scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होमदेश‘अगर यह फिर हुआ तो?’ मणिपुर में 5 दिन से कोई हिंसा नहीं, लेकिन अविश्वास और डर पीड़ितों को सता रहा है

‘अगर यह फिर हुआ तो?’ मणिपुर में 5 दिन से कोई हिंसा नहीं, लेकिन अविश्वास और डर पीड़ितों को सता रहा है

मणिपुर में पिछले हफ्ते की झड़पें मुख्य रूप से मैतेई और कुकी-ज़ोमी आदिवासी समूहों के बीच हुईं, जिससे आगज़नी और तोड़-फोड़ हुईं. मृतकों की आधिकारिक संख्या 50 बताई गई है.

Text Size:

इंफाल: मणिपुर पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के लगभग एक दर्जन या दो कर्मियों के बीच मामूली भीड़ के साथ इंफाल के बीर टिकेंद्रजीत अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के अंदर दोपहर के समय शांत माहौल है.

एक बार जब आप हवाई अड्डे से बाहर निकल जाते हैं— एक फॉर्म भरने और इनर लाइन परमिट (आईएलपी) प्राप्त करने के बाद, जो सरकारी अधिकारियों को छोड़कर सभी अनिवासियों को राज्य में प्रवेश करने के लिए ज़रूरी है, ये तनाव दिखाई देने लगता है.

लगभग 100 लोग, जिनमें ज्यादातर इंफाल और उसके आसपास स्थित कुकी जनजाति के सदस्य हैं, टर्मिनल बिल्डिंग के बाहर चादर और अखबार बिछा कर बैठे हैं. सभी मणिपुर से फ्लाइट पकड़ने का इंतज़ार कर रहे हैं.

ये भागे हुए कुकी उन हज़ारों लोगों में से हैं जो पिछले सप्ताह जातीय हिंसा के एक प्रकरण से प्रभावित हुए थे— मुख्य रूप से कुकी और मैतेई के बीच— जिसे स्थानीय निवासी अभूतपूर्व बताते हैं.

हिंसा को पूरा एक हफ्ता बीत गया है और दोनों पक्ष खुद को अस्थिर पा रहे  हैं.

शनिवार के बाद से किसी तरह की हिंसा की सूचना नहीं है और स्थिति सामान्य बनी हुई है.

People from violence-hit areas evacuated at Imphal's Khuman Lampak Sports Complex | Suraj Singh Bisht | ThePrint
इंफाल के खुमान लंपक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में हिंसा प्रभावित इलाकों से लोगों को निकाला गया | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट | दिप्रिंट

राहत शिविरों और हवाई अड्डे पर बैठे लोगों का कहना है कि वे भागना चाहते हैं, भले ही थोड़े समय के लिए, लेकिन उन्हें जाना है, जबकि कई कुकी समुदाय के लोगों ने दिप्रिंट को बताया कि वे राज्य से बाहर जाना चाहते हैं, मैतेई समुदाय के सदस्य अभी तक आदिवासी बहुल पहाड़ियों में अपने घरों में लौटने के लिए तैयार नहीं हैं.

मणिपुर एड्स कंट्रोल सोसाइटी से जुड़े एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) के साथ काम करने वाले मैतेई 44-वर्षीय ओइनम विक्टोरिया ने कहा, “मैं डरी हुई हूं”. विक्टोरिया 10 साल पहले चुडाचांदपुर के पहाड़ी जिले में अपने घर से बाहर रह रही हैं.

यह बताते हुए कि कैसे उसके मैतेई पड़ोसियों और उसके अपने लोगों के अधिकांश घरों को या तो जला दिया गया या नष्ट कर दिया गया, उन्होंने कहा, “क्या गारंटी है कि यह फिर से नहीं होगा?”

इंफाल घाटी के लंगोल में रहने वाली कुकी समुदाय की एक केंद्र सरकार की कर्मचारी, 34-वर्षीय फ्लोरेंस चिंगबू ने भी कुछ ऐसा ही अनुभव बताया.

अपने ढाई साल के बेटे, पति, माता-पिता और ससुराल वालों के साथ हवाई अड्डे पर इंतज़ार करते हुए उन्होंने कहा, हिंसा अब कम हो गई थी, लेकिन वो और उनका परिवार “अपनी सुरक्षा को लेकर आशंकित हैं और दूसरा मौका नहीं देना चाहते हैं.”

फ्लोरेंस ने दिप्रिंट को बताया, “हम अपनी बहन के पास कुछ समय के लिए दिल्ली जा रहे हैं.”

चिंगबू बीजेपी विधायक वुंगजागिन वाल्टे की भतीजी हैं, जो 3 मई को अपने घर में शरण मांग रहे थे, जब भीड़ ने उन पर हमला किया था. गंभीर रूप से घायल वाल्टे को तीन दिन बाद इंफाल से बाहर निकाला गया था और अब वह दिल्ली के अपोलो अस्पताल में अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

चिंगबू ने कहा, “मेरे चाचा के साथ जो हुआ उसे देखने के बाद ही हमने कुछ समय के लिए मणिपुर छोड़ने का फैसला किया है.” उन्होंने आगे कहा, “मंगलवार की सुबह, हम सीआरपीएफ कैंप गए और उन्होंने हमें हवाई अड्डे छोड़ा था.”

हालांकि, उन्होंने दोहराया कि लंगोल में उनके सरकारी क्वार्टर को कुछ नहीं हुआ था, भले ही कुकी के आस-पास के कुछ घरों में “हथियारबंद बदमाशों द्वारा तोड़फोड़ की गई थी”.

उन्होंने कहा, “अब तक, मेरा घर सुरक्षित है और मेरे गैर-आदिवासी सहयोगियों ने बहुत सहयोग किया है, लेकिन मुझे यकीन नहीं है कि कल क्या होगा.”


यह भी पढ़ें: हिंसा के बाद केंद्र ने मणिपुर की सुरक्षा अपने हाथ में ली, उपद्रवियों को देखते ही ‘गोली मारने का आदेश’


कैसे शुरू हुई हिंसा

2011 की जनगणना के अनुसार, मणिपुर की आबादी 28 लाख है, जिनमें से 15 लाख मैतेई हैं, लगभग 7-8 लाख कुकी हैं, जबकि बाकी लोग नागा और अन्य समूहों में शामिल हैं.

भौगोलिक रूप से मणिपुर को पहाड़ी और घाटी क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है. पहाड़ियां जो राज्य के क्षेत्र का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा हैं पर जनजातियों का प्रभुत्व है, घाटी मुख्य रूप से मैतेई लोगों का घर है, जो 2011 की जनगणना में राज्य की आबादी का 53 प्रतिशत हिस्सा थे.

राज्य में उनकी स्थिति के बारे में मुख्य रूप से उनकी व्यक्तिगत चिंताओं से उपजे कई मुद्दों पर दोनों पक्षों के बीच तनावपूर्ण संबंध रहे हैं.

मैतेई राज्य की राजनीति पर हावी होने के लिए जाने जाते हैं और उन पर कुकी द्वारा विकास कार्यों पर एकाधिकार करने का आरोप लगाया जाता है.

इस बीच मैतेई का आरोप है कि वे अपने गृह राज्य में बाहरी लोगों की तरह महसूस करते हैं और दावा है कि उनकी संख्या कम हो रही है.

तनाव का मौजूदा दौर मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) की स्थिति की मांग पर केंद्रित है, जिस पर उनका कहना है कि समुदाय के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों को सुरक्षित करने के लिए एक प्रयास है.

वर्तमान में कुकी-ज़ोमिस और नागा सहित जनजातीय समूहों को मणिपुर में एसटी के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जबकि मैतेई इसमें नहीं हैं, हालांकि, मैतेई का दावा है कि उन्हें ऐतिहासिक रूप से जनजाति का दर्जा प्राप्त था.

3 मई की हिंसा मणिपुर के ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन (ATSUM) द्वारा मांग का विरोध करने के लिए बुलाए गए एकजुटता मार्च के बाद हुई.

Security personnel on patrol in Imphal | Suraj Singh ThePrint
इंफाल में गश्त पर निकले सुरक्षाकर्मी | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट | दिप्रिंट

विरोध मणिपुर हाई कोर्ट के एक आदेश के बाद में आया, जिसमें राज्य सरकार से कहा गया था कि वह केंद्र को मैतेई के लिए एसटी का दर्जा देने की सिफारिश करे, जिसे मैतेई की मांग को हरी झंडी के रूप में देखा गया. तब से इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.

हालांकि, माहौल बहुत देर तक तनाव वाला बना रहा.

आरक्षित वनों में अफीम की खेती करने वाले कथित अतिक्रमणकारियों को बेदखल करने के लिए कुकी ने फरवरी से राज्य सरकार की कार्रवाई का विरोध किया है. राज्य सरकार की कार्रवाई को आदिवासी कुकी-ज़ोमी समूहों ने उन्हें लक्षित करने के रूप में देखा.

3 मई की झड़पें, जो मुख्य रूप से मैतेई और कुकियों के बीच हुई थी, इसमें आगजनी और तोड़-फोड़ की घटनाएं हुईं. आधिकारिक आंकड़ों में मृतकों की संख्या 50 है, हालांकि, अनौपचारिक अनुमान बताते हैं कि यह आंकड़ा 60 के करीब है.

पिछले सप्ताह से इंफाल सहित हिंसा प्रभावित जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया है और इंटरनेट बंद कर दिया गया है.

हिंसा के बाद राज्य सरकार ने सुरक्षा बलों के साथ कई जिलों में हिंसा से प्रभावित लोगों के लिए राहत शिविर स्थापित किए हैं.

राज्य सरकार के अधिकारियों के अनुसार, 3 मई से लगभग 20,000 लोगों – जिनमें ज्यादातर कुकी हैं – को घाटी के राहत शिविरों में ले जाया गया है.

इस बीच, 10,000-11,000 – ज्यादातर मैतेई – को पहाड़ी क्षेत्रों में राहत शिविरों में ले जाया गया है.

चारो-ओर असुरक्षा

राज्य सरकार के अधिकारियों का कहना है कि लगभग 8,000 लोग इंफाल से विस्थापित हो चुके हैं, जिनमें से 4,000 से अधिक कुकी समुदाय के लोग बताए जा रहे हैं और बाकी में देश के अन्य हिस्सों के छात्र शामिल हैं.

मणिपुर हवाई अड्डे के बाहर, कुकी जनजाति की 23-वर्षीय होइथेम गुइटे ने कहा कि वह गुवाहाटी जा रही हैं, जहां से वह नागालैंड जाएंगी और अपने रिश्तेदारों के यहां ठहरेंगी.

इंफाल के धनमंजुरी विश्वविद्यालय से मास्टर करने वालीं गुइटे ने कहा, “मेरे माता-पिता चाहते हैं कि मैं कुछ समय के लिए मणिपुर से बाहर जाऊं.”

स्थिति में सुधार के साथ उन्होंने कहा, उनके माता-पिता चुडाचांदपुर में अपने पैतृक घर में वापस आ गए हैं.

इस बीच, कई मैतेई कहते हैं कि वे राहत शिविरों से बाहर निकलने और पहाड़ियों में अपने घरों में लौटने के लिए अनिच्छुक हैं.

Charred vehicles in Imphal stand testimony to last week's violence | Suraj Singh Bisht | ThePrint
इंफाल में जले हुए वाहन पिछले सप्ताह की हिंसा की गवाही देते हैं | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट | दिप्रिंट

चूड़ाचंदपुर के जौवेंग गांव की ओइनम विक्टोरिया ने कहा कि 3 मई को भीड़ द्वारा उनके घर को जलाए जाने के बाद उन्हें, उनके पति और बेटे को सुरक्षा बलों ने वहां से निकाला था.

परिवार को पहले जिला प्रशासन के कार्यालय ले जाया गया, जहां से उन्हें और अन्य मैतेई को इंफाल के खुमान लंपक खेल परिसर में लाया गया.

विक्टोरिया ने कहा कि 3 मई की रात बुरे सपने की तरह थी.

उन्होंने कहा, “जैसे ही खबर फैली कि आदिवासी एकजुटता मार्च के बाद हिंसा भड़क गई है, मैं अपने परिवार और आस-पास के पड़ोसियों के साथ कोने के एक घर में छिप गई.”

उन्होंने कहा, “हम चारों ओर गोलियों की आवाज सुन सकते थे. सेना के गांव पहुंचने के बाद ही हम बाहर निकले थे.”

34-वर्षीय तेनसुबम मेमे, जिन्हें हिंसा के सबसे पहले जिलों में से एक मोरेह से निकाला गया है, ने कहा कि उनका परिवार तीन पीढ़ियों से पहाड़ियों में रहा है.

उन्होंने कहा, करीब एक हफ्ते पहले तक वह मोरेह बाज़ार में आइसक्रीम बेचती थीं. उनके इलाके में कई मैतेई निवासी हैं और वो भीड़ की हिंसा का शिकार हो रहे थे.

उन्होंने आगे कहा, “वापस जाने के लिए कुछ भी नहीं बचा है। भविष्य इतना अनिश्चित है.”

मेमे चाहती हैं कि राज्य सरकार उनके परिवार को इंफाल में बसाए.

ईस्ट इंफाल की डिप्टी कमिश्नर खुमानथेम डायना देवी ने दिप्रिंट को बताया कि अभी जिला प्रशासन की सर्वोच्च प्राथमिकता उस डर को दूर करना है, जिसने मैतेई और कुकी को जकड़ रखा है.

उन्होंने कहा, “हम उनका विश्वास जीतना चाहते हैं, उन्हें पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करना चाहते हैं और यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि वे घर लौट आएं.”

नाम न छापने की शर्त पर राज्य सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि हिंसा के बाद दोनों समुदायों के बीच अविश्वास बढ़ गया है.

अधिकारी ने कहा, “जबकि राहत शिविरों में रह रहे अधिकांश कुकी मणिपुर से बाहर पड़ोसी राज्यों असम, त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय में जाना पसंद कर रहे हैं, मैतेई राहत शिविरों में रह रहे हैं और पहाड़ियों पर लौटने के लिए अनिच्छुक हैं.”


यह भी पढ़ें: हिंसा प्रभावित मणिपुर में असम राइफल्स द्वारा बचाई गई दो महिलाओं ने राहत शिविर में बच्चे को जन्म दिया


कर्फ्यू जारी और इंटरनेट सेवाएं बंद

इंफाल के मुख्य मार्ग और शहर में अन्य जगहों पर सड़कें सुनसान दिख रही हैं, सिवाय सुबह के पांच घंटे सुबह 11 बजे तक, जब लोगों को अपने रोजमर्रा के ज़रूरी सामान खरीदने के लिए कर्फ्यू में ढील दी जाती है.

पूरे राज्य में इंटरनेट सेवाएं भी बंद हैं. इंफाल जिला प्रशासन के अधिकारियों ने कहा कि कर्फ्यू हटाने और इंटरनेट सेवाएं बहाल करने पर जल्द फैसला लिया जाएगा.

Deserted Imphal roads as curfew continues | Suraj Singh Bisht | ThePrint
कर्फ्यू जारी रहने के कारण इंफाल की सुनसान सड़कें | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट | दिप्रिंट

अधिकारी ने कहा, “इंफाल सामान्य हो रहा है लेकिन पहाड़ी जिलों में अभी भी कुछ तनाव है.”

करीब एक सप्ताह से कर्फ्यू लगा हुआ है. निवासी स्वीकार करते हैं कि राज्य ने अतीत में भी जातीय संघर्ष देखा है, लेकिन इस बार यह पैमाना अभूतपूर्व रहा है.

डीएम विश्वविद्यालय, मणिपुर में राजनीति विज्ञान के सहायक प्रोफेसर डॉ अरंबम नोनी ने कहा, “हमने लंबे समय में इस पैमाने की हिंसा नहीं देखी है. आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच अविश्वास बढ़ गया है और राज्य सरकार को विभिन्न समुदायों के बीच बातचीत करने और शांति बहाल करने की आवश्यकता है.

उन्होंने कहा कि हालांकि, एक कहानी गढ़ी जा रही है कि आदिवासियों को अंत का सामना करना पड़ा है, लेकिन पहाड़ियों में रहने वाले गैर-आदिवासियों को भी समान रूप से नुकसान हुआ है.

उन्होंने कहा, “पहाड़ियों से गैर-आदिवासियों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ है और वे वापस जाने के लिए आशंकित हैं.”

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: हज-उमराह धोखाधड़ी- भारतीय मुसलमानों को कैसे जालसाज़ी में फंसाते हैं फ़ेक एजेंट्स


 

share & View comments