नई दिल्ली : कश्मीर को लेकर चल रही राजनीतिक सरगर्मियों के बीच आर्टिकल 35ए को लेकर चर्चा तेज है. राज्य में हो रहे तमाम राजनीतिक घटनाक्रमों के बीच इसको बदले जाने को लेकर अटकलबाजियां जारी हैं.
आर्टिकल 35ए क्या है
आर्टिकल 35A जम्मू-कश्मीर सरकार को राज्य के स्थायी निवासी की परिभाषा तय करने का अधिकार देता है. स्थायी नागरिक को मिलने वाले अधिकार और विशेष सुविधाओं की परिभाषा भी इसके तहत तय होती है. यह कानून 1954 में राष्ट्रपति के आदेश के बाद अमल में लाया गया था.
आर्टिकल 370 के तहत 35A में यह प्रावधान भारतीय संविधान में जोड़ा गया. जम्मू-कश्मीर के नेता शेख अब्दुल्ला और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बीच 1949 में हुए समझौतों के बाद 35A का विशेष प्रावधान जुड़ा.
कैसे संविधान में जोड़ा गया
1947 के पहले भारत बहुत सारे रजवाड़ों में बंटा था. उसी में से एक था कश्मीर का रजवाड़ा. जब इसे भारत में विलय कराने की कोशिश चल रही थी, उस समय जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने 1927 और 1932 में जम्मू कश्मीर के लिए नोटिफिकेशन जारी किया. जिसके तहत राज्य सूची में सम्मलित किए जाने वाले विषयों और अधिकारों को तय किए गए. अक्टूबर 1947 में कश्मीर के भारत में विलय होने के बाद शेख अबदुल्ला ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से राज्य के विषय में एक समझौता किया जिसे दिल्ली समझौता के नाम से जाना जाता है.
इसी समझौते के तहत आर्टिकल 35ए को पंडित नेहरू के कहने पर राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद द्वारा 14 मई 1954 को संविधान में जोड़ा गया. जिसमें कश्मीर के स्थाई नागरिकों को विशेष अधिकार दिए गए हैं. जम्मू कश्मीर में स्थाई नागरिक उन्हीं निवासियों को माना जाता है जो 14 मई 1954 के पहले से कश्मीर में आकर बसे हैं.
विशेष अधिकार क्या है
इस आर्टिकल के तहत भारत के किसी दूसरे राज्य का व्यक्ति जम्मू कश्मीर में कोई जमीन खरीद-फरोख्त नहीं सकता. और न ही वहां का स्थाई नागरिक बन कर रह सकता है. यह आर्टिकल उस समय संविधान में लाया गया था जब बंटवारे के समय राज्य की हालत खराब थी. और जम्मू कश्मीर को लोकतांत्रिक और संगठनात्मक रूप से मजबूत करने के लिए यह फैसला लिया गया था. लेकिन समय बीतने के साथ ही इसके साथ विवाद भी बढ़ते चले गए.
विवाद क्या है
भारत की आजादी के बाद लाखों लोग बंटवारे का दंश झेलते हुए इधर से उधर हुए. वो किसी भी राज्य में आकर बसे वहां के वे स्थाई निवासी कहलाने लगें. लेकिन जम्मू कश्मीर में स्थिति ऐसी नहीं थी. वहां आकर बसे लोग आज भी शरणार्थी कहलाते हैं. खासकर 1957 में पंजाब से जम्मू में आकर बसे वाल्मीकि समुदाय के लोग. उन्हें तब कैबिनेट के एक फैसले के तहत सफाई कर्मचारी के तौर पर नियुक्त किया गया था, लेकिन आज भी उनकी पीढ़ियां बतौर शरणार्थी ही अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं.
पिछले 62 सालों से वो लोग कश्मीर में मिलने वाले विशेष अधिकार की सुविधा लेने से वंचित है. वे भारत के नागरिक तो हैं लेकिन जम्मू कश्मीर के नागरिक नहीं है. वे लोकसभा में अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकते हैं लेकिन जम्मू कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनावों में अपना वोट नहीं डाल सकते. ‘बाहरी’ लोग यहां के सरकारी संस्थानों में नौकरी नहीं पा सकते. इसके अलावा वे सरकारी सहायाता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में प्रवेश भी नहीं ले सकते.
महिलाओं के अधिकार छीनने वाला
आर्टिकल 35ए के तहत कश्मीर की कोई महिला अगर किसी गैर कश्मीरी से शादी करती है तो वह अपने ही राज्य में स्थाई निवास का अधिकार खो सकती है. उसके बच्चे अपने पैतृक संपत्ति से दावा खो सकते हैं. जबकि यह बात वहां के पुरुषों पर लागू नहीं होती. अगर कोई कश्मीरी पुरुष किसी गैर कश्मीरी महिला से शादी करता है तो वह उसको और उसके बच्चे को अपना पैतृक संपत्ति दे सकता है.
विरोध दर्ज भी कराया गया
इस चर्चित आर्टिकल के विरोध में दिल्ली के एक एनजीओ ‘वी सिटिजन’ ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की. इस संस्था का तर्क है कि आर्टिकल 35ए देश में रह रहे अन्य राज्य के नागरिकों के साथ भेदभाव करता है और कश्मीर में कई दशकों से बसे शरणार्थियों के मौलिक अधिकारों से वंचित करता है. इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला कभी भी आ सकता है.
लेकिन एक तबका यह भी कहता है
आर्टिकल 35ए को लेकर कश्मीर में रहने वाले लोगों और वहां के नेताओं में अलग-अलग राय है. जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने पिछले हफ्ते एक बयान में कहा कि अगर आर्टिकल 35ए के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ की गई तो कश्मीर में रहने वाले लोग तिरंगे की जगह कोई अन्य झंडा भी थाम सकते हैं.
वहीं जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पिछले दिनों एक बयान में कहा कि अगर आर्टिकल 35ए हटाया गया तो अरुणाचल प्रदेश से भी खराब हालत हो जाएंगे. केंद्र सरकार केवल राजनीतिक लाभ लेने के लिए ऐसा माहौल बना रही है.
वहीं 2010 के आईएएस टॉपर शाह फै़सल ने आर्टिकल 35ए पर कहा था कि अगर इसे खत्म किया गया तो यह जम्मू कश्मीर से भारत के संबंधों को खत्म करने जैसा होगा. यह जम्मू कश्मीर का भारत से तलाक होगा.
आर्टिकल 35ए पर केवल केंद्र की सत्ता पर काबिज भाजपा ही इसके विरोध में दिखाई देती है. और शुरू से ही इस पार्टी के एजेंडा में इस आर्टिकल को खत्म करने की बात होती रही है. ऐसा में यह देखना दिलचस्प है कि आर्टिकल 35ए को लेकर कैबिनेट क्या फैसले लेती है.
अरुण जेटली ने ब्लॉग में आर्टिकल 35ए पर की टिप्पणी
पूर्व वित्तमंत्री और बीजेपी नेता अरुण जेटली ने ब्लॉग के जरिए अर्टिकल 35ए पर टिप्पणी कर चुके हैं. उन्होंने कहा है, ‘7 दशकों से जम्मू-कश्मीर राज्य के इतिहास में ढेरों सवालों के साथ अब विरोध बदल रहा है. नेहरू के समय जो कुछ है क्या वह कोई बड़ी गलती थी या सही. ज्यादातर भारतीय इसे पहले की बात मानते हैं. लेकिन आज हम क्या जमीनी सच्चाई के साथ इस पर विचार कर सकते हैं.’
अर्टिकल 35ए को नुकसान पहुंचाने वाला बताया
उन्होंने कहा था कि राज्य के पास पर्याप्त वित्तीय संसाधन नहीं हैं. राज्य को ऊपर ले जाने की क्षमता को अनुच्छेद 35A के जरिए अपंग कर दिया गया है. कोई भी निवेशक उद्योग, होटल, निजी शिक्षण संस्थान या निजी अस्पताल स्थापित करने के लिए तैयार नहीं है क्योंकि वह न तो जमीन या संपत्ति खरीद सकता है और न ही उसके अधिकारी ऐसा कर सकते हैं. किसी को यहां सरकारी नौकरी या कॉलेजों में प्रवेश नहीं मिल सकता है. आज, कोई बड़ी राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय चेन नहीं है जिसने एक पर्यटन केंद्रित राज्य में होटल स्थापित किया है. यह संवर्धन, संसाधन निर्माण और रोजगार सृजन को रोकता है. कॉलेज प्रवेश प्राप्त करने के लिए छात्रों को नेपाल और बांग्लादेश सहित सभी जगह की यात्रा करनी पड़ती है. जम्मू में केंद्र सरकार द्वारा स्थापित सुपर-स्पेशियलिटी सुविधा सहित इंजीनियरिंग कॉलेज और अस्पताल, अंडर-यूज़ किए गए या अप्रयुक्त हैं क्योंकि बाहर से प्रोफेसर और डॉक्टर वहां जाने के लिए तैयार नहीं हैं. अनुच्छेद 35A ने निवेश को रोक दिया है और राज्य की अर्थव्यवस्था को नष्ट कर दिया है.
घाटी की मुख्यधारा की पार्टियों में हमारा विश्वास लेकिन किया निराश
केंद्र की सरकारों ने हमेशा यह इच्छा व्यक्त की है कि राजनीतिक मतभेदों के बावजूद हमें घाटी में मुख्यधारा की पार्टियों को अधिक स्थान देना चाहिए ताकि अलगाववादी स्थान सिकुड़ जाए. 1947 से तीन परिवार, उस मुख्यधारा के स्थान पर हावी थे. उनमें से दो श्रीनगर और एक नई दिल्ली में स्थित हैं. अफसोस है कि उन्होंने राज्य के लोगों को निराश किया. दो प्रमुख मुख्यधारा की पार्टियां, यहां तक कि जब उन्होंने आतंकवाद की निंदा की, तो यह हमेशा ‘अगर’ और ‘मगर’ के साथ था. यह अलगाववाद, हिंसा और आतंकवाद से केवल उनकी पूरी तरह दूरी है जो एक वैकल्पिक स्थान बना सकते हैं. अलगाववाद की आलोचना में नरमी बरतना ठीक नहीं है.