प्रयागराज: महाकुंभ मेले से सात किलोमीटर दूर स्थित सरकारी स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल (एसआरएन) के वार्ड 29 जनवरी को हुई भगदड़ के पीड़ितों से भरे पड़े हैं.
बिहार, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक समेत विभिन्न राज्यों से आए पीड़ितों ने बुरे अनुभव किए हैं, लेकिन उन्हें खुशी भी है कि वह ज़िंदा बच गए हैं. कम से कम 30 लोगों की जान चली गई, जबकि 60 से अधिक लोग घायल हो गए.
प्रत्यक्षदर्शियों ने दिप्रिंट को बताया कि संगम पर हुई भगदड़ के कुछ घंटों बाद झूसी में करीब तीन किलोमीटर दूर दूसरी भगदड़ हुई. उन्होंने बताया कि झूसी में हुई भगदड़ सुबह 5:30-6 बजे के आसपास हुई, जबकि संगम पर हुई भगदड़ रात 1 से 2 बजे के बीच हुई. महाकुंभ के डीआईजी वैभव कृष्ण ने शुक्रवार को मीडिया को बताया कि दूसरी भगदड़ की खबरों की पुष्टि की जा रही है.
32-वर्षीय रंजन मंडल पहली बार महाकुंभ मेले में आए थे. वे अपनी बुजुर्ग मां सहित परिवार के चार अन्य सदस्यों के साथ पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी से आए थे. मंडल ने दिप्रिंट को बताया, “29 जनवरी की सुबह 12 बजे के बाद हम संगम में डुबकी लगाने जा रहे थे. मैंने पुलिस अधिकारियों को उन लोगों से गुजारिश करते हुए सुना जो पहले ही डुबकी लगा चुके थे कि वह चले जाएं.”
दिप्रिंट से बात करने वाले कई प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि 29 जनवरी की सुबह संगम में पानी का बहाव रुक गया था.
भगदड़ में घायल हुए लोगों ने बताया कि पिछली रात स्नान कर चुके श्रद्धालु वापस नहीं जा रहे थे.
वह ब्रह्म मुहूर्त में एक बार फिर स्नान करने के लिए घाटों पर इंतज़ार कर रहे थे. ब्रह्म मुहूर्त सूर्योदय से पहले का समय होता है जिसे शुभ माना जाता है. इससे संगम क्षेत्र में भीड़ उमड़ पड़ी.
मंडल ने कहा, “अचानक, मैंने अपनी मां को मदद के लिए चिल्लाते हुए सुना. वो एक बैग पर ठोकर खाकर ज़मीन पर गिर गई थीं. मैंने देखा कि करीब सात से आठ लोग उन्हें कुचल रहे थे.”
मंडल की मां दिल की मरीज़ हैं. उन्होंने कहा, “मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था. मुझे लगा कि मेरी मां मर गई हैं.”
वहां से निकलने का कोई रास्ता मालून नहीं होने के कारण, मंडल ने इस दौरान हुई अराजकता के बारे में बताया. “हम पास खड़े पुलिस अधिकारियों के पांव तक पड़े. किसी ने मदद नहीं की.”
आखिरकार, भगदड़ में फंसी भीड़ ही मंडल की मदद के लिए आई.
वाराणसी से एक व्यक्ति मंडल की मां को अपनी पीठ पर लादकर पास के बस स्टैंड तक ले गया, जहां परिवार सुबह 6 बजे तक एंबुलेंस का इंतज़ार करता रहा. तब से वह एसआरएन में भर्ती हैं.
महाकुंभ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) राजेश द्विवेदी ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, “हर 5 मिनट में एक एंबुलेंस घायलों को अस्पताल ले जाने के लिए आती थी. वहां बहुत सारे लोग थे, कुछ सो रहे थे, कुछ बैठे थे, सभी स्नान के इंतज़ार में थे.”
उन्होंने आगे कहा, “हमने तुरंत भीड़ को दूसरी दिशा में मोड़ा और अमृत स्नान को स्थगित कर दिया. अगर हमने तेज़ी से काम नहीं किया होता, तो स्थिति और भी खराब हो सकती थी. हालांकि, एक घंटे के भीतर स्थिति संभल गई, जिसके बाद हमने अमृत स्नान फिर से शुरू किया.”
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बूढ़े और जवानों को नुकसान
35-वर्षीय राम प्रसाद यादव ने भगदड़ में अपना सारा सामान खो दिया. उनके पास न तो मोबाइल फोन है, न ही पैसे और न ही कपड़े, लेकिन यह उनकी सबसे बड़ी चिंता है.
यादव ने दिप्रिंट से कहा, “मैंने अपने सामने दो-तीन महिलाओं को मरते देखा. मेरी मां को कुचला गया. उनकी हालत इतनी खराब थी कि वे घंटों तक पानी या जूस नहीं पी सकीं.”
यादव की मां, 65-वर्षीय सुखा देवी, फेफड़े में छेद के कारण एसआरएन में इलाज करवा रही हैं.
घायलों में कई युवा भी शामिल हैं.
22-वर्षीय राजीव सिंह अपने 23 साल के भाई आयुष सिंह और कई अन्य लोगों के साथ उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर से महाकुंभ मेले में गए थे.
संगम के पास भगदड़ में उनका ग्रुप भी फंस गया.
राजीव के जबड़े में फ्रैक्चर हो गया. एसआरएन में उनका इलाज चल रहा है, उनके चेहरे के कई हिस्सों पर टांके लगे हैं.
आयुष ने उस सुबह की घटनाओं के बारे में विस्तार से बताया. उनके समूह के एक अन्य सदस्य राहुल सिंह को मस्तिष्क में थक्का जम गया है और उन्हें इलाज के लिए वाराणसी ले जाया गया है.
आयुष ने दिप्रिंट को बताया, “बैरिकेड टूट गए. यह एक आपदा थी. मैं अपने भाई से अलग हो गया था, लेकिन पुलिस ने बहुत मदद की और हमें फिर से मिला दिया.”
‘खराब व्यवस्था’
दिप्रिंट ने जिन पीड़ितों से बात की, उन सभी ने ग्राउंड पर मौजूद पुलिस अधिकारियों की ओर से व्यवस्था में कमी की ओर इशारा किया.
उन्होंने कहा कि बैरिकेड्स की सुरक्षा करने वाले और कथित तौर पर महाकुंभ मेले में भीड़ का मार्गदर्शन करने वाले पुलिसकर्मी भगदड़ के दौरान और उसके बाद भी मददगार नहीं थे.
यह संभवतः भारी भीड़ के कारण हो सकता है.
कोलकाता के 36-वर्षीय व्यक्ति ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “पुलिस व्यवस्था खराब थी.”
उनकी 74-वर्षीय सास, संगम भगदड़ में घायल हो गईं और चार घंटे से अधिक समय तक उनसे अलग रहीं.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “मैंने विशेष रूप से पुलिस से मदद के लिए अनुरोध किया, लेकिन वह सहयोग नहीं कर रहे थे.”
उन्होंने कहा कि अंत में, महाकुंभ मेला परिसर में स्थापित खोया-पाया केंद्रों में मौजूद पुलिस अधिकारी उनकी मदद के लिए आए.
एसआरएन में पीड़ितों ने सरकारी अधिकारियों और अस्पताल के कर्मचारियों दोनों के बारे में सकारात्मक बातें कीं, जिन्होंने भगदड़ के बाद उन्हें अच्छा महसूस कराया.
और हालांकि, कुछ लोगों ने शिकायत की कि अस्पताल उन्हें जल्दी छुट्टी देना चाहता था, लेकिन उनकी मुख्य चिंता महाकुंभ मेला मैदान में कुप्रबंधन थी, जिसके कारण भगदड़ मची.
एक अन्य पीड़ित ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “उन्होंने भीड़ के बाहर निकलने के लिए कई रास्ते और पुल बंद कर दिए थे. संगम में जाने का रास्ता और बाहर जाने का रास्ता एक ही था.”
उन्होंने कहा, “इतनी छोटी जगह में एक छोटा सा धक्का भी बहुत बड़ा असर डालता है.”
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