नई दिल्ली: केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने गुरुवार को राज्यसभा में कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने कांग्रेस सरकार के बिल्कुल विपरीत “प्रेस को अधिक स्वतंत्रता” दी है. उन्होंने कहा कि पहले की कांग्रेस सरकार को “ब्रिटिश मानसिकता” विरासत में मिली थी और आपातकाल के दौरान 260 से अधिक वरिष्ठ पत्रकारों को कांग्रेस सरकार ने जेल में डाल दिया गया था.
केंद्रीय मंत्री ठाकुर प्रेस और आवधिक पंजीकरण विधेयक, 2023 पर बहस के दौरान बोल रहे थे. सदन ने विपक्ष की अनुपस्थिति में कुछ मिनट बाद ध्वनि मत से विधेयक पारित कर दिया, जो मणिपुर में जातीय हिंसा पर कार्यवाही का बहिष्कार जारी रखता है.
यदि यह विधेयक दोनों सदनों से पारित हो जाता है तो कानून- जो भारत में समाचार पत्रों और पत्रिकाओं को पंजीकृत करने की प्रक्रिया को आसान बनाएगा- प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम, 1867 का स्थान ले लेगा.
बहस के दौरान, ठाकुर ने कहा, “पुराने और नए अधिनियम के बीच अंतर समझाने के लिए मैं चाहता था कि विपक्ष भी यहां होता क्योंकि वे एक समय देश पर शासन कर रहे थे.”
उन्होंने कहा, “अंग्रेज तो चले गए लेकिन अपनी मानसिकता इनको दे के चले गए. एक विदेशी व्यक्ति के द्वारा स्थापित की गई पार्टी, जो कई वर्षों तक सत्ता में रही. उन्होंने उसी ब्रिटिश मानसिकता के साथ काम किया.”
उन्होंने आपातकाल का भी मुद्दा उठाया- एक ऐसा समय जब प्रेस की स्वतंत्रता पर गंभीर प्रतिबंध लगा दिया गया था और कई पत्रकारों को जेल में डाल दिया गया था. उन्होंने कहा, मोदी सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया है.
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की आलोचना करते हुए अक्सर विपक्ष सरकार पर 2014 में सत्ता में आने के बाद से प्रेस की स्वतंत्रता को कम करने को लेकर गंभीर रूप से आरोप लगाता रहा है.
उन्होंने कहा, “आपमें से कई लोगों ने आपातकाल की बात की. आप जानते हैं कि कैसे (पूर्व प्रधान मंत्री) इंदिरा गांधी की सरकार ने 263 से अधिक वरिष्ठ पत्रकारों को जेल में डाल दिया था. मैं आज कह सकता हूं कि पिछले नौ वर्षों में भारत सरकार द्वारा ऐसा कुछ भी नहीं किया गया है. इसके बजाय, हमने प्रेस को अधिक स्वतंत्रता दी है.”
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‘वे न्यूज़लेटर्स को भी नियंत्रित करना चाहते थे’
बहस के दौरान, ठाकुर ने प्रेस, पुस्तकों और प्रकाशनों का पंजीकरण विधेयक, 2011 का उल्लेख किया, जिसे कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) ने 1867 अधिनियम की जगह पर तैयार किया था. हालांकि, उस बिल को अंततः जनवरी 2012 में एक स्थायी समिति के पास भेज दिया गया और बाद में उसपर कोई ध्यान नहीं दिया गया.
ठाकुर के अनुसार, यूपीए सरकार का बिल समस्याओं से भरा था और उस कानून से अलग नहीं था जिसे वह बदलना चाहते थे.
उन्होंने कहा, “वह लालफीताशाही को बढ़ावा दे रहा था. अख़बारों या पत्रिकाओं को भूल जाइए, वे कॉलेज पत्रिकाओं के पंजीकरण के लिए भी प्रावधान लाने वाले थे. सौभाग्य से, वे 2014 में चले गए और हम आ गए.”
उन्होंने कहा कि जबकि अंग्रेज केवल समाचार पत्रों और पत्रिकाओं को नियंत्रित करना चाहते थे, उन्होंने कहा, “उनके उत्तराधिकारी (कांग्रेस) समाचार पत्रों को भी नियंत्रित करना चाहते थे. इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण क्या हो सकता है?”
बिल क्या करता है
विधेयक में बताए गए ‘उद्देश्यों और कारणों’ में विधेयक पत्रिकाओं के पंजीकरण के लिए मौजूदा “बोझिल और जटिल” अधिनियम को सरल बनाने का प्रयास है. विधेयक में पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए कई चरणों को खत्म करने और प्रकाशकों को प्रेस रजिस्ट्रार जनरल- भारत में समाचार पत्रों और पत्रिकाओं को विनियमित करने और निगरानी करने के लिए शीर्ष अधिकारी- के साथ-साथ पंजीकरण प्रक्रिया के लिए ऑनलाइन आवेदन करने की अनुमति देने का प्रावधान है.
प्रस्तावित कानून में छोटे उल्लंघनों के लिए पुराने कानून द्वारा लगाए गए भारी जुर्माने को भी खत्म करने का प्रयास किया गया है. उदाहरण के लिए, मौजूदा कानून के तहत प्रकाशक का नाम और प्रकाशन का स्थान सही तरीके से नहीं छापने पर छह महीने की जेल हो सकती है.
जबकि नया विधेयक कानून के उल्लंघन के लिए वित्तीय दंड का प्रावधान लाएगा, जिसमें पंजीकरण के बिना प्रकाशन के लिए अधिकतम 5 लाख रुपये तक होगा.
विधेयक में भारत में विदेशी पत्रिकाओं के सटीक प्रतिकृतियों के प्रकाशन के लिए केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी की भी बात कही गई है.
(संपादन: ऋषभ राज)
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