नई दिल्ली: ब्लॉकबस्टर फिल्में दर्शकों को उन्हें सिनेमा हॉल्स में देखने के लिए प्रोत्साहित करेंगी क्योंकि बड़े पर्दे पर मूवी देखने के अनुभव का कोई मेल नहीं है, ऐसा कहना है पीवीआर सिनेमाज़ के ज्वायंट मैनेजिंग डायरेक्टर संजीव कुमार बिजली का.
दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में बिजली ने कहा, ‘हमारे धंधे में नई सामग्री बेहद अहम होती है. ब्लॉकबस्टर फिल्में उपभोक्ताओं को हॉल में आकर मूवी देखने के लिए प्रोत्साहित करती हैं’.
कोविड-19 महामारी के कारण करीब सात महीने बंद रहने के बाद, देश भर के सिनेमा हाल 15 अक्टूबर को खुलने जा रहे हैं. लेकिन महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना और राजस्थान ने मूवी हॉल्स को नहीं खोलने का फैसला किया है.
महामारी की वजह से फिल्म उद्योग दुनिया भर में सबसे अधिक प्रभावित होने वाले सेक्टर्स में से एक है. भारत में बॉलीवुड समेत सभी फिल्म उद्योग बिल्कुल ठहर गए जब कोविड-19 का प्रकोप रोकने के लिए मार्च में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशव्यापी लॉकडाउन का ऐलान कर दिया था.
सितंबर में मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, प्रोड्यूसर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और दूसरी संस्थाओं ने मोदी सरकार को पत्र लिखकर मूवी हॉल्स को फिर से खोलने की मांग की.
उन्होंने कहा कि महामारी की वजह से सिनेमा प्रदर्शनी उद्योग, एक बेहद ‘विपरीत और प्रतिकूल स्थिति’ में फंस गया था और लॉकडाउन के छह महीनों में इंडस्ट्री को 9,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ होगा.
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नुकसान बहुत हुआ है
बिजली आशावान हैं कि सिनेमा हॉल्स उस भारी नुकसान से उबर जाएंगे जो उन्हें हुआ है. उन्होंने कहा, ‘सिर्फ कुछ समय की बात है, हम वापसी करेंगे’.
लेकिन उन्होंने ये ज़रूर कहा कि लॉकडाउन की पाबंदियां हटाए जाने के बाद, ये इंडस्ट्री सबसे बाद में खुलने वाले सेक्टर्स में थी.
बिजली ने कहा, ‘हम सबसे पहले बंद होने वाले थे और अब सबसे आखिर में खुलने वाले हैं. इस बिज़नेस में रहने और इसे चलाने के बाद मुझे लगता है कि शायद हमारे साथ धोखा हुआ है. हम पहले खुल सकते थे’.
उन्होंने आगे कहा कि अगर सही गणित लगाएं, तो पिछले कुछ महीनों में स्थिति गंभीर रही है और बहुत भारी नुकसान रहे हैं, चूंकि तनख़्वाहें देनी थीं, किराए भरने थे और कुछ स्थिर खर्चे थे जबकि आमदनी कुछ नहीं थी.
पीवीआर सिनेमा 1997 में स्थापित किए गए थे. इस ग्रुप में 845 स्कीन्स का नेटवर्क है और भारत व श्रीलंका के 71 शहरों में, 176 प्रॉपर्टियां हैं.
लॉकडाउन से पहले कंपनी में 12,000 वर्कर्स थे (संविदा कर्मी और स्थाई स्टाफ दोनों) लेकिन बिजली ने समझाया कि अब ये संख्या घटाकर 7,000 कर दी गई है. उन्होंने बताया कि बाहर किए जाने वाले ज़्यादातर लोग संविदा कर्मी थे.
खर्चे पूरे करने के लिए जो लोग प्रबंधकीय पदों पर थे, उनके वेतन में भी 50 प्रतिशत की कटौती की गई.
बिजली के अनुसार, मल्टीप्लेक्सेज़ और सिंगल स्क्रीन सिनेमा दोनों को महामारी की वजह से भारी नुकसान सहना पड़ा. उन्होंने इस बात को माना कि साइज़, स्क्रीन्स की संख्या, शहरों, कर्मचारियों और स्थिर खर्चों की वजह से, मल्टीप्लेक्सेज़ के नुकसान ज़्यादा होंगे लेकिन सिंगल स्क्रीन वालों को भी अपने हिसाब से काफी नुकसान झेलना पड़ा.
उन्होंने कहा, ‘किसी भी कारोबार के बंद होने का प्रभाव हानिकारक होता है, उसका साइज़ भले ही कुछ भी हो’.
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सिनेमाई अनुभव में बदलाव
बिज़नेस के फिर से शुरू होने से उत्साहित बिजली ने कहा कि वो उन नियमों से खुश हैं, जो गृह मंत्रालय ने कोविड-19 से बचने के लिए तय किए हैं.
30 सितंबर को गृह मंत्रालय ने कहा था कि सिनेमा हॉल्स को केवल 50 प्रतिशत क्षमता पर काम करने दिया जाएगा. बिजली ने कहा कि ‘ये दुनिया के बहुत से दूसरे मुल्कों से बहुत बेहतर है’.
इसके अलावा 6 अक्टूबर को सूचना व प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के अनुसार सभी सिनेमा हॉल्स में फेस मास्क और थर्मल स्क्रीनिंग अनिवार्य होगी. हॉल के भीतर केवल पैक किया हुआ फूड ही सर्व किया जाएगा और शो के टाइमिंग में भी अंतराल होगा.
पीवीआर चीफ़ ने कहा, ‘प्रोटोकोल्स संभव तो हैं लेकिन सख़्त ज़रूर हैं’.
उन्होंने समझाया कि पूरी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, हर शो के बाद सिनेमा हॉल्स को सैनिटाइज़ किया जाएगा, और जहां तक संभव हो सकेगा, ज़्यादा से ज़्यादा लेन-देन संपर्क के बिना होगा- मूवी टिकट ख़रीदने से लेकर खाद्य और पेय तक.
बिजली ने कहा, ‘लेकिन जो चीज़ लोगों को थिएटर्स में वापस लाएगी, वो है कंटेंट’.
उन्होंने कहा कि सिनेमा हॉल खासतौर से 1983 में भारतीय क्रिकेट टीम की पहली वर्ल्ड कप जीत पर बनी, रणवीर सिंह-स्टारर 83 पर उम्मीद लगाए बैठे हैं जो क्रिसमस के आसपास रिलीज़ होगी और अक्षय कुमार- स्टारर सूर्यवंशी जो 2021 में रिलीज़ होनी है.
बहुत सी रीजनल तमिल और बंगाली फिल्में भी हैं, जो रिलीज़ के लिए तैयार हैं. ‘भारत में हम लकी हैं कि हमारे पास ढेरों किस्म की फिल्में हैं और हम किसी एक तरह की भाषा और कंटेंट के भरोसे नहीं हैं. तमिल, बंगाली और पंजाबी फिल्में लाइन में लगी हैं और थिएटर्स के खुलने के इंतज़ार में हैं’.
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दीर्घकालिक ढांचागत बदलाव
बिजली ने इस पर भी बात की कि महामारी के लाए हुए ढांचागत बदलावों को कैसे दो हिस्सों में देखा जा सकता है. एक वैक्सीन से पहले का स्ट्रक्चर होगा और दूसरा वैक्सीन के बाद का व्यवहार होगा.
उन्होंने समझाया कि वैक्सीन से पहले के पीरियड में सतर्कता और आशंका का एक स्तर होगा जिसमें बच्चों और बुज़ुर्गों को थिएटर्स में नहीं आने दिया जाएगा.
उन्होंने आगे कहा कि किसी मूवी को देखने के लिए, हो सकता है कि शुक्रवार को ज़्यादा भीड़ न हो लेकिन सिनेमा हॉल्स में फिल्में ज़्यादा समय तक चलेंगी.
लेकिन बिजली का मानना है कि एक बार वैक्सीन विकसित हो जाए और चलन में आ जाए तो फिर चीज़ें फिर से सामान्य हो जाएंगी और कोई बड़े बदलाव नहीं होंगे.
उन्होंने कहा, ‘फिल्में देखने का बिज़नेस बरसों से चल रहा है. टेक्नोलॉजी में बदलाव आए हैं, आराम के स्तर में बदलाव आए हैं, एफ एंड बी (खाद्य और पेय) बदले हैं और हम जिस तरह फिल्में बनाते हैं, वो भी बदला है. लेकिन मूवी देखने की धारणा अभी भी वही है’.
बिजली ने आगे कहा, ‘हम बहुत लचीले हैं. हमने पहले भी बहुत सी बाधाएं झेली हैं लेकिन हर बार उछलकर वापस आए हैं. फिल्में देखना ऐसी चीज़ है, जिसे हमारे साथ 100 साल से अधिक हो गए हैं. ओटीटी (ओवर द टॉप प्लेटफॉर्म्स) और मनोरंजन के दूसरे साधनों के हमले के बावजूद, हम इसका भी बहादुरी से सामना करेंगे’.
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