नयी दिल्ली, एक फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय में मंगलवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह के बीच कानून अधिकारी के इस अभिवेदन को लेकर वाकयुद्ध छिड़ गया कि ‘‘हमें पश्चिमी न्यायशास्त्र के फैसलों से प्रभावित होने की जरूरत नहीं है।’’
शीर्ष अदालत एक पूर्व महिला न्यायिक अधिकारी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ यौन उत्पीड़न के अपने आरोपों की जांच के बाद इस्तीफा दे दिया था।
सुनवाई के दौरान मेहता ने कहा, ‘मेरे मित्र ने पश्चिमी न्यायशास्त्र पर भरोसा किया है। मुख्य रूप से, यह हमेशा मेरा सम्मानजनक अनुरोध रहा है कि हमारा न्यायशास्त्र पश्चिमी न्यायशास्त्र से प्रभावित नहीं होना चाहिए। वे क्रम में उच्चतम न्यायालय से बहुत निम्न स्तर के हैं।’’
मेहता ने कहा, ‘हम उच्चतम न्यायालय के समक्ष जिला अदालत के फैसलों का हवाला नहीं देते हैं। हमारी अपनी प्रणाली, समस्याएं और लोकाचार हैं तथा हमें कुछ अन्य न्यायालयों में कही गई बातों से प्रभावित होने की जरूरत नहीं है।’
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने न्यायशास्त्र के प्रति सॉलिसिटर जनरल के ‘राष्ट्रवादी’ रवैये पर कड़ी आपत्ति जताई।
उन्होंने कहा, ‘मैं कहना चाहूंगी कि मैं न्यायशास्त्र के प्रति श्री मेहता के राष्ट्रवादी रवैये से प्रभावित हूं, जब वह कहते हैं कि हमारी अदालतों को ब्रिटेन की अदालतों की ओर नहीं देखना चाहिए और उनके राष्ट्रवाद की हम सभी को सराहना करनी चाहिए।’’
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ के समक्ष जयसिंह ने कहा, ‘मैं एक अंतरराष्ट्रीयवादी हूं और मैं हर जगह प्रकाश की तलाश करूंगी और मैं आपके सामने विभिन्न न्यायालयों के फैसले रखूंगी। यह आप पर निर्भर है कि आप इसे स्वीकार करते हैं या नहीं।’
उन्होंने सॉलिसिटर जनरल द्वारा याचिकाकर्ता को ‘भावनात्मक’ करार दिए जाने पर भी नाराजगी व्यक्त की और कहा कि यह एक ‘रूढ़िवादी’ तर्क है।
जयसिंह ने कहा कि मेहता की बात पुरुष प्रधानता और एक बहुत ही जिम्मेदार न्यायिक अधिकारी की रूढ़िवादिता से कम नहीं है, जिसका सेवा का एक बहुत ही विशिष्ट रिकॉर्ड रहा है।
उन्होंने सॉलिसिटर जनरल की इस दलील का भी जवाब दिया कि यौन उत्पीड़न के अप्रमाणित आरोप के बाद महिला कानून अधिकारी की बहाली से पूरे देश में गलत संदेश जाएगा।
जयसिंह ने कहा, ‘‘श्री मेहता ने एक तर्क दिया, पूरे देश को क्या संदेश भेजा गया है? मुझे पाखंड को इंगित करने के लिए खेद है…।’’
जब मेहता ने स्पष्टीकरण देने की कोशिश की तो जयसिंह ने कहा, ‘उन्हें अभिवेदन करने की अनुमति देना उचित नहीं है।’
मेहता ने तब कहा, ‘नहीं, मैंने कभी भी भावनात्मक शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। मैंने आवेगपूर्ण निर्णय कहा।’
जयसिंह ने जवाब दिया, ‘यही कारण है कि अदालत की कार्यवाही दर्ज की जानी चाहिए। पिछले अवसर पर, उन्होंने इसे दस बार दोहराया। यह उनकी जुबान पर था। हमारे पास अदालत में वकील क्या कहते हैं, इसकी प्रतिलिपि होनी चाहिए।’
मेहता ने हालांकि कहा, ‘मैं गैर-जिम्मेदार नहीं हो सकता। मेरे अभिवेदन लैंगिक रूप से तटस्थ हैं।’
पीठ ने इसके बाद हस्तक्षेप किया और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
यौन उत्पीड़न की शिकायत का सामना करने वाले उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को बाद में दिसंबर 2017 में आरोपों की जांच करने के लिए राज्यसभा द्वारा नियुक्त समिति ने क्लीन चिट दे दी थी।
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नेत्रपाल अनूप
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