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Monday, 18 November, 2024
होमदेशटीवी पर IPL देख राजस्थान के गांव की इस लड़की ने ‘स्क्रीन के दूसरी तरफ’ क्रिकेट में बनाई अपनी जगह

टीवी पर IPL देख राजस्थान के गांव की इस लड़की ने ‘स्क्रीन के दूसरी तरफ’ क्रिकेट में बनाई अपनी जगह

अनीशा बानो की चचेरी बहन मूमल मेहर उनके नक्शेकदम पर चल रही हैं, उनके चौके और छक्के मारने के वीडियो वायरल हो रहे हैं और सचिन तेंदुलकर का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं. हालांकि, कई चुनौतियां फिर बी बरकरार हैं.

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जयपुर: राजस्थान के बाड़मेर जिले के शेरपुरा गांव में सीमित बुनियादी ढांचे और सामाजिक माहौल के साथ, जहां ज्यादातर लड़कियों के लिए कॉलेज जाने की ख्वाहिश भी कोई आसान काम नहीं है, नन्ही अनीशा बानो उन आम लोगों में नहीं हैं. उनके सपने 2013 में उड़ने लगे जब उन्होंने पहली बार टीवी पर इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) टूर्नामेंट देखा.

अपने चचेरे भाई रोशन खान, जिन्होंने लड़कों को क्रिकेट की ट्रेनिंग दी थी, से तब कहा, “मैं भी खेलना चाहती हूं और स्क्रीन के दूसरी तरफ दिखना चाहती हूं,” संभावित कठिनाइयों से वाकिफ खान ने उन्हें खेलने से हतोत्साहित करते हुए कहा- “यहां न तो खेल का मैदान है और न ही संसाधन और तुम्हें लड़कों के साथ खेलने की इज़ाज़त नहीं मिलेगी.”

हालांकि, 2021 तक 16-वर्षीय अनीशा ने चैलेंजर ट्रॉफी के लिए अंडर-19 वुमेन्स स्टेट टीम में जगह बना ली थी. उनकी ख्वाहिश तब पूरी होने लगी, जब अनीशा की 14-वर्षीय छोटी चचेरी बहन मूमल मेहर ने एक वायरल वीडियो में लगातार चौके और छक्के मारने के लिए सुर्खियां बटोरीं. यह खबर मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर तक पहुंची जिन्होंने एक ट्वीट में उनकी बल्लेबाजी की तारीफ की. मेहर के नाम से दर्जनों सोशल मीडिया फैन पेज बनाए जा चुके हैं. उन्हें हर तरफ से मदद मिल रही है और राजस्थान के भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अध्यक्ष सतीश पूनिया ने उन्हें क्रिकेट किट भेजी है.

महिला प्रीमियर लीग और आगामी आईपीएल से पूर्व, दूर दराज के रेगिस्तानी गांव की इन दो लड़कियों की कहानी लचीलेपन, सपनों और कठिन वास्तविकताओं में से एक है.


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सपने देखने की हिम्मत

बाड़मेर जिला मुख्यालय से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्टेट हाईवे-65 के पास कनासर पंचायत के अंतर्गत 40 घरों का एक छोटा सा गांव शेरपुरा है.

अनीशा के पिता, याकूब खान एक स्थानीय अदालत में काम करते हैं और रोज़ाना के 300-400 रुपये कमाते हैं और उनकी पत्नी मारवी मवेशियों और खेतों की देखभाल करती हैं. पांच बच्चों-चार लड़कियां और एक लड़का में सबसे छोटी अनीशा कुछ साल पहले तक बकरियों को चराने ले जाती थीं. यह घंटों तक चलता रहता- और यहीं पर उन्हें गेंदबाज़ी की प्रैक्टिस का मौका मिला.

अनीशा ने दिप्रिंट को बताया, “मैं एक टेनिस बॉल लाने में कामयाब रही और जब तक बकरियां चरतीं, मैं पंचायत भवन या किसी अन्य इमारत की दीवारों पर गेंदबाज़ी की प्रैक्टिस करती रहती.”

उन्होंने कुछ वर्षों तक प्रैक्टिस की, जब तक कि उनमें से एक बकरी गायब नहीं हो गई. उन्होंने बताया, “मेरी मां झाड़ू लेकर मेरे पीछे दौड़ी, लगभग टेनिस बॉल को कोसते हुए”, लेकिन इससे उसके सपने देखने का ज्ज़बा कम नहीं हुआ.

2015 में पंचायतों द्वारा 10-दिवसीय ग्राम-स्तरीय क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन किया गया, जिससे उन्हें बाउंड्री पर बैठने और लड़कों को खेलते हुए देखने का मौका मिला.

अपने माता-पिता रोशन खान और लड़कों की निगाहों से दूर अपने दम पर प्रैक्टिस के अपने दिनों को याद करते हुए अनीशा ने कहा, “मैंने सोचा था कि मैं मीडियम पेसर बनूंगी”.

2018 में उसने एक स्थानीय दुकानदार से बाड़मेर के बाज़ार से चमड़े की गेंद लाने के लिए कहा, “लेकिन लेदर बॉल महंगी थी और मेरे पास पैसे नहीं थे. कोई भी मुझे 350 रुपये उधार नहीं देगा. इसलिए मैंने दुकानदार से अनुरोध किया कि वो मुझे एक दिन के लिए गेंद उधार दे दे.”

अनीशा पूरी रात सो नहीं पाई क्योंकि उसके प्रैक्टिस के अंत तक गेंद पर खरोंच आ गई थी. अगली सुबह, उसने खरोंच को लाल स्याही से ढकने की कोशिश की और गेंद दुकानदार को लौटा दी, लेकिन वो रोना बंद नहीं कर सकी. चूंकि, रोशन पास में ही रहता था, उसने अपनी आपबीती उसे बताई, तभी उसे अहसास हुआ कि अनीशा अपने खेल को कितनी गंभीरता से लेती हैं.

अगले कुछ साल तक, खान उसके कोच बन गए और खेतों में प्रैक्टिस करने लगी. खान ने बताया, “कोई किट नहीं थी, कोई चमड़े की गेंद नहीं थी, कोई खेल का मैदान नहीं था और कोई सपोर्ट सिस्टम नहीं था, लेकिन उसके (अनीशा) पास जुनून था.” खान की आंखें अपने छात्र पर गर्व से चमक रही थीं.

25 सितंबर 2021 को अनीशा और उसके पिता बाड़मेर से जयपुर के लिए बस में सवार हुए.


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चुनौतियां अब भी बरकरार

अपनी लाइफ चेंजिंग स्टोरी को याद करते हुए, अनीशा ने कहा, “मैं अपने गांव के बाहर एक दुनिया देखकर बहुत खुश थी. उस दिन मैंने पहली बार बस स्टैंड देखा, बाड़मेर नाम का शहर और फिर जयपुर. मुझे लगा जैसे मेरे पास पंख हैं. मैं अपने ख्यालों में उड़ रही थी.”

Anisha Bano (right) with cousin Mumal Mehar and their coach Roshan Khan | By special arrangement
अनीशा बानो (दाएं) बहन मूमल मेहर और उनके कोच रोशन खान | फोटो- स्पेशल अरेंजमेंट

अगले दिन वीनू मांकड़ ट्रॉफी के लिए राज्य की टीम के अंडर-19 वर्ग में ट्रायल के लिए पूरे राजस्थान से 400 से अधिक लड़कियां आईं. बाड़मेर की एक और लड़की थी जिसके परिवार ने उसे अकादमी में दाखिला दिलाया था. अनीशा ने बताया, “वह लड़कों की अकादमी में लड़कों के साथ खेलती थी. बाड़मेर में लड़कियों के लिए कोई क्रिकेट अकादमी नहीं है. हमारा समुदाय मुझे इसकी अनुमति नहीं देगा.”

लेकिन, अनीशा ने 15 सदस्यीय टीम में तेज़ गेंदबाज़ के रूप में जगह बनाई, तमाम नुकसान के बावजूद उनके सिलेक्शन को दैनिक हिंदी समाचार पत्रों ने प्रमुखता से छापा था. राज्य के अन्य खिलाड़ियों के साथ 15 दिनों तक वे वहीं रही.

उसी दौरान छोटी मूमल मेहर ने उसके पिता के मोबाइल से उन्हें एक मैसेज भेजा, जिसमें लिखा था, “मैं भी क्रिकेट खेलना चाहती हूं,” अनीशा ने अपने कोच खान को इस बारे में बताया और मेहर को भी ट्रेनिंग देने का अनुरोध किया.

अनीशा तब से महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर में आयोजित टेनिस बॉल क्रिकेट टूर्नामेंट में राज्य की टीम में खेल चुकी हैं. वे जूनियर चैलेंजर ट्रॉफी के लिए राज्य की टीम का भी हिस्सा थीं. उन्होंने कईं कैंप्स में हिस्सा लिया- मेहर उनके साथ जून 2022 में जिला-स्तरीय कैंप में गई थी, हालांकि, गेंदबाज़ वर्तमान में टीम के लिए नहीं खेल रही हैं, उन्होंने अपने अगले लक्ष्य – टीम इंडिया पर अपनी निगाहें गढ़ाई हुईं हैं.

वहीं, 8वीं कक्षा की छात्रा मेहर पिछले दो साल से प्रैक्टिस कर रही हैं, लेकिन जिन बाधाओं और चुनौतियों का सामना वो करती हैं, वे वही हैं जिनका सामना अनीशा ने सालों पहले किया था.

खान ने दिप्रिंट को बताया कि लड़के असुरक्षित हो गए हैं और वो मेहर के साथ नहीं खेलना चाहते. इसलिए उन्होंने गांव में 15 दिन का क्रिकेट कैंप लगाया. उन्होंने बताया, “मैंने उसे एक फील्डर बनाया और अगले 15 दिनों तक उसकी निगरानी की. उसके पास बेहतरीन फिटनेस थी और उसकी बल्लेबाजी प्रभावशाली थी”.

उन्होंने एक इंस्टाग्राम अकाउंट भी शुरू किया, जहां उन्होंने मेहर की यात्रा का दस्तावेजीकरण किया- एक समय में एक वीडियो. बीते एक महीने पहले उन्होंने एक वीडियो अपलोड किया था जो वायरल हो गया था, जबकि मेहर को लगता है कि वो कुछ हद तक आगे आईं हैं, लेकिन संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है. उनका परिवार अब एक अकादमी खोजने की जद्दोजहद कर रहा है, जहां उन्हें ट्रेनिंग के लिए भेजा जा सके, लेकिन खान ने कहा,- “जयपुर तक कोई अकादमी नहीं है.”

(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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