नई दिल्ली: पाकिस्तान सरकार ने मंगलवार को कहा कि वो बलात्कारियों और यौन अपराधियों के खिलाफ, सज़ा के और कड़े प्रावधान लाने जा रही है, जिनमें मौत की सज़ा और विवादित केमिकल कैस्ट्रेशन शामिल हैं. देश के क़ानून मंत्री डॉ फरोग़ नसीम ने कहा, कि मुजरिमों का कैस्ट्रेशन किया जाएगा, जो ‘या तो कुछ समय रहेगा, या ज़िंदगी भर रहेगा’.
केमिकल कैस्ट्रेशन में रासायनों के ज़रिए, मर्द की काम वासना को घटाकर, उसके टेस्टोस्टेरोन को कम कर दिया जाता है- जो मर्दों में मुख्य रूप से सेक्स हार्मोन होता है.
इस प्रकार के कैस्ट्रेशन का इस्तेमाल, यौन अपराधियों के खिलाफ सज़ा के तौर पर, 1940 के दशक से होता आ रहा है. 2003 में, रिसर्चर्स चार्ल्स एल स्कॉट और ट्रेंट हॉम्बर्ग ने कहा कि, ‘मर्दों के मनोविकारी यौन व्यवहार को कम करने के लिए, हॉर्मोन पर आधारित दवाओं के इस्तेमाल का उल्लेख, सबसे पहले 1944 में मिलता है’.
केमिकल कैस्ट्रेशन, समलैंगिता के उन बहुत से ‘उपचारों’ में से एक थी, जिसे यूके में क्रिमिनल लॉ (संशोधन) एक्ट के, अब निष्क्रिय हो चुके 1885 लेबोचेरे संशोधन तहत, दोषी क़रार दिए गए अपराधियों पर इस्तेमाल किया जाता था. जिसमें समलैंगिकता को अपराध कहा गया था.
गणितज्ञ एलन तूरिंग का भी, जिन्हें आधुनिक कंप्यूटिंग का पिता कहा जाता है, और जो दूसरे विश्व युद्ध में मित्र देशों की जीत में सहायक थे, समलैंगिकता की सज़ा के तौर पर, 1952 में केमिकल कैस्ट्रेशन किया गया.
भारत में, यौन अपराधों की सज़ा के तौर पर, कैस्ट्रेशन के इस रूप को शुरू करने पर, 2012 के दिल्ली गैंगरेप और हत्या मामले के बाद से बहस चल रही है, जिसमें एक 23 वर्षीय फीज़ियोथेरेपी छात्रा, छह लोगों के हाथों बर्बर रेप और हिंसा का शिकार बनी थी.
दिप्रिंट इस विवादास्पद इलाज के पीछे का विज्ञान, इसके असर, तथा भारत व दूसरे मुल्कों में, इससे जुड़े क़ानून को समझा रहा है.
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केमिकल कैस्ट्रेशन की प्रक्रिया
केमिकल कैस्ट्रेशन में काम वासना को घटाने वाले पदार्थ इस्तेमाल किए जाते हैं. इसमें ऐसी दवाएं दी जाती हैं जो यौन इच्छा को कम करती हैं. इनमें साइप्रोटेरोन एसिटेट (सीपीए), मेडरॉक्सीप्रोगेस्टेरोन एसिटेट (एमपीए) शामिल हैं- जो 1960 के दशक से इस्तेमाल की जा रही हैं- और दवाओं का एक समूह होता है, जिसे जीएनआरएच (गोनाडोट्रॉपिन-रिलीज़िंग हॉर्मोन) एगोनिस्ट्स कहा जाता है.
अमेरिका में केमिकल कैस्ट्रेशन के लिए एमपीए को पसंद किया जाता है, जबकि यूके, कनाडा, और मध्यपूर्व में सीपीए का इस्तेमाल होता है. इस बीच, जीएनआरएच एगोनिस्ट्स नए हॉर्मोनल एजेंट्स हैं, जिनका ज़्यादा इस्तेमाल नहीं होता.
फोर्टिस सी-डॉक अस्पताल के डायबिटीज़ और एंडॉक्रिनॉलजी विभाग के एडीशनल डायरेक्टर, डॉ रितेश गुप्ता ने समझाया, ‘कुछ ऐसे इंजेक्टेड केमिकल्स और गोलियां हैं, जिन्हें किसी इंसान को दिया जा सकता है. साइप्रोटिरोन (एसिटेट) जैसी कुछ पुरानी दवाइयां भी हैं, जो 50 साल से अधिक से इस्तेमाल की जा रही हैं. इसका इस्तेमाल जन्म नियंत्रण और महिलाओं में अधिक बाल उगने या मुंहासों को रोकने के लिए होता है’.
उन्होंने आगे कहा: ‘कुछ इंजेक्शंस होते हैं जिन्हें बुज़ुर्ग लोगों में, प्रोस्ट्रेट कैंसर के इलाज के लिए दिया जाता है, क्योंकि ये कैंसर टेस्टोस्टेरोन पर निर्भर होता है. ये टेस्टोस्टेरोन-विरोधी दवाएं, एक समूह के तौर पर इस्तेमाल होती हैं, जिसे जीएनआरएच एगोनिस्ट्स कहते हैं’.
स्टडीज़ स्पष्ट नहीं कि केमिकल कैस्ट्रेशन कारगर है या नहीं
मेडिकल एक्सपर्ट्स के अनुसार, कैमिकल कैस्ट्रेशन काम इच्छा को तो कम करता है, लेकिन अभी ये स्पष्ट नहीं है कि क्या ये यौन अपराधों को रोकता है.
2013 में साउथ कोरिया में हुई एक स्टडी में पता चला कि केमिकल कैस्ट्रेशन से ‘यौन विचारों की फ्रीक्वेंसी और तीव्रता’ में कमी आई, और 38 में से अधिकांश मरीज़ों के ‘हस्तमैथुन की फ्रीक्वेंसी’ भी कम हुई, जो सब यौन अपराधी थे.
लेकिन इससे इस नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका कि क्या इससे दोषी क़रार दिए गए अपराधी के फिर से जुर्म करने की दर में कमी आई.
स्टडी में ये भी पता चला कि केमिकल कैस्ट्रेशन के एक साल बाद हॉर्मोन के स्तर, बेसलाइन या ‘इलाज से पहले के लेवल पर’ लौट आए थे.
दिल्ली स्थित मनोचिकित्सक डॉ स्नेहा शर्मा ने कहा कि केमिकल कैस्ट्रेशन का अंतर्निहित सिद्धांत मुसीबत है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘ऐसी बहुत सी स्टडीज़ हैं जिनमें कहा गया है, कि टेस्टोस्टेरोन लेवल्स का संबंध आक्रामकता का स्तर से है…लेकिन ये संबंध हमेशा विशिष्ट या नज़दीकी नहीं होता’.
शर्मा ने आगे कहा, ‘उचित स्टडीज़ न होने की वजह से, ये एक साबित किया हुआ तथ्य नहीं है. (लेकिन) जब वो अंदाज़े लगाते हैं, तो ये दिखाया जाता है कि फिर से अपराध करने का जोखिम, 50 प्रतिशत से घटकर 5-10 प्रतिशत रह जाता है’.
एम्स के मनोरोग विभाग के डॉ राजेश सागर ने कहा कि केमिकल कैस्ट्रेशन के बारे में ग़ौर करने के लिए दो बुनियादी दलीलें हैं.
उन्होंने कहा कि पहली ये है कि ये मान लिया जाता है की बलात्कारी की ‘यौन इच्छा बढ़ी हुई’ होती है, जो टेस्टोस्टेरोन लेवल्स से पैदा होती है, जिन्हें दबाया जाना चाहिए.
सागर ने दिप्रिंट से कहा, ‘ऐसे कुछ सबूत हैं कि इसे (केमिकल कैस्ट्रेशन) करने से, आप इस तरह के व्यवहार को काफी कम कर सकते हैं’.
दूसरी दलील ये है कि यौन अपराध ‘शिकारी व्यवहार’ का नतीजा होते हैं.
इसलिए, गुप्ता के अनुसार, ‘इससे (केमिकल कैस्ट्रेशन) कामोत्तेजना में कमी आती है, लेकिन आपको समझना चाहिए कि यौन अपराधों का संबंध सिर्फ कामोत्तेजना से नहीं होता. इसका संबंध वर्चस्व से होता है, हिंसा से होता है, जब आप कुछ साबित करना चाहते हैं’.
उन्होंने आगे कहा कि केमिकल कैस्ट्रेशन को, बाल यौन शोषण के इलाज में भी कारगर माना जाता है, जो एक मानसिक बीमारी है.
इस तरह के कैस्ट्रेशन के कई साइड इफेक्ट्स होते हैं, जिनमें डिप्रेशन, बोन डेंसिटी में कमी, फ़ैट में इज़ाफा, मर्दों में वक्ष का बढ़ना, शरीर पर बाल कम होन और कुछ मामलों में लिवर की बीमारी शामिल हैं.
भारत ने 2013 में केमिकल कैस्ट्रेशन को ख़ारिज कर दिया था
भारत में, यौन अपराधों के लिए सज़ा के तौर पर केमिकल कैस्ट्रेशन के मुद्दे की पहली बार, 2011 के एक मामले में वकालत की गई थी, जिसमें एक शख़्स को चार साल तक, अपनी सौतेली बेटी का बलात्कार करने का दोषी ठहराया गया था.
कामिनी लाव ने बतौर एडीशनल सेशंस जज अपने फैसले में कहा था, ‘बाल उत्पीड़कों को जेल भेजने के विकल्प के रूप में, नियमित केमिकल कैस्ट्रेशन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जिससे कि फिर से अपराधी बनने, और यौन हमलों की घटनाओं में कमी लाई जा सके’.
एक साल के बाद, दिल्ली गैंगरेप और हत्या की घटना के बाद इस मुद्दे पर फिर से ख़ूब बहस हुई. बीजेपी ने भी, जो उस समय विपक्ष में थी, सुझाव दिया कि इसे रेप-विरोधी क़ानून में शामिल किया जाए, जो उस समय बनाया जा रहा था.
कहा जाता है कि कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) सरकार ने, इसे एक सज़ा के तौर पर क़ानून के उस मसौदा प्रस्ताव में रखा था, जिसे जस्टिस जेएस वर्मा कमेटी को पेश किया गया था, जिसका गठन 2012 की गैंगरेप घटना के बाद हुआ था.
लेकिन, ख़बरों के मुताबिक़, इस प्रस्ताव को लेकर कांग्रेस दुविधा में थी. रेणुका चौधरी जैसे नेता बलात्कारियों के लिए केमिकल कैस्ट्रेशन की मांग कर रहे थे, लेकिन ख़ुद पार्टी का कहना था कि वो इस प्रस्ताव के पक्ष में नहीं थी.
2013 में तीन-सदस्यीय कमेटी ने 630 पन्नों की अपनी रिपोर्ट में, केमिकल कैस्ट्रेशन के इस्तेमाल को ख़ारिज कर दिया, और कहा, ‘हमारा कहना है कि राज्य के लिए, ये असंवैधानिक और बुनियादी मानवाधिकार समझौतों के खिलाफ होगा, कि वो किसी नागरिक को बिना उसकी मर्ज़ी के, संभावित रूप से ख़तरनाक मेडिकल साइड इफेक्ट्स से रूबरू कराए’.
अन्य देशों में केमिकल कैस्ट्रेशन क़ानून
लेकिन दुनिया के बहुत से देशों ने यौन अपराधियों को सज़ा देने, या वैकल्पिक इलाज के तौर पर केमिकल कैस्ट्रेशन के इस्तेमाल को अनुमति दी हुई है.
1996 में, कैलिफोर्निया अमेरिका का पहला राज्य बना, जिसने फिर से यौन उत्पीड़न के अपराधियों के लिए, पैरोल की शर्त के तौर पर इसके इस्तेमाल की अनुमति दी. उसके बाद से इसे कम से कम सात दूसरे राज्यों में लागू किया गया है, जिनमें ज्योर्जिया, आयोवा, लूज़ियाना, और मॉन्टाना शामिल हैं.
रूसी संसद ने 2011 में, एक क़ानून को स्वीकृति दी जिसके तहत, कोर्ट के अनुरोध पर फॉरेंसिक मनोचिकित्सक, ऐसे यौन अपराधियों के लिए केमिकल कैस्ट्रेशन की सलाह दे सकते हैं, जिन्होंने 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को नुक़सान पहुंचाया है.
पोलैण्ड और मॉलडोवा में, कुछ मामलों में बाल उत्पीड़कों का अनिवार्य रूप से केमिकल कैस्ट्रेशन किया जाता है, जबकि एस्टोनिया में जेल की सज़ा के विकल्प के तौर पर स्वैच्छिक आधार पर इसकी अनुमति है.
इंडोनेशिया में भी, 2016 में राष्ट्रपति के एक नियम के तहत, बाल यौन अपराधियों की सज़ा के तौर पर, केमिकल कैस्ट्रेशन की अनुमति दे दी गई. साउथ कोरिया ने भी 2011 में इसी तरह का क़ानून बनाया. 2017 में रेप और यौन हमलों के सभी तरह के आरोपों को, इस क़ानून के दायरे में ले आया गया.
इसके अलावा, न्यूज़ीलैण्ड, इज़राइल, और यूके जैसे देशों में कुछ मामले हुए हैं, जिनमें यौन अपराधियों को केमिकल कैस्ट्रेशन की सज़ा दी गई थी.
गुप्ता ने कहा, ‘एक विकल्प के तौर पर इसे रखना समझ में आता है. किसी डॉक्टर या मनोचिकित्सक के सावधानीपूर्वक मूल्यांकन से, अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि संबंधित व्यक्ति एक सीरियल ऑफेंडर है, और उसका केमिकल कैस्ट्रेशन किया जा सकता है. इसमें एक अच्छी बात ये है कि इसे पलटाया जा सकता है.
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