पणजी, चार जून (भाषा) गोवा वन विकास निगम (जीएफडीसी) ने स्पष्ट किया है कि विभिन्न जल निकायों पर जाने को लेकर राज्य सरकार द्वारा हाल में लगाया गया प्रतिबंध वन विभाग के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले झरनों पर लागू नहीं होता।
जीएफडीसी की अध्यक्ष डॉ. देविया राणे ने मंगलवार को बताया कि तटीय राज्य में मानसून के दौरान पर्यटन गतिविधियों के तहत ये झरने पर्यटकों के लिए खुले हैं।
हालांकि, विपक्षी कांग्रेस ने इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि जीएफडीसी लोगों की जान जोखिम में डाल रहा है। उत्तर और दक्षिण गोवा जिला प्रशासनों ने अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में झरनों, परित्यक्त खदानों, नदियों, झीलों और अन्य प्राकृतिक जल निकायों में प्रवेश, तैराकी एवं नहाने पर प्रतिबंध लगा दिया है।
उन्होंने मानसून में विभिन्न प्राकृतिक जल निकायों में डूबने की ‘‘बार-बार सामने आ रहीं गंभीर’’ घटनाओं के मद्देनजर ये आदेश जारी किए।
उत्तर एवं दक्षिण गोवा के जिलाधिकारियों ने कहा कि आदेश का उल्लंघन करने वाला हर व्यक्ति दंड का पात्र होगा।
राणे ने सोशल मीडिया पर ‘पोस्ट’ किए गए एक सार्वजनिक नोटिस में कहा, ‘‘वन विभाग और जीएफडीसी द्वारा प्रोत्साहित की जा रहीं मानसून पर्यटन गतिविधियों के तहत वन विभाग के अंतर्गत आने वाले झरने पर्यटकों के लिए खुले रहेंगे।’’
इन स्थलों पर पर्यटकों के लिए ‘लाइफ जैकेट’ और उनकी सुरक्षा के लिए अन्य उपाय सुनिश्चित किए गए हैं।
राणे ने कहा, ‘‘झरनों और ट्रैकिंग गतिविधियों में प्रवेश चिह्नित द्वारों से होगा जहां सभी बुनियादी सुविधाएं प्रदान की जाएंगी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए आम जनता से अनुरोध है कि वह जिलाधिकारियों द्वारा जारी आदेशों से भ्रमित न हो, क्योंकि निर्देशित मानसून पर्यटन गतिविधियों/वन क्षेत्र में ट्रैकिंग/झरनों में गतिविधियों पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है।’’
कांग्रेस की गोवा इकाई के प्रमुख अमित पाटकर ने इस कदम की आलोचना करते हुए दावा किया कि यह पर्यटन नहीं, बल्कि ‘‘पीआर (जनसंपर्क) में लिपटा मौत का जाल’’ है।
पाटकर ने मंगलवार शाम को मीडिया को जारी एक बयान में कहा, ‘‘भाजपा कितने गोवावासियों की जान जाने के बाद सार्वजनिक सुरक्षा के साथ राजनीति करना बंद करेगी?’’
भाषा सिम्मी वैभव
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