ने शहरों की तरफ रुख कर लिया और सेक्सुअलिटी जैसा विषय समाज में वर्जित बना रहा.

मनोचिकित्सक इस बारे में कहते हैं, इंटरनेट आपको अनोनिमिटी प्रदान करता है. सेक्सुआलिटी को जितना सप्रेस्ड किया जाता है वो उतना ही ज्यादा दूसरे तरीकों से सामने निकल कर आती है.


यह भी पढ़ें: सलमान, चीन, कोरोना को पीछे छोड़ भोजपुरी गायकों ने अब रिया चक्रवर्ती को बनाया अपने घटिया शब्दों का शिकार


‘इसकी कई वजहें हैं’

लाइव मिंट की एनालिसिस 14 भारतीय भाषाओं पर केंद्रित है जिसपर विकिपीडिया सामग्री प्रदान करता है. भोजपुरी विकिपीडिया पेज पर ‘बुर’ को सात महीनों में 1.9 लाख बार देखा गया. इसमें महिला के जननांग के बार में खासतौर पर बायोलॉजिकिल बातें लिखी गई हैं. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यह पेज भोजपुरी विकिपीडिया का 1.5 फीसदी देखा गया.

हालांकि, जब दिप्रिंट ने विकिपीडिया को खुद से एक्सेस किया, वही पोर्टल जो विकिपीडिया के उपयोग से संबंधित आंकड़ों को प्रदर्शित करता है, तो पाया कि यह पेज अक्टूबर 2017 से वेबसाइट के भोजपुरी सेक्शन पर देखे गए शीर्ष तीन प्रविष्टियों में से एक है. कोविड-19 महामारी के काल में भी यह पेज मज़बूती से अपनी जगह पर कायम रहा.

इस दौरान शीर्ष दस में सबसे अधिक खोजा जाने वाला शब्द ‘सेक्सुअल पोजिशन’ था. वहीं अन्य खोजों में दूसरे स्थान पर ‘मॉब लिंचिग’ रहा. यह अप्रैल में सबसे अधिक खोजा गया जबकि गेम ‘पबजी’ जुलाई में की गई खोजों में सबसे ऊपर रहा और इसने तीसरे स्थान पर अपनी जगह बनाई.

पिछले दिनों भोजपुरी म्यूजिकल इंडस्ट्री बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती और आलिया भट्ट को लेकर रेप सॉन्गस बनाने की वजह से चर्चा में आई थी. इस पर राष्ट्रीय महिला आयोग ने संज्ञान लेते हुए कहा था कि इस तरह के गाने बनाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो.

प्रोजेक्ट विकिपीडिया स्वास्थ्य के डायरेक्टर अभिषेक सूर्यवंशी दिप्रिंट को बताते हैं, ‘किसी भाषा के लोग क्या शब्द गूगल पर सर्च करते हैं ये कई फैक्टर्स पर निर्भर करता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘गूगल के बाद वो विकिपीडिया के पेज पर पहुंचते हैं. अगर कोई घटना हुई है तो लोग उसके बारे में आमतौर पर सर्च करते हैं. उदाहरण के लिए बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत का केस. भोजपुरी यूजर्स ना सिर्फ सुशांत सिंह के बारे में बल्कि रिया चक्रवर्ती के बारे में खोज रहे थे.’

वो आगे कहते हैं, ‘इसके अलावा कई सोशल फैक्टर भी काम करते हैं. सबसे ज्यादा पॉप कल्चर प्रभावित करता है. अगर कोई गाना वायरल हुआ तो उस गाने का कोई पर्टिकुलर शब्द लोग खोजते हुए विकिपीडिया पेज पर पहुंच जाते हैं.’

इससे कुछ दिन पहले कोरोनावायरस, चीन और होली को लेकर भी बनाए गए गानों को लेकर काफी कुछ लिखा गया था. इन गानों के लिरिक्स महिलाओं के जननांगों और उससे मिलते जुलते शब्दों जैसे घाघरा और चोली से करंट मुद्दों को जोड़कर लिखे जाते हैं. इन गानों में कई बार गूगल पर ट्रेंड हो रहे की-वर्ड्स को ही केंद्र में बनाकर गाने बना दिए जाते हैं.


यह भी पढ़ें: जब गालियां रेवेन्यू जनरेट करेंगी, तो भारत को ‘हिंदुस्तानी भाऊ’ जैसा आइकॉन मिलेगा


पॉप कल्चर: म्यूजिक इंडस्ट्री

बिहार से ताल्लुक रखने वाले राष्ट्रीय पुरुस्कार विजेता फिल्म मेकर नितिन चंद्र भोजपुरी पॉप कल्चर पर बात करते हुए कहते हैं, ‘पिछले दस साल में भोजपुरी भाषा में क्या बनाया जा रहा है वो पॉप कल्चर के बारे में काफी कुछ कहता है. बिहार में बहुत बड़े पैमाने पर माइग्रेशन हुआ है. जो संभ्रांत वर्ग है वो भोजपुरी को लेकर गंभीर नहीं रहा. पढ़े-लिखे लोग शहरों में आ गए.’

‘भोजपुरी किस वर्ग के पास रह गई? शोषित या अंडरप्रिवलेज्ड लोगों के पास. जो सुनने वाले रहे वो भी अंडरप्रिवलेज्ड ही रहे. भोजपुरी के स्टार भी शोषित वर्ग से ही निकले. उनको विलेन की बजाए भोजपुरी के पतन में विक्टिम के तौर पर देखा जाना चाहिए.’

वो आगे कहते हैं, ‘अगर भोजपुरी यूजर एक खास शब्द को गूगल कर रहे हैं तो ध्यान दीजिए कि यूट्यूब पर भोजपुरी गानों के टाइटल क्या हैं? हर साल सैंकड़ों गाने आते हैं कि इससे गंदा गाना नहीं सुना होगा. यूट्यूब के बाजार ने इस कॉम्पिटिशन को एक्सप्लोयट किया.’

उन्होंने कहा, ‘ये गाने कॉमन मेन की साइकी पर क्या असर छोड़ते होंगे ये मनोचिकित्सक ही बता पाएंगे.’

दिल्ली के ऑल इंडिया इन्स्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (एम्स) के डॉक्टर श्रीनिवास राजकुमार (एमडी) का इसपर कहना है, ‘सोशल फैक्टर्स तो इसमें महत्वपूर्ण होते ही हैं साथ ही फर्स्ट टाइम इंटरनेट यूजर के लिए गूगल या कोई भी सर्च इंजन एक तरह से गिल्ट फ्री स्पेस होता है. आपकी पहचान किसी को पता नहीं चलती. ऐसे में सेक्सुअली सप्रेस्ड सोसायटी में सबसे पहले लोग उसी से जुड़ी चीजें खोजते हैं. ‘

एम्स में ही कार्यरत क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट वंदना चौधरी, डॉक्टर श्रीनिवास की बात को आगे बढ़ाते हुए कहती हैं, ‘इंटरनेट पर वजाइना के बारे में सर्च करना और आम जन जीवन में उसके इर्द गिर्द बात करना, दोनों में काफी अंतर है.’

सात सालों से मनोचिकित्सा के क्षेत्र में काम कर रही वंदना आगे कहती हैं, ‘इंटरनेट आपको अनोनिमिटी प्रदान करता है. सेक्सुअलिटी को जितनी सप्रेस्ड किया जाता है वो उतना ही ज्यादा दूसरे तरीकों से सामने निकल कर आती है.’

इन आंकड़ों को सेक्सुअलिटी से जोड़कर देखा जाए या फिर पोर्नोग्राफी से? इस सवाल पर एम्स के दोनों ही डॉक्टर कहते हैं कि इस तरह की कोई रिसर्च आई नहीं है. हां, अगर आंकड़ों में ऐज और जेंडर के बारे में भी बताया जाए तो कुछ चीजों का पैटर्न समझ आ सकता है.

लेकिन विकिपीडिया के अभिषेक सूर्यवंशी के मुताबिक विकिपीडिया इस तरह की जानकारी इकट्ठा नहीं करता है. ऐसे में इन डेटा को महिला और पुरुष की कैटेगरी के हिसाब से अनालिसिस नहीं किया जा सकता.


यह भी पढ़ें: सुशांत सिंह राजपूत और बिहारी परिवारों में ‘श्रवण कुमार’ जैसा बनने का बोझ


इंटरनेट में लैंगिक असामानता

हालांकि, इंडस्ट्री एसोसिएशन आईएएमएआई की 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक 451 मिलियन इंटरनेट यूज़र्स में जेंडर गैप काफी ज़्यादा है. राष्ट्रीय स्तर पर 67% पुरुष और 33% औरतें हैं. लेकिन ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की बात करें तो शहरों में 62% और 38% हैं तो गांवों में ये 72% और 28% है.

हाल ही में हिंदी बेल्ट में गैंग रेप और उसके बाद उस घटना के वीडियो को रिकॉर्ड कर इंटरनेट और व्हॉटसएप पर फैलाने का चलन बढ़ा है. पिछले पखवाड़ें में बिहार से कई वीडियो वायरल हुए जिसमें महिला के साथ सामूहिक बलात्कार  का वीडियो वायरल कराया गया.

वंदना इस पर कहती हैं, ‘इंटरनेट दो तरह से काम कर सकता है. एक आपकी जिज्ञासा को खत्म कर आपको सेटिस्फाई कर सकता है या आपको बेहद वॉयलेंट भी बना सकता है. इंटरनेट पर जो लोग वॉयलेंट पॉर्न कंटेंट देखने के आदि हो जाते हैं, उनके लिए वॉयलेंट ही नॉर्मल हो जाता है.’

भले ही सरकार ने 857 पोर्नसाइट्स पर प्रतिबंध लगा दिए हों लेकिन लोग पोर्न सामग्री के लिए वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क सेवा (वीपीएन), टोर ब्राउज़र या मिरर साइट्स का उपयोग कर रहे हैं. एडल्ट एंटरटेनमेंट साइट एक्सहैमस्टर द्वारा इकट्ठा किए गए आंकड़ों के अनुसार, भारतीयों ने कोविड-19 के लॉकडाउन के दौरान लगभग 20 प्रतिशत अधिक पोर्न देखना शुरू कर दिया.

वंदना इंटरनेट पर आए इस कंटेंट को लेकर एक टर्म भी बताती हैं- ‘डिजिटल हाईजीन.’ उनका मानना है, ‘कल्चर में अगर सीक्रेसी और सायलेंस ओवर सेक्सुअलिटी है तो इंटरनेट एक विंडो की तरह काम करता है. लेकिन सेक्स एजुकेशन के अभाव में इस तरह के ट्रेंड किस तरह देखे जाने चाहिए, इस बारे में कोई खास चर्चा अभी शुरू नहीं हुई है.’


यह भी पढ़ें: चोली-लहंगा, चाची-भाभी- भोजपुरी के होली गानों ने औरतों के खिलाफ जंग छेड़ रखी है


 

share & View comments

4 टिप्पणी

  1. Useless news
    Plz don’t print the useless new
    Bhojpuri cinema grow in bhagti song of bholay nath ji of khesari lal yadav

  2. महोदया, आप भी वही कर रही हैं। एक ही कीवर्ड का बार-बार इस्तेमाल बड़ी चतुराई से कर रही हैं ताकि इस शब्द को खोजनेवाले आपके साइट की ओर आ सकें। बड़ा ही घटिया तकनीक है यह। वैसे आपको बता दिया जाए कि आपके संपादक साहब का नाम भी इस शब्द का पर्यायवाची है. संभल कर रहिए उनसे. आपकी पत्रकारिता भी उसी राह पर है.

    आश्चर्य है कि आपने सर्च करनेवालों का डेमोग्राफिक विश्लेषण नहीं किया। ज़्यादातर कुंठित शांतिप्रिय होंगे.

    महोदया, इस कुंठित मानसिकता से बाहर निकलिए. बिहार के लोगों में शालीनता भी है. वह सबकुछ है जो दूसरों में है. बस निर्भर करता है कि आप ढूँढ क्या रही हैं।

  3. हद दर्जे की बेहूदगी का परिचय दिया है आपने, कम से कम आपसे ये उम्मीद तो न थी।

  4. प्रिंट के पत्रकार के तौर पे ज्योति जी के पास लिखने के लिए यही बच गया है। प्रिंट में अच्छे अच्छे लेख भी आते है लेकिन ज्योति जी के पास एक पत्रकार के तौर पे ज्ञान और विजन की कमी है जो उनके लेख के छिछलेपन से स्पष्ट जाहिर होता । मुझे उम्मीद है प्रिंट को उनसे अच्छे पत्रकार मिलेंगे।

Comments are closed.