नई दिल्ली: अब आधिकारिक रूप से एक विश्वव्यापी महामारी घोषित हो चुका कोरोनावायरस घातक है लेकिन सभी के लिए नहीं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार कोरोनावायरस के कारण होने वाली अस्वस्थता, जिसे कोविड-19 भी कहा जाता है, का खासकर बच्चों और युवाओं में हल्का असर होता है.
लेकिन, कोविड-19 के शुरुआती अध्ययन से पता चलता है कि मधुमेह, हृदय रोग तथा फेफड़ों से जुड़े अस्थमा और सीओपीडी जैसे रोगों से पीड़ित लोगों पर इसका गंभीर असर दिखता है.
उल्लेखनीय है कि ये बीमारियां भारतीयों में आम हैं. उदाहरण के लिए, इंटरनेशनल डायबिटीज़ फाउंडेशन के अनुसार अनुमानित 7.7 करोड़ पीड़ितों के साथ मधुमेह की दृष्टि से भारत का दुनिया में दूसरा स्थान है.
इसी तरह, चिकित्सा क्षेत्र की प्रतिष्ठित पत्रिका लांसेट की एक रिपोर्ट के अनुसार ‘हृदय रोग और पक्षाघात’ भारत में मौत के शीर्ष कारणों में से हैं और देश में हृदय रोगों से पीड़ित लोगों की संख्या 1990 के 2.57 करोड़ से बढ़कर 2016 में 5.45 करोड़ हो गई थी.
जबकि वाशिंगटन विश्वविद्यालय की ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज रिपोर्ट 2018 के अनुसार भारत में 2017 में लोगों की मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण फेफड़ों की सीओपीडी बीमारी थी. उस वर्ष इसने 9.58 लाख भारतीयों की जान ली थी.
कोविड-19 के प्रसार के मद्देनज़र उपरोक्त बीमारियों से पीड़ित लोगों को अतिरिक्त सावधानी बरतने की ज़रूरत है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 8 मार्च तक कोविड-19 के कारण दुनिया भर में 3,500 से अधिक लोग जान गंवा चुके थे.
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उपरोक्त बीमारियों से पीड़ित लोगों को लंबे समय तक के लिए अपनी दवाओं का स्टॉक साथ रखने, अतिरिक्त सावधानी बरतने और ये सुनिश्चित करने की सलाह दी गई है कि उन्हें इन्फ्लूएंजा और न्यूमोकोकल संक्रमणों से बचाव वाले टीके लगे हों, जिनमें कि गंभीर निमोनिया भी शामिल है.
यदि आप मधुमेह से पीड़ित हैं…
वैसे तो अभी मधुमेह पीड़ितों में कोविड-19 संक्रमण से जुड़े सीमित आंकड़े ही उपलब्ध हैं, लेकिन एक चीनी अध्ययन के अनुसार चीन में महामारी के केंद्र वुहान में 26 मृतकों में से (दिसंबर 2019-जनवरी 2020 की अवधि में) 42.3 प्रतिशत को मधुमेह को शिकायत थी. यह अध्ययन पिछले महीने स्विटज़रलैंड के जर्नल ऑफ क्लिनिकल मेडिसिन में प्रकाशित हुई थी.
मधुमेह के पीड़ितों को वैसे भी संक्रमणों, खास कर इन्फ्लूएंज़ा और निमोनिया का खतरा रहता है. फोर्टिस, सी-डॉक के चेयरमैन डॉ. अनूप मिश्रा के अनुसार, ‘ग्लाइसेमिक नियंत्रण के जरिए इस खतरे को कम किया जा सकता है, हालांकि इसे पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता. मधुमेह के दो वर्ष से अधिक उम्र के सभी रोगियों को न्यूमोकोकल और इन्फ्लूएंज़ा के वार्षिक टीके लगवाने चाहिए.’
डॉ. मिश्रा के सह-लेखन वाला अध्ययन ‘डायबिटीज़ एंड मेटाबॉलिक सिंड्रोम: क्लिनिकल रिसर्च एंड रिव्यूज़’ साइंस डाइरेक्ट के नवीनतम अंक (मई-जून) में प्रकाशित हुआ है.
न्यूमोकोकल के टीके व्यक्ति-व्यक्ति संपर्क के जरिए फैलने वाले जीवाणु संक्रमण को रोकते हैं. ऐसे संक्रमण निमोनिया, रक्त संक्रमण और बैक्टेरियल मैनिंजाइटिस का कारण बन सकते हैं.
वैसे भी मधुमेह के मरीज़ों को आमतौर पर श्वसन संबंधी गंभीर वायरस संक्रमणों को झेलना पड़ता है. ऊपर वर्णित अध्ययन के अनुसार, ‘एच1एन1 फ्लू तथा सार्स कोरोनावायरस और मर्स कोरोनावायरस से संक्रमित रोगियों में मौत के मामलों में मधुमेह एक बड़े जोखिम के रूप में सामने आया है.’
बेंगलुरु के एस्टर सीएमआई अस्पताल में एंडोक्रिनोलॉजी विभाग में विशेषज्ञ डॉ. महेश डीएम के अनुसार, ‘जब मधुमेह के रोगियों में वायरल संक्रमण होता है तो रक्त शर्करा की मात्रा में उतार-चढ़ाव और मधुमेह से जुड़ी अन्य जटिलताओं के कारण उनके उपचार में मुश्किलें आती हैं. ऐसे रोगियो की प्रतिरक्षण क्षमता कमज़ोर हो जाती है.’
रक्त शर्करा का स्तर उच्च रहने के दौरान बुखार होने पर टाइप-1 मधुमेह के मरीजों को रक्त में शर्करा और मूत्र में कीटोन के स्तर की नियमित माप करनी चाहिए.
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मिश्रा के अनुसार, ‘खून में शुगर लेवल सामान्य रखने के लिए ऐसे मरीजों को दवा की खुराक में निरंतर बदलाव करने पड़ सकते हैं.’
यदि आप हृदयरोग से पीड़ित हैं…
वैसे तो हृदय और रक्तवाहिकाओं पर कोरोनावायरस के प्रभाव को लेकर स्पष्टता नहीं है पर अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी के अनुसार, ‘संक्रमित रोगियों, खास कर उनमें जिन्हें कि गहन देखभाल की ज़रूरत है, में हृदय को गंभीर नुकसान पहुंचने, एरिथमिया, हाइपोटेंशन, टैचिकार्डिया और संबंधित हृदय रोगों की रिपोर्टें सामने आई हैं.’
एरिथमिया का मतलब है दिल की अनियमित धड़कनें, जबकि हाइपोटेंशन असामान्य रूप से कम ब्लडप्रेशर और टैचिकार्डिया तेज़ धड़कनों से जुड़े लक्षण हैं.
माना जाता है कि गंभीर कोविड-19 का खतरा उन लोगों को अधिक है जिनकी एंजियोप्लास्टि हुई है या जिन्हें स्टेंट लगाया गया है. कोरोनावायरस मरीज़ की रक्तवाहिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है और फिर अनुवर्ती संक्रमण हो सकता है.
दिल्ली के मणिपाल अस्पताल में हृदय रोग विभाग के प्रमुख युगल किशोर मिश्रा ने कहा, ‘इन्फ्लूएंजा वायरस पहले से ही दिल के दौरे के कारकों में जाना जाता है. जो रोगी रक्त पतला करने वाली दवाएं लेते हैं, उनके लिए खांसते समय, उदाहरण के लिए कोरोनोवायरस संक्रमण के मामले में, फेफड़ों से रक्तस्राव की आशंका बढ़ जाती है.’
अमेरिका के रोग नियंत्रण एवं निवारण केंद्र (सीडीसी) की सलाह के आधार पर डॉक्टर हृदय रोग से पीड़ित लोगों के लिए ‘फ्लू और बैक्टेरियल निमोनिया के टीके लगवाने’ की सलाह देते हैं.
हृदय रोग विशेषज्ञ तथा भारतीय चिकित्सा संघ के पूर्व अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल के अनुसार, ‘जब शरीर कोरोनावायरस जैसे बड़े रोगकारी विषाणु से लड़ रहा है, तो उसके अन्य विषाणुओं और जीवाणुओं के संक्रमण की चपेट में आने का खतरा बढ़ जाता है. फ्लू और निमोनिया के टीके लगवाने से कोरोनोवायरस संक्रमण के मामले में मौत का खतरा कम हो सकता है.’
डॉक्टर पौष्टिक खाने के साथ ही प्रतिरक्षण क्षमता बढ़ाने वाली खुराक लेने की भी सलाह देते हैं. डॉ. मिश्रा ने कहा, ‘मैं अत्यंत जोखिम वाले रोगियों को विटामिन सी और बी-कॉम्पलेक्स की नियमित खुराक भी लिखता हूं.’
यदि आप सीओपीडी या अस्थमा जैसे फेफड़ों के रोगों से पीड़ित हैं…
विशेषज्ञों की सलाह है कि अपनी नियमित दवाओं और इनहेलरों का स्टॉक तैयार रखने के अलावा रोगियों को दवाओं की नई खुराक के बारे में अपने चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए.
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दिल्ली के धर्मशीला नारायणा सुपरस्पेशलिटी अस्पताल में पल्मोनोलॉजी के विशेषज्ञ डॉ. नवनीत सूद ने कहा, ‘गर्मी के मौसम की शुरुआत के साथ ही बहुत से रोगी दवाओं की खुराक में बदलाव करते हैं और उनकी मात्रा कम करते हैं. सर्दियों में उन्हें आमतौर पर उच्च खुराक की आवश्यकता होती है. इस समय, मैं सभी रोगियों को उचित खुराक के बारे में अपने चिकित्सकों से परामर्श करने की सलाह देता हूं.’
उन्होंने कहा, ‘हम फ्लू और न्यूमोकोकल टीके लगवाने, और साथ ही एन-95 मास्क पहनने की सलाह देते हैं, भले ही आप खुद को स्वस्थ महसूस कर रहे हों.’
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