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बुधवार, 25 जून, 2025
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आपातकाल के दौरान जब पुलिस ने गलती से प्रोफेसर के रसोइए को गिरफ्तार कर लिया

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(मोहित सैनी)

नयी दिल्ली, 25 जून (भाषा) आपातकाल के शुरुआती दिनों में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में छापेमारी के दौरान दिल्ली पुलिस ने यह सोचकर प्रमुख शिक्षाविद एवं पूर्व सांसद प्रोफेसर एमएल सोंधी के रसोइये को गलती से गिरफ्तार कर लिया था कि वह एक कथित राजनीतिक साजिश का हिस्सा है।

उस रात हिरासत में लिए गए इतिहासकार सोहेल हाशमी ने पीटीआई-भाषा के साथ साक्षात्कार के दौरान इस घटना को याद किया।

उन्होंने कहा, ‘‘आठ जुलाई 1975 को पुलिस ने उर्दू में लिखी नामों की सूची के साथ जेएनयू पर छापा मारा। छात्रावासों को पूरी तरह से घेर लिया गया था और सशस्त्र कर्मियों ने परिसर को सील कर दिया था।’’

गिरफ्तारी की आशंका के चलते सोंधी पहले ही दिल्ली छोड़ चुके थे, लेकिन उनके अधेड़ रसोइए को राजनीतिक तूफान के बारे में पता नहीं था और वह उनके घर पर ही रुका रहा।

हाशमी ने कहा, ‘‘जब पुलिस ने उसे उठाया तो वह अपना काम कर रहा था। उसे नहीं पता था कि उसे क्यों पकड़ा जा रहा है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘जब मैंने उसे थाने में देखा तो वह डर से कांप रहा था। मैंने अधिकारी से पूछा कि आपने उनके रसोइये को क्यों गिरफ्तार किया है, तब उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने बड़ी गलती की है।’’

हाशमी ने कहा कि छापेमारी इस फर्जी खुफिया सूचना के आधार पर की गई कि जेएनयू के छात्र सशस्त्र विद्रोह के लिए हथियार जमा कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘यह निराधार था। गिरफ्तार किए गए कुछ छात्र एमए में प्रवेश के लिए साक्षात्कार देने आए थे।’’

हाशमी और 13-14 अन्य लोगों को भारत रक्षा नियम (डीआईआर), 1969 के तहत गिरफ्तार किया गया था, जो सरकार के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में बिना मुकदमा चलाए हिरासत में रखने की अनुमति देता था।

उन्होंने कहा, ‘‘हमें तिहाड़ जेल भेज दिया गया और बाद में संसद मार्ग अदालत में पेश किया गया।’’

विश्वविद्यालय के अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद ही अधिकतर बंदियों को जमानत दी गई। हस्तक्षेप करने वाले इन अधिकारियों में हाशमी के शोध मार्गदर्शक, डीन और रजिस्ट्रार भी शामिल थे, जिन्होंने गवाही दी कि ऐसी कोई साजिश नहीं रची गई।

पच्चीस जून, 1975 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा घोषित आपातकाल को इस सप्ताह 50 साल हो गए हैं। यह 21 महीने तक चला, जिसके दौरान मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया, प्रेस की स्वतंत्रता को दबा दिया गया और हजारों राजनीतिक कार्यकर्ताओं, छात्रों, शिक्षाविदों तथा विपक्षी नेताओं को बिना किसी मुकदमे के जेल में डाल दिया गया।

हाशमी ने कहा, ‘‘जेएनयू ऐसा पहला शैक्षणिक संस्थान था जिसे इस तरह के प्रत्यक्ष दमन का सामना करना पड़ा। और इस छापेमारी में एक रसोइया भी राजनीतिक बंदी बन गया।’’

प्रोफेसर सोंधी 1967 में भारतीय जनसंघ के टिकट पर नयी दिल्ली से लोकसभा के लिए निर्वाचित किये गए थे और वह अपने तीखे, स्वतंत्र विचारों के लिए जाने जाते थे।

बाद में वह ‘इंडियन स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज’ (आईएसआईएस) में रीडर के रूप में शामिल हो गए और 1971 में आईएसआईएस के जेएनयू में विलय के बाद भी वहां पढ़ाते रहे।

भाषा नेत्रपाल रंजन

रंजन

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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