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Wednesday, 6 November, 2024
होमदेशरेस्क्यू सेंटर में रहने वाला भारत का सबसे पुराना रॉयल बंगाल टाइगर संघर्ष, ताकत और अस्तित्व की विरासत छोड़ गया

रेस्क्यू सेंटर में रहने वाला भारत का सबसे पुराना रॉयल बंगाल टाइगर संघर्ष, ताकत और अस्तित्व की विरासत छोड़ गया

राजा की जिंदा रहने की कहानी 'शानदार' थी, जिसने जानवरों को उनके प्राकृतिक आवास में संरक्षित करने में वन विभाग को अपनी भूमिका की अहमियत समझाई.

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कोलकाता: सुंदरवन पर अधिकार जताने से लेकर मगरमच्छों से लड़ने और तेंदुए को आतंकित करने तक, राजा का जीवन शानदार और उग्र था. लेकिन कैद में रहने वाले इस सबसे पुराने रॉयल बंगाल टाइगर की सोमवार को 25 साल और 10 महीने की उम्र में मृत्यु हो गई. उसका जीवन अस्तित्व के संकट और जानवरों के अनुकूल माहौल की जरूरत को उजागर करता है.

राजा की देखभाल करने वाले वन्यजीव रक्षक और पार्थ सारथी सिन्हा ने कहा ‘उसके प्रताप से हर कोई डरता था. राजा के दहाड़ने पर पास के बाड़े में तेंदुआ भी कई दिनों तक खाना नहीं खाता था. लेकिन मेरी नजर में.. राजा सबसे ज्यादा खुश नहाते हुए होता था. वह जंगल से आया था और पानी के प्रति उसका प्रेम बेमिसाल था. वह दिन में 4 से 5 बार नहाता था ‘

रेस्क्यू सेंटर में आना

मई 2008 में सुंदरबन में मतला नदी पार करते हुए राजा की एक मगरमच्छ के साथ लड़ाई हो गई और उसने अपने बाएं पैर का एक हिस्सा खो दिया. उसे कोलकाता के अलीपुर चिड़ियाघर ले जाया गया, जहां उसका इलाज चला और उसे एक नाम दिया गया-राजा. तीन महीने बाद राजा को दक्षिण खैरबारी रेस्क्यू सेंटर में भेज दिया गया.

उसके पैर में 16 घाव थे जो अभी तक ठीक नहीं हुए थे और जब वह पहली बार पुनर्वास केंद्र पहुंचा तो चलने में असमर्थ था. डॉ प्रलय मंडल और सिन्हा ने उसकी देखभाल की. सिन्हा ने बताया, ‘राजा भाग नहीं सकता था. जब भी कोशिश करता, गिर जाता. उसे वापस उठ खड़े होने की कोशिश करते हुए देखकर मेरी आंखों में आंसू आ जाते थे.’

राजा के आने पर रेस्क्यू सेंटर में 19 बाघ थे. जैसे-जैसे महीने बीतते गए,  कुछ बाघों की मौत हो गई तो कुछ को चिड़ियाघरों में भेज दिया गया, लेकिन राजा दक्षिण खैरबारी रेस्क्यू सेंटर का महाराजा बना रहा.

Royal Bengal tiger Raja at the South Khairbari Rescue Centre. | Photo Credit: DFO Jaldapara
दक्षिण खैरबारी बचाव केंद्र में रॉयल बंगाल टाइगर राजा। | फोटो क्रेडिट: आईएफएस दीपक एम, डीएफओ, जलदापारा

जंगल की आजादी से लेकर रेस्क्यू सेंटर में एक सीमा में बंधे रहना, यह बड़ी बिल्ली के लिए एक बड़ा बदलाव था. सिन्हा के मुताबिक, वह लोगों से नफरत करता था. ‘वह अपने बाड़े के अंदर बैठा रहता और तब तक बाहर नहीं आता जब तक कि मैं उसका खाना लेकर उसके पास नहीं आ जाता.’

राजा के खाने में हर दिन 8 किलो गोमांस शामिल था. लेकिन गुरुवार को उसका उपवास रहता था. फिर से खड़े होने की ताकत इकट्ठा करने में उसे नौ महीने लग गए. समर्पित वन अधिकारियों के बिना यह संभव नहीं था. वह हर समय उसकी मदद के लिए खड़े रहते. सिन्हा ने बताया, ‘पहली सर्दी मुश्किल भरी थी. वह सुंदरबन से आया था. उत्तरी बंगाल में यहां की तरह ठंडा नहीं पड़ती है. मैं पूरी रात उसके पास बैठा रहता और लकड़ी जलाकर उसे गर्म रखने की कोशिश करता. यहां के मौसम में रचने-बसने में उसे तीन सर्दियां लग गई थीं.’

मानसून भी खराब रहा. उसके घायल पैर में कीड़े लगने का खतरा हमेशा बना रहता. लेकिन उसकी देखभाल करने वाले लोग हर दिन उसके घावों को साफ करके मरहम-पट्टी करते रहे थे.

राजा और सिन्हा के बीच के संबंध साल दर साल और गहरे होते चले गए. सिन्हा ने कहा, ‘मुझे अपनी आखिरी सांस तक पछतावा रहेगा कि मुझे राजा को अंतिम बार देखने का मौका नहीं मिला।’ वह मई से ट्रेनिंग पर चल रहे थे और राजा की मौत से पहले उससे दूर थे.


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राजा के जीवन से सबक

वन्यजीव विशेषज्ञ कर्नल (रिटायर) शक्ति बनर्जी ने कहा कि राजा का अस्तित्व ‘निश्चित रूप से शानदार’ था, लेकिन वन विभाग को बंद जगहों के बजाय जानवरों को उनके प्राकृतिक आवास में संरक्षित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.

भारतीय वन्यजीव संरक्षण सोसायटी के ऑनरेरी डायरेक्टर बनर्जी ने कहा, ‘आप देखिए, राजा की देखभाल एक सुरक्षित जगह पर की जा रही थी. इसका मतलब है कि उसे समय पर खाना खिलाया जा रहा था. उनके पास एक केयरटेकर था. अगर उसकी सेहत ठीक नहीं होती तो एक जानवरों का डॉक्टर उसकी जांच करता था. लेकिन हमारे सामने असली चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि बाघ अपने प्राकृतिक आवास में जीवित रहें. हालांकि देश में बाघों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन उनके आवास को सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ संरक्षित करने की जरूरत है.’

The final rites of Royal Bengal tiger Raja. | Photo Credit: West Bengal Forest Department
रॉयल बंगाल टाइगर राजा का अंतिम संस्कार। | फोटो क्रेडिट: पश्चिम बंगाल वन विभाग

पश्चिम बंगाल के मुख्य वन्यजीव वार्डन रह चुके पूर्व IFS अधिकारी रवि कांत सिन्हा के अनुसार, जंगल में एक बाघ सिर्फ 11 से 18 साल के बीच जिंदा रह सकता है क्योंकि जैसे-जैसे वह बूढ़ा होता है, उसके लिए शिकार कर पाना मुश्किल हो जाता है. उन्होंने आवास संरक्षण के महत्व को भी रेखांकित किया. अधिकारी सिन्हा ने कहा, ‘हम तेजी से प्राकृतिक आवास खो रहे हैं. जानवरों के लिए जंगली आवासों को पुनर्जीवित करना एक बड़ी चुनौती है. ‘

पश्चिम बंगाल का सुंदरबन क्षेत्र पिछले कुछ वर्षों में मानव-पशु संघर्ष की घटनाओं के लिए कुख्यात रहा है. लेकिन सिन्हा इस बात पर जोर देते हैं कि संघर्ष के दो पक्ष हैं. उन्होंने बताया, ‘पिछले 50 सालों में ऐसी कोई घटना नहीं हुई है जहां एक बाघ इंसान को मारने के लिए वन क्षेत्र से बाहर गया हो. हर बार जब भी किसी बाघ ने इंसान पर हमला किया तो वह बाघ के आवास में जाने की वजह से हुआ है.’

वन्यजीव विशेषज्ञों को उम्मीद है कि राजा का जीवन घटते वन्य जीवों के आवासों को बचाने के लिए और अधिक ठोस प्रयास करने के लिए प्रेरित करेगा.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )


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