बालनगीर : हम सभी ने आयकर (आई-टी) अधिकारियों द्वारा कर चोरी के आरोपी लोगों पर छापे मारकर की गई करोड़ों रुपये की जब्ती की सुर्खियां देखी हैं. लेकिन कभी सोचा है कि नकदी जब्त होने के बाद उसका क्या होता है?
आयकर विभाग का ऑपरेशन एक सप्ताह से चल रहा है और 350 करोड़ रुपये से अधिक की बरामदगी अब तक की सबसे बड़ी जब्ती में से एक मानी जा रही है.
छापे में कांग्रेस के राज्यसभा सांसद धीरज प्रसाद साहू से जुड़ी संस्थाएं और लोग शामिल हैं, जिनमें ओडिशा स्थित बौध डिस्टिलरी प्राइवेट लिमिटेड (बीडीपीएल) भी शामिल है – जिसके अध्यक्ष साहू के बड़े भाई उदय शंकर प्रसाद हैं, जिसमें सांसद के बेटे रितेश साहू प्रबंध निदेशक के रूप में कार्यरत हैं – और बलदेव साहू एंड संस, एक हिस्सेदार हैं.
जब्त की गई रकम बहुत बड़ी है, जैसा कि नकदी के विशाल ढेर की वायरल तस्वीरों से साफ है. जिनमें सबसे अधिक प्रचलन में मौजूद 500 रुपये मूल्य वर्ग के नोट, यानी 70 लाख से अधिक बैंक नोट होंगे.
जैसा कि बरामदगी जारी है, दिप्रिंट ने आयकर विभाग और बैंकों के अधिकारियों से संपर्क किया ताकि यह समझा जा सके कि छापे के बाद क्या होता है, और जब्त किए गए धन का क्या किया जाता है.
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जब्त किए गए पैसे का क्या होता है
आईटी छापे का हिस्सा रहे एक बैंक अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, ऐसे मामलों में, जहां विभाग नकदी बरामद करता है, वहां मौजूद बैंक कर्मचारियों को ‘पंच गवाह’ नामित किया जाता है जो स्वतंत्र गवाह के रूप में काम करते हैं.
अधिकारी ने कहा कि मूल्य आंकने को लेकर बैंक कर्मचारी, पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए – जिनके परिसर से पैसा जब्त किया गया हो – उनकी मौजूदगी में बरामद नकदी की गिनती करते हैं.
अधिकारी ने कहा कि प्रक्रिया पूरी होने के बाद, जांच अधिकारी आयकर विभाग के ट्रेजरी खाते में पैसा जमा करने के लिए एक मांग पर्ची को भरता है.
अधिकारी ने कहा कि आयकर विभाग के पास इसके लिए भारतीय स्टेट बैंक में उसके खाते होते हैं.
आयकर विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि जिन खातों में पैसा जमा किया जाता है, वे क्षेत्रीय स्तर (प्रति क्षेत्र एक खाता) या राज्य स्तर पर भी हो सकते हैं.
एक बार जब किसी स्थान पर खोज-बीन खत्म हो जाती है, तो आईटी विभाग की जांच टीम एक “मूल्यांकन रिपोर्ट” तैयार करती है. नाम न छापने की शर्त पर विभाग के एक प्रमुख निदेशक रैंक के अधिकारी ने कहा, इस रिपोर्ट को छापे के निष्कर्ष के 60 दिनों के भीतर पूरा किया जाना होता है.
अधिकारी ने कहा, ये मूल्यांकन रिपोर्ट, छापे वाली जगहों पर की गई जब्ती और कर के वास्तविक मूल्य को “क्वांटीफाई” करती है, जिस पर कर चोरी का आरोप लगाया गया होता है.
अधिकारी ने आगे कहा, फिर मूल्यांकन रिपोर्ट विभाग के ‘केंद्रीय सर्कल’ को भेजी जाती है – जो कि सीधे आयकर महानिदेशक के अधीन काम करता है और इसका नेतृत्व आयकर आयुक्त (केंद्रीय) करता है – जहां “मामले का सेंटरलाइज्ड मूल्यांकन होता है.”
सेंटरलाइज्ड मूल्यांकन के एक पार्ट के तौर पर, एक अधिकारी किसी फर्म या व्यक्ति के खिलाफ कर चोरी के सभी मामलों को जोड़ता है और करदाता द्वारा किए गए प्रस्तुतीकरण और प्रतिवादों को ध्यान में रखते हुए तथ्यों का आकलन करता है.
अधिकारी ने कहा, “यह एक न्यायिक प्रक्रिया है जहां करदाताओं को मामले को समझाने के लिए उपयुक्त फ्रेमवर्क दिया जाता है.”
जांच पूरी होने के बाद, विभाग एक “आकलन आदेश” जारी करता है, जिसमें कर देनदारियों की सूची होती है.
अधिकारी ने कहा, यदि करदाता आदेश से सहमत है, तो मामला उसी स्तर पर सुलझ जाता है. अगर नहीं, तो करदाता अपील के लिए आयकर आयुक्त के समक्ष आदेश के खिलाफ अपील कर सकता है. यदि उनकी चिंताओं का समाधान तब भी नहीं हुआ, तो वे आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण और फिर उच्च न्यायालयों व उच्चतम न्यायालय में आगे अपील दायर कर सकता है.
जब पूरी प्रक्रिया जारी हो, तब बरामद धन राजकोष के खाते में बना रहता है.
अधिकारी ने कहा कि मुकदमा खत्म होने तक पैसा राजकोष के खाते में रहता है. यदि करदाता को दोषी ठहराया जाता है, तो कुर्की आदेश के जरिए पैसा कुर्क कर लिया जाता है, अधिकारी ने कहा, यदि करदाता दोषमुक्त हो जाता है तो उसे पैसा वापस मिल जाता है.
ऊपर जिक्र किए गए पहले अधिकारी ने कहा कि विभाग, छापे वाली जगह पर मिलने वाले सभी पैसे और कीमती सामान जब्त नहीं करता है, केवल उस हिस्से को जब्त करता है, जिसे “करदाता समझाने में असमर्थ होता है.”
अधिकारी ने कहा, “जब्ती, नकदी की उपलब्धता पर निर्भर नहीं करती. यह इस बात पर निर्भर करती है कि करदाता नकदी के स्रोत के बारे में कितना बता सकता है.”
‘अन्य एजेंसियां हस्तक्षेप कर सकती हैं’
उन परिदृश्यों के बारे में बताते हुए जिनमें एक करदाता अपने पास से जब्त की गई नकदी को रिलीज करने की मांग कर सकता है, वकील दीपक जोशी, जो कर से जुड़े मामलों को देखते हैं, ने कहा कि आयकर विभाग की आखिरी छापेमारी के 30 दिन के भीतर, सभी करदाताओं को आयकर अधिनियम की धारा 132 बी के तहत अपील दायर करने का हक है.
हालांकि, नकदी जारी करने का निर्णय मामले का आकलन करने वाले आईटी अधिकारी के विवेक और करदाता द्वारा कुछ शर्तों को पूरा करने पर निर्भर करता है.
यदि पूरी राशि बेहिसाब है, तो आयकर अधिकारी छापे वाले करदाता को नोटिस देगा और नकदी के स्रोत और विवरण के बारे में स्पष्टीकरण मांगेगा.
उन्होंने कहा कि छापेमारी के बाद आकलन में, वित्तीय वर्ष के अंत से 12 महीने लग जाते हैं.
उन्होंने कहा कि हालांकि जब्त की गई राशि को राजकोष खातों में निष्क्रिय रूप से रखे जाने की अवधि की कोई ऊपरी सीमा नहीं होती है, कुछ मामलों में, मूल्यांकन आदेश के आधार पर मामले का निपटारा किया जाता है.
वकील जुल्फिकार मेमन ने कहा कि न तो करदाता और न ही आयकर विभाग पैसे का उपयोग कर सकता है, और नकदी उसी खाते में बनी रहेगी, जिसमें इसे पहली बार जमा किया गया था (जांच पूरी होने तक).
उन्होंने कहा, मूल्यांकन आदेश जारी होने के बाद भी, और कुछ राशि के हिसाब-किताब का पता चलता है, तो बाकी राशि पर कर चोरी – और जुर्माना – कमोबेश जब्त की गई राशि के बराबर होगा.
आईटी विभाग द्वारा जब्त किए गए पैसे की जांच समानांतर प्रवर्तन निदेशालय जैसी अन्य कानून एजेंसियों कर सकती हैं, जिसकी तस्वीर अपराध की आय होने का संकेत मिलते ही बनने लगती है.
(अनुवाद और संपादन : इन्द्रजीत)
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