नयी दिल्ली, 16 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को उन याचिकाकर्ताओं को कड़ी फटकार लगाई, जिन्होंने दावा किया था कि महिलाओं और बच्चों सहित 43 रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमा निर्वासित करने के लिए अंडमान सागर में छोड़ दिया गया था।
शीर्ष अदालत ने कहा, “जब देश कठिन समय से गुजर रहा है, तो आप काल्पनिक विचारों के साथ सामने आ रहे हैं।”
न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मोहम्मद इस्माइल और अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से उसके समक्ष पेश सामग्री की प्रमाणिकता पर भी सवाल उठाया तथा रोहिंग्या शरणार्थियों के निर्वासन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्वेज से कहा, “जब देश कठिन समय से गुजर रहा है, तो आप ऐसे काल्पनिक विचारों के साथ सामने आ रहे हैं।”
उसने कहा कि याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सामग्री सोशल मीडिया से उठाई गई प्रतीत होती है और रोहिंग्या शरणार्थियों को समुद्र में छोड़कर यातना देने और निर्वासित करने के दावों को “महज आरोप” करार दिया।
न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने पूछा, “आरोपों को प्रमाणित करने वाली सामग्री कहां है?”
पीठ ने कहा कि निर्वासित रोहिंग्या शरणार्थियों और दिल्ली निवासी याचिकाकर्ता के बीच फोन पर हुई कथित बातचीत की रिकॉर्डिंग सत्यापित नहीं है।
न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने कहा, “क्या किसी ने इस बात को सत्यापित किया है कि फोन कॉल म्यांमा से आए थे? हमने एक मामले की सुनवाई की थी, जिसमें झारखंड के जामताड़ा से अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा के फोन नंबर से कॉल किए गए थे।”
गोंजाल्वेज ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि उसने भी इस मुद्दे का संज्ञान लिया है और मामले की जांच शुरू की है।
इस पर पीठ ने कहा, “बाहर बैठे लोग हमारे प्राधिकारियों और संप्रभुता को निर्देशित नहीं कर सकते।”
पीठ ने हालांकि, गोंजाल्वेज को याचिका की प्रति अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल के कार्यालय को सौंपने का निर्देश दिया, ताकि इसे सरकार में संबंधित प्राधिकारियों तक पहुंचाया जा सके।
उसने मामले की सुनवाई 31 जुलाई को तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध कर दी।
भाषा पारुल प्रशांत
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