नई दिल्ली: 2021 का दक्षिणी-पश्चिमी मॉनसून अपने अंतिम चरण में दाख़िल हो रहा है, लेकिन जून, जुलाई और अगस्त के अपने पहले तीन महीनों में, ये पूरे भारत में अनियमित साबित हुआ है. देश में मॉनसून के बीच दो बड़े अंतराल देखे गए हैं- जुलाई और अगस्त दोनों में एक-एक- जिसकी वजह से कुल मिलाकर बारिश की मात्रा सामान्य से कम रही है.
इस साल के मॉनसून का पैटर्न उस रिपोर्ट पर फिट बैठता है, जिसका 9 अगस्त को जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आइपीसीसी) ने पूर्वानुमान लगाया था- जलवायु परिवर्तन के कारण ‘लंबे मॉनसून’ की संभावना है, जिसके साथ मॉनसून की चरम स्थितियों जैसे भारी बारिश, बाढ़ और सूखा आदि में भी इज़ाफा हो सकता है.
ये चरम स्थितियां जून के शुरू में ही ज़ाहिर हो गईं थीं, जब तेज़ आंधियों के चलते लंबी अवधि के औसत (एलपीए) से 10% अधिक बारिश हुई थी, जिसे मॉनसून की तीव्रता को मापने में, मानक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. एलपीए 1961 और 2010 के बीच हुई बारिश का औसत होता है.
लेकिन, जुलाई के पहले 11 दिनों में मॉनसून की बारिशों में एक ‘अंतराल’ देखा गया. ये ‘अंतराल’ तब होता है जब देश के अधिकांश हिस्सों में, लंबे समय तक बारिश की कमी से व्यवधान पैदा हो जाता है. ‘अंतराल’ के बाद भी 21 जुलाई तक, 10 दिन मॉनसून कमज़ोर बना रहा, जिसका मतलब है कि छिट-पुट बारिशें हुईं, लेकिन वो सामान्य से कम बनी रहीं. इसकी वजह से पूरे महीने बारिश का औसत, एलपीए के 93 प्रतिशत पर बना रहा.
उसके बाद अगस्त के पहले हिस्से में एक और अंतराल आया. उसकी वजह से अगस्त के अंत तक, पूरे भारत का आंकड़ा एलपीए का 91 प्रतिशत था.
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अलग अलग क्षेत्रों में एक सी कहानी
इस सीज़न में भारत के कुल 36 मौसम उपखंडों में से 20 में, औसत से कम बारिशें देखी गईं.
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) की वेबसाइट के अनुसार, उत्तर-पश्चिम क्षेत्र के राज्यों- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और राजस्थान में—बारिश की चरम स्थितियां देखी गईं, 2 जून को एलपीए के 226 प्रतिशत से, 30 जून को 114 प्रतिशत, 14 जुलाई को 85 प्रतिशत और 25 अगस्त को एलपीए की 88 प्रतिशत तक बारिशें हुईं. हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्ली में औसत से अधिक बारिशें देखी गई.
केंद्रीय रीजन में भी- जिसमें ओडिशा, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ आते हैं- मॉनसून अनियमित रहा. 16 जून तक इस क्षेत्र में एलपीए की 162 प्रतिशत बारिशें दर्ज हुई थीं, लेकिन 25 अगस्त तक ये आंकड़ा 87 पर आ गया था. 7 जुलाई से कमी शुरू हुई लेकिन महीने की 28 तारीख़ तक, बारिशें अतिरिक्त स्तर तक पहुंच गईं, जिसके बाद वो फिर कम हो गईं.
पूर्व-उत्तर-पूर्व क्षेत्र में 7 जुलाई के बाद, औसत से कम बारिशें हुईं, जब ये आंकड़ा एलपीए का 98 प्रतिशत था. 25 अगस्त तक ये आंकड़ा 89 पर आ गया था.
दक्षिण क्षेत्र में, पहले दो महीनों में मॉनसून लगातार एलपीए से ऊपर बना रहा- जून के अंत में 104 प्रतिशत और जुलाई में 122 प्रतिशत. लेकिन अगस्त के अंत तक ये गिरकर 103 प्रतिशत पर आ गया.
आईएमडी के आंकड़ों के अनुसार, गुजरात, राजस्थान, पंजाब, ओडिशा, केरल और उत्तर-पूर्व में, बारिश की कमी का सबसे अधिक असर झेलना पड़ा है और इसलिए गुजरात और पश्चिमी राजस्थान में सूखे की संभावना बढ़ गई है.
इस वर्ष मॉनसून की अनियमित बारिशों की वजह से, देश के प्रमुख जलाशयों में जलस्तर घट गए हैं. केंद्रीय जल आयोग के 26 अगस्त के बुलेटिन के अनुसार, देशभर के 130 जलाशयों में कुल मिलाकर पानी का स्तर, पिछले साल दर्ज मात्रा का केवल 83 प्रतिशत और पिछले 10 वर्षों के औसत का 96 प्रतिशत है.
इस डाटा से ये भी पता चलता है कि अगस्त कितना सूखा था, चूंकि 29 जुलाई के बुलेटिन में पिछले साल का 121 प्रतिशत दिखाया गया था, जो पिछले 10 वर्षों के औसत का भी 121 प्रतिशत था.
‘सामान्य’ पूर्वानुमान, असामान्य बारिशें
आईएमडी और देश में मौसम निगरानी तथा पूर्वानुमान की एक सबसे बड़ी कंपनी स्काईमेट, दोनों ने दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून के सामान्य होने का पूर्वानुमान लगाया था. कृषि पर अपने प्रभाव की वजह से, ये पूर्वानुमान देश की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण होता है. स्काइमेट कंपनी कृषि-जोखिम के समाधान भी उपलब्ध कराती है.
स्काइमेट के अध्यक्ष जीपी शर्मा ने दिप्रिंट से कहा, ‘इस साल मॉनसून बारिशों का सफर बहुत उतार-चढ़ाव भरा रहा और वो अपेक्षा के अनुरूप नहीं रही है. जून में अतिरिक्त बारिश हुई, और जुलाई का विचलन भी अपेक्षित था, जिसमें बारिश थोड़ा कम रही. झटका अगस्त में लगा- जिसमें 99 प्रतिशत बारिश के साथ बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी, लेकिन महीने के अधिकतर समय अंतराल की स्थितियां ही बनीं रहीं. अगस्त में बारिश 25-26 प्रतिशत कम रही है, जो एक रिकॉर्ड होगा’.
इन पैटर्न्स के कारण समझाते हुए शर्मा ने आगे कहा, ‘मॉनसून में मौजूदा कमी का संबंध हिंद महासागर द्विध्रुव की नकारात्मक सीमा से भी है, जिसकी वजह से औसत से कम बारिशें होती हैं. हमने अपने पूर्वानुमान को घटाकर अब सामान्य से कम, 94 प्रतिशत कर दिया है जिसमें 4 प्रतिशत की गुंजाइश रखी गई है’.
आईएमडी के जलवायु अनुसंधान और सेवाओं के प्रमुख, डीएस पई ने एक वेबिनार में कहा, ‘ज़्यादातर हिस्सों में अगस्त की स्थिति अच्छी नहीं रही है. गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान में बारिश में बहुत कमी रही है, जिसके साथ ओडिशा, एमपी, छत्तीसगढ़, और उत्तर-पूर्व में भी कुछ कमी देखी गई है. जून में, पश्चिमी तट पर और यूपी में भी बारिश की कुछ चरम स्थितियां देखी गईं, जुलाई में, पश्चिम एमपी, महाराष्ट्र और कर्नाटक में चरम स्थितियां पैदा हुईं, जिनके नतीजे में बाढ़ के हालात बन गए’.
‘अगले कुछ हफ्तों में केंद्रीय और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में, बारिश में सुधार देखने में आएगा. हम इन क्षेत्रों में सितंबर-अक्टूबर में बारिश की अपेक्षा कर रहे हैं, जिसका कारण मॉनसून की वापसी में देरी है, जैसा कि हम पिछले 10-12 सालों से देखते आ रहे हैं’.
स्काइमेट के शर्मा ने कहा कि इन पैटर्न्स में, जलवायु परिवर्तन का असर साफ देखा जा सकता है.
उन्होंने कहा, ‘जलवायु परिवर्तन एक वास्तविकता है, और मॉनसून भी एक बड़े स्तर की वैश्विक घटना है. उच्च प्रभाव की मौसमी घटना की आवृत्ति बढ़ रही है, जिससे अनिश्चितता पैदा हो रही है. पिछले तीन दशकों में मॉनसून बारिश में कमी आई है. लेकिन, इसका मतलब ये नहीं है कि बारिश में हर साल कमी आएगी- पिछले तीन सालों में मॉनसून में सामान्य से अधिक बारिशें हुई हैं’.
दिप्रिंट ने भी ख़बर दी थी कि कम बारिश और जलाशयों का स्तर गिरने से, खाद्य उत्पादन को नुक़सान पहुंच सकता है, जिससे महंगाई बढ़ेगी और बिजली उत्पादन पर भी ख़तरा हो सकता है
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