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Tuesday, 5 November, 2024
होमदेश‘हम आग हैं, लेकिन ‘राज ठाकरे’ नहीं- राज्य चुनाव में आप, TMC को पछाड़ने वाले रिवोल्यूशनरी गोअन के हौंसले बुलंद

‘हम आग हैं, लेकिन ‘राज ठाकरे’ नहीं- राज्य चुनाव में आप, TMC को पछाड़ने वाले रिवोल्यूशनरी गोअन के हौंसले बुलंद

2017 में गोवा के ‘मूल निवासियों’ के लिए लड़ने के लिए एक आंदोलन के तौर पर स्थापित रिवोल्यूशनरी गोअन ने 2022 के राज्य विधानसभा चुनाव में एक सीट और लगभग 10 प्रतिशत वोट हासिल किए हैं.

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मुंबई: गोवा विधानसभा में शपथ लेने पहुंच रहे 39 नवनिर्वाचित विधायकों की कारों की आवाजाही लगातार जारी थी. इसी बीच, एकमात्र काला दोपहिया वाहन अंदर पहुंचा. उस पर सवार एक युवा व्यक्ति ने सफेद शर्ट और नीली जींस पहन रखी थी और कैमरों को देखकर मुस्कुराते हुए थम्स-अप का निशान बनाया.

यह कोई और नहीं 28 वर्षीय वीरेश बोरकर थे, जो सेंट आंद्रे निर्वाचन क्षेत्र के नए विधायक हैं. इन्होंने अपने पहले चुनाव में ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मौजूदा विधायक फ्रांसिस्को सिलवीरा को हरा दिया.

बोरकर ने मंगलवार सुबह जब विधानसभा में शपथ ली, उनकी पार्टी रिवोल्यूशनरी गोअंस (आरजी) ने इसे ‘पोगो परिवार’ के लिए एक ‘रोमांचक पल’ करार दिया. पोगो यानी पीपुल ऑफ गोवा ओरिजिन के लिए काम करने वाले लोगों की पार्टी.

इस पार्टी की शुरुआत मार्च 2017 में गोवा के ‘मूल निवासियों’ के संरक्षण और उनके अधिकारों के लिए लड़ने के एजेंडे के साथ एक सामाजिक आंदोलन के तौर पर हुई हुई थी, और इस चुनाव में उसने गोवा के राजनीतिक मैदान में एक तरह से तहलका मचा दिया है.

फुटबॉल चुनाव चिह्न के साथ मैदान में उतरी इस पार्टी ने एक विधायक के साथ न केवल अपना पहला गोल किया, बल्कि कुल मिलाकर राज्य में लगभग 10 प्रतिशत के साथ तीसरा सबसे अधिक वोट शेयर भी हासिल किया.

इस लिहाज से उसने आम आदमी पार्टी (आप) या तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) जैसे प्रतिद्वंद्वियों को पीछे छोड़ दिया. इसके अलावा, इसने आधा दर्जन से अधिक सीटों पर सत्ता-विरोधी वोटों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हासिलकर कांग्रेस को खासी चोट पहुंचाई.
आरजी प्रमुख मनोज परब ने उस दिन दिप्रिंट को फोन पर बताया था, ‘यह एक चमत्कार है.’

37 वर्षीय परब ने कहा, ‘हमने फरवरी 2021 में चुनाव लड़ने का फैसला किया. बतौर पार्टी हमारे पंजीकरण की फाइल पिछले साल नवंबर में ही पारित हुई थी. हमें चुनाव से डेढ़ महीने पहले अपना चुनाव चिह्न मिला. हमने 38 प्रत्याशी उतारे थे और अब हमारा अपना एक विधायक भी है. यह किसी चमत्कार से कम नहीं है.’

उन्होंने कहा कि लोगों ने आरजी को ‘बच्चों का टाइमपास’ करार देते हुए नजरअंदाज कर दिया था, लेकिन हमने बड़े खिलाड़ियों को इस चुनावों में बाहर कर दिया.

उन्होंने कहा कि यह जीत बताती है कि आरजी को गंभीरता से लेना चाहिए, और उन बुद्धिजीवियों के बीच भी पार्टी ने अपनी पैठ बना ली है जो अब पार्टी के नेताओं के साथ जुड़ना चाहते हैं और उनकी बात सुनना चाहते हैं.

‘हम राज ठाकरे और उनकी पार्टी जैसे नहीं हैं’

राज्य के मूल लोगों के लिए काम करने वाली पार्टी यानी ‘सन ऑफ स्वायल’ का राजनीतिक तमगा सबसे ज्यादा बाल ठाकरे की पार्टी शिवसेना के साथ ही जुड़ा रहा है, जिसका गठन 1966 में मुंबई में हुआ था. और जो ‘बाहरी लोगों’ को मुंबई के मूल निवासियों से रोजगार छीनने के साथ-साथ अवैध प्रवासी फेरीवालों, और अवैध मलिन बस्तियों की भीड़ बनाने के लिए जिम्मेदार ठहराती रही है.

2006 यानी करीब चार दशक बाद बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने यही विचारधारा आगे बढ़ाने के साथ अपना खुद का संगठन खड़ा किया. आरजी की तरह ही राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने अपने पहले विधानसभा चुनाव में 13 विधायकों की जीत और कई अन्य सीटों पर शिवसेना का खेल बिगाड़ने के साथ राजनीतिक विश्लेषकों को हैरत में डाल दिया था.
परब ने दिप्रिंट को बताया, ‘चुनाव से पहले हमें प्रवासी विरोधी दल के दौर पर चित्रित किया गया. लोग मुझे राज ठाकरे कह रहे हैं और मनसे से हमारी समानताएं बता रहे हैं, लेकिन हम इससे कोसों दूर हैं. हमने कभी हिंसा का सहारा नहीं लिया. हम प्रवासी विरोधी नहीं हैं. हम बस गोवा-समर्थक हैं.’

उन्होंने कहा, आरजी ऐसे मुद्दे उठाती है जैसे मूल गोवावासियों को यहां से विस्थापित होने को बाध्य होना पड़ रहा है जबकि प्रवासी ‘दूसरे और तीसरे घर या फिर हॉलीडे होम’ खरीद रहे हैं. इसके अलावा अवैध आवास, गैरकानूनी तौर पर पहाड़ियां काटकर या भूमि पाटकर गोवा की हरियाली को नुकसान पहुंचाने, अवैध प्रवासी विक्रेताओं की भीड़ और गोवा के मूल लोगों के लिए रोजगार जैसे अन्य मुद्दे भी हैं.

परब ने बताया कि शिवसेना और मनसे के आक्रामक रवैये के विपरीत आरजी सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून की ताकत का इस्तेमाल करती है. वह अपने मोबाइल फोन, लैपटॉप और सोशल मीडिया के जरिये लोगों से जुड़ने में भरोसा करती है और लाइव वीडियो और ‘एंटी-गोअन’ गतिविधियों के प्रसारण के जरिये सभी लोगों को सच्चाई से रू-ब-रू कराती है.
परब ने कहा, ‘गोवा में बसे कई गैर-गोवावासी भी हमें सम्मान की नजर से देखते हैं क्योंकि हम उन लोगों के खिलाफ नहीं हैं जो कानून के दायरे में यहां रह रहे हैं और काम कर रहे हैं.’


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‘निज गोअनकर’ के लिए ‘उज्जो’

2011 की जनगणना के मुताबिक, गोवा की आबादी 14.58 लाख है, जिसमें 18.5 प्रतिशत अन्य राज्यों के प्रवासी हैं.
पिछले एक दशक में प्रवासी आबादी और बढ़ी है, स्थानीय निवासियों की नजर में अपडेटेड आंकड़ों के अभाव में यह आंकड़ा 35 से 50 प्रतिशत के बीच बढ़ा है.

परब ने 2008 में गोवा यूनिवर्सिटी से भूविज्ञान में एमएससी की थी, और अपना खुद का पानी की टंकी की सफाई का व्यवसाय शुरू किया था. उन्होंने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उनके अधिकांश बैचमेट्स को काम की तलाश में गोवा से बाहर जाना पड़ा.

यह कहते हुए कि इस अनुभव ने ही उनके दिमाग में आरजी जैसे आंदोलन का बीज बो दिया, परब ने बताया, ‘गोवा में 19 औद्योगिक संपदाएं हैं, लेकिन इनमें केवल 10-15 प्रतिशत कर्मचारी ही मूल निवासी होंगे. कोई इस अन्याय की बात नहीं करता. हम यह नहीं चाहते कि उद्योग सिर्फ हमारे संसाधनों, हमारी सब्सिडी के इस्तेमाल के लिए और हमारी भूमि और हवा-पानी को खराब करने के लिए गोवा में आएं. जब हम उन्हें अपने संसाधन दे रहे हैं, तो हमें रोजगार भी मिलना चाहिए.’

परब की आरजी के सह-संस्थापक बोरकर और विश्वेश नाइक से मुलाकात आम आदमी पार्टी के लिए काम करने के दौरान हुई थी. हालांकि, पार्टी के कथित तौर पर दिल्ली-केंद्रित होने और नेतृत्व प्रबंधन को लेकर उनका उससे मोहभंग हो गया और उन्होंने 3 मार्च 2017 को आप से अलग होकर आरजी को लॉन्च करने का फैसला किया.

बोरकर की तरह नाइक और परब ने भी 2022 का विधानसभा चुनाव लड़ा था. प्रियोल से चुनाव मैदान में उतरे नाइक ने करीब 9 फीसदी वोट हासिल किए, जबकि तिविम से चुनाव लड़कर परब ने 21 फीसदी वोट हासिल किए.

2017 में अपने गठन के तुरंत बाद आरजी ने एक ‘पोगो बिल’ का मसौदा तैयार किया, जो ‘निज गोअनकर (मूल गोवावासी)’ को परिभाषित करता है. इसके मुताबिक, जिसके माता-पिता या दादा-दादी 20 दिसंबर 1961 से पहले या गोवा को पुर्तगाली शासन से मुक्त कराए जाने से पहले यहां पैदा हुए थे, वे ही गोवा के मूल निवासी हैं.

इसमें निज गोअनकर के लिए कुछ अधिकारों और विशेषाधिकारों का प्रस्ताव भी किया गया है, जिसमें सरकारी नौकरियों, पट्टों, निविदाओं, सरकारी सब्सिडी आदि में इन्हें वरीयता दिया जाना शामिल है.

संगठन ने गोवा के मूल मजदूरों, किसानों, मतदाताओं, उन मूल गोवावासियों को पंजीकृत करना शुरू किया, जो ताजे फल, सब्जियां और मछली आदि बेचने में रुचि रखते थे. आरजी इन समूहों को लक्षित करके अपनी गतिविधियों को चलाना शुरू किया.
2018 तक उनके आंदोलन ने व्यापक रूप ले लिया और उनके लिए इसमें ज्यादा से ज्यादा समय देना जरूरी हो गया. इसके बाद परब ने अपना व्यवसाय अपने भाई को सौंप दिया और नाइक ने भी 2018 में ही एक बैंक की अपनी पूर्णकालिक नौकरी छोड़ दी. 2019 में सॉफ्टवेयर इंजीनियर बोरकर ने भी इस्तीफा दे दिया और निजी क्षेत्र की नौकरी की जगह आरजी के पूर्णकालिक सदस्य के तौर पर काम करने लगे.

आरजी सदस्यों ने अपने पोगो बिल का मसौदा गोवा विधानसभा के सभी सदस्यों को सौंपा, लेकिन परब के मुताबिक, उनमें से किसी ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया. इसके बाद आरजी ने मसौदे को प्रचारित करने के लिए पोगो रैलियां शुरू कर दी. परब ने बताया कि दिसंबर 2019 में बेनौलिम की पहली रैली में लगभग 3,500 लोग जुटे थे और बाद में अंजुना और डाबोलिम की रैलियों में भीड़ काफी ज्यादा बढ़ गई.

परब ने कहा कि आरजी के पहले विधायक निजी सदस्य के बिल के तौर पर विधानसभा में पोगो बिल पेश करेंगे.
10 मार्च को जब सेंट आंद्रे निर्वाचन क्षेत्र में मतगणना समापन के करीब थी, बोरकर निश्चित तौर पर विजेता के रूप में उभरते नजर आने लगे थे और तब समर्थकों ने आरजी नेता को माला पहनाई और उन्हें अपने कंधों पर उठाकर एक सुर में ‘उज्जो उज्जो’ का नारा लगाना शुरू कर दिया.

कोंकणी भाषा में इस शब्द का मतलब होता है ‘आग’—जिसे आरजी ने अपने अभियान का पर्याय बना लिया है.
आरजी का कहना है कि बोरकर की जीत और कुछ नहीं बल्कि ‘विधानसभा में गोवा के लोगों की मुखर आवाज’ है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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