scorecardresearch
शुक्रवार, 25 अप्रैल, 2025
होमदेशजब इब्राहिम अल्काजी केवल ‘बुशर्ट’ पहन कर पार्टी में पहुंच गए थे

जब इब्राहिम अल्काजी केवल ‘बुशर्ट’ पहन कर पार्टी में पहुंच गए थे

Text Size:

(नरेश कौशिक)

जयपुर, चार फरवरी (भाषा) आधुनिक भारतीय थियेटर के पितामह कहे जाने वाले और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक इब्राहिम अल्काजी को जीवन से इतना अधिक प्रेम था कि वह और सौ साल जीना चाहते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि थियेटर और कला की दुनिया में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार समेत तमाम अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित इब्राहिम अल्काजी की बेटी अमाल अल्लाना ने अपने पिता को याद करते हुए उनके जीवन से जुड़े कुछ अनजान पहलुओं को यहां जयपुर साहित्योत्सव (जेएलएफ) में साझा किया।

इब्राहिम अल्काजी 1962–77 तक एनएसडी के निदेशक रहे और उन्होंने इस संस्थान को नई दिशा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। नसीरूद्दीन शाह, नादिरा बब्बर और ओमपुरी जैसे तमाम दिग्गज अभिनेताओं के गुरू रहे अल्काजी ने थियेटर को पेशेवराना और तकनीकी आयाम प्रदान करने के साथ ही कई क्रांतिकारी बदलाव किए।

आर्ट हैरिटेज की निदेशक और अल्काजी फाउंडेशन की ट्रस्टी अमाल अल्लाना ने ‘‘इब्राहिम अल्काजी: होल्डिंग टाइम कैप्टिव’’ पुस्तक पर चर्चा के दौरान अपने पिता को याद करते हुए कहा कि यह किताब इब्राहिम अल्काजी को एक कलाकार और एक पिता के रूप में महान साबित करने के लिए नहीं है । उन्होंने कहा, ‘‘यह इब्राहिम अल्काजी को, वह बनते हुए देखने के सफर से जुड़ी यादों का दस्तावेज है, जो वह बने ।’’

अमाल का कहना था कि यह किताब लिखना उनके लिए बहुत ही भावनात्मक अनुभव था जिसमें उन्होंने सच के पक्ष में खड़े होना चुना। उन्होंने कहा कि इब्राहिम अल्काजी के जीवन में उमा आनंद नामक दूसरी महिला थीं और उनके बारे में लिखते हुए इब्राहिम अल्काजी के जीवन के इस पक्ष पर परदा डालना ठीक नहीं होता।

वह कहती हैं कि इस त्रिकोणीय संबंध को समझने के लिए उन्हें इसे अपनी मां रौशन अल्काजी के नजरिए से देखना पड़ा क्योंकि वह उन दोनों के संबंधों को इतनी गहराई से नहीं समझती थीं जितना अपने पिता और अपनी मां के संबंधों को जानती थीं।

रौशन अल्काजी की कला में आस्था प्रतिबद्धता की गहराई तक थी और उन्होंने बतौर कॉस्ट्यूम डिजाइनर इब्राहिम अल्काजी के साथ थियेटर को एक नई दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।

इब्राहिम और उमा आनंद के संबंधों पर कोई परदेदारी नहीं थी लेकिन अमाल अल्लाना कहती हैं कि उनके पिता का व्यक्तित्व ऐसा था कि उसने किसी को नैतिकता का ठेकेदार बनने की इजाजत नहीं दी।

‘‘इब्राहिम अल्काजी: होल्डिंग टाइम कैप्टिव’’के शीर्षक को लेकर किए गए एक सवाल के जवाब में अमाल अल्लाना ने बताया, ‘‘ कोविड महामारी के दौरान चार अगस्त 2020 को जिस दिन अल्काजी का निधन हुआ …. घर के सभी लोग उनके आसपास मौजूद थे। नाती पोते सब । मैं वहीं बैठी थी। अचानक कुछ जादू सा हुआ। मैंने पास ही रखी टेबल की ड्रार खोली और उसमें उनके हाथ का लिखा हुआ एक पुर्जा मिला । उम्र के कारण उनके हाथ कांपते थे तो लिखाई भी टेढ़ी मेढ़ी थी । उस पर लिखा था, ‘आई एम ट्राइंग टू होल्ड टाइम कैप्टिव।’’

उन्होंने कहा, ‘‘उन्हें जिंदगी से प्रेम था । वह और सौ साल जीना चाहते थे।’’

और यहीं से अमाल अल्लाना ने अपने पिता को लेकर लिखी जा रही किताब को ‘‘इब्राहिम अल्काजी: होल्डिंग टाइम कैप्टिव’’शीर्षक दिया।

उन्होंने अपने पिता से जुड़े संस्मरणों को साझा करते हुए बताया कि अल्काजी लोकतांत्रिक मूल्यों में गहन आस्था रखते थे लेकिन जब बात संस्थान(एनएसडी) के प्रबंधन की आती थी तो वह अपने आगे किसी की नहीं चलने देते थे । सबसे बड़ी बात है कि उनके लिए छात्रों का हित सर्वोपरि होता था।

अमाल अल्लाना ने किताब के एक बहुत ही गंभीर अध्याय से एक मनोरंजक किस्सा सुनाया जिससे पता चलता है कि इब्राहिम अल्काजी कितने विनोदी स्वभाव के थे और उन्हें कॉमेडी करना पसंद था। वह चुटकियों में किसी की भी नकल उतार देते थे। उन्होंने बताया कि किस प्रकार इब्राहिम अल्काजी एक दोस्त द्वारा दी गई पार्टी में केवल ‘बुशर्ट’ पहन कर चले गए थे ।

उन्होंने बताया कि मेजबान ने बड़ी ही अनौपचारिक पार्टी अपने घर पर रखी थी जिसमें प्रसिद्ध व पार्टी के लिए ड्रेस कोर्ड ‘ओनली बुशर्ट’ बताया था और अल्काजी केवल कमीज पहन कर पार्टी में जा पहुंचे। मेजबान उन्हें अपने मेहमानों से मिलवा रहे थे और मेहमानों की नजर सीधे उनके चेहरे से हटकर पैरों की ओर जा रही थी क्योंकि अल्काजी ने पतलून तो पहनी ही नहीं थी।

कला समीक्षक, कवि और सांस्कृतिक सिद्धांतकार और आर्ट क्यूरेटर रंजीत होसकोटे के साथ बातचीत में अमाल अल्लाना ने अपने पिता की आखिरी इच्छा का जिक्र करते हुए बताया कि अपने फोटो के विशाल आर्काइव को तैयार करना उनकी इच्छा भी थी और उपलब्धि भी। वह कहते थे कि इतिहास को चित्रों के माध्यम से ही जाना, जाना चाहिए। इसलिए उन्होंने इतना विशाल आर्काइव बनाया जो आज अभिलेखकों, मानव विज्ञानियों, शोधार्थियों की सक्रियता के साथ मदद कर रहा है।

भाषा नरेश नरेश प्रशांत

प्रशांत

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

share & View comments