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Friday, 22 November, 2024
होमदेशनीतीश के स्वास्थ्य विभाग ने जब लालू परिवार के 2017 के ‘कारनामे’ को दोहराते हुए घर में अस्पताल बनाया

नीतीश के स्वास्थ्य विभाग ने जब लालू परिवार के 2017 के ‘कारनामे’ को दोहराते हुए घर में अस्पताल बनाया

विवाद छिड़ने के बाद पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के अधीक्षक ने नीतीश की कोरोना संक्रमित भतीजी के इलाज के लिए मुख्यमंत्री निवास पर 6 डॉक्टरों और 3 पैरामेडिकल कर्मियों की तैनाती के आदेश को वापस लिया.

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पटना: बिहार में स्वास्थ्य की राजनीति घूम फिर कर पुरानी स्थिति में आ पहुंची है. जून 2017 में जब महागठबंधन की सरकार में स्वास्थ्य महकमा लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेज प्रताप के पास था तो बिहार के प्रमुख सरकारी अस्पतालों में से एक पटना के आईजीआईएमएस ने पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के 10 सर्कुलर रोड आवास पर चौबीसों घंटे तीन डॉक्टरों और दो पैरामेडिकल कर्मियों की टीम तैनात कर दी थी.

चिकित्सा टीम वहां राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव के स्वास्थ्य की निगरानी के लिए लगाई गई थी जो तब इतने बीमार थे कि वह चेन्नई में डीएमके द्वारा आयोजित एम करुणानिधि के जन्मदिन आयोजन में शामिल नहीं हो पाए थे. उस प्रकरण ने विपक्ष को विरोध का मौका दे दिया था और भाजपा ने उसे वीवीआईपी अहंकार का एक शर्मनाक उदाहरण करार दिया था. विरोध के बाद चिकित्सकों और पैरामेडिकल कर्मचारियों को वहां से हटा लिया गया था.

तीन साल बाद, अब शोर मचाने की बारी राजद की थी जिसने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर अपने सरकारी आवास पर एक विशेष कोविड अस्पताल स्थापित करने का आरोप लगाया.

दरअसल, राज्य सरकार ने कोविड पॉजिटिव पाई गई नीतीश की भतीजी के इलाज के वास्ते एक वेंटिलेटर समेत पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (पीएमसीएच) के छह डॉक्टरों और तीन पैरामेडिकल कर्मियों की टीम को मुख्यमंत्री के सरकारी आवास 1 अणे मार्ग पर तैनात किया था.

अस्पताल सूत्रों के अनुसार पीएमसीएच के अधीक्षक ने स्वास्थ्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मौखिक निर्देश पर कदम उठाते हुए चिकित्सकों की टीम की तैनाती का आदेश जारी किया था.

अस्पताल के इस फैसले पर राजनीतिक बवाल खड़ा हो गया. राजद नेता तेजस्वी यादव ने मंगलवार को इस बारे में कहा, ‘मुख्यमंत्री के लिए डॉक्टरों और वेंटिलेटरों के साथ एक अस्पताल स्थापित किया गया है. जबकि आम आदमी के लिए कोई डॉक्टर या नर्स उपलब्ध नहीं है. आम जनता के लिए स्थापित एकमात्र (कोविड) अस्पताल है एनएमसीएच, जहां जलभराव की स्थिति है.’

‘जब मुख्यमंत्री को कोविड-19 संक्रमण की आशंका हुई तो उनकी जांच का परिणाम 3 घंटे के भीतर आ गया. आम आदमी को जांच रिपोर्ट के लिए कई दिनों का इंतजार करना पड़ता है.’

राजनीतिक बवाल मचने के बाद पीएमसीएच के अधीक्षक ने अपने पुराने आदेश को रद्द करने के लिए एक नया आदेश निकाला और फिर मंगलवार की शाम मुख्यमंत्री निवास पर तैनात की गई चिकित्सा टीम को हटा लिया गया.

पहली जुलाई को विधान परिषद के नवनिर्वाचित नौ सदस्यों के शपथग्रहण समारोह में भाग लेने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके परिजनों का कोविड परीक्षण किया गया था. उस आयोजन में नीतीश बिहार विधान परिषद के कार्यकारी सभापति अवधेश नारायण सिंह के बगल में बैठे थे.

सिंह ने बाद में मुख्यमंत्री को फोन कर बताया कि वह और उनके परिवार के सदस्य कोविड पॉजिटिव पाए गए हैं, और सिंह 5 जुलाई को पटना एम्स अस्पताल में भर्ती हो गए.

मुख्यमंत्री के कार्यालय ने एक बयान में कहा है कि मुख्यमंत्री की भतीजी के अलावा उनके परिवार के किसी सदस्य या किसी कर्मचारी की कोरोना जांच पॉजिटिव नहीं आई है.


यह भी पढ़ें: कोविड-19 ने बिहार में भाजपा-जद(यू) का समीकरण बदला, नीतीश बैकफुट पर


कम संख्या में टेस्टिंग और बिहार में कोविड-19 की स्थिति

ताज़ा विवाद ऐसे समय में खड़ा हुआ है जब कुछ महीनों में राज्य में चुनाव होने हैं और उसमें नीतीश द्वारा महामारी से निपटने के मुद्दे छाये रहने की संभावना है.

बिहार में कोविड-19 मामलों में उछाल आया हुआ है. मंगलवार शाम तक राज्य में संक्रमण के कुल 12,426 मामले सामने आ चुके थे और 1,000 मामलों के साथ पटना जिला पॉजिटिव मामलों में सबसे आगे है. राज्य में 98 लोगों की कोविड-19 के कारण मौत हो चुकी है.

सिर्फ पिछले पांच दिनों में ही राज्य के विभिन्न हिस्सों से कोविड-19 के 2,500 नए मामले सामने आए हैं लेकिन राज्य में संक्रमण के मामलों में उछाल आने के बावजूद इसके लिए की जाने वाली जांच की दर बहुत कम है.

मंगलवार को संक्रमण के लिए मात्र 5,168 टेस्ट किए गए थे. राज्य में अब तक एक दिन में अधिकतम सिर्फ 6,800 टेस्ट किए जाने का रिकॉर्ड है. मंगलवार की शाम तक बिहार में कुल 2.6 लाख कोरोना टेस्ट किए गए थे.

कम टेस्टिंग की समस्या तब और गंभीर हो गई जब कुछेक जांच केंद्रों, जैसे पीएमसीएच स्थित एक केंद्र, में कर्मचारियों के पॉजिटिव पाए जाने के बाद काम रोकना पड़ गया. विशेषज्ञों का मानना है कि टेस्टिंग की संख्या बढ़ाए जाने पर कोविड संक्रमण के मामले में बिहार दिल्ली और महाराष्ट्र की पांत में आ सकता है.

सरकार को भी संभवत: इस बात का एहसास है कि स्थिति बेकाबू होती जा रही है.

मुख्य सचिव दीपक कुमार ने मंगलवार को आयोजित एक बैठक में जिलाधिकारियों को आदेश दिया कि वे कोविड-19 संबंधी सुरक्षा निर्देशों का उल्लंघन करने वाले व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को बंद कराने में अपने विवेक का इस्तेमाल करें.

उन्होंने कहा कि विवाह और अन्य समारोहों के लिए होटलों और सामुदायिक केंद्रों की बुकिंग की जानकारी स्थानीय पुलिस थानों की दी जानी चाहिए, जो ये सुनिश्चित करे कि उन आयोजनों में 50 से अधिक लोग शामिल नहीं हो पाएं.

कोविड मामलों में उछाल को देखते हुए विपक्ष भी विरोध पर उतर आया है.

राजद सांसद मनोज झा ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर आगामी चुनाव में 65 वर्ष से ऊपर के मतदाताओं और कोविड रोगियों के लिए डाक मतपत्र से वोटिंग के प्रस्ताव का विरोध किया है, वहीं पार्टी नेता तेजस्वी ने महामारी के दौरान चुनाव कराए जाने के निर्णय पर ही सवाल खड़ा किया है.

राजद नेता तेजस्वी ने मंगलवार को सवाल किया, ‘चुनाव कराने की क्या जल्दी है? क्या नीतीश लाशों के ढेर पर चुनाव कराना चाहते हैं, या उन्हें 20 नवंबर के बाद राष्ट्रपति शासन लगाए जाने का डर है?’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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